जगद्गुरु रामभद्राचार्य और गुलज़ार ज्ञानपीठ पुरस्कार 2023 के लिए चयनित

जगतगुरु रामभद्राचार्य को मिलेगा ज्ञानपीठ पुरस्कार, 22 भाषाओं का ज्ञान, 80 से अधिक लिख चुके ग्रंथ
चित्रकूट तुलसी पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामभद्राचार्य (Jagadguru swami Rambhadracharya) को ज्ञानपीठ पुरस्कार 2023 ( Jnanpith Award 2023) के लिए चुना गया है. इसके अलावा गीतकार गुलजार के नाम की भी घोषणा की गई है.
लखनऊ 17 फरवरी 2024 । : भारतीय ज्ञानपीठ की ओर से हर साल दिए जाने वाले ज्ञानपीठ पुरस्कार की घोषणा शनिवार को की गई. 58वें ज्ञानपीठ पुरस्कार 2023 के लिए दो लोगों के नाम की घोषणा की गई. इसमें जगतगुरु रामभद्राचार्य और गीतकार गुलजार का नाम शामिल है. कथाकार और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रतिभा राय की अध्यक्षता में हुई चयन समिति की बैठक में इस पर निर्णय लिया गया.

जगद्गुरु रामभद्राचार्य का जन्म 14 जनवरी 1950 को सांडीखुर्द जौनपुर उत्तर प्रदेश में हुआ. इनके पिता का नाम पंडित राजदेव मिश्रा और माता का नाम शची देवी मिश्रा था. जगद्गुरु रामभद्राचार्य का असली नाम गिरधर मिश्र है. जो आगे चलकर रामानंदाचार्य स्वामी रामभद्राचार्य के नाम से प्रसिद्ध हुए.जगद्गुरु रामभद्राचार्य महाराज जब केवल दो माह के थे,तभी आंखों की रोशनी चली गई थी.कहा जाता है कि उनकी आंखें ट्रेकोमा से संक्रमित हो गई थीं.इस कारण उनकी शिक्षा-दीक्षा नहीं हो सकी और केवल सुनकर ही सीखते गए. वह रामानंद संप्रदाय के वर्तमान में चार जगत गुरु रामानंदाचार्यों में से एक हैं.इस पद पर वह 1988 से प्रतिष्ठित हैं.

रामानंदाचार्य महाराज ने बचपन से ही दृष्टिहीन होने के बाद भी 80 से अधिक ग्रंथ की रचना की.इतना ही नहीं उनमें सीखने की ललक ऐसी थी कि उन्होंने केवल आम लोगों की बातें सुनकर करीब 22 से अधिक भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया.जन्म से ही दृष्टिहीन होने के बावजूद भी जगतगुरु रामभद्राचार्य को रामचरितमानस, गीता,वेद, उपनिषद,वेदांत आदि कंठस्थ है.वह धर्म चक्रवर्ती तुलसी पीठाधीश्वर के तौर पर भी जाने जाते हैं.इनकी पहचान एक शिक्षक के तौर पर होने के साथ ही संस्कृत के विद्वान,दार्शनिक,लेखक,संगीतकार, गायक,नाटककार, बहुभाषाविद के रूप में है.मौजूदा समय वह तुलसी पीठ चित्रकूट में निवास करते हैं.जगद्गुरु रामभद्राचार्य 4 साल की उम्र से ही कविता पाठ करने लगे थे. 8 साल की छोटी सी उम्र में ही भागवत व राम कथा करना शुरू कर दिया था.

राम जन्मभूमि मामले में दी थी गवाही

राम जन्मभूमि विवाद में जब सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने गुरु रामभद्राचार्य से भगवान राम के जन्म स्थान के बारे में शास्त्रीय और वैदिक प्रमाण पत्र मांगे थे तो उन्होंने अथर्ववेद का हवाला दिया था. उन्होंने न्यायालय में अथर्ववेद के दसवें कांड के 31वें अनुवादक के दूसरे मंत्र का हवाला देते हुए भगवान राम के जन्म का वैदिक प्रमाण दिया था. इसके अलावा उन्होंने ऋग्वेद की जैमिनीय संहिता का उदाहरण देते हुए सरयू नदी के विशेष स्थान से दिशा और दूरी का सटीक ब्योरा देते हुए राम जन्मभूमि का स्थान बताया था. इसके बाद कोर्ट ने वेदों को मंगाया और उसकी जांच की गई. इसमें उनका बताई गई जानकारी सही पाई गई थी. चित्रकूट में जगतगुरु रामभद्राचार्य ने विकलांग विश्वविद्यालय की स्थापना की. वह इस विश्वविद्यालय के आजीवन कुलाधिपति भी हैं. उन्होंने दो संस्कृत और दो हिंदी में मिलाकर कुल चार महाकाव्य की भी रचना की है.

