परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की भूकंपप्रतिरोधकता को तटीय वायु क्षेत्र सुझाया आईआईटी जोधपुर ने

आईआईटी जोधपुर के शोधकर्ताओं ने परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की भूकंपीय प्रतिरोधकता में सुधार के लिए तटीय वायु क्षेत्रों को एक अतिरिक्त शीतल ऊर्जा स्रोत के रूप में प्रस्तुत करने का सुझाव दिया
 इस अध्ययन में परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की शीतल ऊर्जा आवश्यकताओं को बढ़ाने के लिए सतत वायु ऊर्जा का लाभ उठाने का प्रस्ताव दिया गया है
 यह अध्ययन भारत के चेन्नई में स्थित मद्रास परमाणु ऊर्जा स्टेशन में किया गया है

देहरादून, 22-मई-2023: अतीत की परमाणु आपदाओं के आधार पर परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की सुरक्षा में कूलिंग ऊर्जा स्रोतों के महत्व को  ध्यान में रखते हुए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान जोधपुर के शोधकर्ताओं ने परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की कूलिंग आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए तटीय वायु क्षेत्रों को भूकंपीय प्रतिरोधी वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों के रूप में चुनने का प्रस्ताव दिया है। भारत के चेन्नई में स्थित एक मौजूदा परमाणु ऊर्जा संयंत्र, मद्रास परमाणु ऊर्जा स्टेशन को इस प्रस्तावित रणनीति की व्यावहारिकता जांचने के लिए केस स्टडी के रूप में चुना है। इस प्रस्तावित कार्यप्रणाली में कई चरणों की एक श्रृंखला शामिल है – आरम्भ में परमाणु रिएक्टरों में कूलिंग पॉवर की जरूरतों के अनुमान लगाया गया। इसके बाद तटीय पवन टरबाइन और इसके संबंधित बुनियादी ढांचे को डिजाइन किया गया है और अंत में विभिन्न परिस्थितियों को ध्यान मैं रखते हुए चयनित तटीय पवन टरबाइन साइट पर एक भूकंपीय सुरक्षा का मूल्यांकन किया गया है।

इस शोध को आईआईटी जोधपुर के सिविल एंड इंफ्रास्ट्रक्चर इंजीनियरिंग विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. प्रदीप कुमार दम्माला और इसी विभाग की एमटेक-पीएचडी शोधार्थी सुश्री सुमाजा कोल्ली, यूनाइटेड किंगडम के सुरे विश्वविद्यालय, एवं चीन के सिंहुआ विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग मैकेनिक्स के शोधकर्ताओं के सहयोग से इस लेख को चीन के न्यूक्लियर इंजीनियरिंग एंड डिजाइन जर्नल में प्रकाशित किया गया है।
(DOI: https://doi.org/10.1016/j.nucengdes.2023.112204).

इस शोध की भविष्य में आवश्यकता के बारे में बात करते हुए आईआईटी जोधपुर के सिविल और इंफ्रास्ट्रक्चर इंजीनियरिंग विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉक्टर प्रदीप कुमार दम्माला ने कहा, “परमाणु ऊर्जा विकास की भारत की खोज के साथ भूकंपीय और सुनामिक खतरों की अपरिहार्य उपस्थिति को देखते हुए परमाणु संरचनाओं की सुरक्षा को यथासंभव उच्चतम स्तर तक बढ़ाना अति आवश्यक हो जाता है।“

उन्होंने आगे कहा, “यह प्रस्तावित रणनीति परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के लिए भूकंप और सूनामी जैसी परस्पर होने वाली घटनाओं के दौरान पवन ऊर्जा स्रोतों के एकीकरण के मूल्यांकन के लिए एक उत्कृष्ट रूपरेखा के रूप में कार्य करती है।”

उल्लेखनीय है कि डॉक्टर दम्माला ने इस साल की शुरुआत में 4 फरवरी 2023 को ऑफशोर विंड टर्बाइन के लिए फाउंडेशन सिस्टम के डिजाइन पर इंडो-यूके इंटरनेशनल वर्कशॉप का भी आयोजन किया था जिसमें 14 विभिन्न देशों के 200 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया था।

इस शोध को यूके इंडिया एजुकेशन रिसर्च इनिशिएटिव (UKIERI) और कॉमनवेल्थ स्कॉलरशिप कमीशन, यूनाइटेड किंगडम द्वारा डॉक्टर प्रदीप कुमार दममाला को वित्त पोषित किया गया था। भारत का तीन-चरणीय परमाणु कार्यक्रम थोरियम-आधारित रिएक्टरों की उन्नति पर केंद्रित है। दूसरे चरण में प्लूटोनियम-ईंधन वाले फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (FBR) का विकास शामिल है। भारत के सात परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में से पांच भूकंपीय रूप से सक्रिय क्षेत्र III और IV में स्थित हैं जबकि तीन तटीय क्षेत्रों में स्थित हैं जो सुनामी और चक्रवात जैसे खतरों के उन्मुख हैं। कलपक्कम के मद्रास परमाणु ऊर्जा स्टेशन में दो 220 MW एफबीआर स्थापित हैं। इन उन्नत परमाणु रिएक्टरों की मजबूती और प्रतिरोध क्षमता सुनिश्चित करने के लिए यह अध्ययन यह सुनिश्चित करता है कि सतत वायु ऊर्जा का उपयोग करके कूलिंग पावर की आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता है ।

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