सोशल मीडिया प्रतिक्रियाओं से परेशान हैं जस्टिस जेबी पारदीवाला

‘लोग क्या कहेंगे, लोग क्या सोचेंगे’… सोशल मीडिया को लेकर जस्टिस पारदीवाला ने कही यह बात

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जे.बी. पारदीवाला ने नूपुर शर्मा को लेकर सख्त टिप्पणी की थी जिसके बाद सोशल मीडिया और दूसरे मंचों पर व्यक्तिगत हमले किए गए। जजों पर ऐसी टिप्पणियों को लेकर जेबी पारदीवाला ने इसे खतरनाक बताया और कहा कि न्यायाधीशों को सोशल मीडिया चर्चाओं में भाग नहीं लेना चाहिए। न्यायाधीश केवल अपने फैसलों के जरिए बोलते हैं।
नई दिल्ली3जुलाई  : सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस (Supreme Court Judge) जे.बी पारदीवाला (JB Pardiwala) ने रविवार को कहा कि शीर्ष अदालत को विवादों पर फैसला करते समय केवल कानून के शासन को ध्यान में रखना होता है क्योंकि न्यायिक फैसले जनता की राय के प्रभाव का प्रतिबिंब नहीं हो सकते। लोकप्रिय जन भावनाओं के ऊपर कानून के शासन की प्रधानता पर जोर देते हुए न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा कि एक ओर बहुसंख्यक आबादी के इरादे को संतुलित करना और उसकी मांग को पूरा करना तथा दूसरी ओर कानून के शासन की पुष्टि करना कठिन काम है।

उन्होंने कहा, लोग क्या कहेंगे, लोग क्या सोचेंगे, इन दोनों के बीच की कड़ी पर चलने के लिए अत्यधिक न्यायिक कौशल की आवश्यकता होती है। यह एक पहेली है जो प्रत्येक न्यायाधीश को निर्णय लिखने से पहले परेशान करती है। शीर्ष अदालत के न्यायाधीश डॉ. राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, लखनऊ और राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, ओडिशा के साथ राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों के पूर्व छात्रों के संघ (कैन फाउंडेशन) द्वारा आयोजित जस्टिस एचआर खन्ना मेमोरियल नेशनल सिम्पोजियम को संबोधित कर रहे थे।

न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा, मेरा दृढ़ विश्वास है कि देश की शीर्ष अदालत केवल एक चीज-कानून के शासन को ध्यान में रखते हुए फैसला करती है…न्यायिक फैसले जनता की राय के प्रभाव का प्रतिबिंब नहीं हो सकते हैं। उन्होंने कहा, मैं लोकतंत्र में विश्वास करता हूं, हमारे यहां अदालती फैसलों के साथ जीवन जीने के लिए प्रणालीगत समझौते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि अदालत के फैसले हमेशा सही होते हैं और अन्य सभी विचारों से मुक्त होते हैं। लोकतंत्र में कानून ज्यादा जरूरी है।

न्यायमूर्ति पारदीवाला ने यह भी कहा कि संविधान के तहत कानून के शासन को बनाए रखने के लिए देश में डिजिटल और सोशल मीडिया को अनिवार्य रूप से व्यवस्थित करने की आवश्यकता है क्योंकि यह लक्ष्मणरेखा को पार करने और न्यायाधीशों पर व्यक्तिगत, एजेंडा संचालित हमले करने के लिए खतरनाक है।

उन्होंने कहा, कानून का शासन भारतीय लोकतंत्र की सबसे विशिष्ट विशेषता है। मेरा दृढ़ विश्वास है कि इसका कोई अपवाद नहीं है। कानून का शासन कायम होना चाहिए और जनता की राय कानून के शासन के अधीन होनी चाहिए। न्यायमूर्ति पारदीवाला ने केरल के सबरीमला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश की अनुमति देने वाले निर्णय और सहमति से समलैंगिक यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर करने वाले निर्णय सहित विभिन्न फैसलों का हवाला दिया और कहा कि ये लोकप्रिय जन भावना के खिलाफ हैं लेकिन कानून के शासन की अवधारणा के अनुरूप है।

नूपुर शर्मा केस की सुनवाई करने वाले पारदीवाला ने कहा-न्यायाधीशों पर सोशल मीडिया पर हमले खतरनाक

