कश्मीर में 24 घंटे में चार आतंकी हमले,CRPF जवान की मौत, कश्मीरी पंडित समेत चार घायल

Jammu-Kashmir News: शोपियां में आतंकवाद‍ियों ने कश्मीरी पंडित को गोली मारी, 24 घंटे में 4 आतंकी हमले, न‍िशाने पर गैर कश्‍मीरी

जम्मू और कश्मीर के शोपियां जिले के चोटीगाम इलाके में आतंकवादियों ने एक कश्‍मीरी पंड‍ित पर गोलियां चलाईं। उस समय वह अपने घर के पास दुकान में मौजूद थे। उन्हें गंभीर हालत में अस्‍पताल में भर्ती कराया गया है। इसके अलावा घाटी में बीते 24 घंटे में कुल चार आतंकी हमले हुए। इसमें एक सीआरपीएफ जवान की मौत हो गई जबक‍ि छह लोग गंभीर रूप से घायल हो गए।
श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर में बीते 24 घंटे के दौरान ताबड़तोड़ आतंकवादी घटनाएं सामने आई हैं। शोपियां जिले में सोमवार को आतंकवादियों ने एक कश्मीरी पंडित को गोली मारकर घायल कर दिया। वहीं श्रीनगर में लाल चौक के पास मैसूमा इलाके में आतंकी हमले में सीआरपीएफ का एक जवान वीरगत‍ि को प्राप्‍त हुआ। जबक‍ि एक जवान जख्‍मी हो गया। उधर, दोपहर में शोप‍ियां में आतंक‍ियों ने दो बाहरी मजदूरों को गोली मार दी। दोनों ब‍िहार के रहने वाले हैं। वहीं रव‍िवार को आतंकवाद‍ियों ने पुलवामा में पंजाब के दो लोगों पर हमला कर घायल कर द‍िया था। घाटी में एक के बाद एक आतंकी हमले के बाद सुरक्षा बलों को अलर्ट कर द‍िया गया है। वहीं सुरक्षा बलों और जम्‍मू-कश्‍मीर पुल‍िस की ओर से तलाशी अभियान चलाया जा रहा है।

पुल‍िस के मुताबि‍क, शोपियां जिले में सोमवार को आतंकवादियों ने एक कश्मीरी पंडित दुकानदार पर गोलीबारी कर उसे घायल कर दिया। आतंकी हमले में शोपियां के चोटीगाम गांव के बाल कृष्ण के हाथ और पैर में चोटें आईं। उसे श्रीनगर के एक सैन्य अस्पताल में ले जाया गया जहां डॉक्टरों ने उसकी हालत स्थिर बताई। अधिकारियों ने कहा कि सेना और पुलिसकर्मियों को कश्मीर पंडित दुकानदार पर हमले की जानकारी मिलने के बाद गांव में भेजा गया। तलाशी के लिए इलाके की घेराबंदी कर दी गई है।

 

श्रीनगर में आतंकवादी हमले में सीआरपीएफ जवान की मौत, एक घायल

श्रीनगर में लाल चौक के पास मैसूमा इलाके में सोमवार को आतंकवादियों की गोलीबारी में केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के एक जवान की मौत हो गई, वहीं एक अन्य जवान घायल हो गया। अधिकारियों ने बताया कि आतंकवादियों ने मैसूमा में सीआरपीएफ के जवानों पर गोलियां चलाईं, जिसमें दो जवान घायल हो गए। उन्होंने बताया कि घायलों को एसएमएचएस अस्पताल ले जाया गया, जहां चिकित्सकों ने एक जवान को मृत घोषित कर दिया, वहीं एक अन्य का उपचार चल रहा है। उन्होंने बताया कि आतंकवादियों को पकड़ने के लिए इलाके की घेराबंदी करके तलाश अभियान चलाया जा रहा है।

