उद्धव ने चुनाव चिन्ह समेत गंवाई शिवसेना, चुनाव आयोग ने शिंदे को माना असली

शिंदे की हुई शिवसेना, तीर-कमान निशान भी मिला:चुनाव आयोग बोला- उद्धव गुट ने चुनाव बगैर लोगों को नियुक्त किया; यह असंवैधानिक

मुंबई 17 फरवरी। चुनाव आयोग ने एकनाथ शिंदे गुट को असली शिवसेना मान लिया है। आयोग ने शुक्रवार शाम  शिंदे गुट को शिवसेना का नाम और तीर-कमान का निशान प्रयोग करने की अनुमति दे दी। आयोग ने पाया कि शिवसेना का वर्तमान संविधान अलोकतांत्रिक है। उद्धव गुट ने बिना चुनाव कराए अपने लोग अलोकतांत्रिक रूप से पदाधिकारी नियुक्त करने को संविधान बिगाड़ा।

चुनाव आयोग ने यह भी पाया कि शिवसेना के मूल संविधान में अलोकतांत्रिक तरीके गुपचुप तरीके से वापस लाये गये, जिससे पार्टी निजी संपत्ति जैसी हो गई। इन तरीकों को चुनाव आयोग 1999 में अस्वीकार कर चुका था। पार्टी की ऐसी संरचना भरोसा जगाने में विफल रहती है। इसी के साथ महाराष्ट्र में शिवसेना से अब उद्धव गुट की दावेदारी खत्म मानी जा रही है।

शिंदे ने कहा- यह लोकतंत्र की जीत है

चुनाव आयोग के निर्णय पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा- यह हमारे कार्यकर्ताओं, सांसदों, विधायकों, जनप्रतिनिधियों और लाखों शिवसैनिकों सहित बालासाहेब और आनंद दीघे की विचारधाराओं की जीत है। यह लोकतंत्र की जीत है।

उन्होंने कहा- यह देश बाबासाहेब अंबेडकर की ओर से तैयार किए गए संविधान पर चलता है। हमने उस संविधान के आधार पर अपनी सरकार बनाई। चुनाव आयोग का आज जो आदेश आया है, वह मेरिट के आधार पर है। मैं चुनाव आयोग का आभार व्यक्त करता हूं।

 

फडणवीस बोले- हम पहले दिन से आश्वस्त थे

महाराष्ट्र उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा- CM एकनाथ शिंदे की शिवसेना को शिवसेना का चिन्ह और नाम मिला है। असली शिवसेना एकनाथ शिंदे की शिवसेना बनी है। हम पहले दिन से आश्वस्त थे, क्योंकि चुनाव आयोग के अलग पार्टियों के बारे में इसके पहले के निर्णय देखे तो इसी प्रकार का निर्णय आए हैं।

उद्धव बोले- सरकार की दादागीरी चल रही

उद्धव ठाकरे ने निर्णय पर अप्रसन्नता जताई कि देश में लोकतंत्र समाप्त हो गया है। पार्टी किसकी है, ये चुने हुए प्रतिनिधि ही तय करेंगे तो संगठन का क्या मतलब रह जाएगा। चुनाव आयोग का निर्णय लोकतंत्र के लिए घातक है। हमारी लड़ाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है। देश में सरकार की दादागीरी चल रही है। हिम्मत है तो चुनाव मैदान में आइये, चुनाव लड़िए। वहां जनता बताएगी कि कौन असली है और कौन नकली।

संजय राउत ने कहा- देश तानाशाही की ओर बढ़ रहा

चुनाव आयोग के फैसले पर शिवसेना सांसद संजय राउत ने ट्वीट किया- इसकी स्क्रिप्ट पहले से तैयार थी। देश तानाशाही की ओर बढ़ रहा है। कहा गया था कि नतीजा हमारे पक्ष में होगा, लेकिन अब एक चमत्कार हो गया है। लड़ते रहो। ऊपर से नीचे तक करोड़ों रुपए पानी की तरह बहाया है। हमें फिक्र करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि जनता हमारे साथ है। हम जनता के दरबार में नया चिह्न लेकर जाएंगे और फिर से शिवसेना खड़ी करके दिखाएंगे, ये लोकतंत्र की हत्या है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- चुनाव आयोग अपना काम करे

सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संवैधानिक बेंच ने शिवसेना पर शिंदे गुट के दावे को लेकर चुनाव आयोग की कार्यवाही पर लगी रोक हटा दी थी। कोर्ट ने पिछले साल 27 सितंबर को अपने आदेश में कहा था कि आयोग शिवसेना के चुनाव चिह्न पर फैसला कर सकता है। यह उद्धव ठाकरे के लिए बड़ा झटका था, क्योंकि उन्होंने विधायकों की योग्यता पर फैसला होने तक इलेक्शन कमीशन की कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग की थी।

इससे पहले, उद्धव की याचिका पर सुनवाई करते हुए 23 अगस्त को जस्टिस एनवी रमना की बेंच ने केस संवैधानिक बेंच को ट्रांसफर करते हुए चुनाव आयोग की कार्यवाही पर रोक लगा दी थी। जस्टिस रमना ने कहा था कि संवैधानिक बेंच तय करेगी कि आयोग की कार्यवाही जारी रहेगी या नहीं।

SC बोला- केस की मेरिट पर तय करेंगे मामला 7 जजों की बेंच को भेजें या नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में शिवसेना बनाम शिंदे गुट विवाद पर फैसला 21 फरवरी तक टाल दिया था। बेंच ने कहा, ‘नबाम रेबिया के सिद्धांत इस मामले में लागू होते हैं या नहीं, केस को 7 जजों की बेंच को भेजा जाना चाहिए या नहीं, ये मौजूदा केस के गुण-दोष के आधार पर तय किया जा सकता है। इसे मंगलवार को सुनेंगे।’

पिछली सुनवाई में कहा था- राज्यपाल को राजनीति में नहीं पड़ना चाहिए

पिछली सुनवाई में कोर्ट ने राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को फटकार लगाते हुए कहा था कि सरकार बनाने की प्रक्रिया में राज्यपाल को राजनीति से दूर रहना चाहिए। कोई भी धड़ा यदि सरकार बनाने का दावा करता है तो राज्यपाल को सदन में विश्वास मत सुनिश्चित करना चाहिए।

शिंदे गुट का पक्ष मजबूत करता है नबाम मामला

महाराष्ट्र में जून 2022 में CM एकनाथ शिंदे और उनके समर्थक विधायकों को उद्धव ठाकरे गुट ने अयोग्य ठहराने की मांग की थी। हालांकि, ठाकरे गुट की मांग से पहले ही शिंदे गुट की ओर से डिप्टी स्पीकर सीताराम जिरवाल को हटाने का नोटिस लंबित था।

क्या है रेबिया मामला

अरुणाचल प्रदेश के 2016 के नबाम रेबिया मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि यदि स्पीकर को हटाने की याचिका लंबित हो तो स्पीकर विधायकों की अयोग्यता प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ सकते।

33 साल पहले शिवसेना की सहयोगी पार्टी बनी थी BJP

हिंदुत्व की लहर के बीच BJP और शिवसेना के बीच गठबंधन 33 साल पहले 1989 में हुआ था। हालांकि शिवसेना की BJP के साथ जुड़ने की शुरुआत 1984 में ही हो गई थी। उस समय शिवसेना के मनोहर जोशी समेत 2 नेताओं ने BJP के सिंबल पर मुंबई से लोकसभा का चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गए।

