मत:संविधान बदलेगी भाजपा?कोर वोटर सैकुलर ढांचे में ‘हिंदू राष्ट्र’ से संतुष्ट तो क्यों बदले?

Lok Sabha Election Is Bjp Amend Constitution After Massive Election Victory Know All About It
Swaminomics: क्या भाजपा संविधान बदल देगी? विपक्ष के दावे में आखिर कितना दम है, जानें पूरी बात
लोकसभा चुनाव में 400 सीट जीत के बाद संविधान बदल देंगे। बीजेपी नेता अनंत कुमार हेगड़े के इस बयान को विपक्ष ने लपक लिया। विवाद बढ़ता देख भाजपा ने हेगड़े के बयान से खुद को अलग कर लिया। विपक्ष अब लगातार यह आरोप लगा रहा है कि जीत कर भाजपा संविधान बदल देगी। आखिर इस दावे में कितना दम है।
मुख्य बिंदु 
भाजपा नेता अनंत कुमार हेगड़े के बयान से शुरू हुआ पूरा विवाद
विपक्ष भाजपा नेता के बयान के बाद लगातार केंद्र को घेर रहा है
विवाद बढ़ता देख प्रधानमंत्री ने संभाला मोर्चा, खुद गया रैली में दी सफाई

स्वामीनाथन एस अंकलेसरिया अय्यर: लोकसभा में भारी जीत हासिल करने पर क्या भाजपा धर्मनिरपेक्षता त्यागने को संविधान बदल देगी? इसकी बहुत संभावना नहीं है। इसमें पहले से ही वही है जिसे कई लोग वास्तविक हिंदू राज्य कहते हैं, जबकि यह औपचारिक रूप से धर्मनिरपेक्षता पर कायम है। उस फॉर्मूले को क्यों छोड़ें जो व्यावहारिक राजनीति में सफल रहा है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कारगर है? हालांकि भाजपा ने आधिकारिक तौर पर कर्नाटक के सांसद अनंत कुमार हेगड़े से खुद को अलग कर लिया है, जिन्होंने कथित तौर पर कहा था कि अगर पार्टी 400 सीटें जीतती है तो वह संविधान बदल देगी। यहां तक कि उस बयान के बाद उनसे स्पष्टीकरण भी मांगा गया है। विपक्षी दलों का दावा है कि सब ठीक से निकल गया है। उन्होंने चेतावनी दी है कि भाजपा न केवल भारत को एक हिंदू राज्य बना सकती है बल्कि संविधान में निहित विभिन्न जातियों के लिए नौकरी आरक्षण को भी खत्म कर सकती है।

दुनिया में सबसे अधिक संशोधित संविधान
बिहार के गया में एक रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री   नरेंद्र मोदी ने पलटवार करते हुए कहा कि कांग्रेस ने यह बात फैलाई कि अगर भाजपा सत्ता में आई तो वह संविधान बदल देगी। मैं उनसे कहना चाहता हूं कि मोदी या भाजपा की तो बात ही क्या, संविधान निर्माता बाबा साहेब अंबेडकर भी संविधान को नहीं बदल सकते। इसलिए, उन्हें झूठ फैलाना बंद कर देना चाहिए। मोदी ने श्रोताओं को याद दिलाया कि भाजपा ने संवैधानिक सिद्धांतों के प्रति अपने सर्वोच्च सम्मान को दर्शाते हुए संविधान दिवस की स्थापना की थी। हालांकि, तथ्य यह है कि 76 वर्षों में 106 संशोधनों के साथ,भारत में संभवतः दुनिया में सबसे अधिक संशोधित संविधान है। संविधान में संशोधन से अधिक सामान्य कुछ भी नहीं है। कांग्रेस और भाजपा ने इसे साल में औसतन एक से अधिक बार किया है। भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने अटल बिहारी वाजपेयी और मोदी के नेतृत्व में संविधान में कम से कम 22 बार संशोधन किया है।

