जयंती: दुखद अध्याय है सांडर्स हत्या में काला पानी कैद में महावीर सिंह की वीरगति

…………….. चरित्र-निर्माण, समाज-सुधार तथा राष्ट्रवादी जन-चेतना के लिए समर्पित *मातृभूमि सेवा संस्था* (राष्ट्रीय स्तर पर पंजीकृत) आज देश के ज्ञात व अज्ञात राष्ट्रभक्तों को उनके अवतरण, स्वर्गारोहण व बलिदान दिवस पर कोटि कोटि नमन करती है।🙏🙏🌹🌹🌹🌹
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🌹🙏 *अमर बलिदानी महावीर सिंह* 🙏🌹

*जन्म:-* 16.09.1904 *बलिदान:-* 17.05.1933

राष्ट्रभक्त मित्रों आइये परिचित होते हैं अमर बलिदानी महावीर सिंह से, जिनका जन्म 16 सितम्बर 1904 को *उत्तर प्रदेश के एटा जिले के शाहपुर टहला* नामक एक छोटे से गाँव में उस क्षेत्र के प्रसिद्ध वैद्य कुंवर देवी सिंह और उनकी धर्मपरायण पत्नी श्रीमती शारदा देवी के पुत्र के रूप में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में ही प्राप्त करने के बाद महावीर सिंह ने हाईस्कूल की परीक्षा गवर्मेंट कालेज 🏬 एटा से पास की। राष्ट्र -सम्मान के लिए मर-मिटने की शिक्षा अपने पिता से प्राप्त करने वाले महावीर सिंह में अंग्रेजों के विरुद्ध बगावत की भावना बचपन से ही मौजूद थी। सन् 1925 में उच्च शिक्षा के लिए महावीर सिंह जब DAV कालेज 🏬 कानपुर गए तो चन्द्रशेखर आज़ाद के संपर्क में आने पर उनसे अत्यंत प्रभावित हुए और उनकी *हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोशिएसन* के सक्रिय सदस्य बन गए। इसी बीच लाहौर में पंजाब बैंक पर छापा मारने की योजना बनी, लेकिन महावीर सिंह को जिस कार से साथियों को 🏩बैंक से सही सलामत निकाल कर लाना था, वही ऐसी न थी कि उस पर भरोसा किया जा सकता।

📝 इसी दौरान लाहौर में साइमन कमीशन का विरोध करते लाला लाजपत राय अंधाधुंध लाठियों के प्रहार के कारण बलिदान हुए। यह राष्ट्र के पौरुष को चुनौती थी और क्रान्तिकारियों ने उसे सहर्ष स्वीकार किया। *बैंक पर छापा मारने की योजना स्थगित कर लाला जी पर लाठियाँ बरसाने वाले पुलिस अधिकारी को मारने का निश्चय किया गया।* उस योजना को कार्यान्वित करने में भगत सिंह, आजाद तथा राजगुरु के साथ महावीर सिंह का भी काफी योगदान था और भगत सिंह और राजगुरु को घटनास्थल से कार द्वारा महावीर सिंह ही भगा ले गए थे। सन 1929 में दिल्ली असेम्बली भवन में भगत सिंह तथा बटुकेश्वर दत्त के बम फेंके जाने के बाद लोगों की⛓️ गिरफ्तारियाँ⛓️ शुरू हो गयीं और अधिकाँश क्रांतिकारी पकडकर मुकदमा चलाने के लिए लाहौर पहुंचा दिए गये, ऐसे में महावीर सिंह भी पकडे गये।

📝 जेल में क्रान्तिकारियों के अपने ऊपर किये जाने वाले अन्याय के विरुद्ध 13 जुलाई 1929 से आमरण अनशन शुरू कर दिया गया।10 दिनों तक तो जेल अधिकारियों ने कोई विशेष कार्यवाही नही की क्योंकि उनका अनुमान था कि यह नयी उम्र के छोकरे अधिक दिनों तक बगैर खाए नही रह सकेंगे, लेकिन जब 10 दिन हो गये और एक-एक करके ये लोग बिस्तर पकड़ने लगे तो उन्हें चिंता हुई। सरकार ने अनशनकारियों की देखभाल के लिए डाक्टरों का एक बोर्ड नियुक्त कर दिया। अनशन के 11वें दिन से बोर्ड के डाक्टरों ने बलपूर्वक दूध पिलाना आरम्भ कर दिया। जेल प्रशासन बलपूर्वक कैदियों को दूध पिलाने लगे, जिसके कारण काफी संघर्ष होता था। ये अनशन 63 दिनों तक चला। *यह अनशन महान बलिदानी जतिंद्रनाथ दास  के 63वें दिन बलिदान होने के उपरांत समाप्त हुआ।* लाहौर षड्यंत्र केस के अभियुक्तों की अदालती सुनवाई के दौरान महावीर सिंह तथा उनके चार अन्य साथियों कुंदन लाल, बटुकेश्वर दत्त, गयाप्रसाद और जितेन्द्रनाथ सान्याल ने एक बयान द्वारा कहा कि वे शत्रु की इस अदालत से किसी प्रकार के न्याय की आशा नही करते और यह कहकर उन्होंने इस अदालत को मान्यता देने और उसकी कार्यवाही में भाग लेने से इनकार कर दिया। महावीर सिंह तथा उनके साथियों का यह बयान लाहौर षड्यंत्र केस के अभियुक्तों की उस समय की राजनैतिक एवं सैद्धांतिक समझ पर अच्छा प्रकाश डालता है और इस बात को स्पष्ट करता है कि आज़ादी के ये मतवाले कोई भटके हुए नौजवान नहीं थे बल्कि एक विचारधारा से प्रेरित जागरूक युवा थे। केस समाप्त हो जाने पर सम्राट के विरुद्ध युद्ध और 💂‍♀️सांडर्स की हत्या में सहायता करने के अभियोग में महावीर सिंह को उनके सात अन्य साथियों के साथ आजन्म कारावास का दंड दिया गया। सजा के बाद कुछ दिनों तक पंजाब की जेलों में रखकर बाकी लोगों को (भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव और किशोरी लाल के अतिरिक्त ) मद्रास प्रांत की विभिन्न जेलों में भेज दिया गया|

