पुण्य स्मृति: अंग्रेजों ने विद्रोह फैलाने में फांसी दी तो खुद गले में फंदा डाल लिया सोहनलाल पाठक ने

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चरित्र-निर्माण, समाज-सुधार तथा राष्ट्रवादी जन-चेतना के लिए समर्पित *मातृभूमि सेवा संस्था* आज देश के स्वतन्त्रता सेनानीयों, क्रांतिकारियों एवम ज्ञात-अज्ञात राष्ट्रभक्तों को उनके अवतरण, स्वर्गारोहण व बलिदान दिवस पर कोटिश: नमन करती है।🙏🙏🌷🌷
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🔥🔥 *सोहन लाल पाठक ……………………………………………………………

चरित्र-निर्माण, समाज-सुधार तथा राष्ट्रवादी जन-चेतना के लिए समर्पित *मातृभूमि सेवा संस्था* आज देश के स्वतन्त्रता सेनानीयों, क्रांतिकारियों एवम ज्ञात-अज्ञात राष्ट्रभक्तों को उनके अवतरण, स्वर्गारोहण व बलिदान दिवस पर कोटिश: नमन करती है।🙏🙏🌷🌷

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🔥🔥 *सोहन लाल पाठक * 🔥🔥

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जन्म: *07.01.1883*        बलिदान: *10.02.1916

📝 राष्ट्रभक्त साथियों, देश की आज़ादी का संघर्ष कई तरीकों से लड़ा गया। कुछ स्वतंत्रता सेनानियों ने जुलूस के माध्यम से ब्रिटिश सरकार को अपनी बातें मनवाने के लिए प्रयास किया तो किसी ने पत्र व्यवहार किया, तो क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों को उनकी भाषा में जवाब देकर आज़ादी पाने का प्रयास किया। आज मातृभूमि सेवा संस्था जिस क्रांतिवीर के जीवन पर प्रकाश डालने का प्रयास कर रही है, उस क्रांतिवीर ने देश में रहने के साथ साथ विदेशी भूमि पर रहकर पत्रकारिता व ब्रिटिश सैनिक छावनियों में असंतोष पैदाकर मातृभूमि को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराया। 🙏🙏🌷

 

📝07.01.1883 को पट्टी गाँव, अमृतसर, पंजाब में जन्मे सोहन लाल पाठक ने गाँव से मिडिल पास करके सिंचाई विभाग में नौकरी करने लगे, किंतु शीघ्र ही नौकरी छोड़ शिक्षक बन गए। इसी बीच उनका सम्पर्क लाला हरदयाल और लाला लाजपत राय से हुआ, जिनकी प्रेरणा से वह निष्ठावान क्रांतिकारी बने। जब उनके मुख्याध्यापक (Headmaster) ने इन्हें इन क्रांतिकारियों के साथ ना रहने की चेतावनी दी तो नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। अब सोहन लाल पाठक  ने लाला लाजपत राय  के मार्गदर्शन में उर्दू पत्रिका बंदे मातरम् का संपादन किया। कुछ समय उपरांत वे थाईलैंड, फिलीपींस तथा सन् 1914 में संयुक्त राज्य अमेरिका के कैलिफोर्निया चले गए और गदर पार्टी से सक्रिय रूप से जुड़ गए। उनकी कुशाग्रता एवं समर्पण की भावना के कारण उन्हें  उन्हें आदेश मिला कि वह ब्रिटिश छावनियों में जाकर ब्रिटिश सेना में सेवा दे रहे भारतीय सैनिकों के बीच असंतोष फैला निश्चित तिथि पर विद्रोह कर दें। वे इसी उद्देश्य से बर्मा, मलाया, सिंगापुर आदि देशों में सक्रिय भूमिका निभाते रहे।🙏🙏🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷

 

📝 सोहन लाल पाठक  अपने क्रांतिकारी साथी हरनाम सिंह सहरी के साथ बर्मा में इस उद्देश्य के लिए पूरी तैयारी कर चुके थे कि मार्च 1915 में ब्रिटिश छावनी में एक भारतीय द्वारा पकड़ लिए गए। वे चाहते तो उसे मार सकते थे, किंतु भारतीय होने के नाते उन्होने हथियार प्रयोग नहीं किया। उन्हें उनके साथी हरनाम सिंह सहरी के साथ मांडले जेल में नजरबंद कर लिया गया तथा उन पर शासन विरोधी साहित्य छापने तथा विद्रोह भड़काने के आरोप में मुकदमा चलाया था, जिसमें उनको अपराधी घोषित किया गया तथा 10 फरवरी, 1916 को उन्हें फाँसी दी गई। बर्मा जेल के रिकॉर्ड बताते हैं कि फाँसी के समय सोहन लाल पाठक जी ने जल्लाद के हाथों से फाँसी का फंदा छीन कर स्वयं अपने गले में डाल लिया था। *मातृभूमि सेवा संस्था आज सोहन लाल पाठक के 105वें बलिदान दिवस पर कोटि कोटि नमन करती है।* 🌷🌷🌷🌷🌷🙏🙏🌷🌷🌷🌷

