उप्र: मदरसों के बाद वक्फ संपत्ति सर्वे पर अखिलेश को नहीं मिल रहा मुसलमानों का साथ

सिखाता मदरसा, जमीन हड़पता वक्फ बोर्ड… अब नहीं सहेगा उत्तर प्रदेश
Authored byअजयेंद्र राजन शुक्‍ल |
Madarsa and Waqf Survey in UP: उत्तर प्रदेश सरकार के मदरसाें के सर्वे कराने के फैसले के बाद अब वक्फ बोर्ड की संपत्तियों के सर्वे कराने के निर्णय पर राजनीति गरमा गई है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने सर्वे का विरोध करने का ऐलान कर दिया है, वहीं तमाम विपक्षी दल सरकार की मंशा पर सवाल खड़े कर रहे हैं।

हाइलाइट्स
यूपी सरकार मदरसों के बाद अब वक्फ संपत्तियों का सर्वे करा रही
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने सर्वे का किया विरोध
कहा- सरकार को केवल हिंदू-मुस्लिम करना है
लखनऊ: उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के दो फैसलों को लेकर काफी बवाल मचा हुआ है। पहला है गैर मान्यता प्राप्त मदरसों का सर्वे और दूसरा है वक्फ संपत्तियों का सर्वे। सरकार का मानना है कि मदरसों में शिक्षा व्यवस्था दुरुस्त करने, भ्रष्टाचार से निपटने के लिए ये सर्वे कराया जाना आवश्यक है। सरकार ने इस पर तेजी से काम भी शुरू कर दिया है और 25 अक्टूबर को तमाम जिलों से रिपोर्ट शासन को भेज दी जाएगी। उधर मदरसों के सर्वे का ऐलान हुआ तो तमाम विपक्षी पार्टियों ने इसका विरोध शुरू कर दिया। लेकिन इस विरोध की धार तब कुंद हो गई, जब दारूल उलूम देवबंद सहित तमाम बड़े संस्थानों ने योगी सरकार के सर्वे के फैसले का समर्थन कर दिया। अभी ये मामला ठंडा हो ही रहा था कि योगी सरकार के एक अन्य फैसले पर अब पार्टियों ने निशाना साधना शुरू कर दिया है। दरअसल सरकार ने प्रदेश में बंजर, ऊसर आदि सार्वजनिक संपत्तियों को वक्फ के तौर पर दर्ज करने के 1989 के शासनादेश को रद्द कर दिया है। सरकार ने इसी के साथ यूपी में वक्फ की संपत्तियों का सर्वे शुरू कर दिया है, ये सर्वे भी 8 अक्टूबर तक पूरा हो जाएगा।

अब इस वक्फ संपत्तियों के सर्वे को लेकर भी सियासत तेज हो गई है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव साफ तौर पर मदरसा सर्वे और वक्फ सर्वे का विरोध कर रहे हैं। अखिलेश यादव का साफ कहना है कि हम सर्वे के खिलाफ हैं, सर्वे नहीं होना चाहिए। सरकार को केवल हिंदू-मुस्लिम करना है। जो लोग दावा करते हैं वन ट्रिलियन डॉलर इकॉनमी की, ये बताएं वन ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी क्या मदरसों में सर्वे होने से हो जाएगी?

लेकिन एआईएमआईएम के रुख में थोड़ा बदलाव इस बार देखने को मिल रहा है। वह मदरसा सर्वे की तरह वक्फ सर्वे का मुखर विरोध नहीं कर रही है लेकिन योगी सरकार की मंशा पर सवाल जरूर खड़ा कर रही है। एआईएमआईएम के नेता आसिम वकार ने कहते हैं पिछले 15 सालों में शिया और सुन्नी वक्फ बोर्डों में बड़े घोटाले हुए हैं। शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन ने तो घोटालों का रिकॉर्ड ही तोड़ दिया। मामले में सीबीआई जांच हुई, एफआईआर हुई। आसिम वकार ने पूछा कि वह रिपोर्ट कहां है? कब वो घोटालेबाजी में जेल गया? आसिम वकार ने कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड के चेयरमैन बसपा सरकार में बने थे, समाजवादी की सरकार में भी वही चेयरमैन रहे। बीजेपी की सरकार आई तो उसमे भी वही चेयरमैन? दोबारा बीजेपी की सरकार आई फिर से वही चेयरमैन हैं। उन्होंने कहा कि ईमानदारी से जांच हो तो बड़ा हेरफेर मिलेगा।

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वहीं पूरे मामले में यूपी सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री धर्मपाल सिंह का कहना है कि वक्फ संपत्तियां बहुत महत्वपूर्ण हैं। वक्फ खुदा की संपत्ति है, इस पर कब्जा करने का अधिकार किसी को नहीं है। सरकार ने साफ मंशा से इसका सर्वे कराना प्रारंभ किया है। वक्फ संपत्तियों की पहचान कर कार्रवाई के आदेश पहले से दिए गए हैं।

