गीता प्रेस से कांग्रेस को क्यों है घृणा? गांधी शांति पुरस्कार घोषित होते ही आ गई विरोध में

गीता प्रेस से क्यों नफरत करती है कांग्रेस? भाजपा ने किया ये बड़ा दावा

गीता प्रेस को वर्ष 2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार प्रदान किए जाने की घोषणा की आलोचना करने को लेकर कांग्रेस को भाजपा ने खरी-खोटी सुनाया है और आरोप लगाया कि विपक्षी पार्टी गीता प्रेस से इसलिए नफरत करती है क्योंकि वह सनातन का संदेश फैला रहा है।

नई दिल्ली 19 जून: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने गोरखपुर स्थित प्रसिद्ध गीता प्रेस को वर्ष 2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार प्रदान किए जाने की घोषणा की आलोचना करने को लेकर सोमवार को कांग्रेस को आड़े हाथों लिया और आरोप लगाया कि विपक्षी पार्टी गीता प्रेस से इसलिए नफरत करती है क्योंकि वह सनातन का संदेश फैला रहा है.

गीता प्रेस को पुरस्कार दिए जाने पर कांग्रेस को लगी ‘मिर्ची’

गीता प्रेस को यह पुरस्कार ‘अहिंसक और अन्य गांधीवादी तरीकों से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन की दिशा में उत्कृष्ट योगदान’ के लिए दिया जायेगा. हालांकि, कांग्रेस ने गीता प्रेस को पुरस्कार दिए जाने की आलोचना की और इसे ‘उपहास’ बताया.

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा, ‘2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार गोरखपुर में गीता प्रेस को प्रदान किया जा रहा है, जो इस वर्ष अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है.’ रमेश की इस टिप्पणी पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भाजपा प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने कांग्रेस को ‘हिन्दू विरोधी’ करार दिया और लोगों से सवाल किया कि गीता प्रेस पर उसके हमले से क्या कोई हैरान है?

भाजपा प्रवक्ता ने कांग्रेस को जमकर सुनाई खरी-खोटी
उन्होंने एक ट्वीट में कहा, ‘गीता प्रेस को अगर ‘एक्सवाईजेड प्रेस’ कहा जाता तो वे इसकी सराहना करते… लेकिन चूंकि यह गीता है, इसलिए कांग्रेस को समस्या है.’ पूनावाला ने कहा, ‘कांग्रेस मुस्लिम लीग को धर्मनिरपेक्ष मानती है, लेकिन उसके लिए गीता प्रेस सांप्रदायिक है. जाकिर नाइक शांति का मसीहा है लेकिन गीता प्रेस सांप्रदायिक है. कर्नाटक में गोहत्या चाहती है कांग्रेस.’

पूनावाला ने कांग्रेस नेता और पूर्व राज्यपाल शिवराज पाटिल के उस विवादित बयान का भी उल्लेख किया जिसमें उन्होंने दावा किया था कि लव जिहाद की बात सिर्फ इस्लाम में ही नहीं है, बल्कि ये भगवद् गीता और ईसाई धर्म में भी हैं. हालांकि, कांग्रेस ने उस समय कहा था कि इस तरह के बयान अस्वीकार्य हैं.

कांग्रेस ने कभी जिहाद से की थी गीता की तुलना’

भाजपा प्रवक्ता ने कहा, ‘कांग्रेस ने कभी गीता की तुलना जिहाद से की थी (शिवराज पाटिल का बयान याद रखें). कांग्रेस ने प्रभु श्री राम के अस्तित्व को नकारा और राम मंदिर का विरोध किया. कांग्रेस गीता प्रेस से इसलिए नफरत करती है क्योंकि वह सनातन के संदेश को कोने-कोने में फैला रहा है.’ रमेश ने गीता प्रेस को यह पुरस्कार दिए जाने की घोषणा के बाद एक ट्वीट में कहा था, ‘अक्षय मुकुल ने 2015 में इस संस्थान की एक बहुत अच्छी जीवनी लिखी है.

इसमें उन्होंने इस संस्थान के महात्मा के साथ उतार-चढ़ाव वाले संबंधों और राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक एजेंडे पर उनके साथ चली लड़ाइयों का खुलासा किया है.’ कांग्रेस नेता ने कहा, ‘यह फैसला वास्तव में एक उपहास है और सावरकर तथा गोडसे को पुरस्कार देने जैसा है.’

गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार देने पर विवाद:जयराम बोले- यह गोडसे को सम्मान देने जैसा; भाजपा बोली- राहुल के सलाहकार से यही उम्मीद

गीता प्रेस का मुख्यालय यूपी के गोरखपुर में है। इसकी स्थापना 1923 में की गई थी।
केंद्र सरकार ने 2021 का गांधी शांति पुरस्कार गीता प्रेस (गोरखपुर) को देने की घोषणा की है। इस पर कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने सोमवार को ट्वीट कर कहा- केंद्र सरकार का यह फैसला सावरकर और नाथूराम गोडसे को सम्मान देने जैसा है।

भाजपा का जयराम रमेश को जवाब

जयराम रमेश के बयान पर भाजपा सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा- ये राहुल गांधी के सलाहकार का बयान है। इनसे उम्मीद भी क्या कर सकते हैं। इन लोगों ने राम मंदिर निर्माण में रोड़े अटकाए। तीन तलाक कानून का विरोध किया। इससे ज्यादा शर्मनाक और क्या हो सकता है। पूरे देश को इनका विरोध करना चाहिए।

जितेंद्र प्रसाद ने कहा- आरोप लगाने वाले मुस्लिम लीग को सेक्युलर बता रहे थे

केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने कांग्रेस महासचिव के बयान पर कहा- गीता प्रेस भारत की संस्कृति और हिंदू मान्यताओं के साथ जुड़ी है। इसके ऊपर आरोप वो लगा रहे हैं, जो कहते थे कि मुस्लिम लीग सेक्युलर थी।

शाह ने कहा- गीता प्रेस का अतुलनीय योगदान

गृह मंत्री अमित शाह ने ट्वीट कर कहा-भारत की गौरवशाली प्राचीन सनातन संस्कृति और शास्त्रों को आज अगर आसानी से पढ़ा जा सकता है, तो यह गीता प्रेस के अतुलनीय योगदान के कारण है। गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार 2021 प्रदान करना उसके द्वारा किए जा रहे कार्यों का सम्मान है।

गीता प्रेस की शुरुआत 1923 में एक किराए के कमरे से हुई थी। देशभर में प्रेस की 20 ब्रांच हैं।

गीता प्रेस सम्मान तो लेगा, पर एक करोड़ की सम्मान राशि स्वीकार नहीं

गीता प्रेस गांधी शांति पुरस्कार को तो स्वीकार करेगा, लेकिन एक करोड़ की सम्मान राशि नहीं लेगा। गीता प्रेस के बोर्ड ने सोमवार को यह ऐलान किया। केंद्र सरकार ने 18 जून को गीता प्रेस को 2021 का गांधी शांति पुरस्कार देने की घोषणा की थी।

गीता प्रेस के प्रबंधक लाल मणि तिवारी ने सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि यह सम्मान हमारे लिए हर्ष की बात है। गीता प्रेस ने 100 सालों में कभी कोई आर्थिक मदद या चंदा नहीं लिया। सम्मान के साथ मिलने वाली धनराशि भी स्वीकार नहीं की। ऐसे में बोर्ड ने फैसला लिया है कि इस सम्मान के साथ मिलने वाली धनराशि भी स्वीकार नहीं की जाएगी।

प्रधानमंत्री ने गीता प्रेस की सराहना की

प्रधानमंत्री मोदी ने रविवार को इस पुरस्कार के लिए गीता प्रेस को बधाई दी थी। उन्होंने कहा कि गीता प्रेस को अपनी स्थापना के 100 साल पूरे होने पर गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया जाना सामुदायिक सेवा में किए गए कार्यों की सराहना करना है। गांधी शांति पुरस्कार 2021, मानवता के सामूहिक उत्थान में योगदान देने के लिए गीता प्रेस के महत्वपूर्ण और अद्वितीय योगदान को मान्यता देता है, जो सच्चे अर्थों में गांधीवादी जीवन शैली का प्रतीक है।

