पुण्य स्मृति: तानाजी मालसुरे, बलिदान पर शिवाजी ने कहा,-सिंह गया, सिंहगढ़ आया

……………………………………………………………
बच्चों में मानवीय मूल्यों के विकास, समाज-सुधार तथा राष्ट्रवादी जन-चेतना के लिए समर्पित *मातृभूमि सेवा संस्था* आज देश के स्वतन्त्रता सेनानियों, क्रांतिकारियों एवं ज्ञात-अज्ञात राष्ट्रभक्तों को उनके जयंती, पुण्यतिथि व बलिदान दिवस पर कोटिश: नमन करती है।🙏🙏

…………………………………………………………..
🔥🔥🔥 *तानाजी मालुसरे * 🔥🔥🔥
……………………………………………………………

📝राष्ट्रभक्त साथियों, आज हम जिस महान योद्धा के जीवन पर प्रकाश डालने का प्रयास करेंगे, उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ मराठा साम्राज्य की स्थापना के लिए अद्भुत व अद्वितीय योगदान देकर अपना नाम गौरवमयी भारतीय इतिहास में स्वर्णाक्षरों से अंकित कराया है। राष्ट्रभक्त साथियों, मैं बात कर रहा हूँ 04.02.1670 को प्रचंड युद्ध उपरांत किला कोंढाना (सिंहगढ़) पर विजय प्राप्त करने वाले महान योद्धा तानाजी मालुसरे  की जिनका जन्म सन् 1826 में महाराष्ट्र के कोंकण प्रान्त में महाड के पास ‘उमरथे’ में हुआ था। वे बचपन से छत्रपति शिवाजी महाराज के साथी थे। तानाजी मालुसरे और छत्रपति शिवाजी महाराज एक-दूसरे को बहुत अच्छे से जानते थे। वे छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ हर लड़ाई में शामिल होते थे। ऐसे ही एक बार छत्रपति शिवाजी महाराज की माताजी जीजाबाई लाल महल से कोंढाना किले की ओर देख रहीं थीं। तब शिवाजी महाराज ने उनके मन की बात पूछी तो माता जीजाबाई ने कहा कि इस किले पर लगा हरा झण्डा हमारे मन को उद्विग्न कर रहा है।

📝 उसके दूसरे दिन शिवाजी महाराज ने अपनी राजसभा में सभी सैनिकों को बुलाया और पूछा कि कोंढाना किला जीतने के लिए कौन जायेगा ? किसी भी अन्य सरदार और किलेदार को यह कार्य कर पाने का साहस नहीं हुआ किंतु तानाजी मालुसरे  ने चुनौती स्वीकार की और बोले, “मैं जीतकर लाऊंगा कोंढाना किला”। तानाजी मालुसरे के साथ उनके भाई सूर्याजी मालुसरे और मामा ( शेलार मामा) थे। वह पूरे 342 सैनिकों के साथ निकले थे। तानाजी मालुसरे शरीर से हट्टे-कट्टे और शक्तिशाली थे। कोंढाना का किला रणनीतिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण स्थान पर स्थित था और छत्रपति शिवाजी महाराज को इसे कब्जा करना बहुत महत्वपूर्ण था। कोंढाना तक पहुँचने पर, तानाजी और 342 सैनिकों की उनकी टुकड़ी ने पश्चिमी भाग से किले को एक घनी अंधेरी रात को घोरपड़ नामक एक सरीसृप की मदद से खड़ी चट्टान को मापने का फैसला किया। घोरपड़ को किसी भी ऊर्ध्व सतह पर खड़ी कर सकते हैं और कई पुरुषों का भार इसके साथ बंधी रस्सी ले सकती है। इसी योजना से तानाजी मालुसरे  और उनके बहुत से साथी चुपचाप किले पर चढ़ गए। कोंढाना का कल्याण दरवाजा खोलने के बाद मुग़लों पर हमला किया।

📝 कोंढाना जिला, उदयभान राठौड़ द्वारा नियंत्रित किया जाता था, जो राजकुमार जय सिंह-1 द्वारा नियुक्त किया गया था। उदय भान राठौड़ के नेतृत्व में 5,000 मुगल सैनिकों के साथ तानाजी मालुसरे  का प्रचंड युद्ध हुआ। तानाजी मालुसरे और इनके 342 सैनिक 5,000 मुग़ल सैनिकों के साथ अद्भुत साहस एवं वीरता से लड़े एवं विजय प्राप्त किए। इस किले को अन्ततः जीत लिया गया, लेकिन इस लड़ाई में, तानाजी मालुसरे  गंभीर रूप से घायल हो गए थे और युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। जब छत्रपती शिवाजी महाराज को यह दुःखद वार्ता मिली तो वे अत्यंत दुखी एवं आहत हुए एवं बोले, “हमने गढ़ तो जीत लिया, लेकिन मैने अपना सिंह खो दिया।

🌷🌷 *मातृभूमि सेवा संस्था निडर, निर्भीक एवं प्रतापी योद्धा तानाजी मालुसरे  के आज 351वें बलिदान दिवस पर नतमस्तक है।* 🙏🙏🌷🌷

👉 लेख में त्रुटि हो तो अवश्य मार्गदर्शन करें।

✍️ राकेश कुमार
🇮🇳 *मातृभूमि सेवा संस्था 9891960477* 🇮🇳

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *