मुफ्त का चंदन,घिस मेरे नंदन: क्या फ्रीबीज से भाजपा को रोक पायेगा विपक्ष?

क्या भाजपा को ऐसे रोक पाएगा विपक्ष?

देश की राजनीति में अपने हिसाब से पिच बनाकर उस पर विरोधियों को लाने की कोशिश तेज हो गई है। अभी तक इस मामले में भाजपा ने साफ-साफ बढ़त ले रखी थी, लेकिन पिछले कुछ समय में विपक्ष ने अपने लिए मुद्दों की पहचान कर ली है। पुरानी पेंशन योजना हो,सस्ते रसोई गैस सिलिंडरों की बात हो या युवाओं को नौकरी और गृहणियों को तय वेतन का वादा हो, विपक्षी दलों ने इन्हें अपना राजनीतिक हथियार बनाने के संकेत दिए हैं। वहीं भाजपा राष्ट्रवाद-हिंदुत्व, फ्री राशन और गरीबों के लिए दूसरी कल्याणकारी योजनाओं के साथ नरेंद्र मोदी के चमत्कार की मदद से जीतने के आजमाए हुए फॉर्म्युले पर टिके रहने के मूड में है।

असल में, 2014 से नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की एक के बाद एक जीत ने विपक्ष के सामने अस्तित्व का सवाल खड़ा कर दिया था। विपक्ष को भाजपा की आक्रामक नीति की काट नहीं मिल रही थी। बीच-बीच में नोटबंदी, जीएसटी और इससे जुड़े कुछ आर्थिक मुद्दे उसने जरूर उठाए,लेकिन उसका अधिक राजनीतिक लाभ नहीं मिला। केंद्र सरकार की मुफ्त राशन योजना ने आर्थिक मोर्चे पर भी विपक्षी मुद्दों को काउंटर कर दिया। विपक्ष अधिकतर समय भाजपा की पिच पर ही घिरता रहा, जिसकी कोई काट उसके पास नहीं थी। ऐसे में बार-बार मिली हार ने उसे रणनीति बदलने पर मजबूर किया।

बदलती विपक्षी रणनीति

विपक्ष ने भाजपा को काउंटर करने के लिए कुछ खास क्षेत्र चुने, जहां उसे भाजपा अपेक्षाकृत कमजोर दिखती है। इसी राजनीतिक दांव में पुरानी पेंशन योजना और रोजगार के विषय उसने चुनावों के केंद्र में लाना शुरू कर दिया। इसके अलावा महंगाई और महिलाओं को मुफ्त वेतन का वादा कर इनके बीच भी सेंध लगाने की कोशिश की। पिछले कुछ समय से देखें तो सरकारी कर्मचारी, युवा और महिलाएं, इन तीनों वोट बैंकों को अपने पक्ष में करने की सबसे अधिक कोशिश विपक्ष की ओर से की गई।

हालांकि इसके मिश्रित चुनावी नतीजे ही अभी तक मिले हैं। गुजरात में इसका कोई लाभ नहीं मिला, लेकिन हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस को इस रणनीति का लाभ मिला। फिर भी विपक्षी दलों ने संकेत दिया है कि वे ऐसे मुद्दों को ही 2024 के आम चुनाव में केंद्र में रखेंगे। जानकारों का मानना है कि इन विषयों को आगे रख चुनाव लड़ना और भाजपा का मुकाबला करना विपक्ष की मजबूरी है। भाजपा के आक्रामक राष्ट्रवाद या हिंदुत्व की भावनात्मक राजनीति के सामने विपक्ष को दूसरी रेखा खींचनी होगी, जो इन विषयों के बीच से ही गुजरती है। न सिर्फ चुनावों में बल्कि संसद के अंदर और सार्वजनिक रूप से भी विपक्ष ने इन्हीं विषयों के इर्द-गिर्द अपनी राजनीति केंद्रित कर ली है। उसकी कोशिश है कि अब वह आगे भाजपा की राजनीतिक पिच पर जाकर न खेले, जैसा कि 2014 के बाद कई मौकों पर कर चुका है। विपक्ष को समझ में आ गया है कि आर्थिक विषयों पर ही वह भाजपा को टक्कर दे सकता है। यही कारण है कि हिंदुत्व या राष्ट्रवाद जैसे विषयों पर लगातार बैकफुट पर धकेले जाने वाले विपक्ष ने अब अपना पूरा फोकस किसानों और महंगाई पर किया है। लेकिन यहां भी उसके सामने चुनौतियां कम नहीं हैं। जिन राज्यों में ऐसे वादों के साथ विपक्ष सत्ता में आया है, वहां उन्हें पूरा करना बड़ी चुनौती होगी।

