रूद्रनाथ मंदिर में आस्था पर आघात,सोम को महापंचायत

उत्तराखंड के रुद्रनाथ मंदिर में तोड़फोड़, पुजारी का घर भी क्षतिग्रस्त किया: आसपास मिली बीयर की बोतलें, PM मोदी से गुहार

उत्तराखंड के चमोली स्थित रुद्रनाथ मंदिर में तोड़फोड़ से पुजारी आक्रोशित (चित्र साभार – देवभूमि संवाद)

उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित पौराणिक रुद्रनाथ मंदिर में तोड़फोड़ की खबर है। बताया जा रहा है कि इस तोड़फोड़ में मंदिर प्रांगण के साथ आसपास के भवन भी क्षतिग्रस्त किए गए हैं। इस घटना के चलते पुरोहितों और हिन्दू समाज में काफी नाराजगी है। अभी तक इस घटना से जुड़े किसी भी आरोपित की गिरफ्तारी नहीं हो पाई है। घटना 9 अप्रैल, 2022 (शनिवार) की बताई जा रही है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस बात की जानकारी मंदिर के पुजारी हरीश भट्ट ने दी है। उन्होंने बताया कि मंदिर गोपेश्वर से लगभग 24 किलोमीटर की दूरी पर है। सर्दियों में इस मंदिर के कपाट बंद रहते हैं। इस दौरान मंदिर में आने-जाने वालों की संख्या न के बराबर होती है। जब कपाट खोलने की तैयारी करने कुछ लोग मंदिर में गए तो उन्हें इस तोड़-फोड़ की जानकारी हुई।”

मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो इस बात की जानकारी मंदिर के पुजारी हरीश भट्ट ने दी है। उन्होंने बताया कि कुछ लोगों के रुद्रनाथ क्षेत्र में जाने की सूचना पर केदारनाथ वन प्रभाग ने अपना गश्ती दल भेजा था। जब वो वहाँ पहुँचा तो न सिर्फ मंदिर परिसर बल्कि पुजारी के साथ-साथ आसपास के अन्य रिहाइशी घरों के दरवाजों में हुई तोड़फोड़ की जानकारी हुई। इस घटना की शिकायत स्थानीय पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को दे दी गई है।

नुकसान की भरपाई संभव, पर आस्था की कैसे ?

बदलता गोपेश्वर नाम के फेसबुक पेज पर मंदिर के महंत हरीश भट्ट ने बताया, “हमलावरों ने गर्भगृह तक नुकसान पहुँचाने की कोशिश की है। ये हमारी ही नहीं बल्कि पूरे हिन्दू समाज की भावनाओं का अपमान है। ये पहला नहीं बल्कि चौथा मामला है जब मंदिर के साथ इस प्रकार की हरकत हुई है। नुकसान की भरपाई हो सकती है लेकिन आस्थाओं के अपमान की नहीं। हिमालय में जो कुछ भी हो रहा है वो धर्म ही नहीं बल्कि देश के लिए गलत संकेत हैं। जो हरकत हुई है वो किसी जानवर नहीं बल्कि किसी इंसान की हरकत लग रही जिसकी जाँच होनी चाहिए।”

पहले हुई घटनाओं की जाँच ठंडे बस्ते में

महंत हरीश भट्ट ने आगे बताया, “यह प्रशासनिक निकम्मापन है। ऐसी हरकत करने वाले की सोच लूट आदि नहीं बल्कि हमारी भावनाओं के अपमान की मंशा है। हमने DM और SP के साथ वन विभाग के अधिकारियों से इसकी शिकायत की है। हम चाहते हैं कि हमारी बात प्रधानमंत्री मोदी तक पहुँचे। इस से पहले की घटनाओं में भी सिर्फ जाँचे की गई हैं। मैंने कई बार कैमरे लगाने की माँग की फिर भी कोई फायदा नहीं हुआ।”

मंदिर के पास बीयर और शैम्पेन की बोलतें

महंत हरीश भट्ट के मुताबिक, “पहले रुद्रनाथ में हर चीज के नियम हुआ करते थे। लेकिन अब वो जगह पिकनिक स्पॉट बना दी गई है। कपाट बंद थे फिर भी वहाँ बीयर और शैम्पेन की बोतलें मिल रही हैं। अब वहाँ गोवा कल्चर आ गया है। बच्चे तक अब वहाँ शराब पी कर जा रहे हैं। सभी हिन्दू धर्माचार्यों को इस बारे में बोलना चाहिए।”

