भाजपा चाहे जाट उपराष्ट्रपति,सतपाल मलिक ने ग़लत दांव खेल हारी बाजी?

हिंदू जाट, किसान पुत्र… जगदीप धनखड़ जैसा ही है सत्‍यपाल मलिक का प्रोफाइल, बड़बोलापन भारी पड़ा

पश्चिम बंगाल के गवर्नर जगदीप धनखड़ को ‘किसान पुत्र’ बताकर NDA ने उपराष्ट्रपति पद का उम्‍मीदवार बनाया है। जाट समुदाय से आने वाले धनखड़ के जैसा ही प्रोफाइल मेघालय के राज्‍यपाल सत्‍यपाल मलिक का भी है। हालांकि, मलिक का बड़बोलाबन उनकी उम्‍मीदवारी में सबसे बड़ा रोड़ा बन गया।

हाइलाइट्स
1-उपराष्ट्रपति चुनाव: WB के राज्‍यपाल जगदीप धनखड़ बने NDA उम्मीदवार
2-जाट को उपराष्‍ट्रपति बनाना चाहती थी BJP, राजस्‍थान चुनाव पर है नजर
3-मेघालय के गवर्नर सत्‍यपाल मलिक की दावेदारी उनके बयानों के चलते फंस गई
4-मोदी सरकार के खिलाफ लगातार बयानबाजी के चलते कटा मलिक का पत्‍ता

नई दिल्‍ली 17 जुलाई: उपराष्ट्रपति पद को NDA ने पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ का नाम फाइनल किया। धनखड़ की उम्‍मीदवार का ऐलान भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने किया। NDA की तरफ से उम्‍मीदवारी को मुख्तार अब्बास नकवी, नजमा हेपतुल्ला, आरिफ मोहम्मद जैसे नाम चर्चा में थे। धनखड़ को ‘किसान पुत्र’ बताकर पार्टी ने उपराष्ट्रपति कैंडिडेट बनाया है। जाट समुदाय से आने वाले धनखड़ मूल रूप से राजस्‍थान के हैं। उन्‍हें उपराष्ट्रपति बनाकर भाजपा की नजरें राजस्‍थान चुनाव साधने पर होंगी। वैसे जाट और किसान बैकग्राउंड, इन दो शर्तों पर एक और गवर्नर खरे उतरे रहे थे मगर उनका बड़बोलापन आड़े आ गया। येे थे  मेघालय के गवर्नर सत्‍यपाल मलिक, जिन्‍होंने संवैधानिक पदों पर रहते भाजपा को असहज करने वाले बयानों की झड़ी सी लगा दी। माना जाता है कि कुुछ कारणों से मलिक अपने लिए दूसरा कार्यकाल सुनिश्चित करना चाहते थें जिसका उन्हें आश्वासन नहीं मिल रहा था। दूसरे वे जम्मू-कश्मीर में गलत फिराक में पकड़े जाने के बाद एक के बाद छोटे राज्यों मेंं भेज जाने से भी नाराज थे।

मलिक पर भी दांव खेल सकती थी बीजेपी!

सत्‍यपाल मलिक को भाजपा दो साल पहले तक खूब प्रमोट कर रही थी। 2017-18 में वह बिहार के साथ-साथ ओडिशा के गवर्नर भी रहे। फिर उन्‍हें एनएन वोहरा की जगह जम्‍मू और कश्‍मीर भेजा गया। J&K के उपराज्‍यपाल के रूप में मलिक की तैनाती बड़ी अहम थी। पांच दशक बाद वहां कोई राजनीतिक जन उपराज्यपाल के पद पर गया था। अगस्‍त 2018 से लेकर अक्‍टूबर 2019 तक मलिक वहां के उपराज्‍यपाल रहे। उनके उपराज्यपाल रहते ही 5 अगस्‍त 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्‍व में अनुच्‍छेद 370 हटाने का फैसला हुआ। J&K के बाद मलिक को राज्‍यपाल बनाकर गोवा भेज दिया गया। अगस्‍त 2020 में मलिक को गोवा से हटाकर मेघालय का राज्यपाल बनाया गया।

