कृषि बिलों पर हर सवाल का जवाब दिया, कृषकों का अनिर्णय चिंताजनक

कृषि कानूनों और आंदोलन पर केंद्र:कृषि मंत्री बोले- हमने प्रस्ताव में सभी सवालों के जवाब दिए, किसान फैसला नहीं कर पा रहे, ये चिंता की बात
नई दिल्ली 09 दिसंबर। केंद्र ने किसानों को स्पष्ट संकेत दे दिए हैं कि कृषि कानूनों की वापसी मुश्किल है। हां, अगर कोई चिंता है तो सरकार बातचीत और सुधार के लिए हमेशा तैयार है। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि हमने किसानों से कई दौर की बातचीत की। उनके हर सवाल का जवाब प्रस्ताव में लिखकर दिया, लेकिन किसान अभी फैसला नहीं कर पा रहे हैं और ये चिंता की बात है।

तोमर ने कहा- बातचीत में किसान यूनियनों ने हमें मुद्दे नहीं बताए तो हमने ही समस्याओं को पहचाना और किसानों को बताया। सभी मुद्दों पर सिलसिलेवार ढंग से प्रस्ताव बनाकर हमने भेजा। पर किसानों की मांग तो कानून वापस लेने की है। हमारा कहना है कि कानून के जिन प्रावधानों पर उन्हें आपत्ति है, उस पर हम खुले मन से विचार करने को तैयार हैं।

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किसानों की चिंताओं पर कृषि मंत्री के जवाब

1. कानूनों की वैधता का सवाल

कृषि मंत्री ने कहा- किसानों का मानना है कि कृषि राज्य का विषय है और केंद्र कानून नहीं बना सकता। हमने उन्हें यह बताया है कि ट्रेड के लिए केंद्र को कानून बनाने का अधिकार है और इन कानूनों को हमने ट्रेड तक ही सीमित रखा है।

2. मंडी टैक्स को लेकर सवाल

उन्होंने कहा कि किसानों को नए ट्रेड एक्ट के तहत ये आशंका है कि मंडियां दिक्कत में फंस जाएंगी। हमने उनसे इस आशंका पर विचार करने की बात कही। हमने कहा कि राज्य सरकार निजी मंडियों के रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था लागू कर सकेगी।

3. पैन कार्ड से खरीदी पर सवाल

तोमर ने कहा- किसानों को लगता है कि पैन कार्ड किसी के भी पास होगा और वो खरीदकर भाग जाएगा तो वे क्या करेंगे? हमारा मकसद था कि पैन होने के जरिए व्यापारी और किसान लाइसेंसी राज से बच जाएंगे। हम इस पर भी विचार को तैयार थे कि राज्य सरकारें ही इस तरह के पंजीयन के लिए अधिकृत होंगी और अपने हालात के हिसाब से नियम बना सकेंगी।

4.विवादों निपटारे के लिए SDM पर सवाल

कृषि मंत्री ने बताया कि किसान विवाद निपटारे के लिए न्यायालय की व्यवस्था चाहते हैं। हमने इसके लिए SDM कोे अधिकृत किया था कि वो जांच करेगा और इसकी अपील कलेक्टर के पास होगी। हमारा मानना था कि किसानों के सबसे करीब का अधिकारी SDM ही होता है। न्यायालय में वक्त भी लगता है और अदालतों के पास वैसे ही काफी काम पेंडिंग है। हालांकि, हमने किसानों को न्यायालय का विकल्प देने की बात भी कही। वसूली का निर्देश SDM के द्वारा किसान के विरुद्ध नहीं होगा। भूमि सुरक्षित रहे, इस दिशा में सरकार ने विमर्श किया।

5. जमीनों पर कब्जे की आशंका

उन्होंने कहा कि किसानों को आशंका है कि उनकी भूमि पर बड़े उद्योगपति कब्जा कर लेंगे। हमने इसका प्रबंध पहले से ही कानून में कर रखा है। जो भी एग्रीमेंट होगा, वो प्रोसेसर और किसान की फसल के बीच होगा। भूमि से संबंधित लीज, पट्टा या करार नहीं हो सकता।

