विचार:तंत्र में तो कमियां रहेंगी,कोरोना महामारी को ज्यादा जिम्मेदार हम

पद्मभूषण डॉक्टर अनिल प्रकाश जोशी

तंत्र की खामियां निकालने से पहले जिम्मेदारियां समझें, आज इस महामारी के सबसे बड़े दोषी हम ही हैं
ये साफ हो गया है कि महामारी के इस कहर से अपनी जान बचाने का परहेज यानी बचाव ही एक रास्ता है। आने वाले समय में भी यही हमें कोरोना से बचा सकता है। आज जो हालात हमने पैदा कर दिए हैं उसमें अस्पतालों और डॉक्टरों से ज्यादा अपेक्षा नहीं की जा सकती, क्योंकि इस तरह की महामारी हर व्यवस्था को हताश कर देती है। जिस तरह के हमारे व्यवहार थे और आपाधापी मचाई, उससे सारी व्यवस्था ही चरमरा गई थी।

हमारी जीवन शैली ही ऐसी बन चुकी है, जिसमें धैर्य की कोई जगह नहीं बची। फिर जरा से संकट से हम इस कदर घबरा जाते हैं कि सुविधा न मिलने पर अराजकता पर उतर जाते हैं। पहले तो हम हर तरह के नियमों की धज्जियां उड़ाते नजर आते हैं और ऐसा ही हमने किया भी। अपने दोष ढूंढने के बजाए, व्यवस्था पर अंगुली उठाने का काम किया।

कोरोना की दूसरी लहर इसलिए घातक हुई क्योंकि हमने परहेजों को गवारा नहीं समझा। ज्यादातर लोगों ने यह मान लिया था कि हम सुरक्षित हैं और वे कोरोना के भय से ऊपर उठ गए हैं। जब फिर सब कुछ उलट गया और लगने लगा कि हम भी लपेटे में आ सकते हैं, तो दवाओं और ऑक्सीजन जैसी जान बचाने वाले साधनों की जमाखोरी और कालाबाजारी को बढ़ावा देना शुरू कर दिया।

जिसे जरूरत भी नहीं थी और बीमारी के चपेट में भी नहीं आए थे, उन्होंने भी बाजार से सबकुछ गायब करना शुरू कर दिया। हमने ही खुद पूरी व्यवस्था को चरमराने वाली स्थिति में पहुंचा दिया था। आखिर किस विकल्प की आस में हम इस सिस्टम को नकारा करने व कहने पर आमदा हैं? इस महामारी के बीच वर्तमान तंत्र को ही मजबूत करके हम अपनी जान बचा सकेंगे।

इस दौरान सबसे बड़ी बात यह रही कि वैक्सीन पर सवाल खड़े करने शुरू कर दिए। टीकाकरण के लिए सरकारों को मिन्नतें करनी पड़ीं। इस दूसरी लहर में वैक्सीनेटेड लोग सीधे इस वायरस से लड़ पाने में खुद को सक्षम कर पाए। एक रपट के अनुसार उनमें संक्रमण के आसार मात्र 00.2 प्रतिशत ही रहे और जिनको हुआ भी वे इस बीमारी से गंभीर नहीं हुए। तीसरी लहर से पहले सबको वैक्सीन लगाने की पहल बहुत प्रभावी सिद्ध होने वाली है। जिस समय देश के आधे से ज्यादा लोग वैक्सीनेटेड होंगे, यह बीमारी हार की कगार पर होगी। साफ बात है कि ये वैकसीन ही है, जो आपकी और सरकार की जान बचा सकती है।

ये कड़वा सत्य है कि हम ही आज इस महामारी के सबसे बड़े दोषी हैं। समय पर परहेज न करना, नियमों का उल्लंघन करना, इन सबने हमें न खत्म होने वाले संकट में धकेल दिया। बचना-बचाना है तो स्वयं के प्रबंधन व तंत्रीय व्यवस्थाओं पर नए सिरे से विश्वास करें, धैर्य के साथ व्यवहार करें। ऐसे ही समय संयम के टूटने का मतलब सारे तंत्र का फेल होना होता है। यह सब कुछ सरकार को बचाने के लिए नहीं बल्कि, अपनी-अपनी जान बचाने के लिए जरूरी है क्योंकि, सरकारें आएंगी-जाएंगी, पर अपनी और अपनों की जान एक ही है।

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