क्या भारत ने यूक्रेन में फंसे लोगों को निकालने में देर कर दी? लगता तो नहीं

ज़ुबैर अहमद

जैसे-जैसे रूस, यूक्रेन पर अपना शिकंजा कसता जा रहा है, वैसे-वैसे वहां फंसे हज़ारों भारतीय नागरिकों की चिंताएं भी बढ़ती जा रही हैं. रूस की सैन्य कार्रवाई के तीसरे दिन शनिवार यूक्रेन के कई शहरों पर रूसी विमान लगातार बमबारी कर रहे हैं. राजधानी कीएव में फंसे भारतीय छात्रों का कहना है कि शहर में भय और अव्यवस्था  है.

रूस के इस आक्रमण के बीच भारत अपने नागरिकों को यूक्रेन से बाहर निकाल रहा है, जिसमें शुक्रवार को 470 भारतीय छात्रों का पहला जत्था यूक्रेन से बाहर निकल रोमानिया की सीमा पहुंच गया. हालांकि इन्हें अभी तक भारत नहीं लाया जा सका है.

विदेश मंत्रालय के मुताबिक़, उन छात्रों के रहने और खाने का इंतज़ाम सरकार ने किया है. कीएव में भारत के दूतावास ने बताया है कि भारतीय नागरिकों को यूक्रेन से सुरक्षित निकालने की प्रक्रिया रोमानिया, हंगरी और पोलैंड के भारतीय दूतावासों के संयुक्त प्रयासों से चल रही है.

यूक्रेन में अभी 20,000 से अधिक नागरिक रहते हैं, जिनमें से अधिकतर मेडिकल की पढ़ाई करने वाले छात्र हैं.

संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने पिछले हफ़्ते कहा, “20,000 से अधिक भारतीय छात्र और नागरिक यूक्रेन के विभिन्न हिस्सों में रहकर पढ़ाई करते हैं. भारत के लोगों की मदद करना हमारी प्राथमिकता है.”

क्या लोगों को निकालने में हुई देरी

लेकिन क्या मोदी सरकार को भारतीय नागरिकों को यूक्रेन से निकालने का काम काफ़ी पहले शुरू कर देना ​चाहिए था, ख़ास तौर पर तब जब यूक्रेन में हफ़्तों से संकट के हालात  थे?

विपक्षी दलों समेत कुछ लोगों की राय में सरकार ने इस में देरी की. महाराष्ट्र, तमिलनाडु और बंगाल जैसे कुछ ग़ैर-बीजेपी राज्य सरकारों ने कहा कि वो अपने ख़र्च पर वहां फंसे अपने नागरिकों को लाने में पूरी तरह से तैयार हैं.

जॉर्जिया और आर्मेनिया में भारत के राजदूत रहे अचल कुमार मल्होत्रा का कहना है कि कुछ देर ज़रूर हुई, लेकिन अनिश्चितता के हालात थे, जिसके चलते कोई ठोस क़दम उठाना मुश्किल था.

यूक्रेन में हैरान परेशान लोग किसी तरह सुरक्षित स्थानों पर पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं.

मल्होत्रा ने कहा, “ये   विवास्पद  है कि नागरिकों को निकालने में देरी हुई. शायद 6-8 दिन पहले काम शुरू हो सकता था. लेकिन मैंने सुना है कि परीक्षा के चलते बहुत से छात्र यूक्रेन छोड़ कर भारत वापस नहीं आना चाहते थे.”

वहीं विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला भारत सरकार के नागरिकों को निकालने में देरी की आलोचना किए जाने का जवाब देते हैं कि भारतीय दूतावास ने कई दिन पहले कई एडवाइज़री जारी की और लोगों से यूक्रेन छोड़कर जाने की सलाह दी. वो कहते हैं कि कई छात्र पढ़ाई अधूरा छोड़ कर वापस लौटने में संकोच कर रहे थे.

गुरुवार को यूक्रेन पर रूसी हमले शुरू होने से दो दिन पहले एयर इंडिया का ड्रीमलाइनर बी-787 विमान 200 से अधिक भारतीय नागरिकों को भारत लेकर आया. लेकिन अगले विमान को यूक्रेन पहुंचने से पहले ही वापस लौटना पड़ा, क्योंकि तब तक रूस का आक्रमण शुरू हो चुका था और यूक्रेन का एयर स्पेस बंद हो चुका था।

यूक्रेन से निकलते लोग

‘सरकार को पहले ही प्रयास करना चाहिए था’

एयर इंडिया ने 18 फ़रवरी को घोषणा की थी कि वो भारत और यूक्रेन के बॉरिस्पिल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के बीच तीन उड़ानें संचालित करेगी. यूक्रेन से तीन उड़ानों में से पहली उड़ान बीते मंगलवार की रात राजधानी दिल्ली पहुंची, उसके बाद यूक्रेन का एयर स्पेस बंद हो गया.

