मत:इतिहास में फिलिस्तीनी राष्ट्र,कभी था ही नहीं

बालफोर घोषणापत्र: 67 शब्द जिनसे बदला मध्य पूर्व का इतिहास और पड़ी इसराइल की नींव
आर्थर जेम्स बालफोर

आज दुनिया जिन सबसे मुश्किल चुनौतियों का हल निकालने के लिए जूझ रही है, उनमें से एक की बुनियाद एक ऐसे दस्तावेज़ से पड़ी थी जिस पर सिर्फ़ 67 शब्द लिखे थे.

जी हां, एक पन्ने पर लिखे 67 शब्द.

इसराइल और हमास के बीच चल रहे संघर्ष में दोनों पक्षों को बड़े नुक़सान का सामना करना पड़ा है.

रिपोर्टें हैं कि इस संघर्ष में कम से कम 1400 इसराइली लोग मारे गए हैं जबकि ग़ज़ा में 8500 से अधिक लोग मारे गए हैं.

इस संघर्ष की बुनियाद 106 साल पहले हुए बालफोर घोषणापत्र के एलान के साथ ही पड़ गई थी. इस ऐतिहासिक दस्तावेज़ से इसराइल के गठन का रास्ता साफ़ हुआ और मध्य पूर्व का इतिहास हमेशा-हमेशा के लिए बदल गया.

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फलस्तीन में यहूदी बस्तियों के दौरे पर आर्थर बालफोर इमेज स्रोत,UNIVERSAL HISTORY ARCHIVE/GETTY IMAGES
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फलस्तीन में यहूदी बस्तियों के दौरे पर आर्थर बालफोर

वो दो नवंबर, 1917 की तारीख़ थी. पहला विश्व युद्ध चल रहा था. ब्रिटेन ने पहली बार यहूदी लोगों के लिए ‘फलस्तीन में एक देश की स्थापना’ का समर्थन किया.

ये वो दौर था जब फलस्तीन के इलाके पर ब्रिटेन का नियंत्रण था. इसका मतलब ये भी था कि उस इलाके का प्रशासन ब्रितानी हुकूमत के हाथों में था.

एक ओर, बहुत से इसराइली बालफोर घोषणापत्र को आज के आधुनिक इसराइल के गठन की बुनियाद के तौर पर देखते हैं तो दूसरी तरफ़ अरब जगत में एक जमात इस दस्तावेज़ को उनके साथ किया गया धोखा मानते हैं.

ऐसा सोचने की उनके पास वजह भी है. आख़िरकार ऑटोमन साम्राज्य के ख़िलाफ़ ब्रितानी हुकूमत की जंग में अरबों ने अंग्रेज़ों का साथ जो दिया था.

बालफोर घोषणापत्र के बाद लगभग एक लाख यहूदी उस इलाके में पहुंचे थे.

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बालफोर घोषणापत्र क्या कहता है
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बालफोर घोषणापत्र

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तत्कालीन ब्रितानी विदेश मंत्री आर्थर बालफोर ने एक सीलबंद लिफाफे में ये घोषणापत्र बैरन लियोनेल वॉल्टर रॉथ्सचाइल्ड को भेजा. बैरन लियोनेल उस दौर में ब्रिटेन में बसे यहूदी समाज के बड़े नेता हुआ करते थे.

घोषणापत्र में लिखा था:

डियर लॉर्ड रॉथ्सचाइल्ड

ब्रिटेन के सम्राट की सरकार की तरफ़ से मुझे आपको ये बताने में अपार हर्ष हो रहा है कि यहूदी लोगों की आकांक्षाओं के समर्थन में ये बयान कैबिनेट के समक्ष पेश किया गया था और इसे मंज़ूरी मिल गई है.

“ब्रिटेन के सम्राट की सरकार यहूदी लोगों के लिए फलस्तीन में एक देश के गठन के पक्ष में है. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए जो कुछ भी किया जा सकता है, किया जाएगा. साथ ही इस बात का भी ध्यान रखा जाएगा कि ऐसा कुछ नहीं किया जाना चाहिए कि फलस्तीन में रह रहे ग़ैर यहूदी लोगों के धार्मिक और नागरिक अधिकारों या फिर किसी अन्य देश में रह रहे यहूदी लोगों को मिल रहे अधिकारों और उनकी राजनीतिक स्थिति पर कोई प्रतिकूल असर न पड़े.”

अगर आप इस घोषणापत्र की जानकारी ज़ायोनिस्ट फेडरेशन तक पहुंचा देते हैं तो मैं इसके लिए आपका आभारी रहूंगा.

आर्थर जेम्स बालफोर

5 जुलाई 2017
आर्थर जेम्स बालफोर कौन थे

आर्थर जेम्स बालफोर

बालफोर डिक्लेरेशन का नाम आर्थर जेम्स बालफोर के नाम से लिया गया था. वे तत्कालीन प्रधानमंत्री डेविड लॉयड जॉर्ज की कैबिनेट में विदेश मंत्री थे.

ब्रिटेन के अभिजात्य और कुलीन वर्ग से आने वाले आर्थर जेम्स बालफोर ने जैसे ही कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से पढ़ाई पूरी की, वे कंज़र्वेटिव पार्टी के प्रतिनिधि के रूप में संसद पहुंचे.

स्कॉटिश मूल के आर्थर जेम्स बालफोर साल 1902 से 1905 तक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री भी रहे थे.

उनका करियर का महत्वपूर्ण हिस्सा ब्रिटेन की विदेश नीति से जुड़ी योजनाओं को मूर्त रूप देने में बीता.

बालफोर इस बात के हिमायती थे कि ब्रितानी हुकूमत को यहूदियों का खुलकर समर्थन करना चाहिए. एक राजनीतिक विचार के रूप में ज़ायोनिज़्म का उद्भव 19वीं सदी के आख़िर में यूरोप में हुआ था.
इसराइल
इस विचार के समर्थक फलस्तीन के इलाके में यहूदियों के लिए एक देश का गठन चाहते थे. फलस्तीन के बारे में यहूदियों का मानना था कि ये प्राचीन इसराइल की भूमि है.

आर्थर जेम्स बालफोर को इस बात का श्रेय दिया जाता है कि उन्होंने वॉर कैबिनेट को इस घोषणापत्र के लिए मना लिया था.

इस काम के लिए बालफोर ने चैम वीज़मान और लियोनेल वॉल्टर रोथ्सचाइल्ड जैसे ब्रिटेन के प्रभावशाली यहूदी नेताओं का समर्थन भी हासिल कर लिया था.

कुछ लोगों का मानना है कि वो एक इसाई ज़ायोनिस्ट थे. इस मुद्दे पर उनकी दिलचस्पी ओल्ड टेस्टामेंट ऑफ़ बाइबल में वर्णित यहूदियों के इतिहास में उनकी रुचि की वजह से थी.

हालांकि कुछ ऐसे लोग भी हैं जो ये मानते हैं कि बालफोर इसराइल के प्रोजेक्ट को समर्थन देने में इसलिए दिलचस्पी रख रहे थे क्योंकि वो इसका राजनीतिक फायदा उठाना चाहते थे.

लियोनेल वॉल्टर रोथ्सचाइल्ड कौन थे
लियोनेल वॉल्टर रोथ्सचाइल्ड

लियोनेल वॉल्टर रोथ्सचाइल्ड को ये चिट्ठी लंदन में अपने घर पर मिली. बालफोर ने ये ऐतिहासिक चिट्ठी वॉल्टर के घर के पते पर ही भेजी थी.

वॉल्टर उस समय ब्रिटेन के एक ताक़तवर बैंकिंग कारोबारी परिवार के प्रमुख थे और ब्रिटेन में रहने वाले यहूदी समुदाय के बड़े नेता भी थे.

धनाढ्य रोथ्सचाइल्ड इंटरनेशनल बैंकिंग फैमिली फलस्तीन में यहूदी राष्ट्र के गठन के सबसे बड़े स्पॉन्सर्स में से एक थे.

इसी परिवार के एक सदस्य एडमंड रोथ्सचाइल्ड ने फलस्तीन में बड़े पैमाने पर ज़मीन खरीदी और 19वीं सदी के आख़िर में वहां यहूदी बस्तियों को बसाने के लिए बड़ी रकम का निवेश किया.

उस वक़्त रोथ्सचाइल्ड परिवार दुनिया के सबसे दौलतमंद कारोबारी घरानों में से एक था. ज़ायोनिज़्म के मुद्दे को लेकर इस परिवार ने जितना दान किया, उसकी रकम इतनी बड़ी थी कि एडमंड रोथ्सचाइल्ड को ‘द बेनीफेक्टर’ (दानी, परोपकारी) कहा जाने लगा था.

बालफोर घोषणापत्र की याद में जारी किया गया एक इसराइली पोस्टकार्ड

इस परिवार ने इसराइली राष्ट्र के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

रोथ्सचाइल्ड परिवार की अहमियत का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि 1917 में बालफोर घोषणापत्र की जानकारी वाली चिट्ठी लियोनेल वॉल्टर रोथ्सचाइल्ड को संबोधित की गई थी.

