उत्तर ध्रुव की हवाई यात्रा रही रोंगटे खड़े कर देने वाली

नॉर्थ पोल पारकर भारत आने वाली एअर इंडिया की महिला पायलटों ने कहा- वो उड़ान किसी अजूबे से कम नहीं
अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को से दक्षिण भारतीय शहर बेंगलुरु (San Francisco to Bengaluru Direct Flight) आई एअर इंडिया की पहली डायरेक्ट फ्लाइट की पायलट ने बताया कि विमान में सवार पैसेंजर इतने उत्साहित थे कि एयर होस्टेस से बार-बार एक ही सवाल कर रहे थे कि कितनी देर बाद हम नॉर्थ पोल पहुंचेंगे.
ज़ोया अग्रवाल, फ्लाइट की पायलट

नई दिल्ली. अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को से दक्षिण भारतीय शहर बेंगलुरु (San Francisco to Bengaluru Direct Flight) आई एअर इंडिया की पहली डायरेक्ट फ्लाइट की महिला पायलटों ने नॉर्थ पोल (North Pole) के रास्ते भारत पहुंचने के बाद रोंगटे खड़े कर देने वाले अपने अनुभव साझा किए हैं. उन्होंने बताया कि नार्थ पोल पर जेट ब्लैक अंधेरा था, लेकिन तारों की चमक बहुत तेज थी, जिससे आंखें तक चौंधियां गईं. ऐसे तारे यहां कभी नही दिखते हैं. इसके साथ ही सबसे आश्चर्यजनक वहां की पोलर लाइट थी, जो चटक हरे रंग की एक रेखा थी, वो लाइट किसी अजूबे से कम नहीं दिख रही थी.
पायलट टीम की लीडर जोया अग्रवाल और पापागिरी थानमेई ने न्यूज़ 18 से खास बातचीत में अनुभव शेयर किए.उन्होंने बताया कि जैसे ही नॉर्थ पोल को पार किया, तभी 30 हज़ार फीट पर उड़ रही फ्लाइट 5 मिनट तक तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजती रही.सभी पैसेंजर्स और क्रू मेंबर ने एक दूसरे को शुभकामनाएं दीं.उन्होंने बताया कि यह अब तक की पहली ऐसी फ्लाइट थी,जिसमें 7 बार नॉर्थ पोल को लेकर अनाउंसमेंट किया गया.विमान उड़ने से पहले सभी पैसेंजर्स को बताया गया कि उनका यह सफर क्यों खास है,इसके बाद नॉर्थपोल में इंटर करते,नॉर्थ पोल के अंदर,जहां-जहां से नॉर्थ से साउथ होते हैं,इस तरह 7 बार अनाउंसमेंट किया गया.

फ्लाइट में उत्सव

उन्होंने बताया कि सबसे उत्साहजनक क्षण वो था,़जब नॉर्थ पोल से साउथ की ओर फ्लाइट जा रही थी,उस समय पूरी फ्लाइट में उत्सव का वातावरण बन गया.सभी पैसेंजर इस क्षण को अपने मोबाइल से कैद करना चाह रहे थे.क्रू मेंबर भी इसे लेकर बहुत उत्साहित थे,वो भी अपनी निगाह उपकरणों पर लगाए थे.उन्होंने बताया कि फ्लाइट में सवार पैसेंजर्स इतने उत्साहित थे कि एयर होस्टेस से बार-बार एक ही सवाल कर रहे थे कि कितनी देर बाद हम नॉर्थ पोल पहुंचेंगे

