चार बड़े राज्यों में 210 सीटें, भाजपा ने कैसे और क्यों साधे दो बड़े राज्य?

After Maharshtra Now Bihar This Is The Core Of Bjp Strategy For 2024 Lok Sabha Chunav
‘बिग-4’ और 210 सीटों का गणित : जानें मोदी ने कैसे हटा दिए 2024 की राह के 2 बड़े कांटे

नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल के बीच में ही बिहार और महाराष्ट्र भाजपा के लिए राजनीतिक रूप से बड़ी मुसीबत बनकर उभर आए थे। पार्टी खुद को अपने चुनाव-पूर्व सहयोगियों नीतीश कुमार और उद्धव ठाकरे के सामने हारती हुई पाई, जिन्होंने विपक्षी पार्टियों के साथ मिलकर उसे अपने राज्यों में सत्ता से दूर रखा।
मुख्य बिंदु
प्रधानमंत्री मोदी के दूसरे कार्यकाल के दौरान महाराष्ट्र और बिहार भाजपा के लिए रहे बड़े सिरदर्द
दोनों ही राज्यों में भाजपा के सहयोगियों ने चुनाव बाद पाला बदल विपक्ष संग बना ली थी सरकार
उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और बिहार ऐसे ‘बिग 4’ राज्य हैं जहां 40 से ज्यादा लोकसभा सीटें हैं
हैटट्रिक के लिए भाजपा को इन ‘बिग-4’ में से कम से कम 2 राज्यों में बेहतर प्रदर्शन करना होगा

;प्रणब ढल सामंत
नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल के बीच में बिहार और महाराष्ट्र भाजपा के लिए राजनीतिक मुसीबत बन गए थे। चुनाव से पहले साथी रहे नीतीश कुमार और उद्धव ठाकरे ने विपक्ष के साथ मिलकर भाजपा को दोनों ही राज्यों की सत्ता से बाहर कर दिया। लेकिन बाद में भाजपा ने जिस तरह इन दोनों ही राज्यों में वापसी की,उसी में 2024 के लिए उसकी रणनीति का मर्म छिपा हुआ है। ये रणनीति है RCE की यानी रीन्यूअल (नवीनीकरम), कंसोलिडेशन (एकीकरण) और एक्सपैंसन (विस्तार)।

उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के साथ-साथ बिहार और महाराष्ट्र लोकसभा में 40 या उससे ज्यादा सीटों के साथ ‘बिग 4’ राज्यों में आते हैं। संसद की 543 सीटों में से 210 सीटें इन्हीं राज्यों की हैं। भाजपा ने 2019 में इनमें से अकेले 120 सीटें जीती थीं, और एनडीए सहयोगियों के साथ यह संख्या 162 थी। पार्टी को पूर्ण बहुमत हासिल करने के लिए कम से कम दो ‘बिग 4’ राज्यों में अच्छा प्रदर्शन करना होगा।

उत्तर प्रदेश तो भाजपा के लिए सुरक्षित है, लेकिन बिहार और महाराष्ट्र में गठबंधन की राजनीति पार्टी को नुकसान पहुंचा रही है। हालांकि, राज्य इकाइयां जोर लगाकर कह रही थीं कि उन्हें अकेले चुनाव लड़ना चाहिए, ताकि शिवसेना और जेडीयू के ‘विश्वासघात’ से हुए नुकसान को कम किया जा सके।

लेकिन 2024 में बड़े बहुमत के लिए, भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने सोचा कि उन्हें यह करना चाहिए-

अपने 2019 के वोट बैंक को टूटने से बचाने के लिए पूरी कोशिश करें।
इस आधार को बढ़ाने के लिए और रास्तों की तलाश करें।
अपनी उपस्थिति का भौगोलिक दायरा बढ़ाएं ताकि अगर कुछ जगह झटके लगे भीं तो उसकी रिकवरी के लिए अधिक विकल्प मिल सकें।

इन उद्देश्यों के लिए, बीजेपी की रणनीति दो व्यापक नीतियों पर आधारित लगती है-

नई प्रतिभाओं को आकर्षित, समायोजित और बढ़ावा देना।
विपक्ष को कमजोर करना ताकि उनका एक साथ आना मुश्किल हो।

राज्यों को 3 श्रेणियों में बांटकर बीजेपी अपनी रणनीति बना रही है-

नवीनीकरण
उन राज्यों में जहां बीजेपी परंपरागत रूप से मजबूत है, पार्टी खुद को नए स्वरूप में पेश कर रही है। गुजरात इसका उदाहरण है। 2017 के विधानसभा चुनावों में पार्टी को मुश्किल हुई थी, लेकिन 2022 में जबरदस्त जीत हासिल की। एक बड़ा कारण था 40 में से 111 मौजूदा विधायकों को बदलना, जिसमें 5 मंत्री भी शामिल थे। इससे पार्टी ने खुद को नया बनाया। मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी नए मुख्यमंत्रियों को लाकर बीजेपी ने पार्टी के अंदर प्रतिभाओं को मौका देने का संदेश दिया है।

