जानकारी: लव जिहाद रोकने को कानून काफी नहीं

संपादकीय:चार राज्यों का इरादा- लव जिहाद रोकने को कानून बनाने में कोई दिक्कत है? दिक्कत तो कोई नहीं। लेकिन इस कानून से आप लड़कियों को मुसलमान बनाने से रोक सकते हैं, लेकिन जिस भय से यह कानून लाया जा रहा है,उसका निवारण नहीं होता। अंतरधार्मिक विवाह कानूनी रूप से मान्य है और पितृसत्तात्मक समाज में हिंदू माता और मुसलमान पिता की संतानें मुसलमान ही होंगी। इसीलिए लव जिहाद का मौलिक प्रयोजन प्रस्तावित कानून से सिद्ध नहीं होता। लव जिहाद से भारत में जनसांख्यिकी बदलने की दीर्घकालीन योजना चल रही है। इस योजना का पूरा स्वरूप षड्यंत्रकारी है। जाहिर है, समाधान इतना सरल नहीं है जितना समझा जाता है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सितंबर में कहा कि सिर्फ शादी करने के लिए धर्म परिवर्तन को स्वीकार नहीं किया जा सकता। भले ही मामला हिंदू लड़के और मुस्लिम लड़की से जुड़ा था, इस पर राजनीति गरमा गई है। इस फैसले और हरियाणा-मध्यप्रदेश में कथित लव जिहाद के मामले सामने आने के बाद चार राज्यों ने कहा है कि वे लव जिहाद को कानून लाकर रोकेंगे। शुरुआत उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से हुई, जिन्होंने यह तक कह दिया कि लव जिहाद वाले अगर नहीं सुधरे तो उनकी राम नाम सत्य की यात्रा शुरू हो जाएगी।

योगी के बाद हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर बोल गए कि राज्य सरकार ही नहीं बल्कि केंद्र सरकार भी इस पर कानून बनाने की सोच रही है। बात निकली ही थी तो सरकार बचाने के लिए उपचुनावों में सक्रिय मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि हम भी लव जिहाद को रोकने के लिए कानून लाएंगे। फिर बारी कर्नाटक की थी। वहां तो यह बरसों से उठ रहा मसला था।

कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के साथ-साथ वहां कई मंत्री बोल रहे हैं कि हम भी कानून बनाएंगे। कुल मिलाकर भाजपा के शासन वाले चार राज्यों ने अब तक लव जिहाद को कानून बनाकर रोकने की ठानी है। इस पर कानून विशेषज्ञ सवाल कर रहे हैं कि संविधान धार्मिक स्वतंत्रता की आजादी देता है। यह हमारा मौलिक अधिकार है। ऐसे में आप लव जिहाद को कानून बनाकर कैसे रोक सकते हैं?
आइए जानते हैं कि यह मामला क्या है और क्या राज्य इस मुद्दे पर कानून बनाकर कोई बदलाव ला सकते हैं-

क्या है लव जिहाद?

लव जिहाद की कथित परिभाषा कुछ ऐसी है कि मुस्लिम लड़के गैर-मुस्लिम लड़कियों को प्यार के जाल में फंसाते हैं। फिर उनका धर्म परिवर्तन कर उनसे शादी करते हैं।
2009 में यह शब्द खूब चला था। केरल और कर्नाटक से ही राष्ट्रीय स्तर पर आया। फिर UK और पाकिस्तान तक पहुंचा।
तिरुवनंतपुरम (केरल) में सितंबर 2009 में श्रीराम सेना ने लव जिहाद के खिलाफ पोस्टर लगाए थे। अक्टूबर 2009 में कर्नाटक सरकार ने लव जिहाद को गंभीर मुद्दा मानते हुए CID जांच के आदेश दिए ताकि इसके पीछे संगठित साजिश का पता लगाया जा सके।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में NIA से जांच भी कराई थी, जब एक हिंदू लड़की ने मुस्लिम प्रेमी से शादी करने के लिए मुस्लिम धर्म अपनाया। लड़की के पिता ने लड़के पर बेटी को आतंकी संगठन में शामिल होने के लिए फुसलाने का आरोप भी लगाया था। खैर, निकला कुछ नहीं और लड़की ने खुद ही सुप्रीम कोर्ट जाकर अपनी प्रेम कहानी बयां की थी।

अभी एकाएक लव जिहाद पर कानून की चर्चा क्यों छिड़ गई?

