दावा: शाकाहारी मांसाहारियों से ज्यादा मानसिक समस्याओं के शिकार?

शाकाहारी लोग, मांसाहारी लोगों की अपेक्षा मनोवैज्ञानिक समस्याओं के शिकार ज्यादा होते हैं: स्टडी
अगर आप भी कंफ्यूज हैं कि शाकाहारी डाइट बेहतर है या मांसाहारी डाइट और कौन कैसे आपके मस्तिष्क को प्रभावित करती है, तो पढ़ें ये लेख।

लेखक -अनुराग अनुभव

शाकाहारी लोग, मांसाहारी लोगों की अपेक्षा मनोवैज्ञानिक समस्याओं के शिकार ज्यादा होते हैं: स्टडी

शाकाहार ज्यादा बेहतर है या मांसाहार? ये एक ऐसा विवाद है, जो सदियों से चला आ रहा है। शाकाहारी लोग अपने पक्ष में तर्क देते हैं, तो मांसाहारी लोग अपने पक्ष में कई तरह के तर्क देते हैं। लगातार होने वाली स्टडीज भी दोनों ही पक्षों के बारे में कुछ न कुछ अच्छा-खराब बताती रहती हैं। हाल में हुए एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने ये पाया है कि शाकाहारी लोग मांसाहारी लोगों की अपेक्षा मनोवैज्ञानिक समस्याओं के शिकार ज्यादा होते हैं। इस अध्ययन को Critical Reviews in Food Science and Nutrition नाम के जर्नल में छापा गया है।

शाकाहारी लोग मानसिक समस्याओं के ज्यादा शिकार

अध्ययन में बताया गया है कि जो लोग मांस का सेवन नहीं करते हैं, उन्हें साइकोलॉजिकल डिसऑर्डर जैसे- डिप्रेशन, एंग्जायटी और अपने आप को नुकसान पहुंचाने की प्रवृत्ति ज्यादा होती है। हालांकि शाकाहारी भी कई तरह के होते हैं, इसलिए इस अध्ययन को मुख्यतः मांसाहारी भोजन का मस्तिष्क पर प्रभाव पर केंद्रित किया गया था।
इस अध्ययन में एशिया, अमेरिका, यूरोप आदि जगहों के 149,559 मांसाहारियों को शामिल किया गया और 8,584 शाकाहारियों को शामिल किया गया। पूरे अध्ययन के बाद वैज्ञानिकों ने यही निष्कर्ष निकाला कि जो लोग मांस, मछली या अन्य मांसाहारी भोजन करते हैं, वो डिप्रेशन, एंग्जायटी का शिकार कम होते हैं, जबकि सिर्फ शाकाहार अपनाने वाले लोग इन समस्याओं का शिकार ज्यादा होते हैं।

व्यवहार और विचार भी असर डालता है भोजन

University of Southern Indiana के असिस्टेंट प्रोफेसर और स्टडी की लेखिका Urska Dobersek कहती हैं कि व्यक्ति का शाकाहारी या मांसाहारी होना आमतौर पर उसके सोशल क्लास पर निर्भर करता है। उन्होंने यह भी कहा कि हम जो कुछ खाते हैं, उसका असर हमारे स्वास्थ्य पर कई तरह से पड़ता है। शरीर को मिलने वाले फायदों के बारे में तो लोग बात कर लेते हैं मगर ये हमारे सामाजिक व्यवहार और मनोविज्ञान को भी प्रभावित करता है।

उन्होंने बताया कि उनकी टीम अध्ययन के बाद हैरान थी कि मीट खाने का मस्तिष्क पर इतना सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। लेकिन उन्होंने यह स्पष्ट किया कि ये अध्ययन किसी भी शाकाहारी को मीट खाने के लिए प्रेरित करने के लिए नहीं है। मनोवैज्ञानिक रूप से फिट रहने के और भी तरीके हैं, जिन्हें शाकाहारी लोग अपना सकते हैं।

शाकाहार बेस्ट है या मांसाहार?

संभव है कि इस स्टडी को पढ़ने के बाद आप भी कंफ्यूज हो गए हों। लेकिन ये निर्णय करना बहुत पेचीदा है कि आपको शाकाहारी रहना चाहिए या मांसाहारी हो जाना चाहिए। दरअसल इसके पहले हुए कुछ अध्ययन यह बताते हैं कि शाकाहारी लोगों को मूड स्विंग्स कम होते हैं। इसका अर्थ यह है कि शाकाहारी लोग ज्यादा शांत और स्थिर होते हैं। मगर नया अध्ययन इससे बिल्कुल अलग बात कहता है।

इस पर शोधकर्ता और लेखिका Dobersek कहती हैं कि आपका सामाजिक वातावरण और धार्मिक विश्वास जिस तरह के भोजन की आजादी आपको देता है, आप अपनी इच्छा अनुसार उसे ही अपना सकते हैं। लेकिन ऐसे लोग जो डिप्रेशन, गंभीर मानसिक रोग या अपने आप को नुकसान पहुंचाने की प्रवृत्ति तक बीमार हो चुके हैं, वो अपना डाइट प्लान बदल सकते हैं, ताकि उन्हें जल्दी फायदा हो।

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