तीरथ तो रिप्ड जींस से आगे बढ़ गये और आप?

लड़कियों की फटी जींस से कौन डर रहा है जिसके लिए एक मुख्यमंत्री इतने फिक्रमंद हैं!

चंदन श्रीवास्तव

ढिशुम..ढिशुम..धूम..धूम…ढिंग्चाक.. ! सिने-पर्दे पर सुपरस्टार की एंट्री इसी तरह होती है। उसका एक मुक्का चलता है, चार जन चित्त, आठ की टांग टूटती है..चौबीस अपनी चोट सहलाते हैं ! राजनीति के रंगमंच पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रुप में तीरथ सिंह रावत की एंट्री भी कुछ ऐसे ही सुपरस्टाराना अंदाज में हुई है, एकदम से आ गये और छा गये वाले स्टाइल में !

क्या आप अभी उनके फटी जीन्स की कहानी बयान करते वीडियो पर अटके हैं? ट्वीटर और फेसबुक पर झुंड के झुंड उड़ते-गिरते पोस्टस पढ़कर क्या आप उनके बयान में महिला-विरोधी मानसिकता ढूंढ़कर अफसोस कर रहे हैं कि कैसा जमाना आ गया, किस मन-मिजाज के लोग मुख्यमंत्री के आसन पर बैठाये जा रहे हैं और क्या-क्या बोल रहे हैं ?

अगर ऐसा है तो फिर तय जानिए कि आप उन लोगों में हैं जिन्हें सुपरस्टार की ढिशूम-ढिशूम के बाद अपनी चोट सहलाते हैं, उन लोगों में से नहीं जो सुपरस्टार के ऐसे करतब के बाद ताली पीटते हैं, जोर-जोर से चिल्लाते हैं कि मार, और मार, दे घुमाके दो हाथ कनपट्टी पर !

पर्दे पर सुपरस्टार की एंट्री के बाद विकल्प दो ही बचते हैं-या तो आपको चोट सहलानी होती है या फिर ताली बजानी होती है। इस बात को तीरथ सिंह रावत से बेहतर आखिर कौन जानता होगा, आखिर वे जर्नलिज्म की पढ़ाई में डिप्लोमा होल्डर हैं और आज की पत्रकारिता -दुल्हन वही जो पिया मन भाये- के तर्ज पर आपको सिखाती है वीडियो वही जो सबको नजर आये !

बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा!

आपको कुछ ऐसा करना होता है कि आपका वीडियो बने और ट्वीटर पर टंगे, वीडियो टंगने के बाद चाहे हिन्दुस्तान का वीडियो-देखवा समाज अपनी श्रद्धा-भक्ति के हिसाब से चरण चूमे और कमेंटस् के बॉक्स में स्तुतियां लिखे या फिर या टांग खिंचाई करे और हजार लानतें भेजते हुए आपका वीडियो अपने दोस्तो-मेहरबानों में शेयर करे, आपको इसकी कोई फिक्र नहीं करनी होती। आप जानते हैं, आपका काम हो चुका है। आज का चलन है-Any publicity is good publicity!

अच्छी-बुरी कैसी भी हो,पब्लिसिटी आखिरी पब्लिसिटी होती है। वही आपका नाम पब्लिक में ले जाती है। नाम के पब्लिक में जाने पर ही तय होता है कि दरअसल एक अदद आप भी हैं इस दुनिया में। नाम पब्लिक के जेहन में दर्ज हो गया तो फिर उनमें से बहुतेरे पूछना शुरु करते हैं कि इस नाम का आदमी दरअसल करता क्या है,क्या बेचता और क्या परोसता है ?