सत्‍यपाल मलिक: चरण सिंह से नरेंद्र मोदी तक…

सत्यपाल मलिक देश की राजनीति की लगभग हर विचारधारा के हिस्सेदार रहे हैं। समाजवादी, कांग्रेस, जनता दल, भाजपा। जाट किसान परिवार से आने वाले सत्यपाल मलिक के पूर्वज यूं तो हरियाणा के हैं, लेकिन पैदाइश बागपत ( पश्चिमी उत्तर प्रदेश) की है। लोहिया के समाजवाद से प्रभावित होकर छात्र नेता से राजनीति शुरू करने वाले सत्यपाल मलिक ने 70 के दशक में कांग्रेस विरोध की नींव पर उत्तर प्रदेश में नई ताकत बनकर उभर रहे चौधरी चरण सिंह का साथ पकड़ा। चरण सिंह कहते थे, ‘इस नौजवान में कुछ कर गुजरने की भावना दिखती है।’ उन्होंने 1974 में उस समय अपनी पार्टी- भारतीय क्रांति दल से सत्यपाल मलिक को टिकट दिया और 28 साल की उम्र में सत्यपाल विधायक चुन लिए गए।

उम्र और अनुभव से परिपक्व होते सत्यपाल को जब यह अहसास हुआ कि चौधरी साहब का साथ उन्हें पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक ही सीमित रखेगा, तो वे कांग्रेस विरोध छोड़ कांग्रेस में ही शामिल हो गए। 1984 में राज्यसभा पहुंचे। वे अलीगढ़ से सांसद रहे।

अगले ही कुछ सालों में कांग्रेस में से ही कांग्रेस के खिलाफ  नारा गूंजने लगा था, ‘राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है।’ वीपी सिंह के कहे सत्यपाल जनता दल में आ गए। सांसद बने और वीपी सरकार में मंत्री भी, लेकिन 2004 में भाजपा में गए और अपने राजनीतिक गुरु चौधरी चरण सिंह के ही पुत्र अजित सिंह के खिलाफ बागपत से चुनाव लड़ गए। हार मिली, लेकिन भाजपा ने उन्हें अपने साथ बनाए रखा। 2014 में मोदी सरकार आने पर उन्हें पहले बिहार का राज्यपाल बनाया गया, फिर वे जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल बने, इसके बाद गोवा और फिर मेघालय के।

लगातार तीखे बयानों से खटकने लगे मलिक

केंद्र सरकार के प्रति मलिक के तेवर पिछले डेढ़ साल में बेहद कटु थेे।सितंबर 2020 में मिजोरम का राज्यपाल बनाने के बाद से मलिक ने सरकार के खिलाफ कई बयान दिए। कुछ में वह समझाते, कुछ में भाजपा नीत राजग सरकार को धमकाते। उनका एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें वह कह रहे थे ‘मैं उनसे (मोदी) मिलने गया। उन्हें बताया- आप गलतफहमी में हैं। इन सिखों को हराया नहीं  सकते। इनके गुरू के चारों बच्चे उनकी मौजूदगी में खत्म हो गए। लेकिन, उन्होंने सरेंडर नहीं किया था। ना इन जाटों को हरा सकते हैैं। मैंने कहा कि दो काम बिल्कुल मत करना। एक तो इन पर बल प्रयोग मत करना, दूसरा इनको खाली हाथ मत भेजना, क्योंकि ये भूलते भी नहीं है।’

बागपत के कार्यक्रम में मलिक ने कहा, “किसानों के मामले पर मैंने देखा कि क्‍या-क्‍या हो रहा है तो मैं रुक नहीं सका, मैं बोला। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को कहा कि मेरी दो प्रार्थना है। एक तो इनको (किसानों) दिल्‍ली से खाली हाथ मत भेजना क्‍योंकि सरदार 300 साल तक याद रखते हैं और दूसरे इन पर बल प्रयोग मत करना। जिस दिन (राकेश) टिकैत की गिरफ्तारी का शोर मचा था, उस दिन 11 बजे मैंने हस्‍तक्षेप कर उसे रुकवाया और कहा कि यही मत करना। उसका मुझे नुकसान भी होता है।”

