फैक्ट चैक: संसद में सरकार ने वाकई रामसेतु को नकारा? ये है सवाल और ये रहा जवाब

क्या रामसेतु का अस्तित्व सरकार ने नकारा? सोशल मीडिया पर ये कैसी डिबेट चल पड़ी है

केंद्र सरकार ने राम सेतु के बारे में संसद में ऐसा बयान दिया कि बहस छिड़ गई। सरकार ने कहा है कि इस बात के पुख्ता सबूत नहीं है कि वहां राम सेतु ही था लेकिन आईलैंड, चूना पत्थर दिखे हैं। धार्मिक मान्यता है कि वहां ब्रिज को भगवान राम ने बनवाया था। इसे एडम ब्रिज भी कहा जाता है।

हाइलाइट्स
1-राम सेतु का मुद्दा फिर से चर्चाओं में है
2-संसद में सरकार के बयान पर छिड़ी बहस
3-कांग्रेस बोली, सरकार ने अस्तित्व को नकारा

नई दिल्ली 24 दिसंबर: राम सेतु का जिक्र होते ही रामायण के पन्ने और राम सेना याद आने लगती है। हिंदुओं के दिलों में राम सेतु के लिए विशेष जगह है। 2007 में कांग्रेस सरकार ने सेतुसमुद्रम परियोजना का प्रस्ताव रखा तो विवाद हो गया। सुब्रमण्यम स्वामी कोर्ट पहुंच गए। कांग्रेस सरकार की योजना में 83 किलोमीटर लंबी गहरी चैनल बनाई जानी थी। सरकार ने कोर्ट में कहा कि रामसेतु को नुकसान पहुंचाए बिना रास्ता बनाने की कोशिश की गई। कांग्रेस को राम सेतु के विरोध में प्रोजेक्ट करने की कोशिशें हुईं। इस समय सत्ता में भाजपा है और पिछले दिनों संसद में राम सेतु का जिक्र होने से मामला फिर चर्चाओं में आ गया है। सोशल मीडिया पर लोग भाजपा को घेर रहे हैं। कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने भाजपा सरकार पर व्यंग्य करते हुए कहा, ‘सभी भक्तजन कान खोलकर सुन लें और आंखें खोलकर देख लो। मोदी सरकार संसद में कह रही है कि राम सेतु होने का कोई प्रमाण नहीं है।’ तो क्या सच में मोदी सरकार ने राम सेतु के अस्तित्व को नकार दिया है? रामसेतु को लेकर भाजपा और कांग्रेस समर्थकों में सोशल मीडिया पर भिड़ंत देखी जा रही है। आइए जानते हैं कि सरकार ने संसद में ऐसा क्या कहा, जिस पर बवाल मचा हुआ है।

राम सेतु पर सवाल और जवाब

22 दिसंबर को राज्यसभा में सांसद कार्तिकेय शर्मा ने सवाल पूछा कि क्या सरकार आधुनिक तकनीक की मदद से प्राचीन काल की ऐतिहासिक जानकारी हासिल करने की कोशिश कर रही है? इस पर प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), अंतरिक्ष राज्य मंत्री डॉक्टर जितेंद्र सिंह ने जवाब दिया कि अंतरिक्ष विभाग इस दिशा में काम कर रहा है और हमने हड़प्पा सभ्यता को लेकर भी कुछ जानकारियां जुटाई हैं। जहां तक रामसेतु को लेकर सवाल है तो मैं कहना चाहता हूं कि शोध में हमारी कुछ सीमाएं हैं क्योंकि यह 18 हजार साल से भी ज्यादा पुराना इतिहास है। अगर हम इतिहास के हिसाब से देखें तो वह ब्रिज (राम सेतु) करीब 56 किलोमीटर लंबा था। लेकिन स्पेस टेक्नॉलॉजी से हमने कुछ टुकड़े और आईलैंड, कुछ लाइम स्टोन के बारे में जानकारी हासिल की है लेकिन दावे के साथ यह नहीं कहा जा सकता कि वे ब्रिज के अवशेष हैं। लेकिन लोकेशन में उनके बीच एक निरंतरता दिखाई देती है।

उन्होंने आगे कहा, ‘मैं एक लाइन में कहना चाहता हूं कि यह कह पाना मुश्किल है कि वहां सचमुच में स्ट्रक्चर क्या था। लेकिन वहां प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से कुछ संकेत मिलते हैं कि स्ट्रक्चर था। इसी तरह का प्रयास द्वारका सिटी को लेकर शोध में किया गया है।’
कार्तिकेय शर्मा का पूरा सवाल जो संसद में रखा गया था वह था, ‘क्या सरकार वैदिक काल से लेकर आज तक के हमारे गौरवशाली इतिहास और भारत के ऐतिहासिक फैक्ट्स का वैज्ञानिक आकलन कर इसे पाठ्यक्रम में शामिल करने का प्रयास कर रही है?’

मामला सुप्रीम कोर्ट में भी है

इसी साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट में राम सेतु मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि आप पैर पीछे क्यों खींच रहे हैं। याचिका भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी की है। उन्होंने राम सेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग की है। मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ से स्वामी ने कहा था कि यह एक छोटा सा मामला था जहां केंद्र को ‘हां’ या ‘ना’ में जवाब देना चाहिए था। इसके बाद केंद्र सरकार के वकील ने कहा कि जवाब तैयार है लेकिन मंत्रालय से निर्देश लेने होंगे। इसके बाद कोर्ट ने चार हफ्ते का समय दिया था।

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