आईआईटी मद्रास पराली से सुपरकैपेसीटर बनाने की तकनीक करेगा विकसित

आईआईटी मद्रास के शोधकर्ता पराली (पैडी वेस्ट) के लाभदायक उपयोग और सुपरकैपेसिटर बनाने की तकनीक विकसित करेंगे, जो पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित होगी

एक्टिवेटेड कार्बन से बने सुपरकैपेसिटर इलेक्ट्रॉनिक्स, ऊर्जा और कृषि क्षेत्रों के उपभोक्ताओं को कई लाभ देंगे और ये सुपरकैपेसिटर क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बढ़ाएंगे

देहरादून, 29 मार्च 2023: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास (आईआईटी मद्रास) के शोधकर्ताओं ने पराली (पैडी वेस्ट) के लाभदायक उपयोग के लिए पर्यावरण अनुकूल तकनीक विकसित करने की योजना बनाई है। इससे विभिन्न उद्योगों के लिए कच्चे माल का निर्माण संभव होगा।
पराली का लाभदायक उपयोग कर उद्योग जगत के लिए ऊर्जा संयंत्र बनाए जाने से किसानों को आमदनी का एक और जरिया मिलेगा। इस प्रयास से उत्तर भारत में पराली और अन्य कृषि अपशिष्टों को जलाने पर रोक लगाने में मदद मिलेगी।
शोधकर्ता जैविक अपशिष्ट, खास कर रसोई के अपशिष्ट से उपयोगी एक्टिवेटेड कार्बन का विकास कर रहे हैं जो सुपरकैपेसिटर का एक प्रमुख घटक है। अपने इस शोध कार्य के माध्यम से वे एक नई ‘फार्म-एनर्जी सिनर्जी’ को बढ़ावा दे रहे हैं।
पराली (पैडी वेस्ट) से प्राप्त एक्टिवेटेड कार्बन से तैयार सुपरकैपेसिटर के कई लाभ हैं जो इलेक्ट्रॉनिक्स, ऊर्जा और कृषि क्षेत्रों के उपभोक्ता प्राप्त कर सकते हैं और इससे सुपरकैपेसिटर क्षेत्र में आत्मनिर्भरता भी बढ़ेगी।
सुपरकैपेसिटर और सुपरकैपेसिटर आधारित ऊर्जा भंडारण प्रौद्योगिकी को लेकर आत्मनिर्भरता बढ़ने से आईपी की उपलब्धि होगी और देश में रोजगार बढ़ेंगे।
भारत में भारी मात्रा में सालाना 760 लाख मीट्रिक टन पराली (पैडी वेस्ट) जमा होती है। किसानों के लिए पराली को मिट्टी में मिलाने की तुलना में पराली जलाना बहुत सस्ता पड़ता है और वे इसे सबसे कारगर उपाय मानते हैं। लेकिन इससे भयानक प्रदूषण होता है और पूरे परिवेश के लिए यह एक गंभीर समस्या है। इतना ही नहीं, पराली जला देने से बायोमास का एक संभावित उपयोग कम हो जाता है। कृषि अपशिष्ट निपटान के इस प्रचलित तरीके से सिर्फ भारत को 92,600 करोड़ रुपयों का नुकसान होने का अनुमान है।
प्रोजेक्ट के प्रमुख डॉक्टर टीजू थॉमस आईआईटी मद्रास के मेटलर्जी और मटीरियल्स विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। संस्थान को सीएसआर भागीदारों की तलाश है जो इस प्रोजेक्ट को बड़ा बनाएं और इसका पूरे देश को लाभ मिले।
इस तकनीक के खास लाभ बताते हुए आईआईटी मद्रास के मेटलर्जी और मटीरियल्स विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर टीजू थॉमस ने कहा, “हम जो समाधान चाहते हैं उसकी प्रक्रिया परिभाषित है। इससे हमारे देश में पराली को आर्थिक रूप से लाभदायक कार्बन मटीरियल्स बनाने में मदद मिलेगी। साथ ही, एक्टिवेटेड कार्बन से सुपरकैपेसिटर बनाया जा सकेगा जो बाजार के मानक (जैसे, 5 वी रेंज़ से कम के सुपरकैपेसिटर के लिए 4 डब्ल्यूएच केजी 1) पर खरा उतरेगा। इस मटीरियल का उपयोग कर एक उपयुक्त सुपरकैपेसिटर हाइब्रिड ऊर्जा भंडारण उपकरण बनाया जाएगा।’’
डॉक्टर टीजू थॉमस ने बताया, “सुपरकैपेसिटर को एक मॉड्यूलर अटैचमेंट के रूप में पेश करना पूरी दुनिया के लिए ऊर्जा समाधान में सहायक होगा। इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि यह तकनीक बहुत खास और अभूतपूर्व है और यह बड़े स्तर पर लागू होने वाला फार्म-टू-एनर्जी इंटरफेस होगा। यह एक साथ किसानों और औद्योगिक क्षेत्र को अपना लाभ देगा। यह पूरे देश को लाभ पहंुचाने में सक्षम है। इससे सरकार के कई लक्ष्यों को पूरा करने में भी मदद मिलेगी जैसे जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौता, सीओपी26 समिट, मिशन 2070, मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल और क्योटो प्रोटोकॉल आदि।

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