इन उपाधियों से हो चुके सम्मानित

चित्रकूट तुलसी पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामभद्राचार्य को अभी तक कई सम्मान मिल चुके हैं.साल 2015 में पद्म विभूषण,साल 2011 में देवभूमि पुरस्कार,साल 2005 में साहित्य अकादमी पुरस्कार,साल 2004 में बद्रायण पुरस्कार और साल 2003 में राजशेखर सम्मान.जगद्गुरु रामभद्राचार्य को भारतीय ज्ञानपीठ न्यास से संस्कृत साहित्य के लिए दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. निजी सचिव कुलाधिपति आरपी मिश्रा ने बताया कि गुरुदेव आज लगभग शैक्षणिक जगत में शिक्षाविदों के लिए अमूल्य धरोहर हैं और धार्मिक क्षेत्र में भी भारत में विशिष्ट महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं. रामभद्राचार्य ने अभी तक लगभग 250 ग्रंथों का लेखन प्रणयन किया है.

गुलज़ार हर उस के शायर हैं जो कहीं से टूटा है, किसी से बिछड़ा है

शायरी और किस्सागोई से लेकर फिल्म निर्माण, पटकथा-संवाद लेखन व निर्देशन तक गुलज़ार का एक बड़ा कारोबार फैला है लेकिन यह कारोबार अभी फिल्म दुनिया की बाजारवादी माँग और आपूर्ति का संसाधन नहीं बना है। वह पूरी तौर पर अदबी और रचनात्मक है। गुलजार का होना यह बताता है कि उनकी शायरी की शुचिता फिल्म दुनिया की कारोबारी समझ के बावजूद कायम है।

उनके प्रशंसक बेशुमार हैं, उनके गीतों-नज्मों को जहाँ लाखों करोड़ों लोगों की मुहब्बत हासिल है, कविता प्रेमियों को भी उसने अपने भाव-संसार और अंदाजे-बयाँ से प्रभावित किया है। उन्होंने अपनी शख्सियत से यह जताया है कि एक सच्चा कवि रोजी-रोटी से समझौता करता हुआ भी अदब के लिए अपने दिल में एक खास जज्बा रखता है। गुलजार ने फिल्मी गीतों से लेकर शायरी और नज्मों के समानांतर सफर में अपने कवित्व की अनूठी सौगात से लोगों को नवाज़ा है।

हाल के बरसों में गुलजार की शायरी के कई नए कलेक्शन आए। पंद्रह पाँच पचहत्तर, कुछ तो कहिए और पाज़ी नज़्में । ‘पंद्रह पाँच पचहत्तर’ आधुनिक उर्दू कविता में मील का पत्थर है। अपने सीधे-सहज गीतों में वे जितना मुखर होकर मानवीय अनुभूतियों को करीब से छूते हैं, अपनी नज्मों में वे आधुनिक संवेदना की गहराइयों में उतरते हुए लफ्जों को नए मानी देते है। उन्हीं का कहना है- ‘मैंने काल को तोड़ के लम्हा-लम्हा जीना सीख लिया।’ पंद्रह खंडों में पाँच-पाँच कविताओं का यह संग्रह कुल पचहत्तर कविताओं का एक ऐसा गुलदस्ता है जो पचहत्तर पार गुलजार के जीवन और अनुभवों के अनेक शेड्स उजागर करता है। गुलजार की चित्रकारी के भी नायाब नमूने यहाँ पन्ने दर पन्ने पिरोए गए हैं जिन्हें निहार कर आँखों को एक रचनात्मक तृप्ति मिलती है। मुझे आईआईसी दिल्ली के एक जलसे की याद है जब पाकिस्तान के एक शायर ने अपनी गजल के एक मिसरे में उन्हें पिरोते हुए कहा था-
देखकर उनके रुखसार-ओ-लब यकीं आया
कि फूल खिलते हैं गुलजार के अलावा भी।

