कंझावला केस: न समय पर पोस्टमार्टम,न मेडिकल,न सही धारायें,किसे बचा रही दिल्ली पुलिस?

ग्राउंड रिपोर्ट: टाइम पर पोस्टमॉर्टम, न मेडिकल, किसे बचा रही पुलिस:कंझावला केस में सवाल! अंजलि के साथ OYO में कौन, दोस्त क्यों छिप गई

वैभव पलनीटकर


दिल्ली के कंझावला केस में अंजलि की प्राथमिक पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट सामने आई है, जिसके अनुसार रेप या यौन हमले के प्रमाण नहीं मिले हैं। इस रिपोर्ट के बावजूद पुलिस की कार्रवाई और कहानी अब भी सवालों के घेरे में है।

एक CCTV फुटेज सामने आया है, जिसमें अंजलि और उसकी दोस्त निधि एक OYO होटल के बाहर नजर आती हैं। दोनों लड़कियां स्कूटी से निकल रही हैं और तीन लड़के पास में खड़े हैं,इनमें से एक लड़का अंजलि से बात भी कर रहा है।

ये CCTV फुटेज होटल के बाहर का है। अंजलि अपनी दोस्त के साथ होटल से बाहर निकलती है,यहां उन दोनों में भी झगड़ा होता है। भीड़ जुटने के बाद दोनों स्कूटी से निकल गई थीं।

ये होटल अंजलि के घर से सिर्फ 2.5 किलोमीटर दूर बुध विहार, सेक्टर-23 में है। अंजलि की मां ने दावा किया था कि वो काम के लिए घर से निकली थी और देर रात 4 बजे आने के लिए कहा था। सुबह 8 बजे पुलिस ने मां को फोन कर हादसे के बारे में बताया, सवाल ये है कि जब 4 बजे अंजलि घर नहीं लौटी तो मां ने उसे फोन क्यों नहीं किया।

दूसरी तरफ छानबीन में सामने आया है कि अंजलि अपनी दोस्त के साथ न्यू-ईयर पार्टी करने होटल गई थी। होटल के मैनेजर ने पुलिस को बताया है कि लड़कियों की किसी बात पर दोस्तों से लड़ाई हो गई थी,बाद में उनकी आपस में भी लड़ाई हुई और फिर होटल स्टाफ ने उन्हें जाने को कहा था।

अंजलि के दोस्त कौन थे, निधि कहां गायब थी

यह वीडियो सामने आने के बाद सवाल उठ रहे हैं कि पुलिस ने उस रात होटल में मौजूद अंजलि के दोस्तों की तलाश क्यों नहीं की। CCTV फुटेज में नजर आ रहा है कि अंजलि की स्कूटी के पीछे-पीछे ही ये लड़के भी बाइक से निकले थे।

एक सवाल ये भी है कि दूसरी लड़की जिसका नाम निधि है, एक्सीडेंट के बाद भाग क्यों गई, उसने किसी को कुछ बताया भी नहीं और सामने भी नहीं आई। एक्सीडेंट के बाद ये लड़की घर कैसे पहुंची, आखिर पुलिस उसे करीब 60 घंटों तक क्यों नहीं ढूंढ पाई।

अब जब निधि सामने आई है तो वो अंजलि के भी शराब के नशे में होने की बात कह रही है। क्या ये केस कमजोर करने का कोई षड्यंत्र है? CCTV में नजर आया है कि स्कूटी से लौटने से पहले ही सड़क पर दोनों के बीच झगड़ा भी हुआ था।

निधि ने बताया-‘टक्कर के बाद गाड़ी के नीचे अंजलि का पैर या कुछ फंस गया था,वो गाड़ी के नीचे से निकल ही नहीं पाई। जो लोग गाड़ी चला रहे थे उन्होंने दो-तीन बार गाड़ी को आगे-पीछे किया,अंजलि चिल्ला रही थी,लेकिन उन लोगों ने नहीं सुना। उन लोगों ने भी शराब पी रखी थी। वो लोग कार आगे ले गए। मैं डर गई थी,इसलिए बस घर जाकर मां को सब बताया।’