शिवसेना-BJP गठबंधन के पीछे का दिमाग प्रमोद महाजन का था। वे उस समय BJP के महासचिव हुआ करते थे और बाल ठाकरे से उनके काफी अच्छे संबंध थे। BJP उस वक्त देशभर में पार्टी का विस्तार कर रही थी और उसे महाराष्ट्र में एक रीजनल फोर्स की जरूरत थी। ऐसे में शिवसेना, BJP के लिए सबसे बेहतर विकल्प था, क्योंकि दोनों पार्टियों की वैचारिकी बहुत हद तक एक जैसी थी।

 

1990 : शिवसेना को 52, BJP के खाते में 42 सीटें

बाला साहेब के समय में महाराष्ट्र की राजनीति में शिवसेना हरदम बड़े भाई की भूमिका में ही रही। इसी कारण गठबंधन बनने के वक्त तय हुआ कि लोकसभा चुनाव में BJP ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जबकि विधानसभा चुनाव में शिवसेना को ज्यादा सीटें मिलेंगी।

1990 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना ने कुल 288 सीटों में से 183 पर चुनाव लड़ा। वहीं BJP ने 104 सीटों पर उम्मीदवार उतारे। उस चुनाव में शिवसेना ने 52 और BJP ने 42 सीटें जीतीं। शिवसेना के मनोहर जोशी विपक्ष के नेता बने।

1995 : पहली बार शिवसेना-BJP गठबंधन की सरकार बनी

1995 में BJP-शिवसेना ने फिर से मिलकर चुनाव लड़ा। राम मंदिर आंदोलन के चलते हिंदुत्व की लहर चरम पर थी। दोनों को चुनाव में इसका फायदा मिला। शिवसेना ने 73 सीटों पर जीत हासिल की, जबकि BJP 65 सीटें झटकने में सफल रही।

तब बाला साहेब ठाकरे ने फॉर्मूला दिया कि जिस पार्टी के पास ज्यादा सीटें होंगी, मुख्यमंत्री उसका होगा। इसी आधार पर शिवसेना के मनोहर जोशी को CM की कुर्सी मिली और BJP के गोपीनाथ मुंडे डिप्टी CM बने। हालांकि यही फॉर्मूला आगे चलकर दोनों पार्टियों के बीच विवाद की जड़ बना।

1995 में बाल ठाकरे ने जब BJP के साथ मिलकर सरकार बनाई तो अपने करीबी नेता मनोहर जोशी को CM बनाया। इस दौरान बाल ठाकरे ने कहा था कि इस सरकार का रिमोट कंट्रोल मेरे हाथ में रहेगा।

1999 : बहुमत के जादुई आंकड़े से 20 सीटें कम रह गईं

शिवसेना और BJP ने 1999 का चुनाव भी साथ मिलकर लड़ा। उस वक्त भी शिवसेना बड़े रोल में रही। शिवसेना ने 69 और BJP ने 56 सीटें जीतीं। हालांकि गठबंधन के पास बहुमत के आंकड़े 145 से 20 कम यानी 125 सीटें ही थीं।

शिवसेना को लग रहा था कि बहुमत के लिए बाकी बची सीटों का जुगाड़ हो जाएगा, लेकिन BJP ने ज्यादा रुचि नहीं दिखाई। कहा जाता है कि उस वक्त बीजेपी के गोपीनाथ मुंडे CM का पद चाह रहे थे। BJP-शिवसेना के बीच 23 दिनों तक बातचीत चलती रही, लेकिन कोई रास्ता नहीं निकला। आखिर में NCP और कांग्रेस ने मिलकर सरकार बना ली।

2004 : शिवसेना में बगावत के बाद BJP ने मांगा विपक्ष के नेता का पद

1999 में CM पद के लिए रस्साकशी होने के बावजूद शिवसेना और BJP ने 2004 में भी मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा। इस चुनाव में शिवसेना ने 62 और BJP ने 54 सीटों पर जीत दर्ज की। एक बार फिर ज्यादा सीट जीतने के कारण विपक्ष के नेता का पद शिवसेना को मिला। हालांकि, 2005 में जब नारायण राणे करीब एक दर्जन विधायकों के साथ कांग्रेस में चले गए तो BJP ने शिवसेना से विपक्ष के नेता के पद पर दावा किया, लेकिन शिवसेना ने नकार दिया।

