मत: पोक्सो का दुरुपयोग हो रहा है तो आगे आए समाज:बरखा त्रेहन

Purush Aayog President Barkha Trehan Calls For Urgent Attention Of Society On Misuse Of Pocso Act

पॉक्सो ऐक्ट के दुरुपयोग पर समाज को सोचना होगा… बृजभूषण केस पर बोलीं पुरुष आयोग की अध्यक्ष बरखा त्रेहन

barkha trehan
पुरुष आयोग की अध्यक्ष बरखा त्रेहन।

जब एक सांसद को पॉक्सो ऐक्ट के दुरुपयोग के शिकार बनाने की साजिश हो सकती है तो फिर आम लोगों की बिसात ही क्या? यह सवाल है पुरुष आयोग की अध्यक्ष बरखा त्रेहन की। उन्होंने बृजभूषण शरण सिंह समेत कई अन्य उदाहरणों को गिनाकर समाज से अपील की है कि वह पॉक्सो अधिनियम के दुरुपयोग रोकने का दायित्व उठाए।

दिल्ली पुलिस ने भाजपा सांसद और भारतीय कुश्ती महासंघ (WFI) के निवर्तमान अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ चार्जशीट दायर कर दी है। 1,000 से ज्यादा पन्ने की चार्जशीट में सिंह के खिलाफ पॉक्सो ऐक्ट की कोई धारा नहीं लगाई गई है। दिल्ली पुलिस का कहना है कि एक भी ऐसा सबूत नहीं मिला है जिससे बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ नाबालिगों को यौन शोषण से संरक्षण के लिए बने कानून पॉक्सो ऐक्ट की कोई धारा लगाई जा सके। इस पर पुरुष आयोग की अध्यक्ष बरखा त्रेहन ने कहा कि यह पॉक्सो ऐक्ट के एक और दुरुपयोग का बड़ा मामला है। उन्होंने एक लेख में पॉक्सो ऐक्ट के बढ़ते दुरुपयोग पर चिंता जाहिर करते हुए इस गंभीर समस्या के निदान पर तुरंत कदम उठाने पर जोर दिया। नीचे उनका लेख पेश है…

पॉक्सो का दुरुपयोग

पहलवान आंदोलन की एक बड़ी खबर आज सामने आई जिसमें पॉक्सो ऐक्ट की धाराएं हटा दी गई हैं। पुलिस की तरफ से दायर चार्जशीट में यह कहा जा रहा है कि बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ पॉक्सो के अंतर्गत किसी भी आरोप के प्रमाण नहीं मिले हैं। अब उन पर शेष धाराओं में मुकदमा चलेगा। बात केवल बृजभूषण सिंह की नहीं है। बात है उस अधिनियम के दुरूपयोग की, जिसे बच्चियों को शोषण से बचाने के लिए बनाया गया था। लेकिन अब यह बदला लेने का एक माध्यम बन गया है। ऐसे में असली पीड़ितों की व्यथा दबकर रह जाती है। कई मामले अब सामने आ रहे हैं, जिनमें न्यायालय यह यह टिप्पणी करने लगा है कि पॉक्सो ऐक्ट का दुरूपयोग हो रहा है।

        क्या है पॉक्सो ऐक्ट?

पॉक्सो यानी प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस। इसका हिंदी मतलब है- बच्चों का यौन शोषण से संरक्षण। बच्चों के शोषण को रोकने के लिए इस कानून को वर्ष 2012 में लाया गया था। इसमें बच्चों के खिलाफ होने वाले यौन शोषण को अपराध बनाया गया है और यह 18 साल से कम उम्र के लड़के और लड़कियों, दोनों पर लागू होता है। हालांकि, इसकी मंशा बहुत अच्छी है, लेकिन इसका अच्छा-खासा दुरुपयोग होने लगा है। जैसा कि हर कानून के साथ होता है। महिलाओं को विभिन्न अपराधों से संरक्षण देने के लिए बने ज्यादातर कानूनों के साथ भी ऐसी बातें हो रही हैं।

