पृथ्वी का पहला भूखंड सिंहभूम , जो निकला समुद्र से बाहर
धरती की पहली जमीन, जो निकली समंदर से बाहर, क्या आप जानते हैं वो जगह भारत के झारखंड राज्य में स्थित है?
एक अनूठी खोज वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि पृथ्वी सतह जब पूरी पानी में डूबी थी तब सबसे पहले कहां की जमीन बाहर निकली थी. 3.2 अरब साल पहले हुई इस घटना के प्रमाण वैज्ञानिको को भारत के एक राज्य के एक इलाके में मिले हैं, जहां की मिट्टी और चट्टान का अध्ययन से ये नतीजे निकले हैं. 3.2 अरब साल पहले पूरी पृथ्वी पानी में डूबी हुई थी.भारत के झारखंड का सिंहभूम सबसे पहले उससे बाहर निकला था.
साइंटिस्ट को हाल ही में इसके साफ और ठोस प्रमाण मिले हैं.
एक समय था जब पूरी पृथ्वी पर धरती केवल समुंदर के ही अंदर थी यानी सतह पर केवल पानी ही पानी था. उसके बाद धरती के कुछ उससे सबसे पहले समुंदर से बाहर निकले, लेकिन आज की जमीन का वो इलाका कौन सा था जो सबसे पहले बाहर निकला था? हाल ही में वैज्ञानिकों ने इसका जवाब खोज निकाला है और हैरानी की बात ये है कि जो इलाका समुद्र से सबसे पहले बाहर निकला था, वह भारत में है और आज भी समुदंर से बाहर है.
वैज्ञानिक कहते हैं कि 3.2 अरब साल पहले पृथ्वी की सतह पर पानी ही पानी था. उसमें से धरती निकलना शुरू हुई थी.
एक सप्ताह में वैज्ञानिकों ने दो रोचक खोजें कीं. पहली, पृथ्वी के सबसे शुरुआती महाद्वीप उनके अनुमान से 70 करोड़ साल पहले समुद्र से उभरे थे. दूसरी, लगभग 3.2 अरब साल पहले समुद्र से ऊपर उठने वाली पहली भूमि भारत में थी. नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज की कार्यवाही में प्रकाशित, भारत, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के वैज्ञानिकों के अध्ययन में पाया गया कि पृथ्वी के वायुमंडल के संपर्क में आने वाली सबसे प्रारंभिक पपड़ी कौन सी थी.
उन्होंने बताया कि उन्होंने यह खोज कैसे की? इसके लिए उन्होंने झारखंड के सिंहभूम क्षेत्र के बलुआ पत्थरों का विश्लेषण किया. इसमें प्राचीन नदी चैनलों, ज्वार के मैदानों और समुद्र तटों के भूवैज्ञानिक संकेत पाए गए जो 3 अरब साल से अधिक पुराने हैं.
साइंटिस्ट को इस बात के स्पष्ट प्रमाण मिले हैं कि झारखंड के सिंहभूम की जमीन सबसे पहले पानी से बाहर आई थी.
अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने यह भी समझने का प्रयास किया कि सिंहभूम के भूभाग को समुद्र के बाहर जाने को किसने मजबूर किया. चौधरी ने कहा, “बलुआ पत्थर हमें बताते हैं कि ‘कब’ और ग्रेनाइट हमें बताता है कि ‘कैसे’.” दिलचस्प बात यह है कि इस संबंध में निष्कर्ष भी चौंकाने वाले थे.
“लगभग 3.5 से 3.2 अरब साल पहले, पृथ्वी की पर्पटी के नीचे कुछ गर्म मैग्मा ने भूभाग के कुछ हिस्सों को मोटा कर दिया था. इससे सिलिका और क्वार्ट्ज जैसी, हल्की सामग्री भरपूर हो गई. लाइवसाइंस की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि इस प्रक्रिया ने क्रेटन को उसके आस-पास की सघन चट्टान की तुलना में ‘शारीरिक रूप से मोटा और रासायनिक रूप से हल्का’ बना दिया, और इस तरह भूभाग को पानी से ऊपर और बाहर उछाल दिया. समय के साथ, इसकी परत लगभग 50 किलोमीटर तक मोटी हो गई जिससे यह पानी के ऊपर तैरती रहती है, जैसे पानी पर तैरता हुआ एक हिमखंड.”
दुनिया में सबसे पहले समुद्र से निकला सिंहभूम:झारखंड का यह क्षेत्र अफ्रीका-ऑस्ट्रेलिया से 20 करोड़ साल पुराना; 7 वर्ष की खोज में हुआ सिद्ध
दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित जर्नल ‘प्रोसिडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी आफ साइंस’ ने 6 माह जांच के बाद किया सत्यापित।
दुनिया में सबसे पहले समुद्र से बाहर कौन सा द्वीप बाहर आया? अब तक हम सब यही मानते रहे कि सबसे पहले अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया समुद्र से बाहर आए, लेकिन अब नई रिसर्च में सामने आया है कि झारखंड में सिंहभूम जिला समुद्र से बाहर आने वाला दुनिया का पहला जमीनी हिस्सा है। 3 देशों के 8 रिसर्चर्स 7 साल की रिसर्च के बाद इस नतीजे पर पहुंचे हैं।
इस नई खोज की कहानी पढ़िए रिसर्चर्स की जुबानी… सिंहभूम में रिसर्च टीम की अगुआई करने वाले ऑस्ट्रेलिया के पीटर केवुड ने कहा, ‘हमारा सौरमंडल, पृथ्वी या दूसरे ग्रह कैसे बने? इन सवालों की खोज में मैं और मेरी टीम के 7 साथी, जिनमें 4 भारत से थे, ने 7 साल तक झारखंड के कोल्हान और ओडिशा के क्योंझर समेत कई दूसरे जिलाें के पहाड़-पर्वतों काे छान मारा। पृथ्वी से जमीन कब बाहर निकली, इस सवाल का जवाब खोजने के लिए जुनून जरूरी था। ये जगह नक्सल प्रभावित है, लेकिन हमने तय किया था कि करना है, सो करना है।’
‘अपने 6-7 साल के फील्ड वर्क में लगभग 300-400 किलो पत्थरों का लेबोरेट्री में टेस्ट किया है। इनमें कुछ बलुआ पत्थर थे और कुछ ग्रेनाइट। हमने जो बलुआ पत्थर देखें, उनकी खासियत यह थी कि उनका निर्माण नदी या समुद्र के किनारे हुआ था। नदी या समुद्र का किनारा तभी हो सकता है, जब आसपास भूखंड हो।

सिंहभूम 320 करोड़ साल पहले बना था पीटर ने कहा, ‘जब हमने बलुआ पत्थरों की उम्र निर्धारित करने की कोशिश की, तब हमें पता चला कि सिंहभूम आज से लगभग 320 करोड़ साल पहले बना था। इसका मतलब यह हुआ कि आज से 320 करोड़ साल पहले यह हिस्सा एक भूखंड के रूप में समुद्र की सतह से ऊपर था।’
‘अब तक माना जाता रहा है कि अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया के क्षेत्र सबसे पहले समुद्र से बाहर निकले, लेकिन हमने पाया कि सिंहभूम क्षेत्र उनसे भी 20 करोड़ साल पहले बाहर आया। हमारा दावा कि सिंहभूम क्रेटान समुद्र से निकला पहला द्वीप है, यह हमारी पूरी टीम के लिए बड़ा ही रोमांचक पल था।’

सिंहभूम महाद्वीप के नाम से जाना जाता है इलाका हमने सिंहभूम के ग्रेनाइट पत्थर की जब जांच की तो यह पता चला- सिंहभूम महाद्वीप आज से तकरीबन 350 से 320 करोड़ साल पहले लगातार ज्वालामुखी गतिविधियों से बना था। इसका मतलब यह हुआ कि 320 करोड़ साल पहले सिंहभूम महाद्वीप समुद्र की सतह से ऊपर आया, लेकिन उसके बनने की प्रक्रिया उससे भी पहले शुरू हो गई थी।
यह क्षेत्र उत्तर में जमशेदपुर से लेकर दक्षिण में महागिरी तक, पूर्व में ओडिशा के सिमलीपाल से पश्चिम में वीर टोला तक फैला हुआ है। इस क्षेत्र को हम सिंहभूम क्रेटान या महाद्वीप कहते हैं। पीटर ने बताया, ‘शोध के लिए हमने पिछले 6-7 साल में कई बार सिंहभूम महाद्वीप के कई हिस्सों में फील्ड वर्क किया जैसे कि सिमलीपाल, जोडा, जमशेदपुर, क्योंझर इत्यादि। अध्ययन के दौरान हमारा केंद्र जमशेदपुर और ओडिशा का जोड़ा शहर था। यहीं से कभी बाइक से कभी बस-कार से फील्ड वर्क पर निकलते थे।’