मोदी को समझाने की बहुत कोशिश की

मलिक ने मंच से दावा किया, “मैं एक बहुत बड़े जर्नलिस्‍ट से मिलकर आया हूं जो प्रधानमंत्री के बहुत अच्‍छे दोस्‍त हैं। मैंने उनसे कहा कि भाई मैंने तो कोशिश कर ली, अब तुम उनको समझाओ कि ये गलत रास्‍ता है। किसानों को दबाकर यहां से भेजना, अपमानित करके दिल्‍ली से भेजना… पहले तो ये जाएंगे नहीं… दूसरे चले गए तो ये 300 बरस भूलेंगे नहीं। ज्‍यादा करना भी नहीं है, सिर्फ एमएसपी को कानूनी मान्‍यता दे दो… सारा मामला… मेरी जिम्‍मेदारी है मैं निपटवा दूंगा।”

इंदिरा के बहाने मोदी को चेतावनी?

मलिक ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और ब्‍लूस्‍टार ऑपरेशन का ज़िक्र कर मोदी को इशारा किया कि वे सिखो से पंगा न लें। मलिक बोले, “अगर किसान आंदोलन ‍ज्यादा चला तो मैं नहीं जानता कि आप में से कितने लोग जानते हो, लेकिन मैं सिखों को जानता हूं। मिसेज (इंदिरा) गांधी ने जब ब्‍लूस्‍टार किया, उसके बाद उन्‍होंने अपने फार्महाउस पर एक महीना महामृत्‍युंजय का यज्ञ कराया। अरुण नेहरू ने मुझे बताया कि मैंने कहा कि फूफी आप तो ये बात नहीं मानती, ये क्‍यों करा रही हैं… तो उन्‍होंने कहा कि तुम्‍हें पता नहीं है मैंने इनका अकाल तख्‍त तोड़ा है, ये मुझे छोडेंगे नहीं। उनको लग रहा था कि ये होगा। जनरल वैद्य को पूना में जाकर के मारा।”

अग्निपथ योजना का भी किया विरोध

मलिक ने पिछले दिनों लॉन्‍च अग्निपथ योजना पर भी सवाल उठाए। केंद्र सरकार पर ‘घमंड में रहने’ का आरोप लगाते हुए मलिक ने कहा था कि ‘ फौज में असंतुष्‍ट लड़के जाएंगे तो उनके हाथ में राइफल होगी, उसकी कोई दिशा होगी, पता नहीं किधर चल जाए? केंद्र सरकार बहुत घमंड में रहती है। हो सकता है इससे कुछ बुरा हो, तब बैकफुट पर आए।’ मलिक का इशारा कृषि कानूनों की तरफ था जिन्‍हें लंबे आंदोलन के बाद सरकार ने वापस ले लिया था।

हाल ही के इंटरव्‍यू में मलिक ने कहा था, ‘जब मैं पहली बार (केंद्र के खिलाफ) बोला था, तभी से मेरी जेब में इस्तीफा है। जिस दिन मोदी जी की तरफ से इशारा मिल जायेगा, उन्हें हटाना नहीं पड़ेगा। बस वह इतना बोल दें कि मैं आपके साथ असहज महसूस कर रहा हूं। मैं उसी दिन छोड़ कर चला जाऊंगा।’

हर विचार के हिस्सेदार सत्यपाल

सत्यपाल मलिक 11 साल के रहे होंगे, जब किशोर कुमार का गाया हुआ गाना लोगों की जुबान पर होता था, ‘हम हैं राही प्यार के, हमसे कुछ न बोलिए, जो भी प्यार से मिला, हम उसी के हो लिए।’ अब 74 साल के सत्यपाल मलिक के मेघालय के राज्यपाल पद तक पहुंचने का सफर देखें, तो लगता है कि वह गाना किशोर कुमार ने नहीं, सत्यपाल मलिक ने ही गाया हो। सत्यपाल मलिक को जो बात खास बनाती है, वह यह कि वे देश की राजनीति की लगभग हर विचारधारा के हिस्सेदार रहे हैं।

मलिक पर क्‍यों भारी पड़े धनखड़?