दो वर्ष पहले ही दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी में कहा था कि इस अधिनियम का दुरुपयोग हो रहा है। मगर सबसे महत्वपूर्ण है 14 जून, 2023 को ही इलाहाबाद उच्च न्यायालय का वह निर्णय जिसमें बरेली में पॉक्सो अधिनियम और बलात्कार की एफआईआर सहित पूरी कानूनी प्रक्रिया को ही निरस्त कर दिया गया। जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की सिंगल बेंच ने पीड़िता का कबूलनामा भी दुहराया जिसमें उसने स्वीकार किया था कि वह 18 वर्ष की थी। जज ने कहा कि साफ है कि मामले में पॉक्सो की कोई भी धारा नहीं लग सकती है।
इतना ही नहीं, पीड़िता ने यह भी कहा कि आरोपित ने कोई अपराध नहीं किया, बल्कि उसकी मां ने ही यह झूठा मुकदमा दर्ज किया था कि आरोपित से पांच लाख रुपए लिए जा सकें।

हैरत की बात है कि फर्जीवाड़े का यह मामला अकेला नहीं है। फरवरी 2023 में ही अरुणाचल प्रदेश में एक पॉक्सो ऐक्ट का दुरुपयोग करने वाली महिला को न्यायालय से सजा दी गई थी। ऐसे ही एक मामला बंगलुरु का है। वहां 2015 में चार वर्ष के एक बच्चे की तरफ से रिपोर्ट दर्ज करवाई गई थी कि उसका बंगलुरु के एक प्री-स्कूल में यौन उत्पीड़न हुआ है। मगर जांच में यह पाया गया कि सारी कहानी बच्चे की मां ने बनाई है और आरोप पूरी तरह झूठा है।

ये तो हुई उन फर्जीवाड़ों की बात जिनका जांच में पर्दाफाश हुआ है। न जाने ऐसे कितने मामले हो रहे हैं, जिनमें निर्दोषों को फंसाया जा रहा है। कैसा दुर्भाग्य है कि कुटिल और चालाक लोग इस कानून को बदनाम कर रहे हैं तो दूसरी तरफ वास्तविक पीड़ित पुलिस स्टेशन तक जाने में हिचक रहे हैं। इसलिए वक्त आ गया है कि इन कानूनों के दुरुपयोगों का दुष्परिणाम पर समाज गंभीरता से विचार करे। बृजभूषण सिंह ने भी यही कहा था कि इस कानून का दुरुपयोग हो रहा है। उन्होंने कहा था कि बच्चों, बुजुर्गों और संतों के खिलाफ इस कानून का दुरुपयोग किया जा रहा है।
सोचिए बृजभूषण सिंह सांसद हैं तब कुछ लोगों ने उनके खिलाफ कानून के दुरुपयोग की हिम्मत जुटा ली। सांसद होने के नाते ही यह मामला देशभर की सुर्खियां बटोरता रहा और बृजभूषण को सफाई पर सफाई देते रहनी पड़ी। खैरियत है कि सांसद होने की वजह से ही बृजभूषण को सफाई देने का मौका भी मिलता रहा और वो दुरुपयोग का शिकार होने से भी बच गए। लेकिन सोचिए कि एक आम आदमी, जिसके लिए पुलिस और कोर्ट कचहरी तक पहुंचना श्रमसाध्य प्रक्रिया है, वह क्या करेगा? क्या वह ऐसे जाल में नहीं फंस जाएगा जिससे उसका छूट पाना लगभग असंभव हो जाए? क्या वह ऐसी प्रक्रिया में नहीं फंस जाएगा जिसमें फंसकर उसका सम्पूर्ण जीवन ही प्रश्नचिन्ह बन जाएगा? तब क्या वह थका-हारा इंसान अपराधी तो नहीं बन जाएगा?

एक सभ्य और संवेदनशील समाज का दायित्व है कि वह ऐसे सवालों पर न केवल गौर करे बल्कि इनके जवाब भी तलाशे? समाज को चाहिए कि वो आपस में चर्चा करे कि पॉक्सो ऐक्ट के ऐसे दुरुपयोग पर किसका, क्या स्टैंड है? यह इसलिए बहुत जरूरी है क्योंकि यदि यह दुरुपयोग इसी प्रकार चलता रहा तो बच्चों के लिए यौन शोषण की शिकायत दर्ज कराना बहुत कठिन हो जाएगा जिसका सीधा लाभ अपराधी मानसिकता वाले लोग उठाएंगे। वक्त आ गया है कि राजनीति से परे जाकर न्याय के लिए बने इस कानून के दुरुपयोग को रोकने की दिशा में त्वरित और तेज कदम कदम उठाएं ताकि असल पीड़िता के लिए न्याय और फर्जीवाड़े की साजिशकर्ताओं को उसके असली ठिकाने तक पहुंचाना सुनिश्चित किया जा सके।

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