2009 : 20 साल में पहली बार शिवसेना से आगे निकली BJP

2009 में लगातार दूसरी बार BJP-शिवसेना गठबंधन को विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा, लेकिन BJP पहली बार शिवसेना से आगे निकलने में कामयाब रही। BJP ने इस दौरान 46 और शिवसेना ने 45 सीटों पर जीत दर्ज की। इस दौरान विपक्ष के नेता का पद BJP को मिला।

2014 : 25 साल पुराना गठबंधन टूटा, फडणवीस CM बने

2014 में लोकसभा चुनाव में मोदी लहर से BJP का उत्साह चरम पर था। ऐसे में BJP ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शिवसेना से ज्यादा सीटों की मांग की। सहमति नहीं बनी और 25 साल पुराना गठबंधन टूट गया। वहीं NCP और कांग्रेस भी इस चुनाव में गठबंधन नहीं कर सके।

अकेले चुनाव लड़ने का फायदा BJP को मिला और उसने 122 सीटों पर जीत दर्ज की। जबकि शिवसेना सभी सीटों पर लड़ने के बावजूद सिर्फ 63 सीटें जीत पाई। इस दौरान BJP नेता देवेंद्र फडणवीस CM बने। हालांकि कुछ दिन तक विपक्ष में बैठने के बाद शिवसेना सरकार में शामिल हो गई और उसे 12 मंत्रीपद मिले। बस यहां से शिवसेना बड़े भाई से छोटे भाई की भूमिका में आ गई।

2019 : चुनाव जीतने के बाद भी शिवसेना-भाजपा अलग हो गए

2019 के लोकसभा चुनाव के वक्त एक बार फिर से दोनों पार्टियों को साथ आने की जरूरत महसूस होने लगी। फरवरी में फडणवीस ने कहा कि राज्य सरकार में अन्य बातों के अलावा पद और जिम्मेदारियों को समान रूप से साझा किया जाएगा। हालांकि लोकसभा के रिजल्ट से भाजपा एक बार फिर से शिवसेना पर दबाव बनाने में सफल रही।

विधानसभा चुनाव में इस बार भाजपा ने ज्यादा, जबकि शिवसेना ने कम सीटों पर चुनाव लड़ा। BJP ने इस दौरान 106 सीटें जीतीं, जबकि शिवसेना को 2014 से भी कम 56 सीटें ही मिलीं। इसके बाद शिवसेना ने ढाई-ढाई साल के लिए CM के फॉर्मूले का दांव चला, लेकिन BJP नहीं मानी। लिहाजा शिवसेना-BJP गठबंधन टूट गया। इसके बाद शिवसेना ने NCP और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई, उद्धव ठाकरे CM बने।

शिवसेना ने शुरुआती दौर में कांग्रेस का समर्थन किया था

बाला साहेब ठाकरे ने मराठी मानुस के नाम पर 19 जून 1966 को शिवसेना बनाई।
1970 में मुंबई की पर्ले विधानसभा सीट का उपचुनाव जीतकर वामनराव महाडिक शिवसेना के पहले विधायक बने।
1971 के लोकसभा चुनाव में बाल ठाकरे ने कांग्रेस (o) के साथ गठबधंन और 3 कैंडिडेट भी उतारे, लेकिन सफलता नहीं मिली।
1972 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना 26 सीटों पर चुनाव लड़ा और सिर्फ 1 सीट पर जीत मिली।
बाल ठाकरे ने 1975 में इंदिरा गांधी के आपातकाल का समर्थन किया और फिर 1977 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस का समर्थन किया था।
1980 में शिवसेना ने विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा और कांग्रेस का समर्थन किया।

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