मलिक अगर केंद्र सरकार के खिलाफ लाइन न पकड़ते तो शायद आज उपराष्‍ट्रपति बनने की ओर पहला कदम बढ़ा चुके होते। भाजपा ने मलिक और धनखड़ में धनखड़ को चुना क्‍योंकि वे जाट के साथ राजस्‍थान से हैं। धनखड़ को 2019 में बंगाल का राज्यपाल बनाया गया था। वहां की ममता बनर्जी सरकार के साथ तनातनी से धनखड़ लगातार सुर्खियों में रहे हैं। धनखड़ को उम्‍मीदवार बनाकर भाजपा ने राजस्‍थान के अलावा हरियाणा, उत्‍तर प्रदेश और पंजाब के जाट मतदाताओं को संदेश दिया है। इन चारों राज्‍यों में कृषि कानूनों का विरोध दिखा था। ऊपर से हरियाणा में गैर-जाट मुुख्यमंत्री बनाने से जाट पहले ही नाराज थे।

राजस्‍थान में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं। जाटों का वहां 15 जिलों और 64 सीटों पर अच्‍छा प्रभाव है। आबादी में जाटों की हिस्‍सेदारी करीब 18 प्रतिशत है। धनखड़ को उम्‍मीदवार बनाकर भाजपा ने दांव चल दिया है। उसे उम्‍मीद है कि चुनाव से पहले कांग्रेस के जाट नेता उसकी तरफ आयेंगे। जाट राजनीति करने वाले दलों को भी भाजपा ने फंसाया है।

ममता से कटुता,जाट जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति उम्मीदवार बना भाजपा ने कैसे एक तीर से साधे कई निशाने

जगदीप धनखड़ को एनडीए का उपराष्ट्रपति उम्मीदवार बना भाजपा ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं।

ममता की कलम से निकले ‘फरमानों’ की राज्यपाल रहते धनखड़ धज्जियां उड़ाते रहे। जगदीप धनखड़ राजस्‍थान के जाट हैं। राजस्‍थान में जाटों को रिजर्वेशन (Jat Reservation) दिलाने में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही। इसके अलावा भाजपा ने दोबारा मैसेज दिया है कि उसके फैसलों के बारे में अंदाजा लगाना फिजूल है। वह जो भी करती है उसके बारे में सिर्फ और सिर्फ उसी को पता होता है। वह स्थितियां और समीकरण देखकर अपने सदस्‍यों का इस्‍तेमाल करती है।

धनखड़  सार्वजनिक जीवन में तीन दशकों से हैं। राजनीतिक दांवपेंच में धनखड़ धाकड़ माने जाते हैं। कानूनी समझ शानदार है। सुप्रीम कोर्ट के वकील रहे हैं। इन खूबियों से ही उन्‍होंने बंगाल में ममता बनर्जी को चैन की सांस नहीं लेने दी। दोनों की आपस में कभी नहीं बनी। धनखड़ ने ममता बनर्जी के कई फैसले पलट दिये। सोशल मीडिया पर भी दोनों की जुबानी जंग दिखती थी। बंगाल चुनाव में भाजपा की हार के बावजूद धनखड़ ने मुख्यमंत्री ममता पर अंकुश रखा।

ममता से कटुुता ने बना दिया फेवरेट

धनखड़ ने 2019 में बंगाल के राज्‍यपाल की कुर्सी संभाली ।  मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी के साथ उनके रिश्‍ते कटु रहे हैं। टीएमसी सुप्रीमो धनखड़ पर पद के दुरुपयोग का आरोप भी लगाती रही। इसके उलट धनखड़ राज्‍य में राजनीतिक अस्थिरता को सीधे टीएमसी सरकार को घेरते रहे। ममता को धनखड़ किस हद तक नापसंद हैं, इसकी बानगी यह है कि उन्‍हें हटाने की टीएमसी राष्‍ट्रपति से मांग तक कर चुकी। हालांकि, इस रस्‍साकशी ने धनखड़ को भाजपा का फेवरेट बना दिया। वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबसे करीबी नेताओं में शामिल हो गए। तमाम नामों के ऊपर उन्‍हें उपराष्‍ट्रपति पद का उम्‍मीदवार बनाया जाना धनखड़ को बंगाल में किए काम का फल बताया जा रहा है।

