अर्थशास्त्र: गौपालन बन गया है घाटे का सौदा,अब जरूरत है अनुदान की

गाय पालना आसान नहीं, हो सकता है 20 से 25 हजार का नुकसान

देश के अलग-अलग हिस्सों में इन दिनों गाय को लेकर खूब चर्चा हो रही है. गाय से नफे-नुकसान की भी बात होती है. गाय के कुछ प्राकृतिक गुणों को अनमोल माना जाता है, लेकिन हमने गौपालन के आर्थिक पक्ष और इससे एक किसान पर पड़ने वाले आर्थिक असर को समझने की कोशिश की तो हैरान करने वाली तस्वीर सामने आई. गौपालकों से बातचीत में यह बात सामने आई कि गाय पालना न केवल महंगा, बल्कि यह आज के दौर में नुकसान वाला सौदा साबित होते जा रहा है.

बिहार के सिवान जिले में रहने वाले एक रिटायर शिक्षक आरबी सिंह ने इस बारे में विस्तार से बताया. वह पिछले 35-45 साल से गाय रखते आ रहे हैं. उनके मुताबिक गाय पालने में आने वाली सभी लागत को जोड़ा जाए तो लाभ तो दूर एक किसान को 20 से 25 हजार का नुकसान उठाना पड़ सकता है.

आठ माह में गाय की कीमत हो जाती है आधी

आज एक अच्छी नस्ल की गाय की कीमत करीब 45 से 50 हजार रुपए है. अच्छी से मतलब जो प्रतिदिन करीब 12 से 15 लीटर दूध देती हो. गाय इतनी दूध बछड़े को जन्म देने के बाद कुछ ही समय तक देती है. समय गुजरने के साथ उसका दूध कम होते जाता है. वह औसतन 8 महीने तक दूध देती है. आठवें माह में उसका दूध घटकर दो से तीन लीटर पर आ जाता है. इस तरह अगर औसत निकाला जाए तो एक गाय प्रतिदिन वह केवल 6 लीटर दूध देती है. अभी दूध का भाव करीब 40-45 रुपये लीटर है. इस तरह रोज के 240 रुपए के हिसाब से महीने में वह 7200 रुपए और 8 महीने में करीब 55 हजार का वह दूध देगी.

दूध देना बंद कर देने पर 50 हजार की गाय की कीमत आधी हो जाती है. वो भी तब जब वह गाभिन (प्रैग्नेंट) हो. अगर गाय गाभिन न हो तो उसका कोई खरीददार नहीं मिलता.

इस तरह स्थिति सामान्य रही यानि गाय बीमार न पड़े और वह समय पर गाभिन हो जाए तो पालने वाले को 20-25 हजार का मुनाफा दिखता है. लेकिन चारा, पौष्टिक चीजें व उसे पालने की मजदूरी बाकी है.

चारे और पौष्टिक आहार पर रोज खर्च होते हैं 200 रुपये

एक गाय को हर रोज 3 से 4 किलो चारे की जरूरत पड़ती है. चारे की कीमत 8 से 10 रुपये के भाव से हर रोज करीब 30 रुपये और महीने का 1000 रुपये बैठता है. इस तरह 8 माह तक दूध देने की अवधि में एक गाय 8 से 10 हजार का चारा खाती है.

केवल चारे से गाय का काम नहीं चलता. उसे दाना यानि अनाज व अन्य सप्लीमेंट देने पड़ते हैं. जो बहुत महंगे हैं. गायों को सप्लिमेंट में चने व मसूर का बेसन, अलसी का खली और अन्य मेडिकेटेड आहार के साथ गुड़ दिया जाता है. शाम सुबह मिलाकर एक गाय को कम से कम 100 रुपये का सप्लीमेंट दिया जाता है. यानि महीने का 3000 और दूध देने की अवधि में करीब 24 हजार रुपये इस पर खर्च होते हैं.

इतना ही नहीं गाय केवल सूखा चारा नहीं खाती. भूसे के साथ उसे हरा चारा या फिर गेहूं का चोकर मिलाना पड़ता है. एक दिन में एक गाय कम से कम 2 किलो चोकर खाती है जो 20 रुपये किलो के हिसाब से 40 रूपये यानि महीने का 1000 हजार और दूध देने की पूरी अवधि में 8000 हजार का बैठता है.