‘यार जुलाहे’ (गुलजार) की भूमिका में यतींद्र मिश्र ने लिखा है – ‘इच्छाएँ, सुख, यथार्थ, नींदें, सपने, जिज्ञासा, प्रेम, स्मृतियाँ और रिश्तों की गुनगुनाहट को उनकी नज्मों और गजलों में इतने करीने से बुना गया है कि हमेशा यह महसूस होता है कि वह किसी नेक जुलाहे के अंतर्मन के तागे से बुनी गई हैं। इसमें संदेह नहीं कि गुलजार की नज्मों-कविताओं में कविता और शायरी की सदियों पुरानी परंपरा सांस लेती है और वे हर बार अपनी अनुभूतियों को भाषा और संवेदना का नया जामा पहनाते हैं।’

इन नज्मों में पिरोए गए बिंबों से एक खाका बनाएँ तो उनकी नज्में पहाड़ों और वादियों में आने का न्यौता देती हैं, काले-काले मेघों से अपने सूखे गाँव का हाल बतलाती हैं, चहकती चिड़िया की मस्ती निहारती हैं, बेरंग गर्मियों का जायजा लेती हैं, पहाड़ों पर आधी आँखें खोलकर सोती हैं, बुजुर्ग लगते चेन्नई, जादुई लगती मुंबई, धूपिया लगती दिल्ली और सदाबहार लगते कोलकाता की यादें संजोती हैं, कागज के पैराहन पर लिखी तहरीरें बाँचती हैं और टूटते हुए मिसरों की हिचकियाँ सुनती हैं, किसी अजीज के साथ पूरा दिन गुजारने की तमन्ना रखती हैं और उसके बगैर सोने के लिए नींद की गोलियाँ तलाशती हैं, पेड़ों की पोशाकों से बदलते मौसम का मिजाज पहचानती हैं और जानती हैं -कोई मौसम हमेशा के लिए नहीं रहता। गुलज़ार जज़्बात के शायर हैं। हर शख्स के भीतर कहीं कुछ टूटा फूटा होता है, उसे एक बेहतर रफूगर चाहिए।
गुलजार की नज्मों के कई संग्रह आ चुके हैं। फिल्मों में लिखी शायरी और गीतों के चयन भी। पर वे उर्दू शायरी की जिस परंपरा से आए हैं, वहां दुनियावी सतहीपन से बचाए रखने की जद्दोजेहद भीतर चलती रहती है। उनकी नज्में और ग़जलें इस जहनी अहसास से वाकिफ़ हैं।

एक बार का वाकया है, आई आई सी, दिल्ली में पाकिस्तान के महबूब शायर अहमद फराज़ की शान में एक गोष्ठी हुई। उन्हें सुनने दिल्ली और बाहर से तमाम शायरी के दीवाने इकट्ठा थे। दिल्ली की खूबसूरत आबादी का एक हिस्सा भी वहां मौजूद था। दूसरी तरफ गुलज़ार भी श्रोताओं में थे। फराज़ ने एक ग़ज़ल पढ़ी और गुलज़ार को यों याद किया —

देख कर उनके रुखसार ओ लब यकीं आया
कि फूल खिलते हैं गुलज़ार के अलावा भी।

खूबसूरती के बरक्स यहां गुलजार को चिह्नित करना उनकी मकबूलियत को सेलीब्रेट करना है। यह दो बड़े शायरों का आमना सामना भी है कि वे एक दूसरे को किस तरह अपने मजमुए में शामिल करते हैं। ‘कुछ तो कहिए’ संग्रह में जिन ग़ज़लों , शेरों व त्रिपदियों पर निगाह गयी उनमें से कुछ प्रस्तुत हैं—

अब मुझे कोई इंतज़ार कहॉं
वो जो बहते थे आबशार कहॉं
पूरिया का उदास उदास आलाप
सर्द शामों का वो गु़बार कहाँ

दिन से ऑंचल छुड़ा के डूब गयी
शाम आंखें सुजा के डूब गयी
जब मैं पहुंचा तो सुर्ख थीं आंखें
शाम पलकें झुका के डूब गयी

बीते रिश्ते तलाश करती है
खुशबू गुंचे तलाश करती है
जब गुज़रती है उस गली से सवा
ख़त के पुरजे तलाश करती है
बूढी पगडंडी शहर तक जाकर
अपने बेटे तलाश करती है

हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
वक्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते
जिसकी आवाज़ में सिलवट हो, निगाहों में शिकन
ऐसी तस्वीर के टुकड़े नहीं जोड़ा करते