राजस्‍थान पर है भाजपा की नजर

भाजपा कांग्रेस मुक्‍त भारत के मिशन पर है। उसे इसमें कामयाबी भी मिली है। अब वह राजस्‍थान से भी देश की सबसे पुरानी पार्टी उखाड़ फेंकना चाहती है। अगले साल राजस्‍थान में विधानसभा चुनाव हैं। जगदीप धनखड़ को उपराष्‍ट्रपति उम्‍मीदवार बनाकर उसे राजस्‍थान के जाट समुदाय की सहानुभूति पाने में मदद मिलेगी। जगदीप धनखड़ का जन्‍म राज्‍य के झुंझुनू जिले के किठाना गांव में 18 मई 1951 में हुआ।  शुरुआती शिक्षा-दीक्षा भी यहीं से हुई। महाराजा कॉलेज जयपुर से उन्‍होंने ग्रेजुए़शन कर ‍राजस्थान विश्‍वविद्यालय से एलएलबी की। राजस्‍थान बार काउंसिल में एडवोकेट 1979 में रजिस्‍टर हुए। 1990 में राजस्‍थान हाई कोर्ट ने उन्‍हें सीनियर एडवोकेट नामित किया। उन्‍होंने सुप्रीम कोर्ट में भी प्रैक्टिस की।

धनखड़ ने राजस्‍थान में जाटों को आरक्षण दिलाने की लंबी लड़ाई लड़ी। इसने धनखड़ को राजस्‍थान में जाट आरक्षण की लड़ाई का चेहरा बना दिया। खुद भी जाट होने से इस समुदाय में उनकी अच्‍छी पकड़ है। उनका यही रुतबा देख भाजपा ने उन्‍हें बंगाल का राज्‍यपाल बनाया था। राजस्‍थान चुनाव से पहले दोबारा भाजपा इसी को भुनाना चाहती है। धनखड़ शुरू से भाजपा में नहीं थे। वह 1989-91 तक जनता दल से झुंझुनू लोकसभा सांसद रहने के बाद कांग्रेस से जुड़ अजमेर से चुनाव लड़े। हार बाद 2003 में वेेेेेेेे भाजपा में आ गए।

अटकलों के उलट लगी नाम पर मुहर

पिछले कुछ सालों में ट्रेंड रहा है। भाजपा ने तमाम अटकलों के उलट अपने उम्मीदवारों के नाम घोषित किए हैं। इस सूूूची में अब धनखड़ का नाम भी जुड़ गया है। उपराष्‍ट्रपति पद के उम्‍मीदवार के तौर पर जिन नामों को लेकर कयासबाजी चली उनमें मुख्‍तार अब्‍बास नकवी, कैप्‍टन अमरिंदर सिंह और केरल के राज्‍यपाल मोहम्‍मद आरिफ खान थे। हालांकि, अंत में मुहर जगदीप धनखड़ के नाम पर लगी। भाजपा ने एक बार फिर मैसेज दिया कि उसकी चयन प्रक्रिया बेहद पारदर्शी है जिसमें किसी भी योग्‍य व्यक्ति को मौका मिल सकता है। पिछले उपराष्‍ट्रपति चुनाव 2017 में विपक्ष से गोपालकृष्ण गांधी मैदान में उतरे थे। वह भाजपा के एम वेंकैया नायडू से हार गए थे। उपराष्ट्रपति चुनाव को नामांकन पत्र की अंतिम तारीख 19 जुलाई है। चुनाव 6 अगस्त को होगा।

Did Bjp Hit Many Targets With One Arrow By Making  Dhankhar Its Vice  Candidate?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *