जयंती: सेठ छाजू राम ने जीवनभर कमाई 80 लाख दिये स्वतंत्रता संग्राम में

छाजूराम ने ट्यूशन के साथ शुरू किया व्यापार, खिंच दी लम्बी लकीर

कुछ लोग इतिहास लिखते हैं, कुछ इतिहास बनाते हैं और कुछ लोग स्वंय इतिहास बन जाते हैं| समय का चक्र हमेशा अविरल गति से घूमता रहता है| युग बदलते हैं, तारीखें बदलती हैं और इसके साथ ही बदल जाता है मानव का दृष्टिकोण| लेकिन कुछ विरले ऐसे भी होते हैं, जो एक युगपुरुष के रूप में याद किये जाते हैं।

एक ऐसे ही युगपुरुष थे चौधरी सेठ छाजूराम लाम्बा, जिन्हें फर्श से अर्श पहुंचा भामाशाह/ क्षत्रियों का भामाशाह कहा जाता है| दुखी मानवता के आँसू पोंछने को उन्होने अपना सर्वस्व अर्पित करने से भी परहेज नहीं किया|
कविता के माध्यम से लेख का निचोड़:
भामाशाहों के भामाशाह दानवीर सेठ चौधरी छाजूराम:

चौधरी छोटूराम के धर्म पिता तुम, उनका फ़रिश्ता-ए-रोशनाई थे,

चौधरी सेठ छाजूराम जी

हरियाणा के तीन लालों की तरह, इसके तीन रामों के रहनुमाई थे| भामाशाहों के भामाशाह दानवीरसेठ छाजूराम, आप गजब शाही थे, जब उदय हो चले अलखपुरा से, जा छाये आसमान-ए-कलकत्ताई थे||

जी. डी. बिड़ला, लाला लाजपतराय रहे किरायेदार, जो इन्सां जुनुनाई थे, कलकत्ते के सबसे बड़े शेयरहोल्डर आप, साहूकारों के अगवाही थे| भगत सिंह को मिली पनाह जिनके यहाँ, वो खुदा-ए-रहबराई थे, नेताजी सुभाष को दी आर्थिक सहायता, जर्मनी की राह लगाई थे||
दानवीरता की टंकार हुई ऐसी कई भामाशाह अकेले में समाईं थे, बाढ़-अकाल-बीमारी-लाचारी-गरीबी में दिए जनता बीच दिखाई थे| लाहौर से कलकत्ता तक, शिक्षा के मंदिरों की दिए लाइन लगाई थे, कौम का इतिहास लिखवाया कानूनगो से, गजब आशिक-ए-कौमाई थे||
तेरे जूनून-ए-इंसानी-भलाई का, यह फुल्ले भगत हुआ दीवाना, वो जज्बा तो बता दे, जो धार दुःख देश-कौम के मिटा पाई रे? सेठों-के-सेठ ओ भारत-देश की शान, किसके दूध की अंगड़ाई थे? जिंदगी राह लग जाए, तुझसे रोशनी ऐसी पाई ओ दादी माई के|

