बांग्लादेश निर्माण में भारतीय मीडिया का स्टैंड रहा था राष्ट्रवादी

Bangladesh War Inside Story: देश के लिए कुछ मरते हैं, कुछ बोलते हैं झूठ… बांग्‍लादेश बनने की कहानी में क्‍या कुछ गोपनीय था

बांग्‍लादेश बनने की कहानी में कई झूठ भी बोले गए। स्थितियां जैसी थीं बिल्‍कुल वैसे ही पेश नहीं की गईं। भारत सरकार के आधिकारिक मत को उन दिनों के मीडिया ने फॉलो किया।

नई दिल्‍ली 20 दिसंबर।बांग्‍लादेश बनने की इनसाइड स्‍टोरी पर टाइम्‍स ऑफ इंडिया (TOI)में स्वामीनाथन अय्यर का एक लेख प्रकाश‍ित हुआ है। इसमें उन्‍होंने कई ऐसी बातों का ज‍िक्र किया है जो अनसुनी हैं। इसमें बांग्‍लादेश कैसे बना और इस दौरान क्‍या कुछ हुआ इसका लेखाजोखा है। यहां पढ़‍ि‍ए पूरा लेख…
बांग्लादेश 50 साल पहले बना था। तब 16 दिसंबर को ढाका में भारतीय फौजों के आगे पाकिस्‍तान ने घुटने टेक दिए थे। भारत का आधिकारिक बयान है कि युद्ध पाकिस्‍तान ने शुरू किया था। ऐसा तब हुआ था जब 3 दिसंबर को भारत पर बम गिराया गया था। यह जंग महज 13 दिनों में खत्म हो गई थी।

अगर कोई उस जंग को व्‍यापक तरीके से कवर कर रहा था तो मैं उसका साक्षी हूं। मैं कह सकता हूं कि भारतीय मीडिया आधिकारिक मत के साथ चला। यह अलग बात है कि उसे पता था कि इसमें कई तरह के झूठ हैं।

दरअसल, जंग पाकिस्‍तान ने नहीं, हिंदुस्‍तान ने शुरू की थी। यह 21 नवंबर को शुरू हुई थी। मुक्ति वाहिनी (बांग्‍लादेशी विद्रोही जिन्‍हें भारत ने प्रशिक्षित और हथियार दिए थे) के साथ कई मोर्चों पर ईस्‍ट पाकिस्‍तान पर चढ़ाई के साथ यह शुरू हुई थी। भारत ने इस आक्रमण की योजना बनाई थी। मकसद था पाकिस्‍तान को चौंका देना।
भारत सरकार ने पाकिस्‍तान की शिकायतों को खारिज कर दिया था। इसमें उसने आक्रमण शुरू होने की बात कही थी। भारत ने इसके जवाब में कहा था कि सिर्फ सीमा पर झड़पें हुई हैं और कुछ नहीं। हालांकि, विदेशी पत्रकारों ने बताया था कि भारतीय सैनिक समूची पट्टी से सीमा पार कर रहे हैं।

3 द‍िसंबर को पाकिस्‍तान ने ग‍िराए थे बम

द इकनॉमिस्‍ट, लंदन ने कहा था कि अब पश्चिम में संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद के हस्‍तक्षेप और पाकिस्‍तान के काउंटर अटैक के बीच रेस होगी। उसी समय गर्मियों में भारत ने यूएसएसआर के साथ अर्ध सुरक्षा संधि पर हस्‍ताक्षर किए थे। यूएसएसआर ने संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद के किसी भी तरह के हस्‍तक्षेप पर वीटो का इस्‍तेमाल किया था। इसमें हिस्‍सेदार बढ़ाने और अमेरिकी हस्‍तक्षेप के लिए पाकिस्‍तान ने पलटवार किया था। इसके लिए उसने 3 दिसंबर को भारतीय ठिकानों पर बम गिराए थे।
इस तरह वह 13 दिन की नहीं, बल्कि 26 दिन की लड़ाई थी। पाकिस्‍तान ने जंग नहीं शुरू की थी। न ही उसका ऐसा करने का कोई मंसूबा था। वह जानता था कि पूरब में उसके सैनिकों की संख्‍या बहुत कम है। आसमान पर भी भारत का पूरा कंट्रोल है।
इसके उलट भारत के पास जंग के लिए कारण थे। इससे भारत को पूर्व में एक दुश्‍मन के बजाय दोस्‍त मिलता। पाकिस्‍तान को बांग्‍लादेश से अलग करने का मतलब था कि भारत को भविष्‍य में पाकिस्‍तान से कभी दो मोर्चों पर नहीं लड़ना पड़ेगा। इसका यह भी मतलब था कि चीन उसे ईस्‍ट पाकिस्‍तान से साथ गठजोड़ कर धमका नहीं सकता था। ऐसा बंगाल के साथ असम को जोड़ने वाले ‘चिकन्‍स नेक’ क्षेत्र पर नियंत्रण कर किया जा सकता था।
निश्चित तौर पर भारत ने मानवीय आधार पर अपने हमले को सही ठहराया। पाकिस्‍तानी सेना ने क्षेत्र में नरसंहार किया था। लोगों की आजादी छीन ली गई थी। भारत में बांग्‍लादेश से आए 1 करोड़ शरणार्थियों को वापस भेजना भी मुद्दा था।

बनाई गई अस्‍थायी सरकार

मार्च 1971 में पाकिस्‍तान ने मुजीबुर रहमान को अरेस्‍ट किया था। वह अवामी लीग के प्रमुख थे। अलग होने की कोशिशों के आरोपों में उन्‍हें गिरफ्तार किया गया था। इसकी सुनवाई में ताजुद्दीन अहमद की अगुआई में मुजीब के समर्थकों ने आजादी का ऐलान किया था। इसके पहले तक वे अलग होने के बारे में स्‍पष्‍ट नहीं थे। उन्‍होंने छोटे से शहर चुआदंगा में बांग्‍लादेश की अस्‍थायी सरकार का गठन किया।

चुआदंगा को चुनने की सिर्फ एक वजह थी। यह ढाका से दूर और भारतीय सीमा के नजदीक था। ऐसे में उम्‍मीद कर सकते थे कि भारत की मदद से वे लंबे समय तक विपरीत परिस्थितियों का मुकाबला कर सकते हैं। इस बीच मुक्ति वाहिनी और विद्रोही बांग्‍लादेशी फौजों ने पाकिस्‍तानी सेना को बढ़ने से रोकने के लिए टक्‍कर ली। हालांकि, उनके ज्‍यादातर प्रयास नाकाफी थे।

कैसे हुई थी उस समय रिपोर्टिंग?

द टाइम्‍स ऑफ इंडिया में मेरा असाइनमेंट एक डेली कॉलम करने का था। इसका शीर्षक था ‘गेन्‍स एंड लॉसेस’। इसमें पूर्वी पाकिस्‍तान के तमाम राजनीतिक और सैन्‍य घटनाओं का लेखाजोखा होता था। मुझे कहा गया था कि बांग्‍लादेश के गतिरोध की साहसिक कहानियों को बढ़चढ़कर लिया जाए। वहीं, पाकिस्‍तान के आगे बढ़ने की रिपोर्टों को दबाया जाए। अखबार ने आजादी या पारदर्शिता पर कोई ढोंग नहीं किया। उसने खुद को एक देशभक्‍त प्रचार माध्‍यम के तौर पर देखा।

हालांकि, पाकिस्‍तानी सेना इतनी तेजी से आगे बढ़ी कि यह पर्दा लंबे समय तक पड़ा नहीं रह सका। वह दुखद दिन आ ही गया जब बांग्‍लादेश की अस्‍थायी सरकार को चुआदंगा से भारत भागना पड़ा। लाजिमी है कि मेरे कॉलम में वह खबर ली गई। लेकिन, मुझे कहा गया कि इसे हल्‍का रखा जाए।
इसकी बजाय मुझे आशूगंज में मुक्ति वाहिनी के पावर स्‍टेशन पर अटैक को बड़ी स्‍टोरी बनाने के लिए कहा गया। मुझे कहीं से नहीं समझ आ रहा था कि यह बांग्‍लादेशियों की कैसे मदद करेगा। फिर बात यह आती है कि देशभक्ति कभी बहुत तर्कसंगत नहीं होती है।
ताजुद्दीन अहमद और उनकी अस्‍थायी सरकार ने कोलकाता से काम करना शुरू कर दिया। लेकिन, प्रोपेगंडा के लिए भारत सरकार ने मुजीबनगर नाम के एक काल्‍पनिक शहर को बनाने का फैसला किया। यह बांग्‍लादेश बॉर्डर के भीतर था। यहीं से अस्‍थायी सरकार विरोध का सामना कर रही थी। इसका मकसद ताजुद्दीन को अधिक विश्‍वसनीयता देना था। लेकिन क्‍यों? द्वितीय विश्‍व युद्ध में पोलैंड और फ्रांस की निर्वासित सरकारों ने लंदन से काम किया। इसमें उनकी साख पर कोई असर नहीं पड़ा।
दर्जनों भारतीय समाचारपत्रों ने मुजीबनगर जाकर ताजुद्दीन अहमद और उनके साथियों की तस्‍वीरें लीं। इंटरव्‍यू भी किया। किसी ने भी इस तर्क पर सवाल नहीं किया। आखिरकार इसका नतीजा भारतीय सेना की कार्रवाई से तय होना था। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था कि अस्‍थायी सरकार कोलकाता में थी या मुजीबनगर में। यह ठीक वैसा ही था जो एक सैन्‍य कमांडर ने कहा था। उन्‍होंने कहा था कि कुछ लोग देश के लिए जान गंवाते हैं, कुछ उसके लिए झूठ बोलते हैं।

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