संविधान संशोधन के लिए दो-तिहाई बहुमत
वाजपेयी के नेतृत्व में, एनडीए ने 79वें से 92वें तक 14 संवैधानिक संशोधन लागू किए। मोदी ने 99वें से 106वें तक आठ संशोधन लागू किये हैं। चूंकि संशोधनों के लिए संसद के दोनों सदनों के दो-तिहाई और राज्य सरकारों के बहुमत की मंजूरी की आवश्यकता होती है, इन संशोधनों को विपक्षी दलों के विशाल बहुमत का समर्थन प्राप्त था। इनके बिना एनडीए के पास आवश्यक संख्या की कमी होती। राजनीतिक सर्वसम्मति से संवैधानिक संशोधन नियमित रूप से होते रहते हैं। वाजपेयी युग में, संशोधनों में दसवें वित्त आयोग के सुझाव के अनुसार राज्यों के साथ सभी केंद्रीय करों को एकत्रित करना और साझा करना शामिल था। दलबदल रोकने को केंद्रीय मंत्रिपरिषद के आकार को सीमित करने के साथ ही अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति पर राष्ट्रीय आयोग को विभाजित करने से जुड़ा संविधान संशोधन किया गया था। इसके अलावा रिक्तियों के बैकलॉग को भरने में एससी/एसटी आरक्षण की रक्षा करना; पदोन्नति में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए अर्हक अंक में छूट; और बोडो, डोगरी, संथाली और मैथिली को आधिकारिक भाषाओं के रूप में संशोधन से ही शामिल किया गया। अधिक नियमित संशोधनों में एससी/एसटी आरक्षण का विस्तार शामिल है,जिसे जब भी समाप्त होने वाला होता है तब बार-बार बढ़ाया जाता है।

मोदी सरकार में कौन से संविधान संशोधन
मोदी के कार्यकाल में, संशोधनों में माल और सेवा कर की शुरूआत, भारत और बांग्लादेश के बीच परिक्षेत्रों का आदान-प्रदान, आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों और शैक्षिक पदों में 10% आरक्षण, जो पहले से ही कोटा का फायदा नहीं ले रहे थे, और महिलाओं के लिए लोकसभा और राज्य विधानसभाएं सीटों का आरक्षण शामिल था। एक और महत्वपूर्ण बात संविधान के अनुच्छेद 370 को समाप्त करना था जिसने जम्मू और कश्मीर को स्वायत्तता दी थी। संशोधनों के इस लंबे इतिहास को देखते हुए, मोदी का संभवतः यह मतलब था कि आरक्षण और धर्मनिरपेक्षता को खत्म करने के लिए संविधान में बदलाव नहीं किया जा सकता है। ये दोनों संविधान की मूल संरचना का हिस्सा हैं, जिनके बारे में सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि इन्हें बदला नहीं जा सकया है।

क्या कहता है भाजपा का पार्टी संविधान?
क्या यह पार्टी के लिए बहुत उदार व्याख्या है? आखिरकार, इसके ट्रोल सांप्रदायिक नफरत फैलाने और हिंदू राज्य की वकालत करने को जाने जाते हैं। क्या यह केवल समय की बात है कि भाजपा औपचारिक रूप से धर्मनिरपेक्षता को त्याग दे? पार्टी में कई लोग ऐसा चाहेंगे,लेकिन अन्य लोग धर्मनिरपेक्ष आवरण के साथ एक वास्तविक हिंदू राज्य पाकर खुश हैं। अपनी पुस्तक,’हमारा हिंदू राष्ट्र’ में,आकार पटेल (नाम पर ना जायें, यें मुस्लिम हैं) लिखते हैं कि भाजपा के सदस्यता फॉर्म में प्रतिज्ञा की आवश्यकता होती है: मैं इसकी सदस्यता लेता हूं। एक धर्मनिरपेक्ष राज्य और राष्ट्र की अवधारणा धर्म पर आधारित नहीं है। दरअसल, भाजपा की अपनी पार्टी के संविधान की शुरुआत ‘कानून से स्थापित भारत के संविधान और समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के सिद्धांतों के प्रति सच्ची आस्था और निष्ठा रखने’ का वादा करती है।

मतदाताओं के अधिकारों की रक्षा

2002/2004: सदी के अंत में सुप्रीम कोर्ट ने मतदाता अधिकारों की रक्षा और विस्तार को कई ऐतिहासिक फैसले दिए। 2002 में, यूनियन ऑफ इंडिया बनाम एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स मामले में,इसने फैसला सुनाया कि मतदाताओं को उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड,शिक्षा स्तर और संपत्ति सहित उनके बारे में जानने का मौलिक अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सूचना का अधिकार चुनने के अधिकार का पूरक है। यह भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार से आता है। इसके बाद एनडीए सरकार एक विधेयक लेकर आई। इसमें उम्मीदवारों को आपराधिक पृष्ठभूमि घोषित करने से छूट देने को आरपी अधिनियम में धारा 33बी पेश की। 2004 में,SC ने इस प्रावधान को असंवैधानिक घोषित कर दिया। इसके बाद उम्मीदवारों को एफआईआर सहित उनके खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों की घोषणा करना अनिवार्य कर दिया गया।