►हरियाणा में एक समय ऐसा भी था जब तीन राम (छाज्जूराम, छोटूराम, नेकीराम) जैसे महान पुरुषों ने समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी, वो भी उस समय जब लोगो को कोई भी आशा की किरण दिखाई नहीं दे रही थी | इस अंधकारमय समाज में उजाला लाने एवं अंधकार को दूर करने और लोगो में नई की आशा जगाने का काम इन तीन महापुरुषों ने किया। इन तीनों में से एक और सबसे अग्रणी थे चौधरी सेठ छाजूराम जी|
सेठ छाज्जूराम का जन्म 27 नवंबर 1865 (अधिकतर जगह 1861 लिखा हुआ है, जबकि हमारे विश्वसनीय शोधकर्ता 1865 बताते हैं) को आधुनिक जिला भिवानी, तहसील बवानीखेड़ा के अलखपुरा गाँव में लाम्बा गोत्र के जाट कुल परिवार में चौधरी सालिगराम के यहां हुआ| इनका बचपन अभावों, संघर्षों, और विपत्तियों में व्यतीत हुआ, लेकिन अपनी लगन, परिश्रम और दृढ़ निश्चय से सफलता के शिखर तक पहुंचे| पिता सालिगराम एक साधारण किसान थे| चौधरी छाज्जूराम के पूर्वज झुंझनू (राजस्थान) के निकटवर्ती गाँव लाम्बा गोठड़ा से आकर भिवानी जिले के ढाणी माहू गाँव में बसे थे| इनके दादा मनीराम ढाणी माहू को छोड़ कर सिरसा जा बसे| लेकिन कुछ दिनों के बाद इनके पिता चौधरी सालिगराम अलखपुरा आकर बस गए (याद रहे इस समय गाँव अलखपुरा, हांसी जागीर में आता था और इस समय हांसी जागीर जेम्स स्किनर के बेटे अलेक्जेंडर को दे दी गयी थी| इसी के नाम पर गाँव का नाम अलेक्सपुरा पड़ा, गाँव वालों ने मौखिक रूप में फिर इसको अलखपुरा कहा तो, गाँव का नाम अलखपुरा पड़ा)|
चौधरी छोटूराम का प्रथम विवाह बचपन में सांगवान खाप के हरिया डोहका गाँव में कड़वासरा खंडन की दाखांदेवी के साथ हुआ था| लेकिन विवाह के कुछ समय बाद ही इनकी पत्नी का हैजे से देहांत हो गया| दूसरा विवाह वर्ष 1890 (कुछ प्रारूपों में यह वर्ष 1900 भी बताया गया है|) में भिवानी जिले के ही बिलावल गाँव में रांगी गोत्र की दाखांदेवी नाम की ही लड़की से हुआ| लेकिन बाद में उनका नाम बदलकर लक्ष्मीदेवी रख दिया गया| माता लक्ष्मी देवी एक नेक, पतिव्रता व् संस्कारित स्त्री थी| कालांतर में उन्होंने आठ संतानों को जन्म दिया, जिनमें पांच पुत्र व् तीन पुत्रियां हुई, लेकिन चार संतानें बाल्यावस्था में ही ईश्वर को प्यारी हो गई| बड़े बेटे सज्जन कुमार का युवावस्था में ही स्वर्गवास हो गया| अन्य दो बेटे महेंद्र कुमार व् प्रद्युमन थे| इनकी बेटी सावित्री देवी थी जो मेरठ निवासी डॉक्टर नौनिहाल से ब्याही गई थी|

शिक्षा, कलकत्ता में संघर्ष, व्यापार व् धनसम्पत्ति:

छाज्जूराम ने प्रारम्भिक शिक्षा (1877) बवानीखेड़ा के स्कूल से प्राप्त की| चौधरी साहब गाँव से 11 किलोमीटर दूर बवानीखेड़ा के प्राइमरी स्कूल में पैदल पढ़ने जाते थे| पांचवीं कक्षा का बोर्ड का परिणाम आया तो न केवल अपनी परीक्षा में प्रथम अपितु प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुए| मिडल शिक्षा (1880) भिवानी से पास करने के बाद उन्होंने रेवाड़ी से मैट्रिक की परीक्षा (1882) में पास की| मेधावी छात्र होने से इनको छात्रवृत्तियां भी मिलती रही लेकिन परिवार की स्थिति अच्छी न होने के कारण आगे की पढ़ाई न कर पाये|