मंदिर पर महापंचायत का एलान

इस घटना से आक्रोशित समाज ने मंदिर पर महापंचायत का एलान किया है। यह महापंचायत 11 अप्रैल (सोमवार) को सुबह 10 बजे रखी गई है। एक पंचायत का एलान करने वाले पत्र में मंदिर के साथ हुई घटना को धार्मिक आस्थाओं का अपमान बताया गया है। इस घटना को प्रशासन की लापरवाही बताते हुए आने वाले समय में कोई ठोस नीति बनाने की भी घोषणा इस पत्र में है।

 

ये है दुनिया का अनोखा मंदिर, जहां होती है भगवान शंकर के मुख की पूजा

देश-दुनिया में भगवान शंकर के बहुत से मंदिर हैं जहां भोलेनाथ अनोखे अंदाज़ में विराजमान हैं। इन्ही में से एक है पंच केदार में शामिल रुद्रनाथ मंदिर जो उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है। बता दें भगवान शंकर का ये मंदिर समुद्रतल से 3600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस मंदिर की सबसे खास बात तो ये है कि यहां भगवान शिव के मुख की पूजा होती है। इतना ही नहीं, इससे भी खास बात ये है कि भगवान शिव के बाकि के शरीर की पूजा नेपाल के काठमांडू में की जाती है। जी हां, यही कारण है कि ये मंदिर न केवल देश में बल्कि विदशों में अपनी इस खासियत के कारण ही काफी प्रचलित है।

बता दें इस मंदिर को पशुपतिनाथ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है चूंकि रुद्रनाथ मंदिर के अन्य मंदिरों से अलग है, इसलिए दूर दूर से लोग इस मंदिर के दर्शन करने आते हैं। जहां शिव जी के लिंग रूप की पूजा होती है वहीं इस मंदिर में केवल उनके मुख की पूजा होती है। मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर में स्थापित भगवान शिव के मुख को ‘नीलकंठ महादेव’ के नाम से जाना जाता है।

पंचकेदार में है रुदनाथ मंदिर का नाम शामिल

कथाओं की मानें तो महाभारत युद्ध के बाद पांडव अपने पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने श्री कृष्ण में जाकर उनसे इसका उपाय जानना चाहा। तब भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों को भगवान शंकर की शरण में जाने की सलाह दी। ऐसी कथाएं हैं कि क्योंकि पांडवों ने अपने ही कुल का नाश किया था इसलिए भगवान शिव पांडवों से नाराज थे। इसलिए जब पांडव वाराणसी पहुंचे तो भगवान शिव गुप्तकाशी में आकर छिप गए, जब पांडव गुप्तकाशी पहुंचे तो भोलेनाथ केदारनाथ पहुंच गए और बैल का रूप धारण कर लिया। कहा जाता है यहां पांडवों ने भगवान शिव से आर्शीवाद प्राप्त किया।

ऐसी मान्यताएं प्रचलित हैं कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए तो उनके धड़ का ऊपरी हिस्सा “काठमाण्डू” में प्रकट हुआ, जिसे पशुपतिनाथ के नाम से जाना जाता है। तो वहीं भगवान शिव की भुजाओं का तुंगनाथ में, नाभि का मध्यमाहेश्वर में, बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप का श्री केदारनाथ में पूजन होता है। इसके अलावा कहा जाता है भगवान शिव की जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुई और मुख रुद्रनाथ में। इन्हीं पांच स्थानों को “पंचकेदार” कहा जाता है। इन्हीं में से एक है ‘रुद्रनाथ मंदिर’।

दुर्लभ पाषाण मूर्ति के होते हैं दर्शन

बताय जाता है रुद्रनाथ मंदिर के पास ही विशाल प्राकृतिक गुफा में बने मंदिर में भगवान शिव की दुर्लभ पाषाण मूर्ति के दर्शन होते हैं। जिसमें भगवान शिव गर्दन टेढ़े किए हुए अपने भक्तों को दर्शन देते हैं। लोक मत है कि देवों के देव महादेव की यह दुर्लभ मूर्ति स्वयंभू है और आज तक इसकी गहराई का कोई पता नहीं लग सका।

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