भाजपा को भी विपक्ष की इस नई चाल का अंदाजा है। इसलिए वह भी इसी हिसाब से खुद को तैयार कर रही है। भाजपा ने इसे काउंटर करने के लिए मुफ्त की चीजों की राजनीतिक प्रासंगिकता पर बहस छेड़ दी है। चुनाव आयोग से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक इस बहस में किसी न किसी रूप में शामिल हुए हैं। साथ ही ऐसे समय चुनाव में मुफ्त की चीजों के वादों पर बहस छिड़ी, जब हिमाचल प्रदेश में ओल्ड पेंशन या सस्ती दर पर बिजली उपलब्ध कराने जैसे वादे के साथ कांग्रेस ने चुनाव जीतकर इसके बढ़ते ट्रेंड को फिर से स्थापित किया। आम आदमी पार्टी ने भी लुभावने वादों के साथ गुजरात में एंट्री मारी। मुफ्त बिजली जैसी चीजों का दांव खेलकर अरविंद केजरीवाल दिल्ली मॉडल ऑफ गवर्नेंस को प्रॉजेक्ट कर रहे हैं। भाजपा को भी इसकी काट में गुजरात से लेकर हिमाचल प्रदेश तक में कुछ लुभावने वादे करने पड़े। 2019 आम चुनाव से पहले किसान सम्मान निधि योजना लागू करनी पड़ी। साथ ही संघ और दूसरे सहयोगी संगठनों ने पुरानी पेंशन योजना और दूसरे आर्थिक मुद्दों पर लोगों के बढ़ते असंतोष के बारे में भाजपा के सामने चिंता व्यक्त की है। किसानों ने भी हाल में फिर से एमएसपी और दूसरे मुद्दों पर आंदोलन शुरू करने के संकेत दिए हैं।

जारी रहेगा लुभावने वादों का दौर

मतलब साफ है कि लुभावने वादों का दौर अभी जारी रहेगा। लेकिन पहली बार सरकार और प्रधानमंत्री मोदी के सामने चुनौती अजेंडे को पहले अपने हक में लेने की है। अब तक का अनुभव कहता है कि यह उनके लिए असंभव नहीं। उदाहरण को, 2019 आम चुनाव से पहले मोदी सरकार ने जिस तरह से किसानों को हर साल 6 हजार रुपये देने की योजना की शुरुआत की, उसका राजनीतिक लाभ उसे मिला और आम चुनाव में दोबारा जनता विश्वास प्राप्त हुआ। अगले लोकसभा चुनाव में अभी डेढ़ साल का समय बाकी है। केंद्र सरकार को अभी दो बार बजट पेश करना है। इसमें वह विपक्ष के नैरेटिव को काउंटर करने के लिए अलग से घोषणाएं कर सकती है। साथ ही हाल के सालों में मिडल क्लास में इस बात को लेकर नाराजगी है कि वह किसी भी खेमे की प्राथमिकता में नहीं रहा और उसे कोई लाभ भी नहीं मिला। ऐसे में उसे भी टैक्स कटौती के अलावा महंगाई और ऊंची ब्याज दर से राहत पाने की उम्मीद है। कुल मिलाकर हिंदुत्व और राष्ट्रवाद जैसे बड़े भावनात्मक मुद्दों के बीच आने वाले समय में नए-नए मुद्दे भी सामने आ सकते हैं, जिससे राजनीति की दशा और दिशा तय होगी।

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