अबोध ‘प्रेम’ या यौन आक्रमण कर रहा है सैंकड़ों किशोरियों को बर्बाद

 

Many Teenage Girls Fell In Love And Ruined Their Lives
अबोध प्रीत की सजा: एक गलत निर्णय से नष्ट हुई हंसती जिंदगी, बड़े सपने और पूरा परिवार

गोरखपुर 22 मई। गोरखपुर में हर साल औसतन 500 से अधिक किशोरियों की जिंदगी उनके एक गलत फैसले से नष्ट हो रही है। इसमें कई ऐसी भी हैं, जो पढ़ने-लिखने में मेधावी थीं और डॉक्टर-इंजीनियर बनने का सपना देखती थीं। लेकिन, आज वह अवसाद में जीवन गुजार रही हैं।

अबोध आयु में प्रेम  के चक्कर या किसी मानव पशु की शिकार हुई किशोरियों की पूरी जिंदगी ही नष्ट हो चुकी है। मान सम्मान गंवाने के बाद अब इन्हें समाज के ताने सुनने पड़े रहे हैं। अपने कटने लगते हैं और मां-बाप की बेरुखी से उनकी मानसिक स्थिति और खराब हो जाती  है। समय से इलाज न होने की वजह से वे अवसाद में चली जाती हैं। कई बार वे आत्मघाती कदम उठाकर खुद की जिंदगी ही खत्म कर देती हैं तो कई बार उन्हें ठीक करने के लिए मां-बाप को शहर छोड़ने जैसा बड़ा फैसला लेना पड़ता है।

गोरखपुर में हर साल औसतन 500 से अधिक किशोरियों की जिंदगी उनके एक गलत फैसले से नष्ट हो जा रही है। इसमें कई ऐसी भी हैं, जो पढ़ने-लिखने में मेधावी थीं और डॉक्टर-इंजीनियर बनने का सपना देखती थीं। लेकिन, आज वह अवसाद में जीवन गुजार रही हैं। इन किशोरियों के साथ ही घरवालों के सपने भी बिखर गए। अब वे डॉक्टरों से दवा और काउंसिलिंग की मदद से उनकी मानसिक स्थिति को ठीक करने के जद्दोजहद में जुटे हैं।

केस एक
इंजीनियर बनने का सपना टूटा, शहर छोड़कर करा रहे इलाज

नवंबर 2017 में शाहपुर में दुष्कर्म का केस दर्ज हुआ। किशोरी को पुलिस ने खोज तो लिया, लेकिन उसकी जिंदगी तबाह हो चुकी है। वह जिंदगी में बहुत कुछ हासिल करना चाहती थी। इंटर में 88 प्रतिशत अंक आए तो घरवालों के हौसले भी बुलंद हो गए थे। इंजीनियरिंग की परीक्षा की तैयारी करने को शहर भेज दिया। सोचा था, बेटी उनका ऐसा नाम रोशन करेगी कि उसके साथ उनकी भी जिंदगी बदल जाएगी।

बेटी भी मां-बाप के अरमानों पर आगे बढ़ी, लेकिन एक घटना ने सब कुछ बदल दिया। गर्ल्स हॉस्टल के पास रहने वाले एक सीनियर के पास वह पढ़ने जाने लगी। शिक्षा को छोड़, सीनियर ने उसे प्रेम जाल में फंसाया और किशोरी भी सब भूल गई। तब उसकी उम्र महज 17 साल ही थी। सीनियर उसे भगा ले गया। घरवाले परेशान हुए, खोजे और फिर 2017 में शाहपुर थाने में केस दर्ज कराया।

पुलिस दिल्ली से किशोरी को लेकर आई। तब वह गर्भवती हो गई थी। आरोपी जेल गया, लेकिन किशोरी की जिंदगी बर्बाद हो गई। अब वह 22 साल हो गई है, लेकिन बीच में तीन साल तक पढ़ाई रुक गई थी। न मां-बाप भरोसा कर रहे थे, न ही वह पढ़ने की स्थिति में थी। समाज के ताने से देवरिया जिले का गांव छोड़ना पड़ा। अब पिता परिवार के साथ प्रदेश से बाहर रहते है। गोरखपुर के एक बड़े डॉक्टर के यहां पर उनका उपचार चलता है और आज भी दवा लेने महीने में एक बार आते हैं। लेकिन, फोन पर घटना का जिक्र होते ही कहते हैं, बड़ी मुश्किल से बेटी भूली है। उसे वह मंजर मत याद दिलाइए। उसके साथ मेरी जिंदगी भी बर्बाद हो गई है। कोशिश यही है कि किसी तरह से ठीक हो जाए। कहीं, शादी हो जाए।

केस दो
बेटी बनी बाइपोलर डिसऑर्डर की मरीज, पिता भी आ गए अवसाद में
खोराबार इलाके के एक गांव में रहने वाली लड़की के पिता विदेश में रहते हैं। हाईस्कूल में उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से 64 प्रतिशत अंक पाने के बाद पिता ने उसे शहर के एक स्कूल में दाखिला दिलाया। शहर में पढ़ने आई किशोरी मोबाइल की दुकान पर रिचार्ज कराने गई थी। गांव के पास के ही एक युवक ने उसका मोबाइल नंबर हासिल कर लिया। फिर उसने संदेश भेजा। पहले किशोरी ने मना किया, लेकिन बाद में वह उसकी बातों में आ गई। किशोरी ने 2020 में घर छोड़ दिया। युवक के साथ वह बंगलूरू चली गई थी। किशोरी को पुलिस ने खोज लिया और युवक को जेल भेज दिया।

