सीएए

What Is Citizenship Amendment Act Caa Notification Implemented All You Need To Know
देश भर में लागू हुआ CAA, अब क्या होंगे बड़े बदलाव, जानें हर एक बात
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले केंद्र ने बड़ा दांव चल दिया है। बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार ने अपना एक और वादा पूरा कर दिया। केंद्र ने CAA को लेकर नोटिफिकेशन जारी कर दिया। जैसे ही ये नोटिफिकेशन आया तो हर कोई ये जानने की कवायद में जुट गया कि आखिर इस एक्ट से क्या कुछ बदल जाएगा। जानिए इससे जुड़ी हर एक बात।

मुख्य बिंदु
केंद्र सरकार ने जारी किया सीएए को लेकर नोटिफिकेशन
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मोदी सरकार का बड़ा फैसला
पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश गैर मुस्लिमों को नागरिकता
सरकार ने बताया- इसकी पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन होगी

नई दिल्ली 11 मार्च 2024। : नरेंद्र मोदी सरकार ने देश में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) की अधिसूचना जारी कर दी है। लोकसभा चुनाव बेहद करीब हैं इससे ठीक पहले केंद्र ने ये बड़ा फैसला लिया। सीएए के लागू होते ही बगैर दस्तावेज के अब पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश से आए हिंदुओं, सिखों (गैर-मुस्लिम) को नागरिकता मिलेगी। सीएए को दिसंबर, 2019 में संसद के दोनों सदनों में पास कर दिया गया था। बाद में इसे राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल गई थी। हालांकि, इसके खिलाफ देश के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे। इसी के चलते अब तक यह कानून लागू नहीं हो सका था। 11 मार्च की शाम को सरकार ने इसकी अधिसूचना जारी कर दी। सीएए लागू किए जाने के बाद हर किसी के मन में सवाल यही है कि आखिर इससे क्या बदलाव होंगे।

सीएए लागू होने का क्या असर होगा
सीएए के नियम जारी हो जाने के बाद केंद्र सरकार 31 दिसंबर, 2014 तक भारत आए बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के प्रताड़ित गैर-मुस्लिम प्रवासियों (हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई) को भारतीय नागरिकता देना शुरू कर देगी। सरकार ने बताया कि पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन होगी। इसके लिए ऑनलाइन पोर्टल भी तैयार किया गया है। इसमें बाहर से आए लोगों को रजिस्ट्रेशन करना होगा। ये भी बताना होगा कि उन्होंने भारत में एंट्री कब ली थी। इसके बाद जरूरी जांच पड़ताल की जाएगी और फिर उन आवेदकों को नागरिकता मिल सकेगी।

सीएए क्या है?
नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) का उद्देश्य धार्मिक उत्पीड़न के कारण भारत में शरण लेने वाले व्यक्तियों की रक्षा करना है। यह उन्हें अवैध माइग्रेशन की कार्रवाई के खिलाफ एक ढाल प्रदान करता है। सीएए में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और क्रिस्चन धर्मों के प्रवासियों के लिए नागरिकता के नियम को आसान बनाया गया है। पहले किसी व्यक्ति को भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए कम से कम पिछले 11 साल से यहां रहना अनिवार्य था। इस नियम को आसान बनाकर नागरिकता हासिल करने की अवधि को एक साल से लेकर 6 साल किया गया है। आसान शब्दों में कहा जाए तो भारत के तीन पड़ोसी देश पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए गैर मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता देने के नियम को आसान बनाया गया है।

सीएए पर विपक्ष क्यों उठा रहा सवाल
सीएए के नियमों को लेकर देश के प्रमुख विपक्षी दल सवाल खड़े करते रहे हैं। 2019 में जब ये एक्ट केंद्र सरकार संसद में लाई थी तो यह तर्क दिया गया कि ये कानून भेदभावपूर्ण है। यह मुसलमानों को टारगेट करता है, जो देश की आबादी का लगभग 15 फीसदी हैं। हालांकि, सरकार बताती है कि चूंकि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश मुस्लिम बहुल इस्लामी गणराज्य हैं, इसलिए वहां के मुसलमानों को उत्पीड़ित अल्पसंख्यक नहीं माना जा सकता है। हालांकि, सरकार ये आश्वस्त करती है कि अन्य समुदायों के आवेदन की समीक्षा केस-दर-केस के आधार पर की जाएगी।

नागरिकता के लिए प्रवासी कैसे कर सकते हैं आवेदन?
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने साफ कर दिया है कि CAA में नागरिकता को लेकर पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन आयोजित की जाएगी। होम मिनिस्ट्री ने आवेदकों की सुविधा के लिए एक पोर्टल तैयार किया है। जिसमें आवेदन करने वालों को ये बताना होगा कि आखिर उन्होंने बिना पूरे डॉक्यूमेंट्स के भारत में कब प्रवेश किया। उन्हें इसकी पूरी जानकारी देनी होगी। हालांकि, इस दौरान आवेदकों से कोई दस्तावेज नहीं मांगा जाएगा।

कौन हैं अवैध प्रवासी?
नागरिकता कानून, 1955 के मुताबिक अवैध प्रवासियों को भारत की नागरिकता नहीं मिल सकती है। इस कानून के तहत उन लोगों को अवैध प्रवासी माना गया है जो भारत में वैध यात्रा दस्तावेज जैसे पासपोर्ट और वीजा के बगैर घुस आए हों। या फिर वैध दस्तावेज के साथ तो भारत में आए हों लेकिन उसमें दी गई अवधि से ज्यादा समय तक यहां रुक जाएं।

अभी अवैध प्रवासियों के लिए क्या है प्रावधान?
अवैध प्रवासियों को या तो जेल में रखा जा सकता है या फिर विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 के तहत वापस उनके देश भेजा जा सकता है। लेकिन केंद्र सरकार ने कानूनों में संशोधन करके अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और क्रिस्चियन को छूट दे दी है। इसका मतलब यह हुआ कि इन धर्मों से संबंध रखने वाले लोग अगर भारत में वैध दस्तावेजों के बगैर भी रहते हैं तो उनको न तो जेल में डाला जा सकता है और न उनको निर्वासित किया जा सकता है। यह छूट इन धार्मिक समूह के उन लोगों को प्राप्त है जो 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत पहुंचे हैं।

CAA के नोटिफिकेशन की टाइमिंग पर सवाल
सीएए लगभग चार साल पहले संसद से पास हो गया था। संसदीय प्रक्रिया के मैनुअल में बताए गए दिशानिर्देशों के अनुसार, किसी भी कानून के लिए नियम राष्ट्रपति की सहमति के छह महीने के भीतर तैयार किए जाने चाहिए। या फिर संसद के दोनों सदनों की अधीन विधान समितियों से विस्तार की मांग की जानी चाहिए। 2020 से गृह मंत्रालय संसदीय समितियों से नियमित अंतराल में एक्सटेंशन लेता रहा है। हालांकि, दिसंबर 2023 में ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस बात पर जोर दिया कि सीएए को लागू करने से कोई नहीं रोक सकता क्योंकि यह देश का कानून है। उन्होंने यह भी कहा कि सीएए को लागू करना बीजेपी की प्रतिबद्धता थी। हालांकि, अब सीएए अधिसूचना की टाइमिंग पर विपक्ष सवाल इसलिए उठा रहा क्योंकि जल्द ही लोकसभा चुनावों की घोषणा होने वाली है। उसके बाद आदर्श आचार संहिता लागू जाएगी।

नए नियमों में कितने लोग नागरिकता मांग सकते हैं?
गृह मंत्रालय की 2021-22 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, एक अप्रैल 2021 से 31 दिसंबर 2021 तक इन तीन देशों के गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदायों के कुल 1,414 विदेशियों को भारतीय नागरिकता दी गई। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों को नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत रजिस्ट्रेशन के जरिए भारतीय नागरिकता दी जाती है। नौ राज्य गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और महाराष्ट्र शामिल हैं, जहां लोगों को नागरिकता दी गई। इनमें असम और पश्चिम बंगाल दो ऐसे राज्य हैं जहां ये मुद्दा राजनीतिक रूप से बहुत संवेदनशील है। सरकार ने इन दोनों राज्यों में से किसी भी जिले को अब तक नागरिकता प्रदान करने की शक्ति नहीं प्रदान की है।

CAA लागू होने से क्या बदल जाएगा? जानें मुस्लिमों और नॉर्थ ईस्ट के लोगों ने क्यों किया विरोध
केंद्र सरकार ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए), 2019 को लागू करने से जुड़े नियमों को सोमवार को अधिसूचित कर दिया गया. इसके तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से दस्तावेज के बिना आने वाले गैर-मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता देने का मार्ग प्रशस्त हो गया है.

सीएए लागू करने के नियम अधिसूचित किए गए

नागरिकता संशोधन अधिनियम यानि सीएए मोदी सरकार के लिए हमेशा से ही एक बड़ा मुद्दा रहा है, गृहमंत्री अमित शाह तो बार-बार दावा कर रहे थे कि लोकसभा चुनाव से पहले नागरिकता संशोधन कानून लागू किया जाएगा, और आज अचानक सीएए को लेकर सरकार ने नोटिफिकेशन जारी करके इसे लागू कर दिया. सरकार के मुताबिक, पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन होगी. इसके लिए ऑनलाइन पोर्टल भी तैयार किया गया है. आवेदकों को वह साल बताना होगा, जब उन्होंने दस्तावेजों के बिना भारत में प्रवेश किया था.

नागरिकता संशोधन कानून लागू होने के बाद बड़ा सवाल ये है कि आखिर सीएए है क्या? और इसके लागू होने पर क्या क्या बड़े बदलाव होंगे? सीएए के तहत अफगानिस्तान बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू सिख जैन और ईसाई बौद्ध और पारसी धर्म के लोगों को नागरिकता मिल जाएगी. इस प्रावधान में मुस्लिमों को शामिल नहीं किया गया है जिसकी वजह से कई जगह विरोध भी देखने को मिल रहा है. हालांकि सरकार की ओर से कहा गया है कि सीएए में किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया गया है.

पिछली बार सीएए को लेकर देश के कई हिस्सों में जमकर विरोध हुआ था. खासकर पूर्वोत्तर के सात राज्य इसके खिलाफ रहे. सीएए की बात शुरू होते ही देशभर में प्रोटेस्ट हुए, लेकिन पूर्वोत्तर (North East) में ये सबसे ज्यादा था. वहां करोड़ों की संपत्ति का नुकसान हुआ, भारी तोड़फोड़ भी हुई थी.

पूर्वोत्तर के लोग मानते हैं कि अगर बांग्लादेश से आए अल्पसंख्यकों को नागरिकता मिली, तो उनके राज्य के संसाधन बंट जाएंगे.

पूर्वोत्तर में इन जगहों पर लागू नहीं होगा सीएए

असम, मेघालय समेत कई राज्यों में लोग सड़कों पर उतर आए. बाद सरकार ने कानून लागू करते वक्त ऐलान किया कि मेघालय, असम, अरुणाचल, मणिपुर के कुछ क्षेत्रों में कानून लागू नहीं होगा.

नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) में ‘इनर लाइन प्रणाली’ सहित कुछ अन्य श्रेणियों में छूट प्रदान की गई है. संविधान की 6वीं अनुसूची में शामिल असम, मेघालय, मिज़ोरम और त्रिपुरा के जनजातीय क्षेत्रों तथा इनर लाइन परमिट (ILP) प्रणाली के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों पर लागू नहीं होगा.

मुस्लिमों के विरोध की वजह

विपक्ष का कहना है कि इसमें मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है. वे जानबूझकर अवैध घोषित किए जा सकते हैं. वहीं बिना वैध दस्तावेजों के भी बाकियों को जगह मिल सकती हैं. नागरिकता संशोधन कानून के विरोध की सबसे बड़ी वजह यही है. विरोध करने वाले इस कानून को एंटी-मुस्लिम बताते हैं. उनका कहना है कि जब नागरिकता देनी है तो उसे धर्म के आधार पर क्यों दिया जा रहा है?

इसमें मुस्लिमों को शामिल क्यों नहीं किया जा रहा? इस पर सरकार का तर्क है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान इस्लामिक देश हैं और यहां पर गैर-मुस्लिमों को धर्म के आधार पर सताया जाता है, प्रताड़ित किया जाता है. इसी कारण गैर-मुस्लिम यहां से भागकर भारत आए हैं. इसलिए गैर-मुस्लिमों को ही इसमें शामिल किया गया है.

क्या थी पूर्वोत्तर के लोगों की चिंता?

मेघालय में वैसे तो गारो और जैंतिया जैसी ट्राइब मूल निवासी हैं, लेकिन अल्पसंख्यकों के आने के बाद वे पीछे रहे गए. हर जगह माइनोरिटी का दबदबा हो गया. इसी तरह त्रिपुरा में बोरोक समुदाय मूल निवासी है, लेकिन वहां भी बंगाली शरणार्थी भर चुके हैं. यहां तक कि सरकारी नौकरियों में बड़े पद भी उनके ही पास जा चुके. अगर सीएए लागू हो गया तो मूल निवासियों की बची-खुची ताकत भी चली जाएगी. दूसरे देशों से आकर बसे हुए अल्पसंख्यक उनके संसाधनों पर कब्जा कर लेंगे. यही डर था जिसकी वजह से पूर्वोत्तर सीएए का भारी विरोध कर रहे थे.

साल 2019 में वहां के स्थानीय संगठन कृषक मुक्ति संग्राम समिति ने दावा किया था कि उनके राज्य में 20 लाख से ज्यादा हिंदू बांग्लादेशी अवैध रूप से रह रहे हैं. यही स्थिति बाकी राज्यों की है. स्थानीय लोगों का दावा है कि साल 2011 में हुई जनगणना से असल स्थिति साफ नहीं होती क्योंकि सेंसस के दौरान अवैध लोग बचकर निकल जाते हैं.

क्यों नॉर्थ-ईस्ट बना अल्पसंख्यक बंगाली हिंदुओं का गढ़?

पाकिस्तान के पूर्वी हिस्से में बड़ी संख्या संख्या में बंगाली भाषी बसे हुए थे, जिनपर लगातार हिंसा हो रही थी. इसी आधार पर युद्ध हुआ और बांग्लादेश बन गया. लेकिन बांग्लादेश में भी हिंदू बंगालियों पर अत्याचार होने लगा क्योंकि ये देश भी मुस्लिम-मेजोरिटी था. इसी दौरान पाकिस्तान और बांग्लादेश से भागकर लोग भारत आने लगे. ये वैसे तो अलग-अलग राज्यों में बसाए जा रहे थे, लेकिन पूर्वोत्तर का कल्चर इन्हें अपने ज्यादा करीब लगा और वे वहीं बसने लगे. वैसे भी पूर्वोत्तर राज्यों की सीमा बांग्लादेश से सटी हुई है इसलिए भी वहां से लोग आते हैं.

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