उत्तरकाशी सुरंग के मोर्चे पर अब रैट माइनर्स और सेना

41 जिंदगियां बचाने का संघर्ष: अब सुरंग में मोर्चे पर उतरेगी रैट माइनर्स, जानें क्यों खास है यह टीम

रैट होल माइनर्स की टीम
उत्तरकाशी 27 नवंबर। सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 श्रमिक बचाने को बचाव अभियान लगातार जारी है। सुरंग के भीतर ऑगर मशीन का हेड निकालने के बाद यहां इस काम के माहिर रैट माइनर्स की टीम मैन्युअल खोदाई करेगी। इसमें सेना उनकी मदद करेगी।

रैट माइनर्स एक विशेषज्ञों की टीम है जो खोदाई में एक्सपर्ट होती है। एनएचआईडीसीएल के एमडी महमूद अहमद और उत्तराखंड सरकार के सचिव डॉक्टर नीरज खैरवाल ने बताया, मैन्युअल खोदाई शुरू होने के बाद एक मीटर प्रतिघंटा तक खोदाई हो सकती है।

रैट माइनर्स की टीम

सोमवार को वर्टिकल ड्रिलिंग में पानी और पत्थर आने से  दिक्कत हुई। वहीं सुरंग में फंसे ऑगर मशीन के बरमे को बाहर निकाल लिया गया है। हालांकि आज मशीन का हेड फंसा होने से मैन्युअल ड्रिलिंग शुरू नहीं हो पाई। मशीन का हेड निकलते ही मैन्युअल ड्रिलिंग होनी थी।यहां सुरंग में फंसे मजदूर बचाने को कई प्लान पर एक साथ काम चल रहा है। बीते रविवार सुरंग के ऊपर वर्टिकल ड्रिलिंग शुरू हुई थी जिसके साथ यहां आठ इंच की ड्रिल भी हो रही है जिससे जमीन के अंदर मिट्टी की प्रोफाइल के साथ चट्टान की प्रकृति भी पता की जा रही है।

बचाव अभियान जारी

इसके अलावा सुरंग के दायीं ओर से भी ड्रिफ्ट टनल तैयार कर फंसे मजदूरों तक पहुंचने का प्लान तैयार किया गया है। सोमवार को रेस्क्यू अभियान के नोडल अधिकारी सचिव डॉक्टर नीरज खैरवाल व एनएचआईडीसीएल के एमडी महमूद अहमद ने बताया कि सुरंग के ऊपर वर्टिकल ड्रिल का काम जारी है।

यहां मशीन की रिक व मशीन बदलने में कुछ समय लग सकता है। सुरंग में फंसे ऑगर मशीन के बरमे को सोमवार सुबह साढ़े तीन बजे काटकर बाहर निकाल दिया है। वहीं मशीन का हेड बाहर निकालने के बाद रैट माइनर्स यहां मैन्युअल खोदाई का काम शुरू करेगी।
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NHIDCL के एमडी महमूद अहमद ने बताया कि वर्टिकल ड्रिलिंग चल रही है और अब तक 36 मीटर ड्रिलिंग पूरी भी हो गई है. कुल 86 मीटर वर्टिकल ड्रिलिंग होनी है. इस दौरान वहां कुछ पानी,कठोर पत्थर मिले.लेकिन उन्हें हटाते हुए ड्रिलिंग का काम जारी है.महमूद अहमद के अनुसार चट्टान की परत जानने को 8 इंच की ड्रिलिंग हो रही है.

उत्तराखंड के उत्तरकाशी में मजदूरों को बचाने का काम 16वें दिन भी जारी है.सुरंग के अंदर बीते 16 दिनों से 41 मजदूर फंसे हुए हैं.उन्हें सुरक्षित बाहर निकालने के लिए सरकारें निरंतर प्रयास कर रही हैं.बीते दिन यानी रविवार से वहां वर्टिकल ड्रिलिंग पर भी काम शुरू किया गया है.NHIDCL के एमडी महमूद अहमद,SDRF के नोडल अधिकारी नरेश खेरवाल और उत्तराखंड सरकार के सचिव नीरज खेरवाल ने इस पूरे रेस्क्यू ऑपरेशन पर जानकारी दी.

अधिकारियों के मुताबिक हॉरिजॉन्टल ड्रिलिंग के दौरान सुरंग में जो मशीन के पार्ट्स फंस गए थे, को हटा दिया गया है. लेकिन ऑगर मशीन का हेड अभी भी पाइपलाइन में फंसा हुआ है.इन क्षतिग्रस्त हिस्सों को काट कर पाइप को धकेला जा सकता है.जानकारी के मुताबिक 3 मीटर पाइप का इस्तेमाल पहले ही किया जा चुका है.अब हॉरिजॉन्टल ड्रिलिंग वाले रास्ते को ‘रैट माइनिंग’ के जरिए खोला जाएगा.

