मत:महिला आरक्षण का पक्षधर रहा है रा.स्व.संघ
महिला आरक्षण के पक्ष में रहा है RSS, संघ पर लगने वाले आरोपों में सच्चाई नहीं
केंद्र सरकार की ओर से महिलाओं के लिए संसद और विधानसभाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण देने की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने भी प्रशंसा की है। संघ ने इस विधेयक के आने से कुछ दिन पहले ही 16 सितंबर को औपचारिक रूप से कहा था कि सभी क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी बढ़े, इसके लिए संघ प्रेरित संगठन प्रयास करेंगे। पुणे में 14 सितंबर से आरंभ हुई राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय समन्वय बैठक में इस विषय पर चर्चा की गई। तीन दिवसीय इस बैठक के बाद RSS के सह सरकार्यवाह डॉ. मनमोहन वैद्य ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह जानकारी दी। आलोचक अक्सर आरोप लगाते हैं कि संघ महिलाओं को रूढ़िवादी नजरिए से देखता है, इसलिए संघ में महिलाओं का प्रतिनिधित्व नहीं है। वास्तव में इन आरोपों की सचाई क्या है? क्या संघ वाकई महिला विरोधी है और उनके प्रति दकियानूसी सोच रखता है? या संघ पर लगाए गए ये आरोप झूठे और बेबुनियाद हैं?
महिलाओं की सहभागिता
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रेरित होकर महिलाओं में काम करने वाला एक समानांतर संगठन है जिसका नाम है- राष्ट्र सेविका समिति। इसकी स्थापना 1936 में लक्ष्मीबाई केलकर ने की थी। संघ की तर्ज पर समिति में भी पूर्णकालिक सदस्य होते हैं, जिन्हें प्रचारिका कहा जाता है।
समिति 5000 से अधिक दैनिक शाखाएं चला रही है और समय-समय पर प्रशिक्षण शिविर भी आयोजित करती है। बीस से अधिक देशों में इसकी उपस्थिति है। देश भर में समिति 22 छात्रावास चलाती है, जिसमें प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना कर रही बालिकाओं की पढ़ाई, रोजगार आदि की व्यवस्था की जाती है।
देश के लगभग 70 प्रतिशत जिलों में समिति की उपस्थिति है। साल 2025 तक प्रत्येक जिले में इसकी कम से कम पांच शाखाएं स्थापित करने का लक्ष्य है। इस संगठन के सभी पद महिलाओं के पास हैं।
यही नहीं संघ से प्रेरित लगभग तीन दर्जन संगठन हैं, जिनमें महिलाओं की अच्छी सहभागिता है। संघ में निर्णय लेने वाली सर्वोच्च संस्था अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में भी वे न केवल उपस्थित रहती हैं, बल्कि उनकी संख्या भी लगातार बढ़ रही है। RSS ने बहुत पहले ही महिलाओं से जुड़ी गतिविधियों के लिए विशेष रूप से वरिष्ठ कार्यकर्ताओं के एक समूह का गठन कर दिया था जिसे महिला समन्वय कहा जाता है। ABVP, भारतीय मजदूर संघ, विश्व हिंदू परिषद और वनवासी कल्याण आश्रम जैसे RSS प्रेरित 36 संगठनों की महिला कार्यकर्ताओं की एक पूरी टीम महिला समन्वय समूह के साथ काम करती है।
संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने अपनी पुस्तक ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ: स्वर्णिम भारत के दिशा सूत्र’ में महिलाओं को लेकर संघ के दृष्टिकोण के बारे में विस्तार से बताया है। वह लिखते हैं:
महिलाओं से संबंधित मुद्दों पर काम करने का प्रभाव RSS और उससे प्रेरित संगठनों पर महसूस किया जाता है।
RSS प्रेरित वकीलों की संस्था, अधिवक्ता परिषद, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं के कानूनी अधिकारों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए सम्मेलन आयोजित करती है। इसमें पुरुष और महिला दोनों शामिल होते हैं।
क्रीड़ा भारती ने महिला एथलीटों और खिलाड़ियों के लिए सुविधाओं के निर्माण के अभियान पर अपना ध्यान केंद्रित किया है।
इतिहास संकलन समिति भारतीय महिलाओं के इतिहास और महिला इतिहासकारों के सम्मेलन प्रस्तुत करने पर काम कर रही है।
2017 में, भारतीय मजदूर संघ ने दिल्ली में दो लाख लोगों के साथ एक विशाल मार्च का आयोजन किया, जिसमें एक लाख कार्यकर्ता महिलाएं थीं।
विज्ञान भारती ने महिला वैज्ञानिकों का एक सम्मेलन ‘शक्ति’ शुरू किया। वनवासी कल्याण आश्रम और संस्कार भारती में कई महिलाएं पूर्णकालिक हैं।
2010 में महिलाओं से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर संगठन का रुख तय करने के लिए संघ के प्रमुख अधिकारियों ने दो दिवसीय विचार-मंथन सत्र में भाग लिया था। फिर 23-24 मार्च 2019 को ‘महिला समन्वय’ के तत्वावधान में एक और महत्वपूर्ण बैठक दिल्ली में हुई। इसका शीर्षक था ‘भारतीय स्त्री विमर्श’। आंबेकर के अनुसार, ‘इसमें मुख्य रूप से इस बात पर विचार किया गया कि वर्तमान समय के मुद्दों और चुनौतियों को हिंदू विचार और परिवार प्रणाली के आधार पर कैसे हल किया जा सकता है। यह संघ के भीतर एक सतत और रचनात्मक संवाद है।’
RSS फेमिनिज्म के पश्चिमी ढांचे को खारिज करता है। इसका मानना है कि पश्चिम का नारीवादी आंदोलन भारतीय समाज के लिए उपयुक्त नहीं है और देश को महिला सशक्तीकरण की भारतीय अवधारणा की आवश्यकता है।
आंबेकर संघ की नारी सशक्तिकरण की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए कहते हैं, ‘संघ हथकंडों और वाद-विवाद में विश्वास नहीं करता है। यह महिलाओं को सशक्त बनाने, पर्दा प्रथा के प्रतिबंधों को हटाने (जो आक्रमणों के लंबे इतिहास के कारण आया था), शैक्षिक स्तर और आर्थिक क्षमता को बढ़ाने के लिए समाज का एक व्यापक मिशन है।’
मानसिकता में बदलाव
महिला सशक्तीकरण के लिए संघ ने सक्षम कानूनों और प्रभावी नीतियों का समर्थन किया है। हालांकि महत्वपूर्ण मुद्दा सामाजिक मानसिकता में बदलाव है, जहां प्रत्येक परिवार में महिलाओं की स्थिति में गुणात्मक परिवर्तन लाने की जरूरत है। इसे सुनिश्चित करने के लिए संघ ‘परिवार-प्रबोधन’ नाम का एक व्यापक कार्यक्रम कई दशकों से चला रहा है, जिसमें परिवारों में महिलाओं के सम्मान, स्वतंत्रता व स्वावलंबन पर जोर दिया जाता है।
(लेखक अरूण आनंद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जानकार हैं)