पुलवामा में आतंकवादियों ने 4 लोगों को गोली मारी

इससे पहले शोपियां के एक गांव में आतंकियों ने दो गैर स्थानीय मजदूरों को गोली मारकर घायल कर दिया था। अधिकारियों ने बताया कि पिछले 24 घंटों में गैर-स्थानीय लोगों पर आतंकवादियों का यह दूसरा हमला है। उन्होंने बताया क‍ि पुलवामा के लाजूरा में सोमवार दोपहर में आतंकवादियों ने पटलेश्वर कुमार और जाको चौधरी पर गोलियां चलायीं। दोनों बिहार के रहने वाले हैं। उन्होंने बताया कि घायलों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है। अधिकारी ने बताया कि और जानकारी की प्रतीक्षा है। इससे पहले आतंकवादियों ने रविवार की शाम पुलवामा के नौपोरा इलाके में दो गैर-स्थानीय मजदूरों को गोली मार दी थी। दोनों पंजाब के रहने वाले थे।

 

 

पंडितों से फिर गुलजार होती घाटी:32 साल बाद कश्मीरी पंडितों की वापसी की आहट; बोले- सुरक्षा मिले तो हम लौटने को तैयार

पिछले दिनों रिलीज हुई फिल्म कश्मीर फाइल्स के बाद कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार का मुद्दा एक बार फिर गर्मा गया है। कश्मीरी पंडितों के जख्म भी हरे हुए हैं। दैनिक भास्कर ने श्रीनगर, पुलवामा, शोपियां, अनंतनाग समेत एक दर्जन से अधिक गांवों में इन कश्मीरी पंडितों से मुलाकात कर उनके मौजूदा हालात जाने।

कश्मीर मौसम की तरह रंग बदलता है। शांत दिखने वाली घाटी में हालात कब खराब हो जाएं, कोई नहीं जानता। इन सबके बीच कश्मीरियत के किस्से पूरी घाटी में बिखरे पड़े हैं। आतंकवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित दक्षिणी कश्मीर समेत घाटी के 100 से अधिक गांवों में करीब 900 कश्मीरी पंडित परिवार आज भी रहते हैं। ये ऐसे परिवार हैं, जो 90 के दशक में आतंक के सबसे बुरे दौर में भी यहां डटे रहे।

अनंतनाग के दूरदराज मट्टन इलाके में खाली पड़े दर्जनों वीरान मकान कश्मीरी पंडितों के पलायन का दर्द का बयां कर रहे हैं। दो से पांच मंजिला हवेलियां उनके सामाजिक रुतबे की गवाह हैं। यहां एक नया घर लगभग तैयार है। बाउंड्रीवॉल बन रही है। पड़ोसी ने बताया कि यह पंडितजी का घर है, जो छह महीने पहले ही लौटे हैं। पड़ोसी उन्हें काकाजी कहते हैं। इस सवाल पर कि आतंकवाद के खतरे और धमकियों के बावजूद घाटी में क्यों लौटे?

काकाजी कहते हैं- जन्मभूमि छोड़कर कहां जाएंगे?सरकारी मुलाजिम थे, तो दूसरे राज्यों में रहे। अब रिटायरमेंट के बाद यहीं आ गए हैं। लौटने वाले हम अकेले नहीं हैं। हर साल एक-दो परिवार लौट रहे हैं। यहां तो मुस्लिम पड़ोसी ही हमारी ताकत हैं। घर बनाने वालों से लेकर सुख-दु:ख में साथ खड़े होने वाले सब यही पड़ोसी हैं। इसी बस्ती में चार-पांच कश्मीरी पंडितों के परिवार ऐसे हैं, जो 1990 के खतरनाक दौर में भी कहीं नहीं गए।

अनंतनाग के मट्टन में बन रहा यह मकान एक कश्मीरी पंडित का है। इसे ठेकेदार गुलाम मसूद बना रहे हैं। यहां पंडितों के 7 परिवारों ने वापसी की है, इनमें से 3 हाल ही में लौटे हैं।

इन्हीं परिवारों में सरकारी नौकरी करने वाले एक शख्स कहते हैं कि 90 के दशक में मैं 8-9 साल का था। हालात बेहद डरावने थे। लोग घर छोड़कर जा रहे थे, लेकिन हमारे बुजुर्गों ने यहीं रहने का फैसला किया। यही पड़ोसी वक्त-बेवक्त हमारे काम आते हैं। वो बताते हैं कि मैं पिछले साल श्रीनगर में पिताजी का इलाज करवा रहा था। पैसों की जरूरत पड़ी तो वहीं परिजन का इलाज करा रहे सोपोर के एक मुस्लिम शख्स ने 50 हजार रुपए मेरे सामने रख दिए। हालांकि, मुझे जरूरत नहीं पड़ी। दो महीने इलाज के बाद भी पिता जी नहीं बच सके। पिता की अंतिम यात्रा में सोपोर के उसी शख्स ने मेरी मदद की।