आरपी एक्ट की धारा 8(4) को किया निरस्त

जुलाई 2013: लिली थॉमस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने आरपी एक्ट की धारा 8(4) निरस्त कर दी। ये धारा सांसदों और विधायकों को भ्रष्टाचार के मामलों में दोषी ठहराए जाने या अन्य आपराधिक मामलों में दो या अधिक साल की सजा होने के बाद भी विधायक बने रहने की अनुमति देती थी अगर वे दोषसिद्धि के 90 दिनों के भीतर उच्च मंच पर अपील करते। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद,अयोग्यता स्वचालित रूप से लागू हो जाती है। यदि कोई ऊपरी अदालत दोषसिद्धि और सजा पर रोक लगाती है तो एक विधायक अपनी सीट वापस पा सकता है।

सितंबर 2013: पीयूसीएल मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने मतदाताओं के लिए उपरोक्त में से कोई नहीं (नोटा) विकल्प पेश किया। कोर्ट ने यह टिप्पणी भी कि की मतदाता को ‘राजनीतिक दलों द्वारा खड़े किए जा रहे उम्मीदवारों के प्रति अपनी अस्वीकृति व्यक्त करने देना’ बेहद महत्वपूर्ण था। कोर्ट का कहना था कि बढ़ती अस्वीकृति धीरे-धीरे प्रणालीगत परिवर्तन लाएगी और राजनीतिक दल लोगों की इच्छा को स्वीकार करने और ऐसे उम्मीदवारों को मैदान में उतारने के लिए मजबूर होंगे जो अपनी ईमानदारी के लिए जाने जाते हैं। चुनाव में नोटा का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा।

VVPAT को लागू करने पर जोर

अक्टूबर 2013: सुब्रमण्यम स्वामी मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने शुरू में अनिच्छुक चुनाव आयोग को चरणबद्ध तरीके से ईवीएम में वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) लागू करने के लिए मजबूर किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम इस बात से संतुष्ट हैं कि ‘पेपर ट्रेल’ स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए एक अनिवार्य आवश्यकता है। ईवीएम में मतदाताओं का विश्वास केवल ‘पेपर ट्रेल’ की शुरुआत से ही हासिल किया जा सकता है। वीवीपैट प्रणाली वाली ईवीएम मतदान प्रणाली की सटीकता सुनिश्चित करती हैं।

साल 2014: मनोज नरूला मामले में सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को सलाह दी कि मंत्रिपरिषद में उनकी भूमिका और उनके ली जाने वाली शपथ की पवित्रता को ध्यान में रखते हुए, आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों को मंत्री न बनाया जाए। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि संविधान यही सुझाता है और यही प्रधानमंत्री से संवैधानिक अपेक्षा भी है। बाकी को प्रधानमंत्री के विवेक पर छोड़ना होगा। हम न कुछ ज़्यादा कहते हैं,न कुछ कम।

चुनाव आयुक्त की नियुक्ति, इलेक्टोरल बॉन्ड

2 मार्च, 2023 को, SC की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया कि CEC और EC का चयन 3 सदस्यीय पैनल करेगा। इसमें PM, विपक्ष के नेता और CJI शामिल होंगे। बाद में वर्ष में, सरकार ने सीईसी/ईसी की नियुक्ति पर एक अधिनियम पारित किया। इसमें सीजेआई के स्थान पर केंद्रीय कैबिनेट मंत्री को नियुक्त किया गया। 12 जनवरी, 2024 को SC ने नए कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने मार्च में 2 ईसी के चयन में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। हालांकि उसने नियुक्तियां करने में की गई ‘जल्दबाजी’ के लिए सरकार को फटकार लगाई थी।

चुनावी बांड: 15 फरवरी, 2024 को, CJI डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली 5-जजों की पीठ ने राजनीतिक डोनर की पहचान गुप्त रखने वाली चुनावी बांड योजना को ‘असंवैधानिक’ और अनुच्छेद 19(1)(ए) में मतदाताओं के सूचना के अधिकार का उल्लंघन बताते हुए रद्द कर दिया। चुनावी फंडिंग के एक तरीके के रूप में चुनावी बांड 2017 में लाये गए थे। भारतीय स्टेट बैंक के फैसले और अदालत के बाद के सख्त निर्देशों के कारण इलेक्टोरल बॉन्ड डेटा सार्वजनिक डोमेन में आ गया।

यदि भाजपा ने धर्मनिरपेक्षता को अस्वीकार करने और हिंदू राज्य बनाने को अपनी पार्टी के संविधान में संशोधन नहीं किया है,तो क्या वह भारतीय संविधान में संशोधन करेगी? मुझे नहीं लगता। भाजपा के घोषणापत्र में उन्हीं रणनीतियों का वादा है जिनसे पार्टी को बहुत फायदा हुआ है। इसमें धर्मनिरपेक्षता पर घालमेल भी शामिल है।

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