जस्टिस पारदीवाला ने कहा, निर्णयों को लेकर न्यायाधीशों पर किए गए हमलों से एक खतरनाक परिदृश्य पैदा होगा। न्यायाधीशों का ध्यान इस बात पर अधिक होगा कि मीडिया क्या सोचता है, बजाय इस बात पर कि कानून वास्तव में क्या कहता है।

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश (Supreme Court Judge) जे.बी. पारदीवाला (JB Pardiwala) ने नूपुर शर्मा (Nupur Sharma) को लेकर सख्त टिप्पणी की थी जिसके बाद सोशल मीडिया और दूसरे मंचों पर व्यक्तिगत हमले किए गए। जजों पर ऐसी टिप्पणियों को लेकर जेबी पारदीवाला ने एक समारोह में कहा कि सोशल मीडिया (Social Media) पर न्यायाधीशों पर व्यक्तिगत, ‘एजेंडा संचालित हमलों’ खतरनाक करार देते हुए रविवार को कहा कि देश में संविधान के तहत कानून के शासन को बनाए रखने के लिए डिजिटल और सोशल मीडिया को व्यवस्थित किया जाना जरूरी है। उनका संदर्भ पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ भाजपा की निलंबित नेता नूपुर शर्मा की विवादास्पद टिप्पणियों को लेकर अवकाशकालीन पीठ की कड़ी मौखिक टिप्पणियों पर हुए हंगामे से था।

इस खंडपीठ में न्यायमूर्ति पारदीवाला वाला भी शामिल थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बेलगाम जुबान ने पूरे देश को आग में झोंक दिया है और उन्हें माफी मांगनी चाहिए। पीठ की इन टिप्पणियों ने डिजिटल और सोशल मीडिया सहित विभिन्न प्लेटफॉर्म पर एक बहस छेड़ दी और इसी क्रम में न्यायाधीशों के खिलाफ कुछ अभद्र टिप्पणियां की गई हैं

जस्टिस पारदीवाला ने कहा, भारत को परिपक्व और सुविज्ञ लोकतंत्र के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है, ऐसे में सोशल और डिजिटल मीडिया का पूरी तरह से कानूनी और संवैधानिक मुद्दों के राजनीतिकरण के लिए इस्तेमाल किया जाता है। उन्होंने कहा कि डिजिटल मीडिया द्वारा किसी मामले का ट्रायल न्याय व्यवस्था में अनुचित हस्तक्षेप है। हाल ही में शीर्ष अदालत में पदोन्नत हुए न्यायाधीश ने कहा, लक्ष्मण रेखा को हर बार पार करना, यह विशेष रूप से अधिक चिंताजनक है।
न्यायमूर्ति पारदीवाला डॉक्टर राम मनोहर लोहिया नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, लखनऊ और नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, ओडिशा द्वारा आयोजित दूसरी एचआर खन्ना स्मृति राष्ट्रीय संगोष्ठी के साथ-साथ नेशनल लॉ यूनिवर्सिटीज (कैन फाउंडेशन) के पूर्व छात्रों के परिसंघ को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा,हमारे संविधान के तहत कानून के शासन को बनाए रखने के लिए डिजिटल और सोशल मीडिया को देश में अनिवार्य रूप से विनियमित करने की आवश्यकता है।

डिजिटल और सोशल मीडिया के बारे में उन्होंने कहा कि (मीडिया के) इन वर्गों के पास केवल आधा सच होता है और वे (इसके आधार पर ही) न्यायिक प्रक्रिया की समीक्षा शुरू कर देते हैं। उन्होंने कहा कि वे न्यायिक अनुशासन की अवधारणा, बाध्यकारी मिसालों और न्यायिक विवेक की अंतर्निहित सीमाओं से भी अवगत नहीं हैं।

न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा, सोशल और डिजिटल मीडिया आजकल उनके निर्णयों के रचनात्मक आलोचनात्मक मूल्यांकन के बजाय मुख्य रूप से न्यायाधीशों के खिलाफ व्यक्तिगत राय व्यक्त करते हैं। यह न्यायिक संस्थानों को नुकसान पहुंचा रहा है और इसकी गरिमा को कम कर रहा है। उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों को सोशल मीडिया चर्चा में भाग नहीं लेना चाहिए, क्योंकि न्यायाधीश कभी अपनी जिह्वा से नहीं, बल्कि अपने निर्णयों के जरिये बोलते हैं।

judge hearing nupur sharma’s plea advocated mandatory regulation of social media

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