📝 *महावीर सिंह और गयाप्रसाद कटियार को बेल्लारी (कर्नाटक) सेंट्रल जेल ले जाया गया, वहाँ भी इन्होंने 33 दिन की भूख हड़ताल की थी।* बेल्लारी सेंट्रल जेल से जनवरी 1933 में उन्हें उनके कुछ साथियों के साथ अण्डमान (काला पानी) भेज दिया गया, जहाँ इंसान को जानवर से भी बदतर हालत में रखा जाता था। राजनैतिक कैदियों के साथ सम्मानजनक व्यवहार, अच्छा खाना, पढने -लिखने की सुविधायें, रात में रोशनी आदि मांगों को लेकर सभी राजनैतिक बंदियों ने 12 मई 1933 से जेल प्रशासन के विरुद्ध अनशन आरम्भ कर दिया। इससे पूर्व इतने अधिक बन्दियों ने एक साथ इतने दिनों तक कहीं भी अनशन नही किया था। अनशन के छठे दिन से ही अधिकारियों ने इसे कुचलने के लिए बलपूर्वक दूध पिलाने का कार्यक्रम आरम्भ कर दिया। वो 17 मई 1933 की शाम थी, जब आधे घण्टे की कुश्ती के बाद 10 -12 व्यक्तियों ने मिलकर महावीर सिंह को जमीन पर पटक दिया और डाक्टर ने एक घुटना उनके सीने पर रखकर नली नाक के अन्दर डाल दी। उसने यह देखने की परवाह भी नही की कि नली पेट में न जाकर महावीर सिंह के फेफड़ों में चली गयी है। अपना फर्ज पूरा करने की धुन में पूरा एक सेर दूध उसने फेफड़ों में भर दिया और उन्हें मछली की तरह छटपटाता हुआ छोडकर अपने दल-बल के साथ दूसरे बन्दी को दूध पिलाने चला गया। महावीर सिंह की तबियत तुरंत बिगड़ने लगी।

*साथियों अंडमान में गयाप्रसाद जी 76 तथा महावीर सिंह 77 नंबर में कैद थे। इसी कारण जब बलपूर्वक दूध पिलाने के बाद अधिकारी व डॉक्टर चले गए और किसी प्रकार की कोई आवाज़ बगल के कोठरी से नहीं अाई तो गयाप्रसाद  चिल्लाए, तब जाकर जेल प्रशासन को पता चला, जब तक महावीर वीरगति को प्राप्त हो चुके थे। *इसके कुछ समय पश्चात उन्होंने अमरत्व को प्राप्त किया।* अधिकारियों ने चोरी -चोरी उनके शव को समुद्र के हवाले कर दिया।* महावीर सिंह के कपड़ों में उनके पिता का एक पत्र भी मिला था, जो उन्होंने महावीर सिंह के अण्डमान से लिखे एक पत्र के उत्तर में लिखा था। इसमें लिखा था कि– *”उस टापू पर सरकार ने देशभर के जगमगाते हीरे चुन -चुनकर जमा किए हैं। मुझे ख़ुशी है कि तुम्हें उन हीरों के बीच रहने का मौक़ा मिल रहा है। उनके बीच रहकर तुम और चमको, मेरा तथा देश का नाम अधिक रोशन करो, यही मेरा आशीर्वाद है।”* 🙏🌹🙏

अमर बलिदानी महावीर सिंह  की यह पोस्ट उनके प्रपौत्र *असीम राठौर * द्वारा प्रमाणित है।

✍️ राकेश कुमार
*🇮🇳 मातृभूमि सेवा संस्था 9891960477 🇮🇳*

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