दरअसल, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 29 सितंबर को नवविवाहित दंपती को पुलिस सुरक्षा देने से इनकार कर दिया था। महिला जन्म से मुस्लिम थी और उसने 31 जुलाई को अपनी शादी के एक महीना पहले हिंदू धर्म अपनाया था।
हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का हवाला देते हुए कहा कि यदि किसी व्यक्ति को उस धर्म के बारे में कोई जानकारी नहीं है या उस पर उसका विश्वास भी नहीं है तो सिर्फ शादी के लिए उसके धर्म परिवर्तन को स्वीकार नहीं किया जा सकता।

केंद्र सरकार का लव जिहाद पर क्या कहना है?

फरवरी में सांसद बैन्नी बेहनन ने लोकसभा में सरकार से पूछा था कि केरल में लव जिहाद के मामलों पर उसका क्या कहना है? क्या उसने ऐसे किसी मामले की जांच की है?
जवाब में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी. किशन रेड्डी ने कहा था कि संविधान का अनुच्छेद 25 लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य के शर्ताधीन धर्म को अपनाने, उसका पालन करने और उसका प्रसार करने की अनुमति देता है।
यह भी कहा कि मौजूदा कानूनों में लव जिहाद शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है। किसी भी केंद्रीय एजेंसी ने लव जिहाद के किसी मामले की जानकारी नहीं दी है। NIA ने केरल में जरूर अंतर-धर्म विवाह के दो मामलों की जांच की है।

सुप्रीम कोर्ट क्या कहता है धर्म परिवर्तन पर?

भारत के संविधान के आर्टिकल-25 के मुताबिक भारत में प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी धर्म को मानने की, आचरण करने की तथा धर्म का प्रचार करने की स्वतंत्रता है। यह अधिकार सभी धर्मों के नागरिकों को बराबरी से है।
अदालतों ने अंतःकरण या कॉन्शियंस की व्याख्या भी धार्मिक आजादी से स्वतंत्र की है। यानी कोई व्यक्ति नास्तिक है, तो उसे अपने कॉन्शियंस से ऐसा अधिकार है। उससे कोई जबरदस्ती किसी धर्म का पालन करने को नहीं कह सकता।
सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच ने 1975 में धर्म परिवर्तन के मुद्दे पर इसकी अच्छे-से व्याख्या की है। दरअसल, मध्यप्रदेश और ओडिशा की हाईकोर्टों ने धर्म परिवर्तन के खिलाफ बने कानूनों पर अलग-अलग फैसले सुनाए थे।
मामला सुप्रीम कोर्ट में गया तो उसने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के फैसले का समर्थन किया और कहा कि धोखाधड़ी से, लालच या दबाव बनाकर धर्म परिवर्तन कराना उस व्यक्ति के कॉन्शियंस के अधिकार का उल्लंघन है। उसे अपनी कॉन्शियंस के खिलाफ जाकर कुछ करने को मजबूर नहीं किया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि पब्लिक ऑर्डर को बनाए रखना राज्यों का अधिकार है। जबरदस्ती धर्म परिवर्तन कराया जाता है तो यह कानून-व्यवस्था के लिए खतरा है। राज्य अपने विवेक से कानून-व्यवस्था कायम रखने के लिए आवश्यक कानून बना सकते हैं।

क्या राज्यों में लव जिहाद के खिलाफ कानून संभव है?

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट साफ कर चुके हैं कि धर्म परिवर्तन स्वेच्छा से और बिना किसी लालच या लाभ के होना चाहिए। इसे ही आधार बनाकर चार भाजपा-शासित राज्य प्यार और शादी के बहाने किसी व्यक्ति के इस्लाम या किसी और धर्म में परिवर्तन के खिलाफ कानून बनाने की बात कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश को देखकर साफ है कि कानून-व्यवस्था कायम रखना राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है। यदि राज्य यह साबित कर देते हैं कि कानून-व्यवस्था को कायम रखने के लिए लव जिहाद के खिलाफ कानून जरूरी है तो वह बना भी सकते हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट 1975 का रुख दोहराता है या नई व्यवस्था देता है, यह भविष्य में स्पष्ट होगा।

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