एकीकरण
जिन राज्यों में बीजेपी की मजबूत उपस्थिति है, वहां वह अपने सहयोगियों को साथ रखने और चुनावी गणित को मजबूत करने की रणनीति बना रही है। बिहार और महाराष्ट्र इस श्रेणी में आते हैं। कार्यकाल के पहले भाग में विपक्ष से पिछड़ने के बाद, बीजेपी ने विपक्ष के अंदर की दरारों का फायदा उठाकर वापसी की है। महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री पद का त्याग भी इसी रणनीति का हिस्सा था। पार्टी ने शिवसेना और एनसीपी के टूटे हुए गुटों को जोड़कर अपने वोट बैंक को मजबूत किया है।

विस्तार
2019 में बीजेपी का फोकस पूर्व की ओर था। कम उपस्थिति वाले राज्यों में पार्टी ने दूसरे दलों के नेताओं को आकर्षित कर खुद को खड़ा किया। असम इस रणनीति की सफलता का उदाहरण है। 2024 में बीजेपी का ध्यान दक्षिण की ओर है।

दक्षिण में कर्नाटक और तेलंगाना ऐसे राज्य हैं जहां बीजेपी या तो पहले से मजबूत है या फिर उसकी स्पष्ट मौजूदगी है। हालांकि कर्नाटक में राज्य चुनाव हारने के बावजूद, पार्टी को लगता है कि यह बोम्मई सरकार के खिलाफ नाराजगी का नतीजा था। अगले लोकसभा चुनाव में मोदी के प्रचार से बीजेपी कर्नाटक में वापसी करेगी।

दक्षिण के सभी राज्यों को एक समान नहीं समझना चाहिए। बीजेपी भी ऐसा नहीं करती। पार्टी अलग-अलग राज्यों के लिए अलग-अलग रणनीति बना रही है।

तेलंगाना में बीजेपी अभी एक छोटी पार्टी है। लेकिन हाल में हुए राज्य विधानसभा चुनाव में पार्टी ने अपने वोटशेयर को बढ़ाकर दोगुना करने में कामयाबी हासिल की है। उसे 14 प्रतिशत वोट मिले। भारत राष्ट्र समिति (BRS) के खिलाफ हुए वोटों में कांग्रेस सबसे ज्यादा फायदेमंद रही। बीआरएस से छिटके वोटों में से करीब 6.5 से 7 प्रतिशत तक बीजेपी के साथ जुड़े जबकि सबसे ज्यादा 11 प्रतिशत कांग्रेस के साथ जुड़े। बीजेपी को उम्मीद है कि मोदी तीसरे कार्यकाल के लिए प्रचार करते हुए कांग्रेस की तुलना में ज्यादा BRS विरोधी वोट हासिल करेंगे।

तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में बीजेपी को अपने गठबंधन के सहयोगियों पर निर्भर रहना होगा। तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक के साथ गठबंधन तय है। लेकिन आंध्र प्रदेश में स्थिति अनिश्चित है। वहां वाईएसआर कांग्रेस और तेलुगु देशम पार्टी के बीच लड़ाई है। अभी तक भाजपा दोनों के साथ समान दूरी बनाए रख रही है। उसे पता है कि दोनों के साथ चुनावी फायदा हो सकता है लेकिन चुनाव नजदीक आने पर फैसला लेना ही होगा। केरल में पार्टी कमजोर है और सिर्फ कुछ इलाकों में ही सेंध लगाने की कोशिश करेगी।

बीजेपी 2024 में ‘नंबरों से हटकर’ राजनीतिक रणनीति अपनाएगी, जिससे पूरे देश में उसे स्वीकार्यता मिले। मोदी के तीसरे कार्यकाल के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा बहुत महत्वपूर्ण है, सीमाओं पर और उत्तर-दक्षिण के बीच। इसे अयोध्या में राम मंदिर निर्माण से जुड़े घटनाक्रमों और पंजाब पर मोदी की नजर में देखा जा सकता है।

राज्यों के हिसाब से अलग-अलग रणनीति बनाना, यानी नवीनीकरण, एकीकरण और विस्तार, बीजेपी की 2024 रणनीति का मुख्य हिस्सा है। महाराष्ट्र और अब बिहार में जो हुआ है, वह बीजेपी के चुनाव रथ के चलने का ही एक हिस्सा है।

(इकनॉमिक टाइम्स में छपे प्रणब ढल सामंत के लेख का हिंदी अनुवाद)

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