डेढ़ साल से कर रहे थे तैयारी

पायलट ने बताया कि इसके लिए वो पिछले डेढ़ साल से तैयारी कर रहे थे.अगर मौसम साथ ना देता तो यह सफर ना हो पाता.जब सुबह फ्लाइट के लिए तैयार हो रहे थे,जब यह जानकर बहुत खुशी हुई कि मौसम बिल्कुल अनुकूल है और हम नॉर्थ पोल पार कर सकते हैं.यह सुनकर हम सभी महिला पायलटों ने एक-दूसरे को शुभकामनाएं दी.उन्होंने बताया कि पैसेंजर्स इतने खुश थे कि फ्लाइट में पैसेंजरों को दिए जाने वाले फीडबैक फॉर्म कम पड़ गए. उन्होंने एयर होस्टेस से टिश्यू पेपर मांगकर क्रू मेंबर्स को बधाइयां दी और उनकी तारीफ कीं. फ्लाइट लैंड करने के बाद सभी पैसेंजर क्रू मेंबर साथ सेल्फी लेना चाह रहे थे.

कई चुनौतियों का किया सामना

उन्होंने बताया कि इस फ्लाइट में चैलेंज कम नहीं थे, क्योंकि नॉर्थ पोल में बीच में कई बार ऐसा क्षेत्र आता है, जहां खराब मौसम से कम्युनिकेशन खत्म होने की आशंका भी रहती है. इसके अलावा हम लोग इसके लिए भी तैयार थे कि अगर इमरजेंसी में फ्लाइट डायवर्ट करना पड़े तो कहां करेंगे, क्योंकि नार्थ में एयरपोर्ट कम हैं, चूंकि ईयर इंडिया का विमान बड़ा था, सभी एयरपोर्ट में लैंड नही कर सकते थे. लेकिन इस फ्लाइट के दौरान मौसम ने साथ दिया और ऐतिहासिक सफर पूरा किया.

कैप्टन ज़ोया अग्रवाल के नेतृत्व में इस फ्लाइट के क्रू में कैप्टन पापागिरी तन्मई, कैप्टन आकांक्षा और कैप्टन शिवानी शामिल थीं.यह फ्लाइट सैन फ्रांसिस्को से 16,000 किमी दूरी तय कर बेंगलुरु पहुंची है
भारत की पहले सबसे लंबे रूट- सैन फ्रांसिस्को से बेंगलुरु के बीच- वाली फ्लाइट शुरू की गई है, दूसरे, इस क्रू में बस महिलाएं थीं. साथ ही यह महिला पायलट क्रू इस फ्लाइट को नॉर्थ पोल के ऊपर से उड़ाकर ले आई हैं.
एयर इंडिया की इस फ्लाइट ने सैन फ्रांसिस्को से उड़ान भरी और सोमवार को तड़के डेढ़ बजे के आसपास बेंगलुरु के कैम्पेगौड़ा इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर पहुंची. इस फ्लाइट ने नॉर्थ पोल के ऊपर से उड़ान भरते हुए लगभग 16,000 किलोमीटर की दूरी तय की.

इस फ्लाइट के लैंड करने के बाद एयर इंडिया ने महिला पायलटों को यह इतिहास रचने की बधाई दी और उनका स्वागत किया. कैप्टन ज़ोया अग्रवाल के नेतृत्व में इस फ्लाइट के क्रू में कैप्टन पापागिरी तन्मई, कैप्टन आकांक्षा और कैप्टन शिवानी शामिल थीं. एयर इंडिया ने फ्लाइट AI176 में उड़ान भरने वाले यात्रियों को भी इस घटना का साक्षी बनने को लेकर बधाई दी.
यात्रा पूरी होने के बाद कैप्टन ज़ोया अग्रवाल ने बेंगलुरु एयरपोर्ट पर न्यूज एजेंसी ANI से कहा कि ‘आज हमने नॉर्थ पोल के ऊपर बस उड़ान भरकर ही नहीं इतिहास नहीं रचा है, बल्कि ऐसा एक महिला पायलटों के क्रू ने किया है. हम इसका हिस्सा बनकर बहुत खुश हैं और गर्व महसूस कर रहे हैं. इस रूट से हमने 10 टन ईंधन बचाया है.’
वहीं क्रू का हिस्सा रहीं कैप्टन शिवानी मन्हास ने कहा, ‘यह बहुत ही रोमांचक अनुभव था और ऐसा पहले किसी ने नहीं किया था. यहां पहुंचने में हमें करीब 17 घंटे लगे.’
नागरिक उड्डयन मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने क्रू को बधाई देते हुए इसे आनंद का पल बताया।