क्या है पूरा मामला
दरअसल योगी सरकार ने हाल ही में प्रदेश भर के गैर सहायता प्राप्त मदरसों के सर्वे का आदेश दिया था। इस पर एआईएमआईएम के असदुद़्दीन ओवैसी ने पहले विरोध जताया बाद में सपा सहित तमाम विपक्षी दलों ने योगी सरकार की मंशा पर सवाल खड़े गए। दिलचस्प बात ये रही कि यूपी में तमाम मदरसा संचालक इकाइयों की तरफ से इस सर्वे को समर्थन मिला। इसी क्रम में पिछले दिनों मदरसा सर्वे को लेकर बड़ी बैठक दारूल उलूम देवबंद में हुई। इसमें सरकार के सर्वे कराने के फैसले का समर्थन करते हुए साफ कहा गया कि सरकारी जमीन पर बने मदरसे गैरकानूनी हैं। उन्हें हटाया जाना चाहिए। बैठक के बाद ऑल इंडिया जमीयत उलेमा ए हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि सरकार का मदरसा सर्वे को लेकर जारी आदेश उचित है। इसमें किसी प्रकार की गड़बड़ी नहीं है इसलिए सरकार का समर्थन किया जाए। उन्होंने मदरसों से आग्रह किया कि सर्वे में सरकार की ओर से पूछे गए सभी सवालों का जवाब दीजिए। सर्वे में किसी प्रकार की गलत चीज नहीं पाई गई है। ऐसे में सर्वे का समर्थन किया जाना चाहिए। बैठक में प्रस्ताव पास किया गया कि सरकार के सर्वे का समर्थन किया जाएगा।

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दारूल उलूम के ऐलान के बाद मदरसों पर सियासत थोड़ी कम हुई थी। लेकिन अब योगी सरकार के एक और फैसले ने फिर से बयानबाजियों का दौर शुरू कर दिया है। दरअसल योगी सरकार ने ऐलान किया है कि वह उत्तर प्रदेश में वक्फ के तौर पर दर्ज की गई सार्वजनिक सपंत्तियों का रिव्यू कराएगी। सरकार का मानना था कि वर्ष 1989 में एक गलत आदेश के आधार पर बंजर, ऊसर आदि सार्वजनिक संपत्तियां वक्फ संपत्ति के तौर पर दर्ज कर ली गईं। ये आदेश आदेश राजस्व कानूनों और वक्फ अधिनियम दोनों के ही खिलाफ था, लिहाजा योगी सरकार ने 33 साल पुराने इस शासनादेश को रद्द कर दिया है।

मामले में अल्पसंख्यक विभाग ने यूपी के सभी कमिश्नर और डीएम को निर्देश जारी कर कहा है कि ऐसी संपत्तियों का रिव्यू करें, जो नियम के खिलाफ वक्फ में दर्ज हुईं। उन्हें रद्द किया जाए और राजस्व अभिलेखों को दुरुस्त किया जाए। सरकार ने इस पूरी प्रक्रिया को पूरा करने के लिए 8 अक्टूबर तक का समय निर्धारित किया है।

क्या था वो आदेश?
7 अप्रैल 1989 को राजस्व विभाग ने एक आदेश जारी किया, जिसमें कहा गया कि राजस्व अभिलेखों में वक्फ की संपत्तियां अधिकतर बंजर, ऊसर, भीटा आदि के तौर पर दर्ज है, जबकि मौके पर वक्फ हैं। ऐसी संपत्तियों, भूमि को राजस्व अभिलेखों में वक्फ संपत्ति (कब्रिस्तान, मस्जिद, ईदगाह) जैसी स्थिति हो सही रूप से दर्ज किया जाए और फिर उसका सीमांकन किया जाए। आरोप है कि इस आदेश को आधार बनाकर यूपी में बहुत सी ऐसी संपत्तियां जो राजस्व अभिलेखों में बंजर, ऊसर आदि थीं, उनको अभिलेखों में वक्फ दर्ज कर दिया गया।
मुस्लिम वोट बैंक पर सबकी नजर

बता दें यूपी में मुसलमान आबादी 19 प्रतिशत से कुछ ज्यादा मानी जाती है। प्रदेश की 71 विधानसभा पर ये आबादी 30 प्रतिशत की निर्णायक स्थिति में है। वहीं 141 विधानसभा सीटों पर मुसलमानों की आबादी प्रदेश के औसत मुसलमानों की आबादी से ज्यादा है। सियासी नजरिए से देखें तो मदरसा सर्वे हो या वक्फ संपत्तियों का सर्वे, दोनों ही मुस्लिम समाज से सीधे तौर पर जुड़े हैं और चाहे बीजेपी हो या सपा-बसपा सभी अब मुस्लिम वोट बैंक को लुभाने के प्रयास में है। बीजेपी व्यवस्था में सुधार के रास्ते पसमांदा समाज में पैठ बनाना चाहती है क्योंकि उत्तर प्रदेश में मुस्लिम आबादी में इनकी संख्या सबसे ज्यादा है। इनके बच्चे ही मदरसों में शिक्षा ले रहे हैं और वक्फ संपत्तियों में इनकी दखल न के बराबर है।

वहीं दूसरी तरफ अखिलेश यादव की सपा मुस्लिम समाज की पहली पसंद रही है, इसलिए वो इन मुद्दों को उठाकर हितैषी साबित होने की कोशिश कर रहे हैं। कारण भी है, 2022 के यूपी विधानसभाा चुनावों में बसपा सिर्फ एक सीट पर सिमट गई और अखिलेश की सपा ने जो 111 सीटें हासिल कीं, उसमें मुस्लिम वोटबैंक का अहम योगदान रहा। मायावती ने इस हार के बाद माना भी कि मुस्लिम वोट बैंक एकमुश्त सपा में चला गया। अब मायावती तेजी से मुस्लिम वोटबैंक को साधने की काेशिश कर रही हैं। लक्ष्य सभी का 2024 का लोकसभा चुनाव है।

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