26 मीटर वर्टिकल ड्रिलिंग हुई पूरी

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NHIDCL के एमडी महमूद अहमद ने बताया कि वर्टिकल ड्रिलिंग चल रही है और अब तक 36 मीटर की ड्रिलिंग पूरी भी हो गई है. कुल 86 मीटर की वर्टिकल ड्रिलिंग की जानी है. इस दौरान वहां कुछ पानी, कठोर पत्थर मिले. लेकिन उन्हें हटाते हुए ड्रिलिंग का काम जारी है. महमूद अहमद के मुताबिक चट्टान की परत जानने के लिए 8 इंच की ड्रिलिंग की जा रही है.

मजदूरों के मानसिक स्वास्थ्य का भी रखा जा रहा ख्याल

वहीं रोबोटिक्स विशेषज्ञ मिलिंद राज ने कहा कि, ‘मैं सिल्कयारा सुरंग में फंसे 41 मजदूरों की मानसिक भलाई के लिए यहां हूं. यह एक घरेलू स्वदेशी तकनीक है. हमारे पास चौबीसों घंटे मजदूरों के स्वास्थ्य की निगरानी करने की प्रणाली है. उन्हें जल्द ही इंटरनेट सेवा भी प्रदान की जाएगी. यह बचाव रोबोटिक तकनीक मीथेन जैसी खतरनाक गैसों का पता लगाने में मदद करेगी.’

हॉरिजॉन्टल ड्रिलिंग को फिर से चालू करने के लिए ली जा रही रैट माइनर्स की मदद

वहीं आपको बताते चलें कि हॉरिजॉन्टल ड्रिलिंग का काम पहले ही आधे से ज्यादा पूरा हो चुका है. लेकिन ऑगर मशीन में आई खराबी की वजह से काम को रोकना पड़ा और अन्य तरीकों से ड्रिलिंग शुरू की गई. अब तक 48 मीटर की खुदाई पूरी हो चुकी है. अब इस ड्रिलिंग में 48 मीटर से आगे की खुदाई मैनुअली की जाएगी. इसके लिए 6 ‘रैट माइनर्स’ की एक टीम को सिल्क्यारा बुलाया गया है. रैट माइनर्स से आजतक ने एक्सक्लूसिव बातचीत की, जिसमें उन्होंने बताया कि माइनर्स बारी-बारी से रेस्क्यू के लिए बनाई गई पाइपलाइन के अंदर छोटा सा फावड़ा लेकर जाएंगे और छोटी ट्रॉ​ली में एक बार में 6-7 किलो मलबा लादकर बाहर निकालेंगे. इस दौरान रैट माइनार्स के पास ऑक्सीजन मास्क, आंखों की सुरक्षा के लिए विशेष चश्मा और पाइपलाइन के अंदर एयर सर्कुलेशन के लिए ब्लोअर मौजूद होगा.

इन रैट माइनर्स के पास दिल्ली और अहमदाबाद में इस तरह का काम करने का अनुभव है. उन्होंने आजतक से बातचीत में कहा, ‘हम एक ही समुदाय के हैं- हम मजदूर हैं, सुरंग के अंदर जो फंसे हैं वे भी मजदूर हैं. हम उन 41 मजदूरों को बाहर लाना चाहते हैं. हम भी किसी दिन ऐसे फंस सकते हैं, तक वो हमारी मदद करेंगे.’ इन माइनर्स ने कहा कि हमें ऐसे काम का अनुभव है, कई साल से हम ये कर रहे हैं. इतना भरोसा है कि हम ये कर लेंगे.

जानें कैसे काम करते हैं रैट माइनर्स

इस काम के बारे में जानकारी देते हुए रैट माइनर्स ने बताया कि पहले दो लोग पाइपलाइन में जाएंगे, एक आगे का रास्ता बनाएगा और दूसरा मलबे को ट्रॉली में भरेगा. ​बाहर खड़े चार लोग पाइप के अंदर से मलबे वाली ट्रॉली को बाहर ​खींचेंगे. एक बार में 6 से 7 किलो मलबा बाहर लाएंगे. फिर अंदर के दो लोग जब थक जाएंगे तो बाहर से दो लोग पाइपलाइन में जाएंगें।

क्या होती है रैट माइनिंग?

रैट माइनिंग को आम बोलचाल की भाषा में समझें तो ‘चूहों की तरह खुदाई करना’ कह सकते हैं. जब जगह बहुत संकरी होती है, बड़ी मशीनें या ड्रिलिंग का अन्य उपकरण ले जाना संभव नहीं होता तो रैट माइनिंक का सहारा लिया जाता है. इसमें इंसान हाथों से खुदाई करते हैं. चूंकि कम जगह में इंसान धीरे-धीरे खुदाई करता है, इसलिए इसे ‘रैट माइनिंग’ नाम दिया गया है. कोयला उत्खनन में इसका इस्तेमाल किया जाता है. खासकर उन क्षेत्रों में जहां अवैध खनन ​होता है. मशीनों और अन्य उपकरणों की मौजूदगी से लोगों और प्रशासन की नजर आसानी से पड़ सकती है, इसलिए चोरी-छिपे इंसानों से कोयले की छोटी-छोटी खदानों में रैट माइनिंग कराई जाती है, ताकि किसी को भनक न लगे।

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