निधि के इस बयान से आरोपितों की भी मुश्किलें बढ़नी हैं। इससे पता चलता है कि आरोपितों ने अंजलि देख ली थी, जब उन्होंने देखा तब वो जिंदा थी। इसके बावजूद उन्होंने बचने को उसे न सिर्फ कई बार कुचला,बल्कि उसके बाद 14 किलोमीटर तक उसे घसीटा भी। यही अंजलि की मौत का कारण भी बना।

पुलिस की लचर कार्रवाई, आरोपितों को फायदा न मिल जाए


इस पूरे मामले में दिल्ली पुलिस पर तो कई बड़े सवाल उठ रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल यही है कि आरोपितों ने शराब पीकर एक लड़की कुचल दी। लड़की की लाश को 14 किलोमीटर गाड़ी के नीचे घसीटते रहे, लेकिन न कोई पुलिस नाका पड़ा और न ही दिल्ली पुलिस कि किसी पेट्रोल टीम को वे दिखे।

ये दुर्घटना 31 दिसंबर और 1 जनवरी के बीच रात हुई, पुलिस का दावा था कि वे सबसे ज्यादा अलर्ट थे। पुलिस की लिखी FIR भी काफी कमजोर बताई जा रही है, आरोपितों पर 304 (गैर इरादतन हत्या), 304-A (लापरवाही से मौत), 279 (रैश ड्राइविंग) और 120-बी (आपराधिक साजिश) जैसी धाराएं लगाई गई हैं।

हमने केस में दिल्ली पुलिस की कार्रवाई और रवैये पर दो विशेषज्ञों से बात की। एक हैं उत्तर प्रदेश के पूर्व DGP विक्रम सिंह, जो पुलिस कानून और सिस्टम को अच्छे से जानते-समझते हैं।

दूसरा, क्रिमिनल लॉयर कुमार वैभव से समझा कि जब ये केस कोर्ट ऑफ लॉ में जाएगा, तो पुलिस की ढिलाई से क्या चुनौतियां आड़े आएंगी।

मुझे इस मामले में दिल्ली पुलिस के रवैये में 8 बड़ी कमियां नजर आती हैं:

1. नए साल के पहले शाम को दिल्ली छावनी में बदल जाती है। इस दिन गश्त, नाकाबंदी पूरी चुस्ती से की जानी चाहिए। जगह-जगह चेकिंग पोस्ट लगाकर शराब पीने वालों को कंट्रोल में रखा जाता है। एक गाड़ी के नीचे लड़की की लाश 14 किलोमीटर तक घिसटती रही, लेकिन पुलिस को इसकी भनक कैसे नहीं लगी। पुलिस न्यू ईयर की रात इतनी ढीली कैसे हो सकती है?

2. चश्मदीद गवाह दीपक ने पुलिस को 22 बार कॉल किया, कोई सुनवाई नहीं हुई। पुलिस की भ्रमणकारी PCR गाड़ी सामने से गुजरी और आवाज देने पर भी नहीं रुकी। दूसरे प्रत्यक्षदर्शी को भी पुलिस ने कहा- जाओ अपना काम करो।

प्रत्यक्षदर्शी से पुलिस ने खुद संपर्क नहीं किया, बल्कि मीडिया में खबर आई तब उसने खुद पुलिस के पास जाकर घटना बताई। क्या पुलिस ने रात से लेकर सुबह तक प्रत्यक्षदर्शियों को ढूंढने की कोशिश नहीं की?

3. दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता ने बिना पोस्टमॉर्टम कह दिया कि दुर्घटना से मौत हुई है। आरोपितों ने बताया कि गाड़ी में तेज म्यूजिक चल रहा था,पुलिस ने उसे सच मान भी लिया। सच तो ये है कि अगर कार के नीचे एक पानी की बोतल भी आ जाए,तब भी ड्राइवर को महसूस होता है कि कुछ अटपटा है। पुलिस प्रवक्ता ने आरोपितों के बचाव पक्ष के वकील की तरह पैरवी की। पुलिस को पीड़िता के पक्ष की शिकायत के आधार पर जांच करनी होती है।