6. लोन चुकाने का मामला

तोमर बोले- किसानों को ये आशंका थी कि प्रोसेसर अगर फसल के लिए खेती की जमीन पर कोई इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा करता है तो उस पर लिया लोन किसान को चुकाना होगा। हमने साफ किया है कि अगर ऐसा कुछ प्रोसेसर करता है तो उसे करार के तहत ऐसा इन्फ्रास्ट्रक्चर ले जाना होगा। अगर वो नहीं ले जाता तो भू-स्वामी ही उसका मालिक होगा। यह भी कि ऐसी किसी चीज पर लोन लेने की कोशिश प्रोसेसर नहीं करेगा। भूमि की कुर्की और नीलामी पर हमने उन्हें स्पष्टीकरण देने की बात कही थी।

7. एमएसपी का सवाल

कृषि मंत्री ने कहा- किसानों के मन में आशंका थी कि कानूनों के बाद एमएसपी प्रभावित होगी। मैं और प्रधानमंत्रीजी खुद ये कह चुके हैं कि एमएसपी पर कोई असर नहीं पड़ेगा और ये पहले की तरह चलती रहेगी। इस पर हम लिखित आश्वासन राज्य सरकार, किसान और यूनियनों को दे सकते हैं।

कृषि मंत्री तोमर और खाद्य मंत्री गोयल ने कहा, पड़ताल करें कि किसान आंदोलन के पीछे आखिर कौन है?

केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और खाद्य मंत्री पीयूष गोयल ने बृहस्पतिवार को कहा कि मीडिया को यह पड़ताल करना चाहिए कि क्या राष्ट्रीय राजधानी से जुड़ी विभिन्न सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन के पीछे कोई और ताकत है।

दोनों मंत्रियों ने इस बात पर जोर दिया कि दो कृषि कानूनों के प्रावधानों में संशोधन के लिए केन्द्र पहले ही प्रस्ताव का मसौदा किसान संघों के नेताओं को भेज चुका है और अब उन्हें अगले चरण की बातचीत के लिए तारीख तय करना है।

इस बीच, किसान संघों ने प्रस्ताव को खारिज करते हुए कानूनों को वापस लेने की मांग की है। यहां तक कि उन्होंने आने वाले दिनों में आंदोलन की धार तेज करने, ट्रेन की पटरियां अवरुद्ध करने और दिल्ली आने वाले राजमार्गों को जाम करने की घोषणा की है।

यह पूछने पर कि क्या आंदोलन के पीछे कोई और ताकत है, तोमर ने कहा, ‘‘मीडिया की नजरें तेज हैं और यह पता लगाने का काम उस पर छोड़ते हैं।’’ प्रदर्शन कर रहे किसान संघों को भेजे गए प्रस्ताव के मसौदे पर गोयल ने कहा, ‘‘प्रेस को पड़ताल करनी होगी और पता लगाना होगा।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हमें लगता है कि किसानों को कुछ दिक्कत है। हम इसका सम्मान करते हैं कि किसान हमारे पास आए और हमसे बातचीत की। चर्चा के दौरान जो मुद्दे सामने आए हमने उनका समाधान निकालने का प्रयास किया। अगर कोई और समस्या है जिसपर चर्चा करने या मौजूदा प्रस्ताव पर कोई स्पष्टीकरण चाहिए तो हम उसके लिए तैयार हैं। अगर किसी अन्य कारण से वे आगे नहीं आ रहे हैं, तो उस पता लगाने का जिम्मा हम आप पर छोड़ते हैं।’’ तोमर और गोयल दोनों ही आंदोलन से उत्पन्न गतिरोध को समाप्त करने के लिए किसानों से बातचीत कर रहे हैं और लगातार इसपर जोर दे रहे हैं कि सरकार के दरवाजे बातचीत के लिए हमेशा खुले हैं।

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