जयंती: आजादी के दीवानों का गुरु मंत्र था ‘वंदे मातरम’

🌹🌹🙏🙏 *07.11.2020* 🙏🙏🌹🌹

*वन्देमातरम् ! वन्देमातरम् !*
✍ *प्रिय राष्ट्रभक्तों* आज भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी बिपिंचंद्र पाल जी की 162वीं जयंती है तथा आज के ही दिन भारत की स्वतंत्रता के लिए ऊर्जा देने वाले महान राष्ट्रीय गीत ‘वंदेमातरम्’ की रचना हुई थी।

🇮🇳🇮🇳 *’वंदेमातरम्’ रचना के 144 वर्ष* 🇮🇳🇮🇳

✍ राष्‍ट्रीय गीत “वन्देमातरम” के रचयिता बंकिमचन्द्र का हमारे देश के उन महान् साहित्यकारों में सर्वश्रेष्ठ स्थान है, जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समूचे भारतवर्ष में स्वतन्त्रता एवं जागृति का ऐसा मन्त्र फूंका कि सारे भारतवासी वन्देमातरम् के जयघोष के साथ सर्वस्व बलिदान करने हेतु तैयार हो उठे और देश ने आज़ादी प्राप्त की। बंकिम चन्द्र चटर्जी जी ने वन्देमातरम् के माध्यम से राष्ट्रीयता के जो जागृति भरे संस्कार गुलाम भारतीयों को दिये, उसके लिए भारतवासी सदा उनके ऋणी रहेंगे।
📝 ‘वंदेमातरम्’ भारत का राष्ट्रीय गीत है जिसकी रचना बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय ने 07 नवम्बर, 1876 को बंगाल के कांतल पाडा नामक गाँव में की थी। ‘वंदेमातरम्’ गीत के प्रथम दो पद संस्कृत में तथा शेष पद बांग्ला भाषा में थे। राष्ट्रकवि रवींद्रनाथ टैगोर ने इस गीत को स्वरबद्ध किया और पहली बार सन् 1896 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में यह गीत गाया गया। 👉 *रबीन्द्रनाथ टैगोर जी बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय जी को अपना गुरु मानते थे।* उनका कहना था कि, ‘बंकिम बंगला लेखकों के गुरु और बंगला पाठकों के मित्र हैं’। असल में बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय से पहले बांग्ला साहित्यकार संस्कृत में ही लेखनी चलाते थे। यह गीत बंकिम बाबू के संन्यासी विद्रोह को आधार बनाकर लिखे गए उपन्यास ‘आनंदमठ’ का हिस्सा है।

वन्दे मातरम् ( बाँग्ला: বন্দে মাতরম) बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा संस्कृत बाँग्ला मिश्रित भाषा में रचित इस गीत का प्रकाशन सन् १८८२ में उनके उपन्यास आनन्द मठ में अन्तर्निहित गीत के रूप में हुआ था। इस उपन्यास में यह गीत भवानन्द नाम के संन्यासी द्वारा गाया गया है। इसकी धुन यदुनाथ भट्टाचार्य ने बनायी थी। इस गीत को गाने में 65 सेकेंड (1 मिनट और 5 सेकेंड) का समय लगता है।


अवनीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा बनाया गया भारतमाता का चित्र

सन् २००३ में, बीबीसी वर्ल्ड सर्विस द्वारा आयोजित एक अन्तरराष्ट्रीय सर्वेक्षण में, जिसमें उस समय तक के सबसे मशहूर दस गीतों का चयन करने के लिये दुनिया भर से लगभग ७,००० गीतों को चुना गया था और बी०बी०सी० के अनुसार १५५ देशों/द्वीप के लोगों ने इसमें मतदान किया था उसमें वन्दे मातरम् शीर्ष के १० गीतों में दूसरे स्थान पर था।
यदि बाँग्ला भाषा को ध्यान में रखा जाय तो इसका शीर्षक “बन्दे मातरम्” होना चाहिये “वन्दे मातरम्” नहीं। चूँकि हिन्दी व संस्कृत भाषा में ‘वन्दे’ शब्द ही सही है, लेकिन यह गीत मूलरूप में बाँग्ला लिपि में लिखा गया था और चूँकि बाँग्ला लिपि में व अक्षर है ही नहीं अत: बन्दे मातरम् शीर्षक से ही बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय ने इसे लिखा था। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए शीर्षक ‘बन्दे मातरम्’ होना चाहिये था। परन्तु संस्कृत में ‘बन्दे मातरम्’ का कोई शब्दार्थ नहीं है तथा “वन्दे मातरम्” उच्चारण करने से “माता की वन्दना करता हूँ” ऐसा अर्थ निकलता है, अतः देवनागरी लिपि में इसे वन्दे मातरम् ही लिखना व पढ़ना समीचीन होगा।