लोगों के मन में जागी इसी उत्सुकता से बाजार में आपके बनाये सेवा और सामान की बिक्री की गुंजाइश बनती है। पब्लिक में आपका नाम जितना फैलेगा, आपके सेवा-सामानों की बिक्री की यह गुंजाइश भी उतनी ही फैलेगी।

अगर आपको इस बात पर यकीन नहीं आ रहा तो बेहतर है कि आपको स्टैनफोर्ड ग्रेजुएट स्कूल ऑफ बिजनेस के एक रिसर्च पेपर की याद दिलवायी जाये। वैसे यह रिसर्च पेपर अब दस साल पुराना हुआ लेकिन रिसर्च पेपर में यही बात कही गई थी कि निगेटिव पब्लिसिटी के भी पॉजिटिव इफेक्टस् होते हैं।

रिसर्च पेपर का शीर्षक ही था-पॉजिटिव इफेक्टस् ऑव निगेटिव पब्लिसिटी: ह्वेन निगेटिव रिव्यूज इन्क्रिजेज सेल्स!

दाग अच्छे हैं कि टेक पर कहें तो रिसर्च पेपर में निगेटिव पब्लिसिटी के मंगलकारी होने की गुत्थी को समझाते हुए कहा गया कि ज्यादातर कंपनियां हमेशा दो में से किसी एक मुश्किल से जूझ रही होती हैं।

एक तो उन्हें ये सोचना होता है कि क्या करें जो लोग उनके प्रॉडक्ट के अच्छा मान लें या फिर उन्हें ये सोचना होता है कि लोगों के जेहन में कम से कम उनके प्रॉडक्ट का नाम तो दर्ज हो।अगर किसी बाजार में एक ही काम को अंजाम देने के लिए एक से ज्यादा प्रॉडक्ट हैं तो फिर ऐसे प्रॉडक्ट बनाने वाली कंपनियों को लोगों के जेहन में नाम दर्ज कराने की इसी दूसरी मुश्किल का सामना करना होता है।

ऐसे में प्रॉडक्ट को चाहे गुड पब्लिसिटी मिलती हो या बैड, लोगों के जेहन में कम से कम नये आये उत्पाद का नाम दर्ज होता है।

रिसर्च पेपर में इस बात को समझाने के लिए उदाहरण दिया गया था कि जाने-माने लेखकों की नयी किताबों को अच्छा साबित करने वाली समीक्षाएं छपीं तो उनकी बिक्री में 32 से 52 प्रतिशत का इजाफा हुआ और इन्हीं जाने-माने लेखकों की नयी किताबों को बुरा साबित करने वाली समीक्षाएं छपीं तो बिक्री में 15 प्रतिशत की कमी आयी।

लेकिन, इसके साथ एक बात और भी हुई और ऊपर बताये गये रुझान से एकदम उलट हुई। जो लेखक एक हद तक नये थे, जिनका नाम पाठक-समुदाय बहुत कम या ना के बराबर जानता था, उनकी किताबों को घटिया साबित करने वाली समीक्षाएं छपीं तो ऐसे लेखकों की किताबों की बिक्री में 45 प्रतिशत बढ़ गई।

तीरथ सिंह रावत और नाम दर्ज करवाने की मुश्किल

तीरथ सिंह रावत उत्तराखंड की राजनीति में अपेक्षाकृत नये हैं। उनकी तरफ खड़े होकर ये गिनवाया जा सकते हैं कि एकदम नये-नवेले भी नहीं हैं वे, 2013 से 2015 तक सूबे की बीजेपी के अध्यक्ष रह चुके हैं और 2012 से 2017 तक विधायकी का जिम्मा संभाल चुके हैं। और लोकसभा सांसद से तो मुख्यमंत्री बने ही हैं।

राजनीति के बाजार में नाम का सिक्का चलाने के उनके अनुभव की इस सूची को लंबा करना हो इसमें ये भी जोड़ लीजिए कि उन्होंने कभी पार्टी की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय सचिव होने की जिम्मेदारी निभायी और कभी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक की भूमिका में रहे।

लेकिन राजनीति के बाजार में इतने भर अनुभव की कुछ खास पूछ नहीं, बशर्ते आप उन नामों पर गौर करें जिन्हें पीछे छोड़ते हुए वे मुख्यमंत्री बने, जैसे केंद्रीय मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक और सूबे की सरकार में मंत्री डॉ धन सिंह रावत।

इन नामों की फेहरिश्त लंबी करते हुए अगर वैसे नामों को जोड़ दें जिन्हें उत्तराखंड की राजनीति में भाजपा का प्रमुख चेहरा माना गया, जैसे भुवनचंद्र खंडूरी, भगत सिंह कोश्यारी (अभी महाराष्ट्र के राज्यपाल), विजय बहुगुणा और प्रकाश पंत तो फिर कहा जा सकता है कि ऐसे नामी व्यक्तित्व की तुलना में तीरथ सिंह रावत का राजनीतिक अनुभव और नाम कुछ खास दमदार ना माना जायेगा।

नाम को दमदार बनाना होगा, उसमें इतना दम भरना होगा कि लोगों को यकीन हो जाये कि ये नेता सचमुच मुख्यमंत्री बनने के काबिल है। तीरथ सिंह रावत का “फटी जीन्स” की कहानी बयान करता वीडियो उनके नाम को दमदार बनाने की तरफ उठा हुआ कदम है।

ट्वीटर और फेसबुक पर चाहे महिला-विरोधी बताकर उनकी जितनी आलोचना हो रही हो, लोगों के बीच एक संदेश और भी चला गया है, संदेश यह कि ये नेता लीड ले सकता है, किसी बात से डरता नहीं, बेधड़क होकर अपने मन की बात कहता है। लोग अब ये भी सोच सकते हैं कि राजनीति में फैसले लेने के लिए किसी नेता में ऐसे ही बेधड़क साहस का होना जरुरी है।

और, क्या आपको लगता नहीं कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रुप में लोगों के मन में यही बात बैठाना तीरथ सिंह रावत सरीखे अपेक्षाकृत कम अनुभवी नेता के लिए पहली जरुरत है ?

यकीन कीजिए, तीरथ सिंह रावत लोगों के जेहन में अपना नाम दर्ज करवाने के मिशन पर हैं और अगर आप फटी जीन्स की कहानी बयान करते वीडियो पर अटके हैं तो आप बहुत भोले हैं। तीरथ सिंह रावत तो उस कहानी को छोड़कर कब का आगे बढ़ चुके।

अब उनका नाम दर्ज कराता एक और वीडियो सोशल मीडिया पर चढ़कर धमाल मचा रहा है। इसमें वे अपने कॉलेज के दिनों को याद करते हैं,फिर उन दिनों की एक कॉलेज स्टुडेन्ट को याद करते हैं और फरमाते है कि “उस वक्त एक लड़की चंडीगढ़ से कॉलेज में पढ़ने आई थी जो हाफ कट ड्रेस पहनती थी और लड़के उसके पीछे पड़ गए थे। तब रावतजी ने कहा कि, “यूनिवर्सिटी में पढ़ने आई हो और अपना बदन दिखा रही हो, क्या होगा इस देश का।”

ये वीडियो भी सोशल मीडिया पर वैसे ही फैल रहा है जैसे पेट्रोल छिड़की सड़क पर आग फैलती है। रावत जी का नाम फैलती हुई उसी आग की तरह लोगों के जेहन में दर्ज होता जा रहा है।

क्या होगा इस देश का

क्या होगा इस देश का ? यह कमाल का वाक्य है, बिल्कुल अंधे कुएं की तरह। इसके भीतर कोई भी चिन्ता डाली जा सकती है। जो चिन्ता इस अंधकूप के अन्दर गई, वह चाहे जैसी भी हुई, कभी वापस लौटकर नहीं आती, हमेशा-हमेशा के लिए पवित्र-पावन हो जाती है।

