पंजाबी महिला है मिसेज बैक्टर्स की मालिक,20 हजार से एक हजार करोड़ की कंपनी

198 गुना भरने वाले IPO की कहानी:जानिए कैसे 80 साल की मिसेस बैक्टर्स ने 20 हजार से खड़ी कर दी 1 हजार करोड़ की कंपनी

मिसेस बैक्टर्स मूलरूप से क्रीमिका (Cremica) ब्रांड के नाम से बिस्किट बनाने वाली कंपनी है। यह रॉ मटेरियल्स भी सप्लाई करती है। इस कंपनी की को-फाउंडर रजनी बेक्टर (Rajni Bector) हैं
28 दिसंबर को इसका शेयर लिस्ट होगा, तीन साल में यह पहला IPO है जिसे 198 गुना सब्सक्रिप्शन मिला है
80 साल की मिसेस बैक्टर ने 17 साल की उम्र में शादी की और लुधियाना से बिजनेस की शुरुआत की

मुम्बई 21 दिसंबर। मिसेस बैक्टर्स। जी हां, यह नाम आज शेयर बाजार और निवेशकों के बीच बहुत ही फेमस है। निवेशकों को इसका इंतजार बेसब्री से है। कारण यह है कि 28 दिसंबर को इसका शेयर लिस्ट होगा। तीन साल में यह पहला IPO है जिसे 198 गुना सब्सक्रिप्शन मिला है।

रिटेल निवेशकों का हिस्सा 28 गुना भरा

इसके रिस्पांस का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि रिटेल निवेशकों ने 28 गुना ज्यादा पैसा लगाया है। पहले दिन पहले ही घंटे में यह IPO पूरी तरह से भर गया। हम आपको बता रहे हैं कौन हैं मिसेस बैक्टर्स और कैसे 20 हजार रुपए से 1000 करोड़ रुपए की कंपनी खड़ी कर दी।

क्रीमिका ब्रांड है फेमस

मिसेस बैक्टर्स मूलरूप से क्रीमिका (Cremica) ब्रांड के नाम से बिस्किट बनाने वाली कंपनी है। यह रॉ मटेरियल्स भी सप्लाई करती है। इस कंपनी की को-फाउंडर रजनी बेक्टर (Rajni Bector) हैं। इस मुकाम तक रजनी कैसे पहुंचीं, इसकी भी कहानी दिलचस्प है। 20 हजार रुपए से उन्होंने बिस्किट बनाने का कारोबार शुरू किया। आज यह एक हजार करोड़ रुपए की कंपनी है।

पाकिस्तान के कराची में जन्म

रजनी बैक्टर पाकिस्तान के कराची में पैदा हुईं। बचपन लाहौर में बिताया। पिता सरकारी कर्मचारी थे। भारत- पाकिस्तान बंटवारे के समय वह अपने परिवार के साथ दिल्ली चली आईं। 17 साल की उम्र में रजनी ने लुधियाना के धरमवीर बैक्टर से शादी की। उसके बाद फिर पढ़ाई पूरी की। शादी के बाद रजनी अपने पति और तीन बेटों की जिम्मेदारी संभालने लगीं। इसके बाद उन्होंने भारत में अपना कारोबार तलाशना शुरू किया। 1978 में पंजाब के लुधियाना में उन्होंने मिसेस बैक्टर्स फूड स्पेशियालिटी की शुरुआत की। इसके लिए उन्होंने 20 हजार रुपए का इंतजाम किया।

खाना बनाने के शौक को बिजनेस में बदल दिया

कहते हैं कि बैक्टर को खाना बनाने का बहुत शौक था। उन्होंने पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में एक बेकिंग कोर्स में प्रवेश लिया। कई बार वे जब आइसक्रीम, केक और कुकीज ट्राई बनाती थी तो लोगों को खाने के लिए बुलाती थीं। यहीं से उनकी बात आगे बढ़ी। कुछ लोगों ने रजनी को अपना कारोबार शुरू करने का सुझाव दिया। लोगों की सलाह पर उन्होंने आइसक्रीम बनाना शुरू किया। 1978 में 20 हजार रुपए से लगातार बिस्किट, कुकीज और केक बनाने का काम शुरू कर दिया।

60 से ज्यादा देशों में निर्यात

आज मिसेस बैक्टर्स कंपनी के बिस्किट, ब्रेड और आइसक्रीम 60 से ज्यादा देशों में एक्सपोर्ट किए जाते हैं। मिसेस बैक्टर्स फास्ट फूड चेन मैक्डोनाल्ड्स और बर्गर किंग को भी ब्रेड सप्लाई करती हैं। यह वही बर्गर किंग है जिसका IPO एक हफ्ते पहले 156 गुना भरा था। 60 रुपए के इस IPO का भाव तीन दिन में 3 गुना बढ़ कर 219 रुपए पर पहुंच गया था।

540 करोड़ की तुलना में एक लाख करोड़ का रिस्पांस

मिसेस बैक्टर को IPO से वैसे तो केवल 540 करोड़ रुपए ही जुटाने थे। लेकिन सब्सक्रिप्शन के आधार पर इसे एक लाख करोड़ रुपए के लिए रिस्पांस मिला है। उम्मीद है कि लिस्टिंग में यह शेयर निवेशकों को अच्छा मुनाफा दे सकता है। Mrs Bectors का क्रेमिका नॉन-ग्लूकोज सेगमेंट में उत्तर भारत का प्रमुख बिस्किट ब्रैंड है। 2013 में रजनी बैक्टर के तीन बेटों, अजय, अनूप और अक्षय बैक्टर के बीच कारोबार को बराबर-बराबर बांटा गया था।

1990 में परिवार के सदस्य जुड़े

कंपनी में तेजी तब आई जब परिवार के अन्य सदस्य 1990 में कंपनी से जुड़े। उस समय कंपनी का नाम क्रीमिका था। 1990 के मध्य में कंपनी को बड़ा ब्रेक मिला, जब मैकडोनाल्ड ने भारत में प्रवेश किया और इसके साथ मटेरियल की सप्लाई के लिए एग्रीमेंट किया। 1996 में इस कंपनी ने कैडबरी और आईटीसी जैसी कंपनियों को भी सप्लाई करना शुरू किया। इसके लिए यह कंपनी फिलौर (पंजाब) फैक्टरी में प्रोडक्ट बनाती थी। 1999 में इसने अपना नाम बदलकर मिसेस बैक्टर्स फूड स्पेशियालिटी कर दिया। 2006 में इसने पहली बार 100 करोड़ रुपए के कारोबार के आंकड़े को पार किया।

गोल्डमैन सैश ने किया निवेश

साल 2006 में ही इस कंपनी में ग्लोबल इन्वेस्टमेंट बैंकिंग फर्म गोल्डमैन सैश ने 10 पर्सेंट हिस्सेदारी खरीदी। इसके लिए उसने 50 करोड़ रुपए का पेमेंट किया। इस पैसे से कंपनी ने बिजनेस को बढ़ाया और ग्रेटर नोएडा, मुंबई तथा हिमाचल प्रदेश में ऑटोमेटेड प्लांट डेवलप किया। 2010 में गोल्डमैन ने अपनी हिस्सेदारी मोतीलाल ओसवाल को बेच दी और कंपनी से निकल गया। कंपनी के पास कुल 4 हजार कर्मचारी हैं। 6 इन -हाउस मैन्युफैक्चरिंग फैसिलिटी हैं।

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