आगे की रिसर्च के लिए राह खुली सिंहभूम दुनिया का पहला द्वीप है जाे समुद्र से बाहर निकला, यानी यहां के आयरन ओर की पहाड़ियों समेत दूसरी पहाड़ियां 320 करोड़ साल से भी ज्यादा पुरानी हैं। इस रिसर्च के मॉड्यूल से पहाड़ी इलाकों अथवा पठारी क्षेत्र में आयरन, गोल्ड माइंस खोजने में सहूलियत हाेगी। इसके अलावा बस्तर, धारवाड़ इलाकों में भूमिगत घटनाओं की उत्पति की जानकारी मिलेगी। भू-गर्भीय अध्ययन के लिए भी यह रिसर्च बहुत उपयोगी साबित होगी।
कोलकाता-बारीपदा से कूरियर के जरिए ऑस्ट्रेलिया भेजते थे पत्थर हमारी टीम अलग-अलग समय पर शोध के लिए भारत पहुंची। इस दाैरान तीन से चार क्विंटल पत्थर रिसर्च के लिए इकट्ठे किए। उन्हें बारीपदा और कोलकाता के रास्ते ऑस्ट्रेलिया के लिए कूरियर से भेजा। हम लोग स्थानीय होटल या ढाबे में खाना खाते थे और रिसर्च के लिए जंगल-पहाड़ों काे निकलते थे। हमारा फील्ड वर्क 2017 और 2018 में ज्यादा रहा। हम खासतौर से बताना चाहते हैं कि नक्सल प्रभावित एरिया हाेने के बावजूद कभी परेशानी नहीं हुई।

सैंपल कलेक्शन में स्थानीय लोगों ने मदद की हम पत्थरों को उनके प्राकृतिक रूप में समझने की कोशिश करते थे। जैसे उनका स्वरूप कैसा है, उनका रंग क्या है, वे कितनी आसानी से टूट सकते हैं, कितनी दूर तक फैले हुए हैं। हम अलग-अलग समय में आते थे। कभी बरसात, कभी गर्मी के दिनाें में। फील्ड वर्क में सबसे कठिन काम यह ढूंढना होता था कि पत्थर कहां पर मौजूद हैं।
हमारे पास मैप होते थे, लेकिन ज्यादातर समय छोटी चट्टानें या फिर सड़कों के किनारे या नदी नालों के किनारे स्थित पत्थरों तक पहुंचने के लिए हमें स्थानीय लोगों की मदद लेनी पड़ी। सिंहभूम में फील्ड वर्क करने के दौरान ऐसी परिस्थितियां आईं, जब स्थानीय लोगों ने हमें पत्थर ढूंढने में बहुत मदद की थी।

5-5 किलो के थैलों में कलेक्ट करते थे सैंपल पत्थरों को प्राकृतिक रूप में जांचने के बाद हम उनका सैंपल कलेक्ट करते और लैबोरेट्रीज में ले जाते। हम 5-5 किलो के थैलों में सैंपल कलेक्ट करते थे। सैंपल कलेक्ट करने के लिए हम पत्थरों को हथौड़े से मारकर उनके टुकड़े करते। यह भी एक कठिन काम था।
कभी-कभी ऐसे पत्थर मिलते थे, जिन्हें तोड़ने के लिए बहुत मशक्कत करनी पड़ी। इन सैंपल को हम लैबोरेट्री में ले जाते थे। वहां यह खोज की जाती थी कि वह किन- किन रासायनिक तत्वों से बने थे जैसे- लोहा, मैग्नीशियम, ऑक्सीजन वगैरह। आखिरकार हमारे संघर्ष का मुकाम सुखद रहा। इस तरह हमने पाया कि समुद्र से निकलने वाला द्वीप हमारा सिंहभूम ही था।
रिसर्च टीम में ये वैज्ञानिक शामिल सिंहभूम पर 7 साल तक रिसर्च करने वाले वैज्ञानिकों की टीम में ऑस्ट्रेलिया की मोनाश यूनिविर्सिटी के पीटर केवुड, जैकब मल्डर, शुभोजीत राय, प्रियदर्शी चौधरी और ऑलिवर नेबेल; ऑस्ट्रेलिया की ही यूनिवर्सिटी ऑफ मेलबर्न की ऐश्ली वेनराइट, अमेरिका के कैलिफोर्निया इंस्टूट्यूट ऑफ टेकनोलॉजी के सूर्यजेंदु भट्टाचार्यी के साथ दिल्ली यूनिवर्सिटी के शुभम मुखर्जी शामिल थे।( 2021)