संस्कृत मूल गीत

बांग्ला लिपि

বন্দে মাতরম্৷
সুজলাং সুফলাং
মলয়জশীতলাম্
শস্যশ্যামলাং
মাতরম্!

শুভ্র-জ্যোত্স্না-পুলকিত-যামিনীম্
ফুল্লকুসুমিত-দ্রুমদলশোভিনীম্,
সুহাসিনীং সুমধুরভাষিণীম্
সুখদাং বরদাং মাতরম্৷৷

সপ্তকোটীকন্ঠ-কল-কল-নিনাদকরালে,
দ্বিসপ্তকোটীভুজৈধৃতখরকরবালে,
অবলা কেন মা এত বলে!
বহুবলধারিণীং
নমামি তরিণীং
রিপুদলবারিণীং
মাতরম্৷

তুমি বিদ্যা তুমি ধর্ম্ম
তুমি হৃদি তুমি মর্ম্ম
ত্বং হি প্রাণাঃ শরীরে৷
বাহুতে তুমি মা শক্তি,
হৃদয়ে তুমি মা ভক্তি,
তোমারই প্রতিমা গড়ি মন্দিরে মন্দিরে৷

ত্বং হি দুর্গা দশপ্রহরণধারিণী
কমলা কমল-দলবিহারিণী
বাণী বিদ্যাদায়িণী
নমামি ত্বাং
নমামি কমলাম্
অমলাং অতুলাম্,
সুজলাং সুফলাং
মাতরম্

বন্দে মাতরম্
শ্যামলাং সরলাং
সুস্মিতাং ভূষিতাম্
ধরণীং ভরণীম্
মাতরম্৷

देवनागरी लिपि

वन्दे मातरम्
सुजलां सुफलाम्
मलयजशीतलाम्
शस्यश्यामलाम्
मातरम्।

शुभ्रज्योत्स्नापुलकितयामिनीम्
फुल्लकुसुमितद्रुमदलशोभिनीम्
सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम्
सुखदां वरदां मातरम्॥ १॥

कोटि कोटि-कण्ठ-कल-कल-निनाद-कराले
कोटि-कोटि-भुजैर्धृत-खरकरवाले,
अबला केन मा एत बले।
बहुबलधारिणीं
नमामि तारिणीं
रिपुदलवारिणीं
मातरम्॥ २॥

तुमि विद्या, तुमि धर्म
तुमि हृदि, तुमि मर्म
त्वम् हि प्राणा: शरीरे
बाहुते तुमि मा शक्ति,
हृदये तुमि मा भक्ति,
तोमारई प्रतिमा गडी मन्दिरे-मन्दिरे॥ ३॥

त्वम् हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी
कमला कमलदलविहारिणी
वाणी विद्यादायिनी,
नमामि त्वाम्
नमामि कमलाम्
अमलां अतुलाम्
सुजलां सुफलाम्
मातरम्॥४॥

वन्दे मातरम्
श्यामलाम् सरलाम्
सुस्मिताम् भूषिताम्
धरणीं भरणीं
मातरम्॥ ५॥

हिन्दी अनुवाद

आनन्दमठ के हिन्दी, मराठी, तमिल, तेलुगु, कन्नड आदि अनेक भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त अंग्रेजी-अनुवाद भी प्रकाशित हुए। डॉक्टर नरेशचन्द्र सेनगुप्त ने सन् १९०६ में Abbey of Bliss के नाम से इसका अंग्रेजी-अनुवाद प्रकाशित किया। अरविन्द घोष ने ‘आनन्दमठ’ में वर्णित गीत ‘वन्दे मातरम्’ का अंग्रेजी गद्य और पद्य में अनुवाद किया। महर्षि अरविन्द द्वारा किए गये अंग्रेजी गद्य-अनुवाद का हिन्दी-अनुवाद इस प्रकार है:

मैं आपके सामने नतमस्तक होता हूँ। ओ माता!
पानी से सींची, फलों से भरी,
दक्षिण की वायु के साथ शान्त,
कटाई की फसलों के साथ गहरी,
माता!