भारतीय दूतावास ने पिछले सोमवार को विशेष उड़ानों पर एक एडवाइज़री जारी करते हुए ट्वीट किया, “यूक्रेन में मौजूदा स्थिति के लगातार बहुत तनावपूर्ण रहने और अनिश्चितताओं के बने रहने को देखते हुए” अतिरिक्त उड़ानों का संचालन किया जा रहा है.”

लेकिन आलोचक कहते हैं कि ये सारा इंतज़ाम सरकार शायद और पहले ही कर सकती थी. सरकार के पक्ष में कुछ लोगों की राय है कि यूक्रेन और रूस के बीच हफ़्तों से तनाव और संकट ज़रूर चला आ रहा था, लेकिन रूस हमला कर ही देगा, इसकी उम्मीद नहीं थी. क्योंकि ख़ुद रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन हमले की योजना से इनकार कर रहे थे.

अब भारत सरकार काफ़ी सक्रिय नज़र आ रही है. भारतीय विदेश मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक़, यूक्रेन में फंसे सभी नागरिकों को पहले पड़ोसी देशों में भेजा जाएगा, उसके बाद उन्हें एयर इंडिया के विमानों से भारत लाया जाएगा.

यूक्रेन में फंसे भारतीय नागरिक

‘भारत का ट्रैक रिकॉर्ड काफ़ी अच्छा’

ऐतिहासिक रूप से विदेश में आपदा के समय फंसे अपने नागरिकों को निकालने में भारत का ट्रैक रिकॉर्ड काफ़ी अच्छा रहा है.

अचल मल्होत्रा कहते हैं, “अगर पिछले कुछ दशकों पर नज़र डालें, तो फंसे हुए भारतीयों को निकालने का भारत का ट्रैक रिकॉर्ड बहुत अच्छा रहा है. बहुत सारे देशों से हमने अपने नागरिकों को निकाला है. न केवल अपने नागरिकों को बल्कि दूसरे देशों के नागरिकों को भी बाहर निकालने मदद की है. आप यमन की मिसाल ले लें या फिर और पीछे जाएं तो तो कुवैत से हमने फंसे लोगों को निकाला है. तो हमारा ट्रैक रिकॉर्ड बहुत अच्छा है.”

1990 में खाड़ी युद्ध के दौरान भारत ने बड़े पैमाने पर अपने नागरिकों को वहां से निकालने का काम किया था. पहले इसने कुवैत में फंसे सभी भारतीयों को जॉर्डन भेजा और फिर उन्हें भारत लाया.

उस शानदार ऑपरेशन के दौरान, कुवैत में फंसे 1,70,0 00 से अधिक भारतीयों को निकाला गया था. इस अभियान में एयर इंडिया, इंडियन एयरलाइंस और भारतीय वायुसेना के विमानों की सेवाएं ली गई थीं. उस काम को दो महीनों में अंज़ाम दिया गया था.

उस समय भारत को ग़रीब देश माना जाता था और एयर इंडिया 19 विमानों के बेड़े के साथ एक छोटी एयरलाइन थी. बॉलीवुड अभिनेता अक्षय कुमार की फ़िल्म ‘एयरलिफ़्ट’ उसी ऑपरेशन पर आधारित थी.

कुवैत के अलावा, एयर इंडिया ने यमन, लेबनान, मिस्र, लीबिया और ट्यूनीशिया सहित विभिन्न देशों के लोगों को निकालने के लिए भी उड़ानें संचालित की हैं. फिर 2016 में बेल्जियम में आतंकी हमलों में फंसे सैकड़ों भारतीयों को तुरंत निकालने के काम को अंज़ाम दिया गया.

हालांकि भारत के इतिहास का अब तक का सब से बड़ा निकासी कार्यक्रम कोरोना महामारी के दौरान अंज़ाम दिया गया, जिसे ‘वंदे भारत मिशन’ के नाम से जाना जाता है.

विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, ‘वंदे भारत मिशन’ के तहत 24 फ़रवरी, 2022 तक 73.82 लाख यात्रियों को दूसरे देशों से भारत लाया गया है.

एयर इंडिया ने अकेले इस काम को पूरा किया, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर प्रतिबंध लगा हुआ था. एयर इंडिया ने इन यात्रियों को देश वापस लाने के लिए 54,800 उड़ानें भरी हैं. ये मिशन औपचारिक रूप से मई 2020 में शुरू हुआ. और अभी तक इसकी समाप्ति की घोषणा नहीं की गई है.

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