किताबों से कभी गुज़रो तो यूँ किरदार मिलते हैं
गए वक्तों की ड्योढी में, खड़े कुछ यार मिलते हैं
जिसे हम दिल का वीराना समझकर छोड़ आये थे
वहां उजड़े हुए शहरों के कुछ आसार मिलते हैं

त्रिपदी ।।
दो ही लोगों की जगह नज़्म में है, आ जाओ
आओ ले चलते हैा अफ़लाक घुमा लायें तुम्हें !
याद रखोगे कि शायर से मुहब्बत की थी !!
खेल खेल में नज़्म अदायगी
गुलज़ार में आखिर क्या है जो हमें बांधता है। शायरी ने बहुत ऊँचाइयां छुई हैं, संवेदना, कथ्य और शिल्प के स्तर पर; फिर भी नज्मों का अंदाजेबयां कुछ और होता है, शायरी की सुगठित कसावट की अपेक्षा जिसके तार कुछ ढीले होते हैं। गुलज़ार शब्दों से खेलने वाले और खेल-खेल में कुछ नया रचने वाले शख्स हैं। इसलिए तमाम किन्तु-परन्तु के बावजूद वे हमें छूते हैं। उनकी इमेजरी गिलहरी की तरह संवेदना की टहनियों पर चहलकदमी करती है । ‘ पाजी नज़्में’ पढ कर ऐसा ही कुछ अहसास हुआ। इसकी दो नज़्में प्रस्तुत हैं,जिन पर अभी कुछ देर पहले निगाह देर तक अँटकी रही :

तुमसे जब बात नहीं होती ।।

तुमसे जब बात नहीं होती किसी दिन जानम
ऐसे चुपचाप गुज़रता है यह सुनसान-सा दिन
एक सीधी सी बड़ी लंबी सड़क पे जैसे
साथ-साथ चलता हुआ, रूठा हुआ दोस्त कोई
मुँह फुलाए हुए, नाराज़ सा, ख़ामोश, उदास
और जब मिलता हूँ हँस पड़ता है यह रूठा हुआ दिन
गुदगुदा कर मुझे कहता है, ‘कहो, कैसे हो यार!’
आप से तुम से, तू पे यूँ आए ।।

आप से तुम से तू पे यूँ आए
जैसे दफ्तर से, घर पे, बिस्तर में
कोट नेकटाई खोल कर मोज़े
ऐसे लेटे पसार के पांव
जैसे किसी भी दफ्तर में
लौट कर अब नहीं जाना !

गुलजार की ग़ज़लों और नज्मों की महीन बीनाई दिल के गुमशुदा तारों को खोज निकालती है। कहते हैं, शायरों ने फिल्मों में जाकर शायरी के मेयार को हल्का किया है, पर गुलज़ार के साथ ऐसा नहीं है। वे शायरी में अपनी पहचान और प्रयोगधर्मिता को अक्षुण्ण रखते हैं तथा हर बार तमाम ऐसे बिम्बों, प्रतीकों और कथ्य के जुदा अंदाजेबयां से अपने चाहने वालों को हतप्रभ कर देते हैं। हर बार उनकी शायरी से एक नई धुन, एक नई छवि प्रकट होती है। पाजी नज़्में उनकी इसी बेतकल्लुफी का पर्याय हैं, जहां वे अपने विट को शायरी की खराद पर चमकाते हैं और कई बार अप्रत्याशित-सा अर्थ देने वाले वाक्यों-पदों से भी वे मानीखेज़ मंतव्य निकाल लेते हैं। उनकी शायरी भी जैसे खुदा से की जाने वाली इबादत या हँसी-ठठ्ठा हो। जब वे कहते हैं —

जब धुआं देता, लगाता पुजारी
घी जलाता है कई तरह के छोंके देकर
इक जरा छींक ही दो तुम
तो यकीं आये कि सब देख रहे हो। (चिपचे दूध से नहलाते हैं)

