पांच साल में छोड़ चुके 11 बड़े नेता, भाजपा से मुकाबला करना है तो कांग्रेस ठीक करे अपना घर

संपादक की पसंद : दूसरे के घर में झांकने के बजाय अपना घर ठीक करें कांग्रेस

कांग्रेस नेता राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा के दूसरे चरण पर निकल चुके हैं। कन्याकुमारी से कश्मीर के बाद अब वे मणिपुर से महाराष्ट्र की न्याय यात्रा पर निकले हैं। 67 दिनों तक चलने वाली यह यात्रा 14 राज्यों के 85 ज़िलों से गुज़रेगी। इनमें हिंदी पट्टी वाले वे राज्य भी हैं,जहां हाल के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को बड़ी पराजय का सामना करना पड़ा है। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले यह यात्रा इन राज्यों में पार्टी की स्थिति में कोई बड़ा बदलाव ला देगी, कहना मुश्किल है क्योंकि चुनाव परिणाम के बाद भी जिस गंभीर मंथन की ज़रूरत थी,वह दिखी नहीं। तीनों प्रदेशों में इतनी बुरी हार के बावजूद पार्टी के कई नेता आत्मावलोकन करने के बजाय सोशल मीडिया पर शिवराज सिंह चौहान, रमन सिंह और वसुंधरा राजे को किनारे करने की चर्चा में लीन थे और भाजपा की चुटकियां ले रहे थे। हद तो तब हो गई, जब इनमें से बहुत से नेता शिवराज के लिए सहानुभूति तक जताते दिखे।

भारत जोड़ो यात्रा

अरे भाई, कुछ समय पहले तक मध्यप्रदेश की दुर्गति के लिए जिस मुख्यमंत्री को आप घेर रहे थे,तो अब उनके लिए ये नकली आंसूं बहाने का क्या मतलब? भाजपा ने तो उन्हें मुख्यमंत्री फेस के रूप में पेश भी नहीं किया था और वैसे भी वह किसे मुख्यमंत्री बनाती है, किसे नहीं, यह पूरी तरह पार्टी का अंदरूनी मामला है, ऐसे में विपक्ष की यह चिंता समझ से परे थी। खासकर तब, जब दूसरे के घर में झांकने के बजाय अपनी कमियों पर चिंतन करने का वक्त था। इन नेताओं को यह नहीं दिखा कि मुख्यमंत्री फेस न होने के बावजूद चौहान पूरे इलेक्शन में ऐसे मेहनत करते रहे, जैसे यह उन्हीं के नाम पर लड़ा जा रहा हो। यह उस पार्टी के लिए बड़ा संदेश था, जिसके बड़े नेता राज्य पर फोकस करने के बजाय पांच साल तक आपसी रस्साकशी में ही उलझे रहे।

वैसे भी भाजपा में ऐसे परिवर्तन कोई नई बात तो नहीं थी। 18 साल पहले जब शिवराज ने मध्य प्रदेश की कुर्सी संभाली थी,तब भी सब इसी तरह चौंके थे,जैसे अब मोहन यादव के नाम पर चौंके हैं। उमा भारती और बाबूलाल गौर जैसे दिग्गजों के आगे शिवराज के नाम की किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। एक नए व अनजान चेहरे को मुख्यमंत्री बनाने पर तब खूब सवाल भी उठे। लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया कि 17 साल तक मुख्यमंत्री पद संभालने वाले उन्हीं शिवराज को प्रधानमंत्री मोदी के लिए खतरा बताया जाने लगा था।

कांग्रेस अगर वाकई भाजपा से टक्कर लेने को गंभीर है, तो उसे सबसे पहले भाजपा के अंदर क्या चल रहा है, इसकी चिंता छोड़ अपनी पार्टी पर फोकस करना होगा। भाजपा को ही देखना है तो कम से कम यह देखें कि तीनों राज्यों में इतनी बड़ी जीत के बाद भी उसने जमे-जमाए दिग्गजों के बजाय कैसे नए चेहरों को मौका दिया है। राजस्थान के पूरे कार्यकाल में यही लड़ाई गहलोत और पायलट के बीच चलती रही, पर कांग्रेस ने उसे सुलझाने की कोई गंभीर कोशिश नहीं की। चुनाव से ठीक पहले किसी तरह मामला शांत किया गया, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। भाजपा से मुकाबले को एकजुट हुए विपक्ष के ज्यादातर दलों में भी यही समस्या है कि वहां नई पीढ़ी को मौका ही नहीं मिल पाता है। सीनियर नेता चुनाव नहीं जितवा पा रहे,तब भी अपनी जगह नहीं छोड़ते। उन दलों का एक कर्मठ कार्यकर्ता सपने में भी सोच नहीं सकता कि वह कभी टॉप पोस्ट तक पहुंच पाएगा।

कुछ साल पहले राहुल गांधी ने युवा फोर्स को आगे लाने की पहल की भी, लेकिन एक साथ कई सीनियर नेताओं ने उनके खिलाफ बगावत कर दी। मीडिया में भी खूब बहस हुई कि अनुभवी नेताओं को यूं किनारे करना ठीक नहीं, उनके अनुभव का फायदा उठाने के लिए उन्हें साथ लेकर चलना चाहिए। आखिरकार पार्टी को वापस सीनियर नेताओं को आगे लाना पड़ा। उसका नतीजा सामने है। अब चुनाव जीतने के बाद तीनों राज्यों में भाजपा ने नए चेहरों को कमान सौंपी तो आखिरकार कांग्रेस भी मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में संगठन में बदलाव करने पर मजबूर हुई है। लेकिन भाजपा जैसी संगठित पार्टी से मुकाबला करना है तो मजबूरी में नहीं, पार्टी हित में फैसले करने होंगे। यात्रा से ठीक पहले कांग्रेस के एक और पुराने और युवा चेहरे मिलिंद देवड़ा ने पार्टी से नाता तोड़ते हुए शिंदे शिव सेना का दामन थाम लिया है। पिछले पांच साल में 11 नेता कांग्रेस का साथ छोड़ चुके हैं। अब भी कांग्रेस ने अपने घर को नहीं संभाला तो लोकसभा चुनाव तक यह सिलसिला जारी रह सकता है जो पार्टी के लिए घातक ही सिद्ध होगा।

# अक्षय शुक्ल

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