Fly over North Pole: जानें इसका दिलचस्‍प इतिहास, सोवियत रूस ने मार गिराया था कोरियाई विमान

उत्‍तरी ध्रुव के ऊपर से उड़ान भरने का बनाया कीर्तिमान
उत्‍तरी ध्रुव के ऊपर से उड़ान भरने की राह पहली बार वर्ष 1937 में सोवियत पायलट ने दिखाई थी। इस पायलट ने मास्‍को से वैंकोवर की दूरी तय की थी। मौजूदा समय में कई विमानन कंपनियों के विमान इस रूट पर उड़ान भर रहे हैं।

नॉर्थ पोल बर्फ से ढका एक ऐसा इलाका है जो अकसर शोधकर्ताओं को अपनी तरफ आकर्षित करता रहता है। यहां पर जमीन पर समय बिताना जितना मुश्किल है उतना ही मुश्किल होता है इसके ऊपर उड़ना। इसकी वजह यहां की बेहद मुश्किल परिस्थितियां हैं, जो हर वक्‍त पायलट का कड़ा इम्तिहान लेती हैं। जो इस इम्तिहान में खरा उतारता है वो कीर्तिमान स्‍थापित करता है। ठीक वैसे ही जैसे भारत की एयर इंडिया पायलटों ने किया है। एयर इंडिया की महिला पायलटों ने सेन फ्रांसिस्‍को से बैंगलुरू तक का 16 हजार किमी का सफर इसी रास्‍ते से पूरा इतिहास रच दिया है। एयर इंडिया की काबिल महिला पायलटों की टीम में कैप्‍टन जोया अग्रवाल, कैप्‍टन पापागरी तनमई, कैप्‍टन आकांक्षा सोनवरे और कैप्‍टन शिवानी मन्‍हास शामिल थीं।आपको यहां पर ये भी बता दें कि अक्‍टूबर 2019 में पहली बार भारतीय पुरुष पायलटों ने इस क्षेत्र के ऊपर से उड़ान भरी थी। ये विमान नई दिल्‍ली से सेन फ्रांसिस्‍को गया था। इसमें एयर इंडिया के पायलट कैप्‍टन दिग्विजय सिंह और कैप्‍टन रजनीश शर्मा के अलावा इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन के प्रतिनिधि शामिल थे।

सोवियत पायलट ने पहली बार भरी थी उत्‍तरी ध्रुव के ऊपर से उड़ान

उत्‍तरी धुव्र के ऊपर से उड़ान भरने की जहां तक बात है तो आपको बता दें कि सबसे पहले इस काम को 18-20 जून 1937 में सोवियत पायलट वेल्‍री पाव्‍लोविच चाकलॉव ने अंजाम दिया था। उन्‍होंने मास्‍को यूरोप से अमेरिकन पेसिफिक कॉस्‍ट वैंकोवर की दूरी इसी के ऊपर से उड़ान भरकर पूरी की थी। हालांकि उन्‍हें 8811 किमी लंबा सफर पूरा करने में 63 घंटों का समय लगा था। उन्‍होंने ये दूरी टॉपलेव एएनटी-25 के सिंगल इंजन विमान से पूरी की थी। उन्‍हें हीरो ऑफ द सोवियत यूनियन का खिताब दिया गया था। वो सोवियत यूनियन के वोल्‍गा क्षेत्र के वेस्लियावो कस्‍बे से ताल्‍लुक रखते थे जिसको आज चाकलॉव के नाम से जाना जाता है। 15 दिसंबर 1938 को एक विमान हादसे में उनकी मौत हो गई थी। इसके बाद अक्‍टूबर 1946 में बी-29 विमान ने बिना रुके ओहू, हवाई से कायरो (मिस्र) की करीब 15163 किमी की दूरी इस बर्फीले क्षेत्र के ऊपर से ही पूरी की थी। इस दूरी को तय करने में विमान ने 40 घंटे लिए थे।