पलायन कर चुके कुछ कश्मीरी पंडित अपने घरों को देखने आते रहते हैं। उनमें से कई परिवार लौटना भी चाहते हैं। वे बताते हैं कि हमले की खबरें आने से बेचैनी तो होती है, लेकिन अगर हालात सुधरते रहे तो लौटने वाले बढ़ेंगे। पंडित बस इतना चाहते हैं कि यहां लौटने के बाद उनकी हिफाजत सुनिश्चित हो।

खौफ याद है… हवेली से टेंट में पहुंचीं

पुलवामा के गांव की तंग गलियों से गुजरते हुए हम कश्मीरी पंडितों की बस्ती पहुंचे तो खंडहर बने दर्जनों घर दिखे। इसी बस्ती में सड़क के सामने एक घर में हमारी मुलाकात बिंदु (परिवर्तित नाम) से हुई, जिनके पति दुकान चलाते हैं। अगल-बगल कश्मीरी पंडितों के खाली मकान हैं। उन्होंने बताया, उनका मायका 20 किमी दूर वुची गांव में है। दादा दीवान और पिता जमींदार थे।

आतंकवाद के काले दौर में हर तरफ तबाही थी। एक शाम हथियारबंद लोगों ने पड़ोसियों से ऐसा सुलूक किया हमारा सब्र टूट गया। रातोंरात पूरा परिवार आलीशान कोठी से निकलकर जम्मू के शरणार्थी टेंट में पहुंच गया। तीन साल टिनशेड में रहे। वहीं पढ़ाई की। शादी के बाद मैं यहां आई तो बहुत डर लगता था। घर से बाहर नहीं निकलती थी। बिंदी-सिंदूर तक नहीं लगाती थी। हालात सुधरने में काफी वक्त लग गया है।

बिंदु का पुश्तैनी मकान।

घर छोड़ने के बाद जम्मू के कैंप में बहुत कुछ झेला। हम दो बहनों और एक भाई ने टेंट में रहकर पढ़ाई की। भाई एयरफोर्स में है और बहन को रिहैबेलिशन प्रोग्राम में टीचर की नौकरी मिली है। वह घाटी के रिहैबेलिशेन सेंटर में ही रहती हैं। बिंदू रोते हुए बताती हैं कि हमारी तकलीफों का कोई अंदाजा नहीं लगा सकता।

सरकारों ने हमारे लिए कुछ नहीं किया। मैं माइग्रेंट थीं, शादी के बाद मेरा दर्जा छीन लिया गया। सरकारी नौकरी के लिए ओवरएज हो गई तो निजी स्कूल में पढ़ाने लगी हूं। कुछ साल पहले पिता जी जम्मू से आए, तब हम अपने पुश्तैनी गांव वुच गए भी गए थे। जिस घर में हम रहते थे, उसे आतंकियों ने आग लगाकर तबाह कर दिया था। वह आज भी खंडहर।

कश्मीरी पंडित खोल रहे मोर्चा, बोले- आतंकी कराटे को फांसी दी जाए

घाटी में कश्मीरी पंडितों को न्याय दिलाने व उनकी घर वापसी के लिए आवाज उठने लगी है। जम्मू-कश्मीर रिकांसिलेशन फ्रंट के चेयरमैन डॉ. संदीप मावा ने शनिवार को लाल चौक पर कश्मीरी पंडितों के हत्यारे बिट्टा कराटे का पुतला फूंका। साथ ही एक दिन की भूख हड़ताल की। उन्होंने दैनिक भास्कर को बताया कि 30 साल बाद भी कश्मीरी पंडितों को लेकर सरकार ने वादे पूरे नहीं किए। हमारी दो मांगें हैं। पहली- फारूक अहमद डार उर्फ बिट्टा कराटे को फांसी दो। दूसरी- हिंदुओं के साथ मारे गए कश्मीरी मुसलमानों के दर्द पर एसआईटी बने।

