तीन किस्म के हैं वीर सावरकर निंदक, दो बार नीलाम किया अंग्रेजों ने सावरकर का घर

#वीर_सावरकर के नाम को तीन तरह के लोगों ने सबसे अधिक अपमानित करने और उनके बारे में मनगढ़ंत झूठ फैलाने का काम किया है। एक वो हैं, जिन्हें लगता है कि सावरकर उनके धर्म के खिलाफ थे, जिनके लिए बाबर, अकबर, औंरगजेब और जिन्ना महान हैं। दूसरे वो, जिन्हें लगता था कि अगर सावरकर की महानता के किस्सों से लोग अवगत हो गए, तो भारत की आजादी में योगदान देने के हमारे पुरखों के जबरन गढ़े हुए किस्से फीके पड़ जाएंगे। तीसरे वो, जिन्हें सावरकर, विवेकानंद और सुभाषचंद्र बोस जैसी भारतीय महान विभूतियों के बजाय कुछ उधारी के विदेशी क्रांतिकारियों को अपना आदर्श माना है।

1911 में सावरकर को काला पानी की सजा सुनाई गई। उन्हें सेलुलर जेल भेजा गया। सेलुलर जेल जो मुख्य भारत से हजारों किलोमीटर की दूरी पर थी। सागर के रास्ते भी हजारों किलोमीटर का दुर्गम रास्ता। काला पानी की सजा, जिसके मायने थे देश निकाला। काला पानी की सजा का मतलब था, बाकी की उम्र कठोर और अमानवीय यातनाएं सहते हुए गुजारनी हैं। जिसे उस काल में मौत की सजा से भी बदतर माना जाता था। स्वातंत्र्य समर का ऐसा पहला वीर जिसे दो-दो बार काला पानी की सजा सुनाई गई। सावरकर इन सब सजाओं के हकदार क्यों बने? भारत को आजाद कराने के लिए अंग्रजों के खिलाफ विद्रोह की बदौलत..

महात्मा गांधी ने यंग इंडिया में लिखा था ”यदि भारत इसी तरह सोया रहा तो मुझे डर है कि उसके दो निष्ठावान पुत्र विनायक दामोदर सावरकर और उनके बड़े भाई गणेश हाथ से चले जाएंगे। लंदन में मुझे सावरकर से भेंट करने का सौभाग्य मिला था। वे बहादुर हैं, चतुर हैं और देशभक्त क्रांतिकारी हैं। ब्रिटिश प्रणाली की बुराई को उन्होंने बहुत पहले ही ठीक से समझ लिया था।”

आज गांधी के विचारों का अनुसरण करने का दावा करने वाले सावरकर को अपमानित कर कहीं न कहीं गांधी के विचार को ही कुचलने का प्रयास कर रहे हैं।

1966 में इंदिरा गांधी ने सावरकर के बलिदान, देशभक्ति और साहस को प्रणाम करते हुए अपनी श्रध्दांजलि अर्पित की थी। 1970 में इंदिरा सरकार ने सावरकर के सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया था।

20 मई 1980 को इंदिरा गांधी ने सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के सचिव को पत्र लिखते हुए कहा था ” वीर सावरकर का अंग्रेजी हुक्मरानों का खुलेआम विरोध करना भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में एक अलग और अहम स्थान रखता है। मेरी शुभकामनाएं स्वीकार करें और भारत माता के इस महान सपूत की 100वीं जयंती के उत्सव को योजनानुसार पूरी भव्यता के साथ मनाएं।

आज इंदिरा गांधी के खानदानी सावरकर का अपमान करने में अपनी महानता महसूस कर रहे हैं। आज आप देखेंगे तो सावरकर के लिए सर्वाधिक अपमानजनक शब्द प्रयोग करने वाले वही लोग मिलेंगे जो हुमांयू, अकबर , शाहजहां जैसे ग्लोरिफाइड डकैत और जिन्ना जैसे लाखों लोगों की हत्या के जिम्मेदार का महिमामंडन दिन रात करते हैं।

सावरकर हों या सुभाषचंद्र बोस, पहले के समय में अपनी महानता को अग्रिम पंक्ति में रखने वालों ने सच्चे क्रांतिकारियों की सदैव उपेक्षा की। सुविधायुक्त जेल में चंद दिन गुजारने वाले और अंग्रेजों के बगल बैठकर चाय की चुस्कियां लेने वालों ने अपनी महानता के किस्सों से भारत का साहित्य भर कर रख दिया। ऐसे लोगों को आजादी का सम्पूर्ण श्रेय देने वाले सावरकर जैसे वीर का बलिदान शायद ही कभी समझ पाएं।

स्वतंत्रता के बावजूद भारत का इतिहास अंग्रेज शासकों की मानसकिता से लिखा गया। वामपंथी इतिहासकारों ने आक्रांताओं को महिमामंडित किया। वास्तविक क्रांतिकारियों को इतिहास के पन्नों में आज भी समुचित स्थान मिलने की दरकार है।

– राजेश्वर ✍️

अंग्रेजों ने दो बार नीलाम किया सावरकर का घर

ये अप्रैल 1911 था जब विनायक दामोदर सावरकर की सारी संपत्ति निलामी के लिए रख दी गई थी। उनका सारा सामान यहां तक की घर के बर्तन तक जब्त कर लिए गए थे। साल भर में दूसरी बार नासिक के लोग ऐसी निलामी देख रहे थे क्योंकि अभी कुछ दिन पहले उनके बड़े भाई गणेश सावरकर 25 साल काला पानी की सजा होने पर भी ऐसे ही सारा सामान जब्त करके निलाम किया गया था। उनके छोटे भाई नारायण सावरकर भी इस समय एक दूसरे केस में छह महीने के सजा पाए जेल में बंद थे।

सावरकर की कुल संपत्ति से कुल 27 हजार रुपए अंग्रेज सरकार को प्राप्त हुए। उनके श्वसुर जिन्होंने उनकी पढ़ाई का काफी खर्चा उठाया था उनकी संपत्ति से अंग्रेज सरकार 6,725 रुपए प्राप्त हुए। सावरकर परिवार जिस मकान में रहता था वो घर भी जब्त कर लिया गया जो देश आजाद होने के बाद तक सरकार के अधीन रहा।

कुछ दिन बाद सावरकर से उनका चश्मा और छोटी सी भागवत गीता की प्रति भी त्यागने के लिए कहा गया। बाद में सरकार ने रहम दिल दिखाते हुए उन्हें एक आना कीमत वाली गीता और चश्मा लौटा दिया लेकिन इन्हें अब उन्हें सरकारी संपत्ति के तौर पर इस्तेमाल करना था। इसके अलावा गले में लोहे का बिल्ला भी मिला जिस पर रिहाई का साल 1960 अंकित था।

ऐसी स्थिति लंदन का एक बैरिस्टर, दुर्दांद अपराधियों के साथ उपमहाद्वीप की सबसे बदनाम जेल में अगले 50 साल की उम्र कैद काटने जा रहा था।

वैसे ये वो समय था जब अंग्रेजों को अहिंसा से उखाड़ फेंकने वाले गांधी जी वर्धा से लेकर साबरमती तक देश में एक के बाद एक कई एकड़ में बने आश्रम पर आश्रम ठोंकते जा रहे थे उस समय सावरकर के घर बर्तन निलाम हो रहे थे लेकिन उन्हें क्या याद रहा 60 रुपए की पेंशन…

खैर, अभी भी कुछ ज्यादा बदला नहीं है
तब अंग्रेज सरकार घर के बर्तन बेच रही थी
आज इटली वाले गद्दार बता रहे हैं….

@पवन गोयल

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