दुनिया के सबसे बड़े प्रकाशकों में से एक है गीता प्रेस
गीता प्रेस की स्थापना 1923 में हुई थी। यह दुनिया के सबसे बड़े प्रकाशकों में से एक है। गीता प्रेस सनातन-धर्म की अब तक 92 करोड़ किताबें छाप चुका है, जाे एक रिकॉर्ड है। अकेले इस साल 2 करोड़ 42 लाख किताबें छापी हैं। रामचरितमानस पर राजनीतिक विवाद के बाद से इसकी 50 हजार किताबें ज्यादा बिकी हैं। प्रेस की आय में भी वृद्धि हुई है।

गीता से प्रेरित होकर सेठ गोयंदका ने 1923 में खोला था प्रेस

श्रीमद्भगवद्गीता और रामचरितमानस को घर-घर में पहुंचाने का श्रेय भी गीता प्रेस को जाता है। गीता प्रेस के शुरू होने की कहानी बड़ी ही दिलचस्प है। बात 1920 के दशक की है। कलकत्ता के एक मारवाड़ी सेठ जयदयाल गोयंदका रोज गीता पढ़ते थे। 18वें अध्याय में गीता सार के रूप में लिखी एक बात उनके दिल को छू गई। ये बात यह थी, ‘जो इस परम रहस्य युक्त गीताशास्त्र को मेरे भक्तों में कहेगा, वह मुझको प्राप्त होगा।’

इसी के बाद लोगों के कहने पर गोयंदका ने अपनी व्याख्या को एक प्रेस से छपवाया, लेकिन उसमें भयंकर गलतियां देखकर वे दुखी हो गए। उसी दिन उन्हें प्रेस का ख्याल आया। फिर गोरखपुर के अपने एक श्रद्धालु घनश्यामदास जालान के सुझाव पर इसी शहर में 10 रुपए के किराए के मकान में 1923 में गीता प्रेस की शुरुआत की गई।

शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा

गीता प्रेस…इस वक्त शताब्दी वर्ष (100वीं वर्षगांठ) मना रहा है। समापन समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल होंगे। उनके कार्यक्रम की स्वीकृति मिल चुकी है, लेकिन तारीख अभी फाइनल नहीं हुई है।

कर्मचारी जूते-चप्पल उतारकर छपाई का काम करते हैं
पूरा गीता प्रेस एक मंदिर नुमा दफ्तर है, जहां रूटीन का कामकाज भी पूजा-पाठ से कम नहीं है। यहां की दीवारों पर चौपाइयों के साथ गुटखा, पान-मसाला और धूम्रपान का इस्तेमाल नहीं करने की सख्त हिदायत दी गई है।

छपाई में लगे कर्मचारी किताब की फाइनल बाइंडिंग के वक्त जूते-चप्पल उतारकर काम करते हैं। ताकि पाठकों की श्रद्धा और विश्वास से धोखा न हो। अंदर कैंपस में प्रेस मशीनों के साथ भव्य आर्ट गैलरी भी है। जिसका अनावरण देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने किया था।

गीता प्रेस में फिलहाल 15 भाषाओं में 1848 प्रकार की किताबें प्रकाशित हो रही हैं। देशभर में प्रेस की 20 ब्रांच हैं। गीता प्रेस में रोजाना 70 हजार किताबें प्रकाशित हो रही हैं, जबकि डिमांड करीब 1 लाख किताबों की है।

गीता प्रेस के 100 साल…सनातन धर्म की 92 करोड़ किताबें:चौपाई विवाद के बाद रामचरितमानस की बिक्री बढ़ी, फाइनल बाइंडिंग के वक्त जूता-चप्पल तक नहीं पहनते कर्मचारी

गीता प्रेस…धर्म, आस्था और विश्वास का प्रेस। पिछले दिनों काफी वक्त प्रेस सुर्खियों में रहा है। कभी बंद होने की अफवाहों की वजह से तो कभी रामचरितमानस की चौपाई विवाद की वजह से। लेकिन गीता प्रेस इन सबसे परे है। सनातन धर्म की सबसे ज्यादा किताबें प्रकाशित करने वाला गीता प्रेस…इस वक्त शताब्दी वर्ष (100वीं वर्षगांठ) मना रहा है। समापन समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल होंगे। उनके कार्यक्रम की स्वीकृति मिल चुकी है, लेकिन तारीख अभी फाइनल नहीं हुई है।

