गोद लेने का अधिकार मुस्लिम अपराधी को भी देता है कानून, बंदी को मिला पेरोल

किसी व्यक्ति को सिर्फ इसलिए बच्चा गोद लेने से नहीं रोका जा सकता, क्याेंकि वह इस्लाम धर्म से है: कोर्ट
मुस्लिम व्यक्ति भी बच्चा गोद ले सकता है, दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने सुनाया मुस्लिम आरोपी के हक में फैसला (सांकेतिक चित्र)

Delhi News: पटियाला हाउस कोर्ट के जज धर्मेन्द्र राणा की कोर्ट ने जेल अधीक्षक को आदेश दिया है कि वह आरोपित को हिरासत में संबंधित कार्यालय लेकर जाए जहां बच्चे को गोद लेने की प्रक्रिया में आरोपित को हस्ताक्षर कराने हैं. वहीं कोर्ट ने कहा कि किसी भी व्यक्ति को बच्चा गोद लेने से इसलिए वंचित नहीं किया जा सकता क्योंकि वह मुस्लिम समुदाय से है. बच्चा गोद लेने का अधिकार सभी को समान रूप से प्राप्त है.

रिपोर्ट- सुशील कुमार पांडेय

नई दिल्ली 01 अप्रैल. राजधानी दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने एक मुस्लिम आरोपित के हक में फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी व्यक्ति को सिर्फ इसलिए बच्चा गोद लेने से नहीं रोका जा सकता, क्याेंकि वह इस्लाम धर्म से है. आपराधिक मुकदमे में जेल में बंद आरोपित ने बच्चा गोद लेने के लिए अदालत से पैरोल की मांग की. लेकिन अभियोजन पक्ष ने इसका विरोध करते हुए कहा कि इस्लाम में बच्चा गोद लेने का प्रावधान नहीं है. इस पर अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी व्यक्ति को सिर्फ इसलिए बच्चा गोद लेने से नहीं रोका जा सकता, क्याेंकि वह इस्लाम धर्म से है.

पटियाला हाउस कोर्ट के जज धर्मेन्द्र राणा की कोर्ट ने जेल अधीक्षक को आदेश किया है कि वह आरोपित को हिरासत में संबंधित कार्यालय लेकर जाए जहां बच्चे को गोद लेने की प्रक्रिया में आरोपित को हस्ताक्षर कराने हैं. वहीं कोर्ट ने कहा कि किसी भी व्यक्ति को बच्चा गोद लेने से इसलिए वंचित नहीं किया जा सकता क्योंकि वह मुस्लिम समुदाय से है. बच्चा गोद लेने का अधिकार सभी को समान रूप से प्राप्त है

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मुस्लिम व्यक्ति आपराधिक मामले में आरोपित है और जेल मे बंद है. आरोपित ने अपनी वकील कौसर खान के जरिए बच्चा गोद लेने के लिए पैरोल की मांग संबंधी याचिका अदालत में दायर की थी. याचिका में कहा गया था कि आरोपित को बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया पूरी करने के लिए कुछ जरूरी दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने हैं और संबंधित अधिकारी से भी मिलना है. इसके लिए उसे हरियाणा के नूंह जाना पड़ेगा.

आपराधिक मामले में आरोपित है

अदालत में इस मामले की सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने पैरोल देने का विरोध करते हुए दलील देते हुए कहा था कि इस्लाम धर्म कानूनी रूप से बच्चा गोद लेने की इजाजत नहीं देता है, क्योंकि मुस्लिम समुदाय पर धर्म से संबंधित पर्सनल लॉ लागू होते हैं. वहीं सरकारी वकील की इस दलील पर याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बेशक बच्चा गोद लेने की अनुमति नहीं देता, लेकिन जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2000 के अंतर्गत हर व्यक्ति को बच्चा गोद लेने का पूरा अधिकार है. ऐसे में याचिकाकर्ता के इस अधिकार को महज इसलिए समाप्त नहीं किया जा सकता क्योंकि वह मुस्लिम है और आपराधिक मामले में आरोपित है.

प्रक्रिया में शामिल होने के लिए कस्टडी पैरोल दी जाती है
कोर्ट ने वकीलों की दलील सुनने के बाद टिप्पणी करते हुए कहा कि हालांकि याचिकाकर्ता एक मुस्लिम होने के साथ ही आपराधिक मामले में आरोपित है, लेकिन इस कारण उसे कानूनों में मिले अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता है. उसे बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया में शामिल होने के लिए कस्टडी पैरोल दी जाती है

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