जयंती:जिन्हे अपनी फांसी के समय साथी बलिदानियों की कम उम्र का ग़म था

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बच्चों में मानवीय मूल्यों के विकास, समाज-सुधार तथा राष्ट्रवादी जन-चेतना के लिए समर्पित *मातृभूमि सेवा संस्था* आज देश के स्वतन्त्रता सेनानियों, क्रांतिकारियों एवं ज्ञात-अज्ञात राष्ट्रभक्तों को उनके जयंती, पुण्यतिथि व बलिदान दिवस पर कोटिश: नमन करती है।🙏🙏

🇮🇳 मातृभूमि सेवा संस्था आज देश की आज़ादी में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले राष्ट्रभक्त तरुण राम फुकन जी तथा अजीजन बाई जी की जयंती पर एवम पी एस खंखोजे जी, शंकर दयाल श्रीवास्तव जी तथा महान क्रांतिकारी अमलेंदु घोष जी की पुण्यतिथि पर कोटि कोटि नमन करती है। 🙏🙏🌷🌷🌷🌷🌷

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🔥 *अमर बलिदानी ठाकुर रोशन सिंह * 🔥
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✍ राष्ट्रभक्त साथियों, मातृभूमि सेवा संस्था आज अमर बलिदानियों की नगरी शाहजहाँपुर (शहीदगढ़), उत्तर प्रदेश के क्रांतिवीर ठाकुर रोशन सिंह की 130वीं जयंती पर उन्हें कोटिश: नमन करती है तथा इनके जीवन पर प्रकाश डालने का प्रयास करती है। साथियों यह मेरा और मेरे बच्चों का परम सौभाग्य है की हम सन् 2013 में इस महान बलिदानी के घर गए एवं परिवार से मिले था। शाहजहाँपुर से लगभग 50/60 किलोमीटर दूर नवादा गाँव में 22 जनवरी, 1892 को माता कौशल्या देवी एवं पिता ठाकुर जंगी सिंह के घर जन्मे ठाकुर रोशन सिंह पाँच भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। इनका पूरा परिवार आर्य समाजी विचारधारा से ओतप्रोत था। असहयोग आन्दोलन में उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर और बरेली जिले के ग्रामीण क्षेत्र में आपने अद्भुत योगदान दिया था। यही नहीं, बरेली में हुए गोली-काण्ड में एक पुलिस वाले की रायफल छीनकर जबर्दस्त फायरिंग शुरू कर दी थी जिसके कारण हमलावर पुलिस को उल्टे पाँव भागना पडा। मुकदमा चला और ठाकुर रोशन सिंह को सेण्ट्रल जेल बरेली में दो साल सश्रम कैद (Rigorous Imprisonment) की सजा़ काटनी पडी़ थी।

📝बरेली गोली-काण्ड में सज़ा काट रहे रोशन सिंह की भेंट सेण्ट्रल जेल बरेली में कानपुर निवासी पंडित रामदुलारे त्रिवेदी से हुई जो उन दिनों पीलीभीत में शुरू किये गये असहयोग आन्दोलन के फलस्वरूप 06 महीने की सजा़ भुगतने बरेली सेण्ट्रल जेल में रखे गये थे। गान्धी जी द्वारा सन् 1922 में हुए चौरी चौरा काण्ड के विरोधस्वरूप असहयोग आन्दोलन वापस ले लिये जाने पर पूरे हिन्दुस्तान में जो प्रतिक्रिया हुई उसके कारण ठाकुर साहब ने भी राजेन्द्रनाथ लाहिडी़, रामदुलारे त्रिवेदी व सुरेशचन्द्र भट्टाचार्य आदि के साथ शाहजहाँपुर शहर के आर्य समाज पहुँचकर रामप्रसाद बिस्मिल से गम्भीर मन्त्रणा की जिसमें राष्ट्रीय स्तर पर अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित कोई बहुत बडी़ क्रान्तिकारी पार्टी बनाने की रणनीति तय हुई। इसी रणनीति में ठाकुर रोशन सिंह को दल में शामिल किया गया था। ठाकुर साहब पक्के निशानेबाज (Clay Pigeon Shooting Expert) थे। सन् 1922 की गया कांग्रेस में पार्टी के दो अलग सोच हो गए और श्री मोतीलाल नेहरू एवं श्री देशबन्धु चितरंजन दास ने अपनी अलग स्वराज पार्टी बना ली। ये सभी लोग पैसे वाले थे जबकि क्रान्तिकारी पार्टी के पास संविधान,विचार-धारा व दृष्टि के साथ-साथ उत्साही नवयुवकों का बहुत बडा़ संगठन था। हाँ, अगर कोई कमी थी तो वह कमी पैसे की थी। इस कमी को दूर करने को आयरलैण्ड के क्रान्तिकारियों का रास्ता अपनाया गया और वह रास्ता था डकैती का। इस कार्य को पार्टी की ओर से ऐक्शन ( *ACTION* ) नाम दिया गया।