 

👉 लेख में त्रुटि हो तो अवश्य मार्गदर्शन करें

 

✍️ राकेश कुमार

🇮🇳 *मातृभूमि सेवा संस्था 9891960477* 🇮🇳मार।🌷🌷🌷 *….* 🔥🔥
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जन्म: *07.01.1883* बलिदान: *10.02.1916*

📝 राष्ट्रभक्त साथियों, देश की आज़ादी का संघर्ष कई तरीकों से लड़ा गया। कुछ स्वतंत्रता सेनानियों ने जुलूस के माध्यम से ब्रिटिश सरकार को अपनी बातें मनवाने के लिए प्रयास किया तो किसी ने पत्र व्यवहार किया, तो क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों को उनकी भाषा में जवाब देकर आज़ादी पाने का प्रयास किया। आज मातृभूमि सेवा संस्था जिस क्रांतिवीर के जीवन पर प्रकाश डालने का प्रयास कर रही है, उस क्रांतिवीर ने देश में रहने के साथ साथ विदेशी भूमि पर रहकर पत्रकारिता व ब्रिटिश सैनिक छावनियों में असंतोष पैदाकर मातृभूमि को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराया। 🙏🙏🌷🌷

📝07.01.1883 को पट्टी गाँव, अमृतसर, पंजाब में जन्मे सोहन लाल पाठक जी ने गाँव से मिडिल पास करके सिंचाई विभाग में नौकरी करने लगे, किंतु शीघ्र ही नौकरी छोड़ शिक्षक बन गए। इसी बीच उनका सम्पर्क लाला हरदयाल और लाला लाजपत राय से हुआ, जिनकी प्रेरणा से वह निष्ठावान क्रांतिकारी बने। जब उनके मुख्याध्यापक (Headmaster) ने इन्हें इन क्रांतिकारियों के साथ ना रहने की चेतावनी दी तो नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। अब सोहन लाल पाठक जी ने लाला लाजपत राय जी के मार्गदर्शन में उर्दू पत्रिका बंदे मातरम् का संपादन किया। कुछ समय उपरांत वे थाईलैंड, फिलीपींस तथा सन् 1914 में संयुक्त राज्य अमेरिका के कैलिफोर्निया चले गए और गदर पार्टी से सक्रिय रूप से जुड़ गए। उनकी कुशाग्रता एवम समर्पण की भावना के कारण उन्हें उन्हें आदेश मिला कि वह ब्रिटिश छावनियों में जाकर ब्रिटिश सेना में सेवा दे रहे भारतीय सैनिकों के बीच असंतोष फैला निश्चित तिथि पर विद्रोह कर दें। वे इसी उद्देश्य से बर्मा, मलाया, सिंगापुर आदि देशों में सक्रिय भूमिका निभाते रहे।🙏🙏🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷

📝 सोहन लाल पाठक अपने क्रांतिकारी साथी हरनाम सिंह सहरी के साथ बर्मा में इस उद्देश्य के लिए पूरी तैयारी कर चुके थे कि मार्च 1915 में ब्रिटिश छावनी में एक भारतीय द्वारा पकड़ लिए गए। वे चाहते तो उसे मार सकते थे, किंतु भारतीय होने के नाते उन्होने हथियार प्रयोग नहीं किया। उन्हें उनके साथी हरनाम सिंह सहरी के साथ मांडले जेल में नजरबंद कर लिया गया तथा उन पर शासन विरोधी साहित्य छापने तथा विद्रोह भड़काने के आरोप में मुकदमा चलाया था, जिसमें उनको अपराधी घोषित किया गया तथा 10 फरवरी, 1916 को उन्हें फाँसी दी गई। बर्मा जेल के रिकॉर्ड बताते हैं कि फाँसी के समय सोहन लाल पाठक जी ने जल्लाद के हाथों से फाँसी का फंदा छीन कर स्वयं अपने गले में डाल लिया था। *मातृभूमि सेवा संस्था आज सोहन लाल पाठक जी के 105वें बलिदान दिवस पर कोटि कोटि नमन करती है।* 🌷🌷🌷🌷🌷🙏🙏🌷🌷🌷🌷🌷

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✍️ राकेश कुमार
🇮🇳 *मातृभूमि सेवा संस्था 9891960477* 🇮🇳

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