बहुत से लोग इस बात पर भी हैरत जताते हैं कि ये चिट्ठी लियोनेल वॉल्टर रोथ्सचाइल्ड को ही क्यों भेजी गई थी, स्टुअर्ट सैमुअल को क्यों नहीं भेजी गई थी.

स्टुअर्ट सैमुअल ब्रितानी यहूदियों के ‘बोर्ड ऑफ़ डेप्युटीज़’ के अध्यक्ष थे. ये संगठन ब्रिटेन में यहूदियों की नुमाइंदगी करने वाली आधिकारिक संस्था थी.

फलस्तीन में यहूदी बस्ती से बाहर निकलते यहूदी पुलिसकर्मी, साल 1938 की एक तस्वीर

लेकिन इसका एक और पहलू ये भी है कि उस वक़्त ब्रितानी यहूदियों के ‘बोर्ड ऑफ़ डेप्युटीज़’ में ज़ायोनिज़्म को लेकर विरोधी मत थे. एक पक्ष इसके समर्थन में था तो दूसरा पक्ष इसके विरोध में.

वॉल्टर रोथ्सचाइल्ड की स्थिति तटस्थ वाली थी. लेकिन इसके साथ ही वे चैम वीज़मान के साथ उस वक़्त ज़ायोनिस्ट समर्थक महत्वपूर्ण नेताओं में से एक थे.

रोथ्सचाइल्ड का आर्थर जेम्स बालफोर के साथ सीधे संपर्क था. इसलिए बालफोर ने ये फ़ैसला किया ये चिट्ठी वो रोथ्सचाइल्ड को भेजेंगे.

कहा तो ये भी जाता है कि रोथ्सचाइल्ड इस घोषणापत्र की ड्राफ्टिंग में निजी तौर पर शामिल थे लेकिन इस दावे के समर्थन में कोई तथ्य नहीं है.

इसके कुछ सालों बाद 1925 में रोथ्सचाइल्ड ब्रितानी यहूदियों के ‘बोर्ड ऑफ़ डेप्युटीज़’ के अध्यक्ष बन गए.

पत्र का क्या मकसद था?

चैम वीज़मान, आर्थर बालफोर, नाहुम सोकोलोव का नाम उन लोगों में लिया जाता है जिन्होंने यहूदियों के सपने का साथ दिया था

ब्रिटिश सरकार को उम्मीद थी कि ये घोषणा अमेरिका में रह रहे यहूदियों को विश्व युद्ध के दौरान एलाइड ताक़तों (मित्र राष्ट्रों के गठबंधन) के पक्ष में कर सकती है.

ब्रिटिश नेता और कुछ इतिहासकार कहते हैं कि यहूदी समुदाय के पास इतनी आर्थिक शक्ति थी कि वो पैसों की ताक़त से युद्ध में उनका साथ दे सकते थे.

कई एक्सपर्ट ये मानते हैं कि ब्रिटेन मध्य-पूर्व में युद्ध के बाद अपने पैर जमाए रखना चाहता था.

खत लिखने के पीछे जो भी मंशा रही हो, इसका वर्ष 1948 में इसराइल के गठन और सैकड़ों फ़लस्तीनियों के पलायन पर एक निश्चित असर तो था ही.

इसराइलियों के लिए बालफ़ोर घोषणा ने इसराइल की प्राचीन धरती पर एक राष्ट्र के सपने को पंख दे दिए थे. लेकिन फ़लस्तीनियों के लिए मुसीबत भरे दिनों की शुरुआत थी.

यरूशलम में यहूदी लोगों के ख़िलाफ़ फलस्तीनी लोगों का विरोध प्रदर्शन, तस्वीर साल 1937 से पहले की है

फ़लस्तीनी तो यहाँ तक कहते हैं कि उस डॉक्यूमेंट में उन्हें महज़ ग़ैर-यहूदी समुदाय बताया गया था.

पहले विश्व युद्ध में ऑटोमन साम्राज्य की हार के बाद बालफ़ोर घोषणा को एलाइड ताक़तों का साथ मिला और इसे लीग ऑफ़ नेशन्स ने भी अप्रूव किया. लीग ऑफ़ नेशन्स, संयुक्त राष्ट्र जैसी है एक संगठन हुआ करता था.

इसी अप्रूवल के ज़रिए ब्रिटेन को इस इलाक़े के प्रशासन का चार्ज मिल गया था.

1930 के दशक में स्थानीय अरब आबादी ने, क्षेत्र में यहूदी आबादी बढ़ने पर असंतोष जताना शुरू कर दिया था. दोनों समुदायों में लगातार हिंसा भी बढ़ रही थी.

विरोध प्रदर्शनों पर काबू पाने के लिए ब्रिटेन ने यहूदियों के अप्रवासन पर एक कोटा तय कर दिया. लेकिन दूसरे विश्व युद्ध के बाद यहूदी देश के गठन की मांग बढ़ने लगी. जर्मनी में हिटलर के राज में जो कुछ हुआ उसने इस मांग और बल दिया.

14 मई 1948 की आधी रात को ब्रिटिश मैंडेट फॉर पेलैस्टाइन ख़त्म हो गया और ब्रिटेन ने औपचारिक रूप से क्षेत्र से वापसी कर ली. उसी दिन इसराइल ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी.

इस धरती पर कभी फिलिस्तीन देश था ही नहीं

1-आज जो इसराइल और फिलिस्तीन है वह 1948 के पहले ब्रिटिश कॉलोनी थी कोई फिलिस्तीन देश नहीं था

2- ब्रिटिश कॉलोनी के पहले यह पूरा एरिया 600 साल तक ऑटोमन साम्राज्य का था कोई फिलिस्तीन देश नहीं था

3-ऑटोमन साम्राज्य के पहले यह पूरा एरिया इजिप्ट के सल्तनत का हिस्सा था कोई फिलिस्तीन देश नहीं था

4-इजिप्ट के सल्तनत के पहले यह पूरा एरिया अयूबीद डायनेस्टी का हिस्सा था कोई भी फिलिस्तीन देश नहीं था

5-अयुबिद डायनेस्टी के पहले यह पूरा एरिया जेरूसलम के ईसाई राज्य का हिस्सा था कोई भी फिलिस्तीन देश नहीं था

6- ईसाई राज के पहले यह पूरा एरिया फतिमिड राज्य का हिस्सा था तब भी कोई फिलिस्तीन देश नहीं था

7-फतिमिड राज्य के पहले यह पूरा एरिया बाइजेंटाइन राज्य का हिस्सा था तब भी कोई फिलिस्तीन देश नहीं था

8-बाइजेंटाइन राज्य के पहले यह पूरा एरिया रोमन साम्राज्य का हिस्सा था तब भी कोई फिलिस्तीन देश नहीं था

9-रोमन साम्राज्य के पहले यह पूरा एरिया हासमोनियन राज्य का हिस्सा था तब भी कोई फिलिस्तीन देश नहीं था

10- हासमोनियन राज्य के पहले यह पूरा एरिया सेलुसिड राज्य का हिस्सा था तब भी कोई फिलिस्तीन देश नहीं था

11- सेलूसीड राज्य के पहले यह पूरा एरिया अलेक्जेंडर द थर्ड मकदूनिया राज्य का हिस्सा था तब भी कोई फिलिस्तीन देश नहीं था

12– अलेक्जेंडर द थर्ड माकदुनिया राज्य के पहले यह पूरा एरिया पर्शियन राज्य का हिस्सा था तब भी कोई फिलिस्तीन देश नहीं था

13–पर्शियन राज्य के पहले यह पूरा एरिया बेबीलॉन राज्य का हिस्सा था तब भी कोई फिलिस्तीन देश नहीं था

14–बेबीलोन राज्य के पहले यह पूरा एरिया kingdoms of Israel and Judea, राज्य का हिस्सा था तब भी कोई फिलिस्तीन देश नहीं था

15–kingdoms of Israel and Judea कि पहले यह पूरा एरिया इसराइल राज्य का हिस्सा था तब अभी कोई फिलिस्तीन नहीं था

16) Before the kingdom of Israel there was the theocracy of the 12 tribes of Israel, Not a Palestinian state .

17) Before the theocracy of the 12 tribes of Israel there was the individual state of Canaan, Not a Palestinian state .

In fact in this corner of the earth there was everything but a Palestinian state!

सच्चाई यही है इस धरती पर कभी कोई फिलिस्तीन नामक देश था ही नहीं यह अवैध घुस बैठिए हैं इन्होंने जबरदस्ती कब्जा किया है यह अरबी हैं और मध्य पूर्व का 99% एरिया और अफ्रीका का 20% एरिया पहले ही अरबो को दे दिया गया है एक प्रतिशत से भी कम हिस्से में इसराइल है

फिर भी इन्हें संतोष नहीं है

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