 

गीता प्रेस की शुरुआत वर्ष 1923 में हुई थी और यह दुनिया के सबसे बड़े प्रकाशकों में से एक है, जिसने 14 भाषाओं में 41.7 करोड़ पुस्तकें प्रकाशित की हैं. इनमें श्रीमद्‍भगवद्‍गीता की 16.21 करोड़ प्रतियां शामिल हैं. गांधी शांति पुरस्कार एक वार्षिक पुरस्कार है, जिसकी शुरुआत सरकार ने 1995 में महात्मा गांधी की 125वीं जयंती के अवसर पर गांधी द्वारा प्रतिपादित आदर्शों को सम्मान देते हुए की थी.

जयराम रमेश के ट्वीट से सहमत नहीं है कांग्रेस?

गोरखपुर स्थित गीता प्रेस की स्थापना साल 1923 में हुई थी. गीता प्रेस दुनिया में सबसे बड़े प्रकाशकों में से एक है.

Gita Press Awarded Gandhi Peace Prize: गीता प्रेस गोरखपुर को साल 2021 का गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा. गांधी शांति पुरस्कार भारत सरकार की ओर से स्थापित एक वार्षिक पुरस्कार है. साल 1995 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 125वीं जयंती के अवसर पर उनके आदर्शों के प्रति श्रद्धांजलि के रूप में इस पुरस्कार की स्थापना की गई थी. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार दिए जाने के फैसले की आलोचना की है. सूत्रों से जानकारी मिली है कि कांग्रेस पार्टी जयराम रमेश के ट्वीट से सहमत नहीं है.

जयराम रमेश ने गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार देने का विरोध किया है. उन्होंने गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार दिए जाने की तुलना सावरकर और गोडसे से की है.

 

जयराम रमेश के ट्वीट से क्यों सहमत नहीं है कांग्रेस?

जयराम रमेश ने ट्वीट में लिखा, “2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार गोरखपुर में गीता प्रेस को प्रदान किया गया है जो इस साल अपनी शताब्दी मना रहा है. अक्षय मुकुल द्वारा इस संगठन की 2015 की एक बहुत ही बेहतरीन जीवनी है जिसमें वह महात्मा के साथ इसके तूफानी संबंधों और उनके राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक एजेंडे पर उनके साथ चल रही लड़ाइयों का पता लगाता है. यह फैसला वास्तव में एक उपहास है और सावरकर और गोडसे को पुरस्कार देने जैसा है.”

 

सूत्रों से जानकारी मिली है कि गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार के विरोध में जयराम रमेश के ट्वीट से कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेता सहमत नहीं हैं. कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक, गीता प्रेस को लेकर जयराम रमेश का बयान गैर जरूरी है. हिन्दू धर्म के प्रचार प्रसार में गीता प्रेस की बड़ी भूमिका रही है. जयराम रमेश को ऐसा बयान देने से पहले अंदरूनी चर्चा करनी चाहिए थी.

गीता प्रेस को 100 साल पूरे

गोरखपुर स्थित गीता प्रेस की स्थापना साल 1923 में हुई थी. गीता प्रेस दुनिया में सबसे बड़े प्रकाशकों में से एक है. इसने 14 भाषाओं में 41.7 करोड़ किताबों का प्रकाशन किया है, जिनमें 16.21 करोड़ श्रीमद भगवद गीता पुस्तकें शामिल हैं. खास बात ये है कि इस संस्था ने पैसा कमाने के लिए कभी भी अपने प्रकाशनों के लिए विज्ञापन नहीं लिए.

गांधी शांति पुरस्कार के साथ ही गीता प्रेस को एक करोड़ रुपये की राशि से सम्मानित किया जाना है. लेकिन कांग्रेस की आपत्ति के कारण गीता प्रेस मैनेजमेंट ने एक करोड़ की सम्मान राशि स्वीकार करने से इनकार कर दिया है. ये बात गीता प्रेस के प्रबंधक डॉक्टर लालमनी तिवारी ने कही.

 

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