आवाज़ों का बहता दरिया
हमारे बीच आवाजों का दरिया बहता ही रहता है । पर आवाजें कभी कभी इतनी भारी होती हैं कि सिर के ऊपर से गुजर जाती हैं और अल्फाज़ इतने पटाखेदार कि अगले दिन जैसे जली हुई फुलझड़ियों की राख बुहारनी पड़ती है। गुलजार इस फील को एक नज्म़ में बयान करते हैं। देखें तो यह एक शायर की अपनी कसौटी भी है कि वह चुनिंदा शब्दों, बिम्बों, प्रयोगों से एक ग़ज़ल, एक नज्म गढ़ता है। उसे लुप्प से जल कर पटाखों या फुलझड़ियों-की मानिंद बुझ जाने वाले शब्दों से कोफ्त होती है, वे उसे दूर से ही पहचान में आ जाते हैं। दुनिया आज ऐसे ही भारी और बेमानी अल्फाज़ से घिरी है।

एक अच्छी चाय का जलवा अलग ही होता है। चाय जिसके स्वाद ने दुनिया भर को गुलाम बना रखा है, उस पर शायर जब नज्म लिखता है तो उसका अंदाजेबयां भी कुछ अलग होता है। एक अच्छी चाय क्या होती है इसे गुलजार अपने तरीके से समझाते हैं। वे कहते हैं, होठों से जब चूम के देखोगे, तब जानोगे/ अच्छी चाय क्या होती है। एक शायर चाय को किस नज़रिये से देखता है उसे गुलज़ार के लफ्जों में यों कहेंगे —

तीन-तीन सिंगार हैं इसके…
दूध का छुवां, चुटकी भर सिंदूर के जैसा
या एक ‘त्राशा’ निम्बू का, मुस्कान के जितना
वरना कोरी कुंवारी चाय चूम के देखो
महकी-महकी सांसों से जब नाक छुएगी
पता चलेगा….अच्छी चाय क्या होती है ! (चाय)

पर हम तो कहेंगे कि एक अच्छी नज़्म क्या होती है, इसे गुलज़ार की नज़्मों से गुजरते हुए ही महसूस किया जा सकता है।

हालांकि किसी शायरी, कविता या किसी नज्म के लिए यह जरूरी नहीं कि वह किसी समस्या का कोई मुकम्मल समाधान हो, या वह किसी संदेश या सलाहियत के साथ खत्म हो। पर गुलजार की ये नज़्में पाजी नज़्में होकर भी कुछ न कुछ मूल्यवान संदेश देती हैं। वे इन नज्मों में खोती हुई तहजीब और कल्चर की बात करते हैं तो हवाई जहाज में हादसे के वक्त कैसे आक्सीजन मास्क लगा कर सीट के नीचे जैकेट पहन कर कूदना है इस हिदायत के बावजूद कितना मुश्किल होता है मरना, इस डर की भी वे खबर लेते हैं। इन नज़्मों में वे कुछ मसखरी से भी पेश आते हैं जिससे कि वाकई ‘धत् पाजी’ की मीठी सी फटकार सुनने को मिले। नज़्मों को लेकर उनकी यह कल्पना भी कितनी नायाब है —
नज़्में भी सब्जी मंडी में बिकतीं तो कुछ और ज्यादा बिकतीं!

ताजा ताजा एक भाव से
स्वादी, फींकी छॉंटी जाएं
छोटी-बड़ी भी लोग अपनी फुर्सत के बट्टे रख के तोलते
”बस बस , इतनी ही काफी हैं….
इक छोटी वाली और चढ़ा दो ! ”

शैल्फ़ पे रख देते तो गर्द ही पड़ती रहती
फ्रिज में रखने से…..
वक्त जरूरत काम आती हैं !

उनकी शायरी हो, नज़्में हों, अशआर हों या त्रिपदियां या फिल्मी नग्मे ही — गुलज़ार की शायरी एक नए मिजाज का आग़ाज हैं जिनमें विट है, तंज है, गुस्सा है, फुर्सत में रची गयी शरारतें हैं जिनमें गुलज़ार का चेहरा नेपथ्य से हँसता मुस्कराता नज़र आता है। पर एक हक़ीक़त यह भी है कि गुलज़ार हर उस शख्स के शायर हैं जो कहीं से टूटा है, किसी से बिछड़ा है, किसी के प्यार में पागल है, किसी ने धोखा दिया है, किसी न किसी के खयाल में खोया-सा रहता है, किसी न किसी की राह देखा करता है, अपनी जिन्दगी के गमगीन सीन छुपाये फिरता है, गुजिश्ता रिश्तों की बारिशों को याद कर विकल होता है। गुलजार की ग़ज़लें जलती आंखों पर ठंडे पानी के छींटे की तरह हैं।

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ज्ञानपीठ पुरस्कार 2023

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