लड़कियों के फटी जीन्स की चिन्ता भी ऐसी ही है। आपको बस ऐसी चिन्ता करते हुए ये जताना होता है कि आप अपने पुरुष होने के कच्चेपन से परेशान नहीं बल्कि देश की चिन्ता में हलकान हो रहे हैं।

ऐसे में लड़की पर अपनी आंखों की दोनाली से बंदूक तानते हुए अब आप एकदम बेखौफ हो सकते हैं। दरअसल, आप लड़की की देह को कहां भेद रहे हैं, उसे ये अहसास कहां दिला रहे हैं कि वह एक देहमात्र है, एक ऐसी देह जिसमें वह जान-प्राण ही नहीं जो अपने अच्छे-बुरे के बारे में सोच सके, दरअसल फटी जीन्स की निहार-लीला में व्यस्त आप तो देश की चिन्ता कर रहे हैं !

माननीय मुख्यमंत्री का फटी जीन्स की कहानी बयां करता जो वीडियो एएनआई ने ट्वीटर पर डाला है, उसपर आयी टिप्पणियों पर गौर कीजिए। उसमें लड़कियों की फटी जीन्स पर आयी मुख्यमंत्री की चिन्ता को जायज ठहराते हुए पंडित स्वामी नाम के एक सज्जन देश की चिन्ता में दुबले होते हुए लिखते हैः हम मुख्यमंत्री जी के संदेश से क्यों भागना चाहते हैं।हमें सनातनी संस्कृति के रुट्स में लौटना है।

यह रुट है परिवार, एकजुट परिवार। पारिवारिक व्यवस्था जो हिन्दू धर्म का स्तंभ है, उसे तोड़ने की साजिश चल रही है। सिंगल मदर्स फेमिनिज्म। पानी में एक बार पांव उखड़े तो डूबना तय है!

यह होती है देश की चिन्ता! इस चिन्ता के केंद्र में है परिवार, एकजुट परिवार और इस परिवार के मेह के रुप में घर की चारदीवारी में बंद एक ऐसी स्त्री जो दिन रात पालने झुलाती, लोरी गाती, खाना पकाती, बर्तन मांजती लगातार इस चिन्ता में होती है कि माथे से कहीं आंचल खिसका तो नहीं। इसी स्त्री की काट में एक और स्त्री भी है।

वह खाना बना लेती है लेकिन जरुरत समझकर अपने और अपने परिवार-जन के लिए खरीदकर खाना मंगा सकती है। वह मन होने पर यों तो अपने खरीदे हुए घर के कमरे में भी छुट्टियां गुजार सकती है लेकिन दफ्तर से फरमान मिलने पर हवाई जहाज का टिकट कटाकर मिनटों में कहीं के लिए उड़न-छू हो सकती है।

वह चाहे तो बच्चे पाल और संभाल सकती है और चाहे तो बच्चे जनने की अपनी क्षमता का इस्तेमाल नहीं भी कर सकती है।

अपने जीवन के अधिकतर फैसलों पर अपना नियंत्रण स्थापित करती यह जो दूसरी स्त्री है, भारत के मर्द-मानुष उसे अभी तक जान-पहचान नहीं पाये हैं। ऐसी स्त्री से उन्हें डर लगता है। वे इस स्त्री के आतंक में जीते हैं और उस पर कभी संकेतों में तो कभी सीधे-सीधे ही हमला बोल देते हैं।

इरादा पांव में एक ना एक तरह से बेड़ी पहनाने का होता है। मुख्यमंत्री जी भारतीय पुरुषों के मन में समाये इस डर को समझते हैं, उन्हें लगता है कि इस डर से भारतीय पुरुषों को छुटकारा दिलाया जाये तो उनका बड़ा नाम होगा। मुख्यमंत्री का फटी जीन्स की कहानी बयान करता वीडियो हिन्दुस्तानी मर्दों को लेकर उपजी उनकी इसी नेकनीयती की देन है !

(लेखक सामाजिक सांस्कृतिक स्कॉलर हैं)

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