1954 में हुई थी इसके ऊपर से कमर्शियल विमानों की शुरुआत

जहां तक कमर्शियल विमानों के इस क्षेत्र के ऊपर से उड़ान भरने की बात है तो इसकी शुरुआत 15 नवंबर 1954 को लॉस एंजेलिस से कॉपनहैगन जाने वाली डगलस डीसी-6बी विमान की उड़ान से हुई थी। इसके बाद 1955 में वैंकोवर से एम्‍सटर्डम जाने वाली फ्लाइट ने भी इस खतरनाक सफर को सफलतापूर्वक पूरा किया था। 1957 में पैनएम की पेरिस से लंदन जाने वाली फ्लाइट इसी रूट से होकर गई। एयर फ्रांस ने पहली बार 1960 में इस क्षेत्र के ऊपर से गुजरने वाली अपनी पहली कमर्शियल फ्लाइट सेवा शुरू की थी।

सोवियत रूस ने मार गिराया था विमान

अमेरिका और रूस के बीच शुरू हुए शीत युद्ध के दौरान यहां से गुजरने वाले विमानों ने अपना रास्‍ता बदल लिया था। 1978 में इस क्षेत्र के ऊपर से गुजरते हुए कोरियाई विमान बोईंग 707 को सोवियत रूस ने मार गिराया था। जापान एयरलाइंस ने अप्रैल 1967 में प्रयोगात्‍मक सेवा के रूप में टोक्‍यो से मास्‍को के बीच अपनी विमान सेवा शुरू की थी। लेकिन इसको दो वर्ष बाद ही बंद कर दिया गया था। ये सेवा साइबेरिया के ऊपर से थी। 1983 में फिन एयर ने इस क्षेत्र के ऊपर से उड़ान भरने वाली पहली नॉनस्‍टॉप सेवा शुरू की थी। ये सेवा टोक्‍यो से हैलेंस्‍की के बीच शुरू की गई थी। इससे पहले उत्‍तरी पोल के एंकरेज इंटरनेशनल एयरपोर्ट का इस्‍तेमाल रीफ्यूलिंग के लिए या तकनीकी रूप से किया जाता था।

शीतयुद्ध के बाद कई रूट खुले लेकिन समस्‍याएं भी आईं

शीतयुद्ध के बाद इस हवाई क्षेत्र के ऊपर कई रूट खुले लेकिन यहां पर एयर ट्रेफिक कंट्रोलर, राडार की क्षमता, फंड की कमी, क्षमता की कमी, तकनीकी अव्‍यवस्‍था की दिक्‍कतों के चलते पायलटों को काफी समस्‍या आती थी। इसमें सबसे बड़ी समस्‍या भाषा की थी। इस हवाई क्षेत्र के ऊपर से जाने वाले विमानों को रूसी भाषा वाले एटीसी से तालमेल बिठाना होता था, जो बेहद मुश्किल था। इसके समाधान के तौर पर रशियन अमेरिकन कॉर्डिनेटिंग ग्रुप ऑफ एयर ट्रेफिक का गठन किया गया था।

न्‍यूयॉर्क से हांगकांग की पहली सीधी उड़ान

7 जुलाई 1998 में पहली बार कैथे पेसेफिक फ्लाइट 889 ने न्‍यूयॉर्क से हांगकांग की सीधी नॉन स्‍टॉप उड़ान भरकर एक नया कीर्तिमान बनाया था। ये उत्‍तरी ध्रुव के अलावा रूस के बर्फीले क्षेत्र से होकर गुजरी थ। इसमें करीब 16 घंटे का समय लगा था। मौजूदा समय में कई विमानन कंपनियां इस क्षेत्र से उड़ान भर रही हैं। इसमें एयर इंडिया भी शामिल है।

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