सुप्रीम कोर्ट या सीबीआई की अध्यक्षता में फैक्ट-फाइंडिंग कमेटी बने। कश्मीरी पंडितों को कौन निशाना बना रहा है, ये पता चलना चाहिए। एक दिन की भूख हड़ताल के साथ हमने सरकार को 19 अप्रैल की डेडलाइन दी है। अगर हमारी मांगे नहीं मानी गई तो 20 अप्रैल से हम फिर भूख हड़ताल पर बैठेंगे। 11वें दिन लाल चौक पर आत्मदाह कर लूंगा। बता दें कि मावा के पिता पंडित रोशन लाल मावा की आतंकियों ने हत्या कर दी थी। संदीप 2019 में घाटी लौटे और पिता की दुकान को फिर से खोला।

आतंकी हमले में एसपीओ की मौत

बडगाम जिले में आतंकियों ने शनिवार को एक विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) की गोली मार कर हत्या कर दी। एक अधिकारी ने बताया, ‘रात करीब 8:35 बजे आतंकियों ने गोलीबारी की और एसपीओ इशफाक अहमद को बडगाम में चाडबुग स्थित उनके आवास के पास गंभीर रूप से घायल कर दिया।’ उन्होंने बताया कि गोलीबारी में अहमद के भाई उमर जान को भी गोलियां लगी। उमर का इलाज चल रहा है।

जम्मू-कश्मीर: आतंकी हमलों में पिछले साल अल्पसंख्यक समुदाय के कितने लोगों ने गंवाई जान? मोदी सरकार ने राज्यसभा में बताया
Jammu-Kashmir News: जम्मू-कश्मीर में पिछले साल अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की हत्याओं में इजाफा हुआ है. मोदी सरकार ने राज्यसभा में बुधवार को बताया कि साल 2021 में अलग-अलग आतंकवादी घटनाओं में 11 लोगों की मौत हो गई.

आतंकी हमलों में पिछले साल अल्पसंख्यक समुदाय के कितने लोगों ने गंवाई जान? मोदी सरकार ने राज्यसभा में बताया

भारतीय सेना के जवान

जम्मू-कश्मीर में पिछले साल अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की हत्याओं में इजाफा हुआ है. मोदी सरकार ने राज्यसभा में बुधवार को बताया कि साल 2021 में अलग-अलग आतंकवादी घटनाओं में 11 लोगों की मौत हो गई.

डेटा के मुताबिक गृह मंत्रालय ने बताया कि अल्पसंख्यक समुदाय के 11 लोगों की हत्या साल 2017 में हुई थी. इसके बाद 3 लोगों की हत्या 2018 में, 6 लोगों की हत्या 2019 में, 3 लोगों की हत्या 2020 में और 11 लोगों की हत्या 2021में हुुई।

केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने उच्च सदन में एक सवाल के जवाब में यह आंकड़ा रखा. उन्होंने कहा कि साल 2017-2021 के बीच अल्पसंख्यक समुदाय के 34 लोगों की हत्या हुई है.

घाटी में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए सरकार ने क्या कदम उठाए हैं? इस सवाल के जवाब में मंत्री ने कहा, ‘सरकार ने घाटी में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए कई कदम उठाए हैं.’

उन्होंने आगे कहा, “इसमें सिक्योरिटी और इंटेलिजेंस ग्रिड, स्टैटिक गार्ड्स के रूप में ग्रुप सिक्योरिटी, नाके पर हर वक्त चेकिंग और अल्पसंख्यक समुदाय के इलाकों में पेट्रोलिंग शामिल है.”

मंत्री ने यह भी कहा कि पीड़ित नागरिकों, आतंकी हमले और वामपंथी हिंसा से पीड़ित परिवारों, , सीमा पर गोलीबारी, माइन और आईडी ब्लास्ट के पीड़ितों को 5 लाख रुपये मुआवजा केंद्रीय योजना के तहत दिया गया है. राय ने यह भी कहा कि आतंकी हमले में मारे गए नागरिकों के परिवारों को जम्मू-कश्मीर सरकार की मौजूदा योजना के तहत 1 लाख रुपये दिए गए हैं.

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