किशोरी पहले तो उसके साथ रहने की जिद करती रही, लेकिन एक साल बाद जब युवक जमानत पर छूटा तो  युवक ने ही साथ रहने से इन्कार कर दिया। बालिग हो चुकी किशोरी के दिमाग पर यह घटना इस कदर असर कर गई है, वह बाइपोलर डिसऑर्डर से पीड़ित हो गई। घरवाले भी गुस्से में समझ नहीं पाए और बीमारी बढ़ती चली गई। वह बैठे-बैठे रोने लगती थी।

इसे परिवार वालों ने समझा कि अब जिंदगी तबाह होने के बाद भी वह उसी के लिए (युवक) रो रही है। लेकिन, एक दिन जब उसने आत्महत्या की कोशिश की तो पिता, मानसिक रोग विशेषज्ञ के पास लेकर गए। वहां पर उन्हें बीमारी का पता चला। इलाज चला तो ठीक तो हो गई, लेकिन उसकी पढ़ाई वाला जीवन नष्ट हो चुका है। पिता कहते हैं, आरोपित को सजा तो मिल गई, लेकिन उनकी जिंदगी बर्बाद हो गई। बेटी को लेकर बहुत से सपने देखे थे, आज उसकी हालत देखकर मैं खुद अवसाद का दवा खाने लगा हूं।..

केस तीन
पाश्विकता के बाद कर ली आत्महत्या, परिवार भी नष्ट 

25 जुलाई 2022। पिपराइच इलाके में 16 वर्षीय एक किशोरी ने आत्महत्या कर ली। जांच हुई तो पता चला कि इलाके का हिस्ट्रीशीटर अच्छेलाल उससे अक्सर छेड़खानी करता था। पोस्टमार्टम में पता चला कि वह गर्भवती भी थी। यानी, उसने अपने साथ हुई पाश्विकता को किसी को बताया ही नहीं। परिवारवाले कमजोर थे, शायद इस वजह से उस हिस्ट्रीशीटर के डर से न तो उसने परिवार में बताया और न ही कभी पुलिस में जाने की हिम्मत कर पाई। जब उसके शरीर में बच्चे की वजह से बदलाव शुरू हुआ तो उसने जिंदगी को खत्म करने का फैसला कर लिया।

उसकी जिंदगी खत्म होने के बाद ही पूरा मामला खुला और फिर पुलिस ने केस दर्ज कर आरोपित अच्छेलाल को जेल भेज दिया। मगर, परिवार को आज भी मलाल है कि उनकी एक बेटी अब इस दुनिया में नहीं है। घरवाले जिस बेटी के लिए अरमानों को संजोए थे, आज वह इस दुनिया में है ही नहीं, उसे याद करके रोने के अलावा अब उनके पास कुछ नहीं बचा है।

विशेषज्ञों की राय

मनोवैज्ञानिक डॉक्टर सीमा श्रीवास्तव ने कहा कि पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव बढ़ा है। कई अभिभावक घर में ओपेन सोसायटी की बात बेहिचक करते हैं। कम उम्र की संतानें इसका सही मायने समझे बिना इस सोसायटी का हिस्सा बनने की कोशिश करती हैं। फिल्में, टीवी सीरियल भी प्यार को अलग तरह से परिभाषित करते हैं। युगल के साथ को आज की जरूरत की तरह पेश करते हैं। बेटा हो या बेटी, इन सारी चीजों का प्रभाव उनके रहन-सहन, सोचने के ढंग पर असर डालता है। भटकाव की नौबत तक भी ले जाता है।

गोरखपुर यूनिवर्सिटी के समाजशास्त्री दीपेंद्र मोहन सिंह ने कहा कि अशिक्षा और अनुशासन की कमी की वजह से ऐसे मामले सामने आते हैं। किशोरावस्था में बच्चों को सही-गलत की ज्यादा समझ नहीं होती। ऐसे में पूरी जिम्मेदारी अभिभावकों की होती है कि वे उन पर नजर रखें। उनकी हर गतिविधि का मूल्यांकन करें। बच्चों के व्यवहार में बदलाव आने पर अभिभावक को काउंसिलिंग करानी चाहिए। मित्रवत व्यवहार रखते हुए उन्हें सही और गलत की पहचान करानी चाहिए। सुविधाएं देने में खराबी नहीं है, लेकिन ध्यान रखें कि उनका दुरुपयोग न हो।

वरिष्ठ मानसिक रोग डॉक्टर गोपाल अग्रवाल ने कहा कि दुष्कर्म का प्रभाव न केवल पीड़िता को शारीरिक रूप से, बल्कि मनोवैज्ञानिक रूप से भी प्रभावित करता है। पीड़िता के दिमाग पर यह कई तरीके से असर डालता है। प्रमुख है अवसाद और सबसे खराब स्थिति में व्यक्तित्व विकार का विकास हो सकता है। सबसे आम पीटीएसडी ( पोस्ट ट्राउमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर) है। पीड़िता के दृष्टिकोण से, चाहे वह सामूहिक दुष्कर्म हो या एक ही अपराधी, मनोवैज्ञानिक आघात समान है। शारीरिक हिंसा की मात्रा भिन्न हो भी सकती है और नहीं भी। सबसे बड़ी बात यह है कि अभिभावक को सब कुछ भूलकर अपने बच्चों के मानसिक स्थिति पर ध्यान देना चाहिए। कई बार डॉक्टर के पास पहुंचने पर इतनी देरी कर देते है कि रोग ही बढ़ जाता है। दवाओं और काउंसिलिंग की मदद से ऐसे मरीजों को उभारा जा सकता है। मरीज की जरूरत के हिसाब से उन्हें सलाह दी जाती है।

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