4. पुलिस को आरोपितों का एल्कोहॉलिक टेस्ट तत्काल कराना चाहिए था। टेस्ट के रिजल्ट और आरोपितों के बयान से मैच करके केस समझना चाहिए था। हालांकि, ये टेस्ट 80 घंटे तक हो सकता है, लेकिन इतने गंभीर केस में पुलिस ने ढिलाई क्यों बरती? पुलिस ने लड़की का पोस्टमॉर्टम 36 घंटे बाद किया। इतने गंभीर केस में पुलिस का इतना ढीला रवैया समझ से परे है। क्यों नहीं भेजा गया, पुलिस को इसका जवाब देना चाहिए।

5. क्राइम या एक्सीडेंट के स्पॉट की पुलिस ने बाड़ेबंदी नहीं की। दूसरे दिन सामान्य जन और मीडिया ने क्राइम स्पॉट रौंद दिया। इससे काफी महत्वपूर्ण प्रमाण नष्ट हो जाने की आशंका हैं। पुलिस को तत्काल फॉरेंसिक टीम से घटनास्थल से प्रमाण जुटाने चाहिए थे।

6. पुलिस ने शुरुआत में सिर्फ और सिर्फ दुर्घटना की धाराएं लगाईं। इसके बाद एक – एक कर 304A, 120B की धाराएं लगाईं। पीड़िता की मां ने रेप का शक जताया तो पुलिस ने रेप की धारा केस में क्यों नहीं जोड़ी? अगर पोस्टमॉर्टम में ये गलत निकल जाती तो बाद में जांच में ये धाराएं हटा ली जातीं। पुलिस ने पीड़िता की मां के बयान के आधार पर केस में कार्रवाई क्यों नहीं की? पुलिस की ये एकपक्षीय कार्रवाई साफ दिखाती है कि थाने के स्तर पर आरोपितों को फायदा पहुंचाने की कोशिश की गई।

7. पुलिस की सार्वजनिक FIR रनिंग कमेंट्री जैसी है। जबकि पुलिस को तब तक पता चल चुका था कि आरोपित कौन हैं। पुलिस को FIR लड़की के पक्ष से लिखनी चाहिए थी। सुप्रीम कोर्ट का फैसला है कि FIR कोई एनसाइक्लोपीडिया नहीं होती है। पुलिस को घटनाक्रम की सही जानकारी उपलब्ध करानी चाहिए, जिससे बाद में केस ठीक से चल सके।

8. दुर्घटना के बारे में पुलिस को पता चलने के कई घंटों बाद तक लड़की की मां और परिवारवालों को नहीं बताया गया कि उनकी बेटी के साथ क्या हुआ है। पीड़ित पक्ष को ‘राइट टु नो’ और ‘नीड टु नो’ दोनों अधिकार हैं। ये पुलिस की जिम्मेदारी है कि पीड़िता की मां को जल्दी से जल्दी दुर्घटना/अपराध के बारे में सूचना दी जाए। उन्हें शव देखने का भी अधिकार था।

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आरोपितों को गाड़ी के नीचे बॉडी का पता नहीं चला, ये असंभव

14 किलोमीटर तक गाड़ी के नीचे कोई शव घिसटता है और कार में बैठे लोगों को इसका पता नहीं चला, ये तो असंभव ही है। मतलब ये जानबूझ कर किया हुआ है। अगर ये माना भी जाए कि उन्हें नहीं पता चला तो फिर वे शराब के इतने नशे में थे कि उन्हें होश नहीं था। तब भी ये मामला जानबूझ कर माना जाएगा।

अगर इस सब का प्रमाण होने के बाद भी पुलिस कोर्ट में 304A का मुकदमा डाले तो कोर्ट के पास पावर है कि वो इसे 304 के केस में बदल दें। इस धारा में अपराध सिद्ध होने पर 14 साल तक की सजा हो सकती है।

पुलिस सवालों के घेरे में, ढीली कार्रवाई से केस कमजोर हुआ

अभी ये कहना मुश्किल है कि पुलिस ने ठीक से काम नहीं किया है। सबसे बड़ा सवाल ये ही है कि PCR पर उनको बार-बार फोन किए गए, अगर वो उठा लेते तो ये दुर्घटना रोकी जा सकती थी।

आरोपित लड़की को 14 किलोमीटर तक घसीटते रहे, इसमें करीब 1 घंटा तो लगा ही होगा। ऐसे में अगर पुलिस पहले कहीं हस्तक्षेप कर देती तो शायद लड़की बचाई जा सकती थी। फिलहाल पुलिस ने CCTV फुटेज तो निकाल ही लिए हैं। बॉडी का पोस्टमॉर्टम भी करवा रहे हैं।

FIR में 15 घंटे की और पोस्टमॉर्टम में 36 घंटे देरी भी पुलिस पर सवाल खड़ा कर रहे हैं। इस देरी का जांच पर नकारात्मक प्रभाव होता है। पुलिस से पहले तो मीडिया को सब पता था। घटना रात 2 बजे के आसपास हुई।

लड़की की मां ने बताया कि दुर्घटना के बाद सुबह 8 बजे पुलिस का फोन आया, लेकिन मौत की जानकारी दोपहर 1 बजे दी, इसके पहले घुमाते रहे। किसी भी तरह की देरी संदेह पैदा करती है, पुलिस पर संदेह बढ़ाती है।

सेक्शुअल असॉल्ट एंगल से भी जांच जरूरी

पोस्टमॉर्टम में यौन हमला न आने से ये मान लेना गलत है कि इस बारे में छानबीन न हो। क्या पता इन लड़कों से लड़की के संबंध रहे हों और कोई झगड़ा ही इस क्रूरता का कारण बना। अभी केस ओपन है तो अनुसंधान सबसे जरूरी है। कई मामलों में ये हमला उस घटना में नहीं होता, लेकिन उसका कारण यही होता है। इस मामले में अभी FSL रिपोर्ट का भी इंतजार है, उससे भी चीजें और साफ होंगी।

मुंबई के एलिस्टर परेरा के केस में भी 304A नहीं 304 लगी थी, क्योंकि उस केस में आरोपित नशे में था तो कोर्ट में यही सवाल उठा था कि उसने नशे में गाड़ी क्यों चलाई। ये तो जानबूझकर किया गया हुआ न। (2006 में एलिस्टर परेरा ने कार से सात लोगों को कुचल दिया था।)

इस केस में अगर आरोपितों के मेडिकल टेस्ट में अल्कोहल आए और पुलिस धारायें बदलने का प्रार्थना पत्र न लगाए तो इस पर सवाल होना चाहिए।

अंजलि की मौत के 5 आरोपित…

1. दीपक खन्ना, उम्र 26 साल, ग्रामीण सेवा में ड्राइवर 2. अमित खन्ना, उम्र 25 साल, उत्तम नगर में SBI कार्ड्स के लिए काम करता है 3. कृष्ण, उम्र 27 साल, कनॉट प्लेस में स्पेनिश कल्चर सेंटर में काम करता है 4. मिथुन, उम्र 26 साल, नरेला में हेयर ड्रेसर 5. मनोज मित्तल, उम्र 27 साल, पी ब्लॉक सुल्तानपुरी में राशन डीलर, BJP नेता

सहेली का दावा- नशे में गाड़ी चला रही थी अंजलि, सिर-रीढ़ पर चोट से मौत

कंझावला हिट एंड रन केस में अंजलि के सिर-रीढ़ और शरीर के निचले हिस्से पर गंभीर चोटें लगने से मौत की बात सामने आई है। उधर, अंजलि की दोस्त निधि ने पुलिस को दिए बयान में हादसे की वजह कार सवारों की गलती को बताया है। उसने अंजलि के नशे में होने का भी दावा किया है।

निधि ने कहा कि अंजलि बहुत नशे की हालत में थी। मैंने उसे कहा था कि मुझे स्कूटी चलाने दे लेकिन उसने मुझे स्कूटी चलाने नहीं दी। कार से टक्कर हुई, उसके बाद मैं एक तरफ गिर गई और वो कार के नीचे आ गई। कार के नीचे वह किसी चीज में अटक गई और कार उसे घसीटते हुए ले गई। मैं डर गई थी इसलिए वहां से चली गई और किसी को कुछ नहीं बताया।​​​

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