उसकी रातें चाँदनी की गरिमा में प्रफुल्लित हो रही हैं,
उसकी जमीन खिलते फूलों वाले वृक्षों से बहुत सुन्दर ढकी हुई है,
हँसी की मिठास, वाणी की मिठास,
माता! वरदान देने वाली, आनन्द देने वाली।

📝 *15.08.1947* को प्रातः 6:30 बजे आकाशवाणी से पंडित ओंकारनाथ ठाकुर का राग-देश में निबद्ध ‘वन्देमातरम’ के गायन का सजीव प्रसारण हुआ था। आज़ादी की सुहानी सुबह में देशवासियों के कानों में राष्ट्रभक्ति का मंत्र फूँकने में ‘वन्देमातरम’ की भूमिका अविस्मरणीय थी। ओंकारनाथ जी ने पूरा गीत स्टूडियो में खड़े होकर गाया था; अर्थात उन्होंने इसे राष्ट्रगीत के तौर पर पूरा सम्मान दिया। इस प्रसारण का पूरा श्रेय सरदार बल्लभ भाई पटेल को जाता है। पण्डित ओंकारनाथ ठाकुर का यह गीत ‘दि ग्रामोफोन कम्पनी ऑफ़ इंडिया’ के रिकॉर्ड संख्या STC 048 7102 में मौजूद है। *24.01.1950* को संविधान सभा ने निर्णय लिया कि स्वतंत्रता संग्राम में ‘वन्देमातरम’ गीत की उल्लेखनीय भूमिका को देखते हुए इस गीत के प्रथम दो अन्तरों को ‘जन गण मन..’ के समकक्ष मान्यता दी जाय। डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद ने संविधान सभा का यह निर्णय सुनाया।

📝 जब आज़ाद भारत का नया संविधान लिखा जा रहा था, तब वंदे मातरम् को न राष्ट्रगान के रूप में अपनाया गया और न ही उसे राष्ट्रगीत का दर्ज़ा मिला। लेकिन संविधान सभा के अध्यक्ष और भारत के पहले राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने 24 जनवरी,1950 को घोषणा की कि वंदेमातरम् को राष्ट्रीय गीत का दर्ज़ा दिया जा रहा है। सन् 1905 के बंगाल के स्वदेशी आंदोलन ने वंदेमातरम् को राजनीतिक नारे में बदल दिया। ब्रितानी हुकूमत इसकी लोकप्रियता से सशंकित हो उठी और उसने इस पर प्रतिबंध लगाने पर विचार करना शुरू कर दिया।

📝 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशनों के अलावा भी आज़ादी के आंदोलन के दौरान इस गीत के प्रयोग के काफ़ी उदाहरण मौजूद हैं। लाला लाजपत राय जी ने लाहौर से जिस जर्नल का प्रकाशन शुरू किया, उसका नाम ‘वंदेमातरम्’ रखा। अंग्रेज़ों की गोली का शिकार बनकर दम तोड़ने वाली आज़ादी की दीवानी मातंगिनी हज़ारा की जुबान पर आख़िरी शब्द ‘वंदेमातरम्’ ही थे। सन् 1907 में मैडम भीकाजी कामा जी ने जब जर्मनी के स्टटगार्ट में तिरंगा फहराया तो उसमे ‘वंदेमातरम्’ ही लिखा हुआ था।

*वन्देमातरम् ! वन्देमातरम् !*

राकेश कुमार✒ शिक्षक✒
*🇮🇳 मातृभूमि सेवा संस्था 9891960477 🇮🇳*

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