बदलेगी आईपीसी और सीआरपीसी लेकिन भाषा का फंसेगा पेंच

Modi Govt Changing Colonial Era Laws Ipc Crpc And Iea Experts Welcome This Move
‘अदालतों का काम अंग्रेजी में,कानूनों के नाम हिंदी में!’अंग्रेजों के जमाने के कानून बदलने वाले बिल पर क्या कह रहे विशेषज्ञ?

मोदी सरकार अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे तीन प्रमुख कानूनों-आईपीसी,सीआरपीसी और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को बदल रही है। इसके लिए शुक्रवार को लोकसभा में तीन बिल पेश हुए। बिल में प्रस्तावित बदलावों का विशेषज्ञों ने स्वागत किया है। हालांकि, नए कानूनों के सिर्फ हिंदी नाम से वें सहमत नहीं हैं।

नई दिल्ली 11 अगस्त : औपनिवेशिक युग के कानूनों- भारतीय दंड संहिता (IPC), दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम बदलने को शुक्रवार को लोकसभा में तीन विधेयक पेश हुए। कानूनी विशेषज्ञों ने सरकार के इस कदम का स्वागत किया है। विशेषज्ञों में, हालांकि उन्हें हिंदी में नाम देने को लेकर आपत्तियां हैं।

दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) आर.एस. सोढ़ी ने कहा कि भारत एक ‘विकासशील और जीवंत समाज’ है जिसमें कोई भी स्थिर कानून नहीं रख सकता है।

सीनियर ऐडवोकेट विकास सिंह और विकास पाहवा ने कहा कि ये कानून औपनिवेशिक युग के ‘अप्रचलित कानून’ थे और उन्हें समाप्त करने की आवश्यकता थी।

सीनियर ऐडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि ‘इन कानूनों के नामों को हालांकि हिंदी शब्दों से बदलना उस न्यायिक प्रणाली में “पूरी तरह से अर्थहीन” है,जो ज्यादातर अंग्रेजी में चलती है।’’

ब्रिटिश शासन में बनें कानूनों के खिलाफ एक प्रमुख आवाज रहे वकील जे. साई दीपक ने कहा कि उन्होंने,हालांकि विधेयकों का अध्ययन नहीं किया है,लेकिन उन्हें खुशी है कि कम से कम इन कानूनों के नाम बदल दिए गए हैं।

गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को लोकसभा में ब्रिटिशकाल से चले आ रहे आईपीसी,सीआरपीसी और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने को तीन नए विधेयक पेश किए और कहा कि अब राजद्रोह के कानून को पूरी तरह समाप्त किया जा रहा है।

शाह ने सदन में भारतीय न्याय संहिता विधेयक,2023; भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक,2023 और भारतीय साक्ष्य विधेयक,2023 पेश किये। ये क्रमशः भारतीय दंड संहिता (आईपीसी),1860,दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपी सी),1898 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम,1872 की जगह लेंगे। उन्होंने कहा कि त्वरित न्याय प्रदान करने और लोगों की समकालीन आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को ध्यान में रखने वाली एक कानूनी प्रणाली बनाने को ये परिवर्तन किए गए।

सरकार के कदम पर टिप्पणी करते हुए न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) सोढ़ी ने कहा कि जहां भी बदलाव की जरूरत है,उसे लाया जाना चाहिए और जो भी कानून समाज की भलाई को है उसका स्वागत किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा,‘एक जीवंत समाज में,कानूनों को भी बदलना होगा। आपके पास स्थिर कानून नहीं हो सकते।’

छोटे अपराधों के लिए दंड के रूप में पहली बार सामुदायिक सेवा करने के प्रस्तावित प्रावधान के बारे में पूछे जाने पर, न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) सोढ़ी ने कहा कि’छोटे अपराधों के लिए दंड रूप में सामुदायिक सेवा की शुरुआत अच्छी बात है,क्योंकि किसी को छोटी-छोटी बातों पर जेल भेजने से किसी को मदद नहीं मिलती।’

विकास सिंह ने सरकार के इस कदम पर अपनी राय व्यक्त करते हुए कहा कि’यह ऐसी चीज है जिसकी सराहना की जानी चाहिए।’ उन्होंने हालांकि इन विधेयकों का नाम हिंदी में रखने के विषय में कहा कि इन कानूनों के नाम हिंदी में नहीं होने चाहिए क्योंकि यह अदालतों की आधिकारिक भाषा नहीं है।

सिंह ने कहा कि जो लोग हिंदी से परिचित नहीं हैं,उन्हें इन प्रस्तावित अधिनियमों के नाम समझने में कठिनाई होगी।

उनकी बात का समर्थन करते हुए शंकरनारायणन ने कहा कि नामकरण में ये बदलाव निरर्थक हैं।

उन्होंने कहा कि मैंने विधेयकों को विस्तार से नहीं देखा है, लेकिन कम से कम नाम बदलना उस न्यायिक प्रणाली में पूरी तरह से निरर्थक है,जो काफी हद तक अंग्रेजी भाषा पर चलती है,खासकर उच्चतम न्यायालय में जहां यह संविधान की तरफ से ही प्रावधान है कि अदालत की भाषा अंग्रेजी है।’

वरिष्ठ अधिवक्ता विकास पाहवा ने कहा कि तीन प्रमुख आपराधिक अधिनियम सौ साल से भी पहले लागू किए गए थे और इनमें संशोधन की सख्त जरूरत थी। फौजदारी मामलों के वकील के रूप में,मैंने हमेशा महसूस किया है कि मुकदमे की प्रक्रिया,दंडात्मक अपराधों की परिभाषा और साक्ष्य के कानून पुराने हैं,उनमें आमूल-चूल परिवर्तन की जरूरत है और आधुनिक भारत के साथ तालमेल बिठाना होगा। इस तर्ज पर बनाया गया कोई भी कानून हमारे देश की आपराधिक न्याय प्रणाली के लिए अनुकूल होगा।’

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *