नाराज़ तोमर की हुड्डा को खरी-खरी-कान खोलकर सुनो और आइंदा पढ के आना

राज्यसभा में कृषि मंत्री की खरी-खरी, बोले- कान खोलकर सुनो और अगली बार कानून पढ़कर आनाज्ज्क्ष्प्स्नेंेेंंेंंंंेंं

 

केंद्रीय कृषि एवं कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने शुक्रवार को तीन कृषि कानूनों का बचाव करते हुए कहा कि ये किसानों के जीवन में ‘क्रांतिकारी परिवर्तन’ लाने वाले और उनकी आय बढ़ाने वाले हैं। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा इन कानूनों में किसी भी संशोधन के लिए तैयार होने का यह कतई मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए कि इन कानूनों में कोई खामी है। चर्चा के दौरान कृषि मंत्री तोमर एक समय तो नाराज भी हो गए। उन्होंने विपक्षी सांसद की टोकाटाकी और झूठ बोलने का आरोप लगाने पर नाराजगी जताते हुए यहां तक कह दिया कि कान खोलकर सुन लो और अगली बार कानून पढ़कर आना।

आइए,जानते हैं क्या था ये पूरा मामला और कृषि मंत्री आखिर किस बात को लेकर इतना नाराज हुए?


दरअसल, राज्यसभा में शुक्रवार को कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर जब बोल रहे थे तो हरियाणा से कांग्रेस के सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने उन पर झूठ बोलने का आरोप लगाया। इस पर कृषि मंत्री तोमर सांसद दीपेंद्र भाई.. दीपेंद्र भाई का संबोधन कर उन्हें शांत रहने का आग्रह करते रहे। परंतु अंतत: वह नाराज हो गए और कहा कि कान खोलकर सुनो और अगली बार जब कृषि पर बहस हो तो पढ़कर आना।

दरअसल, कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने केंद्र सरकार के कांट्रैक्ट फार्मिंग कानूनों पर चर्चा के दौरान कहा कि पंजाब में तो कांट्रैक्ट फार्मिंग का कानून है। उस कानून में किसानों के जेल जाने और पांच लाख के जुर्माने के प्रावधान हैं। वहीं दूसरी ओर केंद्र सरकार के नए बने कानून में किसानों को पूरी आजादी है कि वह जब चाहें तब कांट्रैक्ट से खुद को अलग कर सकते हैं।

जबकि संबंधित कंपनी पूरा पैसा दिए बिना कांट्रैक्ट से अलग नहीं हो सकती। कृषि मंत्री तोमर के इसी बयान पर कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने विरोध जताया और झूठ बोलने का आरोप लगाया। इस पर कृषि मंत्री ने पंजाब के कानूनों के कागजात लहराते हुए कहा कि कान खोलकर सुनो और अगली बार जब कृषि कानूनों पर बहस हो तो पढ़कर आना।

कृषि मंत्री तोमर ने इस दौरान यह भी कहा कि पंजाब, हरियाणा सहित करीब 20-22 राज्य ऐसे हैं, जिन्होंने कांट्रैक्ट फार्मिंग को लेकर नए कानून बनाए हैं या फिर ऐसा प्रावधान किया है। कृषि मंत्री तोमर ने कहा कि सरकार ने ट्रेड एक्ट बनाया। यह प्रावधान है कि एपीएमसी के बाहर जो एरिया होगा वह ट्रेड एरिया होगा। यह किसान का घर या खेत भी हो सकता है।

एपीएमसी के बाहर कोई ट्रेड होगा तो किसी भी प्रकार का टैक्स नहीं लगेगा। जबकि एपीएमसी के भीतर राज्य सरकार टैक्स लेती है, जबकि बाहर केंद्र सरकार ने टैक्स खत्म किया है। कृषि मंत्री तोमर ने कहा कि आज हम कह सकते हैं कि गरीब हितैषी योजनाओं के कारण गांव में रहने वालों के जीवन स्तर में परिवर्तन आया है। सरकार कोई भी हो, सरकार का धर्म यही है कि देश में रहने वाले गांव, गरीब, किसान के जीवन स्तर में बदलाव आए।

तोमर ने पूछा- यह भी बताएं इन कानूनों में ‘काला’ क्या है
केंद्रीय कृषि एवं कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने शुक्रवार को तीन कृषि कानूनों का बचाव करते हुए कहा कि ये किसानों के जीवन में ‘क्रांतिकारी परिवर्तन’ लाने वाले और उनकी आय बढ़ाने वाले हैं। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा इन कानूनों में किसी भी संशोधन के लिए तैयार होने का यह कतई मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए कि इन कानूनों में कोई खामी है।

राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर पेश धन्यवाद प्रस्ताव पर जारी चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए तोमर ने यह भी कहा कि किसान संगठनों और विपक्षी दलों द्वारा लगातार इन कानूनों को ‘काले कानून’ की संज्ञा दी जा रही है किंतु अभी तक किसी ने यह नहीं बताया कि आखिर इन कानूनों में ‘काला’ क्या है। उन्होंने कहा कि तीन कृषि सुधार कानून इस समय एक ज्वलंत मुद्दा है और और इसे लेकर विपक्षी सदस्यों ने सरकार को कोसने में कोई कंजूसी नहीं की और इन कानूनों को ‘काला कानून’ बताया।

उन्होंने कहा कि लेकिन मैं बताना चाहता हूं कि किसान यूनियनों से भी दो महीने तक मैं यही पूछता रहा कि कानून में काला क्या है? एक (भी) मुझे बताओ तो? मैं उसको ठीक करने की कोशिश करूंगा, लेकिन मुझे वहां भी मालूम नहीं पड़ा। तोमर ने कहा कि राष्ट्रपति के अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान भी विपक्षी सदस्यों ने कानूनों को खराब बताया और इन्हें वापस लेने की मांग की लेकिन किसी ने यह बताने की कोशिश नहीं की कि इन कानूनों के कौन से प्रावधान किसानों के प्रतिकूल हैं?

किसानों को सिर्फ बरगलाया गया : तोमर

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सरकार किसानों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध हैं और नए कानूनों का मकसद किसानों की आय में वृद्धि करना है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने लगातार कोशिश की है कि किसानों की आमदनी दोगुनी हो और किसानी का योगदान देश के जीडीपी में तीव्र गति से बढ़े।

तीन कृषि कानूनों को इस दिशा में उठाया गया एक ‘महत्वपूर्ण कदम’ करार देते हुए तोमर ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों के लिए समर्पित हैं और रहेंगे। कृषि सुधार कानून किसानों के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने वाले हैं, उनकी आमदनी बढ़ाने वाले हैं। देश आगे बढ़े, किसान आगे बढ़ें और देश का इकबाल पूरी दुनिया में बुलंद हो, इस उद्देश्य के साथ मोदी सरकार काम कर रही है।

तोमर ने नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन को एक राज्य का मसला बताया और कहा कि नए कानूनों में ऐसे कोई प्रावधान नहीं हैं जिनसे किसानों की जमीन छिन जाने का खतरा हो। उन्होंने आरोप लगाया कि इन किसानों को बरगलाया गया है। उन्होंने कहा कि एपीएमसी के भीतर राज्य सरकार का टैक्स है और एपीएमसी के बाहर केंद्र सरकार का टैक्स है।

देश में उलटी गंगा बह रही: तोमर

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार का कानून एक कर को खत्म करता है और राज्य सरकार का कानून कर देने के लिए बाध्य करता है… तो जो कर ले रहा है और लगा रहा है और बढ़ा रहा है, आंदोलन उसके खिलाफ होना चाहिए या जो कर मुक्त कर रहा है उसके खिलाफ होना चाहिए। उन्होंने कहा कि देश में उलटी गंगा बह रही है।

ज्ञात हो कि कृषि कानूनों को लेकर पिछले दो महीने से अधिक समय से पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर आंदोलन कर रहे हैं। किसान संगठनों और सरकार के प्रतिनिधियों के बीच अब तक 11 दौर की वार्ता हुई है लेकिन नतीजा नहीं निकल सका है।

तोमर जब बोल रहे थे तो कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कोई टिप्पणी की जो सुनी नहीं जा सकी। इसके जवाब में कृषि मंत्री ने आरोप लगाया कि पानी से खेती होती है, खून से खेती सिर्फ कांग्रेस ही कर सकती है। भाजपा खून से खेती नहीं कर सकती। तोमर ने किसान संगठनों के साथ हुई वार्ता का जिक्र करते हुए कहा कि सरकार ने पूरी संवेदनशीलता के साथ किसानों से बातचीत की और कभी भी किसानों के खिलाफ एक शब्द तक नहीं बोला।

उन्होंने कहा कि लेकिन हमने यह जरूर कहा है कि कानूनों के प्रावधानों में कहां गलती है, यह बताइए। उनकी चिताओं से संबंधित विषयों पर प्रस्ताव दिए गए लेकिन मैंने साथ में यह भी कहा, अगर भारत सरकार किसी भी संशोधन के लिए तैयार है, इसके मायने यह नहीं लगाना चाहिए कि किसान कानून में कोई गलती है।

क्या छोटा किसान मुकाबला कर पाएगा?

कांग्रेस के अखिलेश प्रसाद सिंह ने बताया कि राकांपा नेता शरद पवार पूर्ववर्ती संप्रग सरकार में कृषि मंत्री थे और उन दिनों किसानों के मुद्दों पर चर्चा के लिए पवार हमेशा सभी पूर्व कृषि मंत्रियों को बुलाते थे और उनसे विचार-विमर्श करते थे। उन्होंने कहा कि कांग्रेस हमेशा से किसानों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध रही है।

उन्होंने कहा डंकल प्रस्ताव का विरोध इसीलिए हुआ था, क्योंकि इससे किसानों के बीज पर सीधा आक्रमण हुआ था। जमीन अधिग्रहण संबंधी विधेयक विरोध के कारण ही वापस लेना पड़ा था। इसी तरह तीनों कृषि कानून भी सरकार को वापस लेने होंगे।

शिरोमणि अकाली दल के बलविंदर सिंह भुंडर ने भी तीनों कानूनों को वापस लेने की मांग की। उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भता की बात करने वाली सरकार कहती है कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग होगी। इधर, आवश्यक वस्तु सेवा अधिनियम और व्यापार कानून बदल दिया गया। मंडियों को खुला बाजार दे दिया और कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग भी दे दी। ऐसे में बड़ी कंपनियां आएंगी, तब छोटा किसान क्या उनसे मुकाबला कर पाएगा?

जय जवान है, जय किसान है तब ही जय हिन्दुस्तान है…

उन्होंने कहा कि 72 दिनों से किसान इन कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं और उनकी मांग सही है। दो चार बिचौलियों से तो किसान निपट सकता है लेकिन तथाकथित बड़े और कई बिचौलियों से किसान कैसे निपटेंगे? अगर हमारी बात सरकार पहले मान लेती तो स्थिति इतनी नहीं बिगड़ती। किसान दुश्मन नहीं, मित्र हैं। अगर जय जवान है, जय किसान है तब ही जय हिन्दुस्तान है।

भाजपा सदस्य केजे अल्फोंस ने कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था जहां एक ओर गिर रही थी, वहीं भारत ने मुश्किल हालात में खुद को मजबूती से खड़ा किया, यह सराहनीय है। ऐसा नहीं है कि महामारी ने भारत को बख्श दिया। लेकिन हमने आपदा को अवसर में बदलने का संकल्प लिया है और इसी राह पर आगे बढ़ रहे हैं।

उन्होंने कहा कि कोरोना काल में केंद्र ने जो राहत पैकेज दिया वह देश की मजबूत अर्थव्यवस्था का परिचायक है। कोरोना काल में ही भारत में दुनिया में सर्वाधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आया। हमारा देश दुनिया में सबसे अधिक तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है और इसका श्रेय हमारे दृढ़ संकल्प तथा मजबूत नेतृत्व को जाता है।

 

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