📝 *ACTION* के नाम पर पहली डकैती पीलीभीत जिले के एक गाँव बमरौली में 25 दिसम्बर 1924 को क्रिस्मस के दिन एक खण्डसारी (शक्कर के निर्माता) व सूदखोर (ब्याज पर रुपये उधार देने वाले) बल्देव प्रसाद के यहाँ डाली गयी। इस पहली डकैती में 4,000 रुपये और कुछ सोने-चाँदी के जे़वरात क्रान्तिकारियों के हाथ लगे। परन्तु मोहनलाल पहलवान नाम का एक आदमी,जिसने डकैतों को ललकारा था, ठाकुर रोशन सिंह की रायफल से निकली एक ही गोली में ढेर हो गया। सिर्फ मोहनलाल की मौत ही ठाकुर रोशन सिंह की फाँसी की सजा़ का कारण बनी। 09 अगस्त 1925 को काकोरी स्टेशन के पास जो सरकारी खजा़ना लूटा गया था उसमें ठाकुर रोशन सिंह शामिल नहीं थे,यह हकीकत है किन्तु इन्हीं की आयु (36 वर्ष) के श्री केशव चक्रवर्ती (छद्म नाम),जरूर शामिल थे जो बंगाल की अनुशीलन समिति के सदस्य थे,फिर भी पकडे़ रोशन सिंह गये। चूंकि रोशन सिंह बमरौली डकैती में शामिल थे ही और इनके खिलाफ सारे साक्ष्य भी मिल गये थे अत: पुलिस ने सारी शक्ति ठाकुर रोशन सिंह को फाँसी की सजा़ दिलवाने में ही लगा दी और केशव चक्रवर्ती को खो़जने का कोई प्रयास ही नहीं किया। सी०आई०डी० (CID) के कप्तान खानबहादुर तसद्दुक हुसैन श्री राम प्रसाद बिस्मिल पर बार-बार यह दबाव डालते रहे कि बिस्मिल किसी भी तरह अपने दल का सम्बन्ध बंगाल के अनुशीलन दल या रूस की बोल्शेविक पार्टी से बता दें परन्तु बिस्मिल टस से मस न हुए।

📝आखिरकार रोशन सिंह को दफा 120 (बी) और 121(ए) में 5-5 वर्ष की सश्रम कैद और 396 के अन्तर्गत सजाये-मौत अर्थात् फाँसी की सजा दी गयी। इस फैसले के खिलाफ जैसे अन्य सभी ने उच्च न्यायालय, वायसराय व सम्राट के यहाँ अपील की थी वैसे ही रोशन सिंह ने भी अपील की; परन्तु नतीजा वही निकला- ढाक के तीन पात। ठाकुर साहब ने 06 दिसम्बर 1927 को इलाहाबाद स्थित मलाका (नैनी) जेल की काल-कोठरी से अपने एक मित्र को पत्र में लिखा था:

“इस सप्ताह के भीतर ही फाँसी होगी। ईश्वर से प्रार्थना है कि वह आपको मोहब्बत (प्रेम) का बदला दे। आप मेरे लिये रंज (खेद) हरगिज (बिल्कुल) न करें। मेरी मौत खुशी का बाइस (कारण) होगी। दुनिया में पैदा होकर मरना जरूर है। दुनिया में बदफैली (पाप) करके अपने को बदनाम न करे और मरते वक्त ईश्वर की याद रहे; यही दो बातें होनी चाहिये और ईश्वर की कृपा से मेरे साथ ये दोनों बातें हैं। इसलिये मेरी मौत किसी प्रकार अफसोस के लायक नहीं है। दो साल से बाल-बच्चों से अलग रहा हूँ। इस बीच ईश्वर भजन का खूब मौका मिला। इससे मेरा मोह छूट गया और कोई वासना बाकी न रही। मेरा पूरा विश्वास है कि दुनिया की कष्ट भरी यात्रा समाप्त करके मैं अब आराम की जिन्दगी जीने के लिये जा रहा हूँ। हमारे शास्त्रों में लिखा है कि जो आदमी धर्म युद्ध में प्राण देता है उसकी वही गति होती है जो जंगल में रहकर तपस्या करने वाले ऋषि मुनियों की।” पत्र समाप्त करने के पश्चात उसके अन्त में ठाकुर रोशन सिंह ने अपना यह शेर भी लिखा था:

*जिन्दगी जिंदादिली को जान ऐ रोशन!*
*वरना कितने ही यहाँ रोज फना होते हैं।*
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ठाकुर रोशन सिंह को फांसी के समय सिर्फ यही मलाल था कि उन्होंने तो भरपूर जीवन जी लिया लेकिन उनके साथी बलिदानियों ने अभी जिंदगी के बारे रंग भी नहीं देखे।
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✍️ राकेश कुमार
🇮🇳 *मातृभूमि सेवा संस्था 9891960477* 🇮🇳

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