मजदूर मिलना एक बड़ी समस्या

इसके अलावा लेबर कॉस्ट अलग है. गाय को चारा देने से लेकर उसे नहलाने, उसे पानी देने, दूध निकालने, गोबर साफ करने जैसे कई और काम करने पड़ते हैं. इन कामों के लिए आज आसानी से मजदूर नहीं मिलते. उसे रखने की जगह की भी कीमत होती है. इन कामों के लिए न्यूनतम एक हजार रुपये मासिक का खर्च जोड़ा जाए तो 8 माह में यह भी 8 हजार बैठता है.

गाय की बछिया से रहती है उम्मीद

गाय से दो तरह के बाइप्रोडक्ट मिलते हैं. एक गोबर और दूसरा गाय का बछड़ा. आजकल गो मूत्र के भी बिकने की खबरें आ रही हैं. गोबर का इस्तेमाल खाद के लिए होता है. 8 महीने में एक गाय करीब 2000 रुपये का गोबर देती हैं. इसी तरह अगर गाय का बच्चा फीमेल हो यानि बछिया हो तो 8 माह बाद उसकी कीमत करीब 10 हजार होती है और यदि मेल यानी बछड़ा हुआ तो कसाई के अलावा कोई खरीददार नहीं होता. क्योंकि ट्रेक्टर आ जाने से अब बछड़ों का इस्तेमाल हल जोतने में नहीं होता. दूसरी तरफ शंकर नस्ल की गायों के बछड़े हल जोतने के लायक नहीं होते. इसलिए उनकी कीमत हजार-डेढ़ हजार से ज्यादा नहीं मिलती.

इतना ही नहीं इन बछड़े या बछियों को भी चारा देना पड़ता है. उसकी कीमत भी होती है. 500 रुपये महीने का भी हिसाब जोड़ा जाय तो 8 महीने में यह करीब 4-5 हजार पड़ता है.

लागत और आय का हिसाब

इस तरह आठ माह में एक गाय पर करीब 1.05 लाख का खर्च आता है जबकि एक किसान को रिटर्न में 82 हजार मिलते हैं.

इसमें न तो बछड़े या बछिया की कीमत जोड़ा गया है और न ही उनके चारे पर आने वाले खर्च को जोड़ा गया है. इसमें गाय की तबीयत खराब होने पर मेडिकल खर्च को भी नहीं जोड़ा गया है. इसके अलावा गाय की खरीद पर एक मुश्त किए गए 50 हजार के निवेश पर ब्याज की भी गणना नहीं की गई है. अगर इन चीजों की भी गणना की जाए तो नुकसान का दायरा और बढ़ जाएगा.

खेती से इतर आय के स्रोत होने के कारण पालते हैं गाय

एक गाय पर 20 से 25 हजार का नुकसान होने के बावजूद गाय पालते रहने के सवाल पर सिंह साहब का कहना है कि उन्हें पेंशन मिलती है. वह अपनी आर्थिक जरूरतों के लिए गाय या खेती पर निर्भर नहीं हैं. ऐसे में उन्हें नुकसान बोझ नहीं लगता. लेकिन सभी किसान आरबी सिंह जैसे नहीं हैं. सभी के पास पेंशन नहीं आती और वे मजबूरन गौपालन छोड़ देते हैं.

बांझपन एक बड़ी समस्या

आरबी सिंह के आंकड़ों की पुष्टि के लिए हमने ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर काम कर रहे युवा अर्थशास्त्री डॉ. आशुतोष शर्मा से बात की. पटना और बिहार के अन्य इलाकों में पशुधन को लेकर काम रहे डॉ. आशुतोष का कहना है कि ये आंकड़ें यथार्थ के बिल्कुल करीब हैं. एक किसान जिसके पास खेत नहीं है, जिसके पास आय का कोई दूसरा स्रोत नहीं है वह पशुपालन के बल पर जीवन यापन नहीं कर सकता. उन्होंने पिछले कुछ सालों से गायों में बढ़ते बांझपन को भी एक गंभीर समस्या के रूप में रेखांकित किया.

बांझपन के कारण 50 हजार की गाय पांच हजार में भी नहीं बिकती. इससे एक किसान तबाह हो जता है. इसके आलावा प्राकृतिक आपदा, पशुओं की सामयिक मौत कुछ ऐसे कारक हैं जो पशुपालन को बेहद नुकसान का सौदा बना रहे हैं. स्थिति में सुधार के लिए उन्होंने सरकारी सपोर्ट की सुझाव दिया. उन्होंने कहा कि केवल गौ माता कहने से गायों का कल्याण नहीं होगा बल्कि इसके लिए सरकार को व्यापक नीति बनानी पड़ेगी और किसानों को सबसिडी देने पर विचार करना होगा.

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