आपने मैट्रिक संस्कृत, अंग्रेजी, महाजनी, हिंदी, उर्दू और गणित विषयों से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी| इस दौरान अपनी पढाई और स्वंय का खर्च चलाने हेतु आप दूसरे बच्चों को ट्यूशन भी देते रहे| इसी सिलसिले में एक बंगाली इंजीनियर एस. अन. रॉय के बच्चों को एक रूपये प्रति माह के हिसाब से ट्यूशन पढ़ाने लग गए| जब रॉय साहब कलकत्ता चले गए तो छाज्जूराम को भी उन्होंने कलकत्ता बुला लिया| पैसे के अभाव में वो कलकत्ता नहीं जा सकते थे, लेकिन फिर भी जैसे-तैसे करके उन्होंने किराये का जुगाड़ किया और कलकत्ता चले गए| उन्होंने वहां भी उसी प्रकार बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया| यहाँ पर उनको छ: रु. प्रति माह मिलते थे| लेकिन यहां कड़ा संघर्ष यहां आपका इंतज़ार कर रहा था| नए लोग,नए-नए काम, न रहने का ठिकाना,न खाने का पता| तंग आकर घर वापिस जाने का फैसला किया,लेकिन फिर किराए की समस्या सामने आ गई| मन को मारकर मूलरूप से भिवानी निवासी रायबहादुर नरसिंह दास से मुलाकात की तथा घर जाने के लिए किराया उधार माँगा| नरसिंह दास ने उन्हें हौंसला दिया और कलकत्ता में ही रहकर संघर्ष करने की प्रेरणा देते हुए कहा कि कलकत्ता ऐसा शहर है,जहाँ न जाने कितने ही लोग खाली हाथ आये और अपनी मेहनत और संघर्ष की बदौलत बादशाह बन गए| और इस तरह शुरू हुआ सफर उनको उनके जमाने के देश के सबसे बड़े रहीशों में शुमार कर गया|
उनका सम्पर्क मारवाड़ी सेठों से हुआ, जिन्हें अंग्रेजी भाषा का ज्ञान कम था लेकिन छाज्जूराम को अँग्रेजी भाषा का व्यापक ज्ञान था तो पत्र लिखने और भेजने का काम छाज्जूराम ने शुरू कर दिया, जिस पर सेठों ने इनको मेहनताना दिया| इसी दौरान देखते ही देखते व्यापारी-पत्र-व्यवहार के कारण इनको व्यापार का ज्ञान हो गया एवं व्यापार सम्बन्धी कुछ गुर भी सीख लिए जिसके कारण उनको इन्हीं गुरो ने महान व्यापारी बना दिया| कुछ समय बाद आपनेे बारदाना (पुरानी बोरियों) का व्यापार शुरू कर दिया| यही व्यापार उनके लिए वरदान साबित हुआ और उनको “जूट-किंग’ बना दिया| धीरे -धीरे कलकत्ता में उन्होंने शेयर भी खरीदने शुरू कर दिए| एक समय आया जब वो कलकत्ता की 24 बड़ी विदेशी कम्पनियो के शेयरहोल्डर थे और कुछ समय बाद 12 कम्पनियो के निदेशक भी बन गए, उस समय इन कम्पनियो से 16 लाख रूपये प्रति माह लाभांश प्राप्त हो रहा था। सेठ जी उस जमाने के कलकत्ता के सबसे बड़े शेयरहोल्डर थे|

इसीलिए पंजाब नेशनल बैंक ने उनको अपना निदेशक रख लिया लेकिन काम की अधिकता होने के कारण उन्होंने त्याग पत्र दे दिया| एक समय आया जब उनकी सम्पति 40 मिलियन को पार कर गयी थी|कभी छाज्जूराम के पास एक छतरी को ख़रीदने के लिए पैसे नहीं थे परन्तु अब उनकी गिनती देश के शिखर के सेठो में की जाने लगी थी| उन्होंने 21 कोठी कलकत्ता में (14 अलीपुर, 7 बारा बाजार) में बनवायी| जी. डी. बिरला व् पंजाब केशरी लाला लाजपतराय भी चौधरी छाज्जूराम के किरायेदार रहे| उन्होंने एक महलनुमा कोठी अलखपुरा में व एक शेखपुरा (हांसी) में बनवायी| उन्होंने हरियाणा के पांच गाँव भी खरीदे तथा भिवानी, हिसार और बवानीखेड़ा के शेखपुरा, अलीपुरा, अलखपुरा, कुम्हारों की ढाणी, कागसर, जामणी, खांडाखेड़ी व् मोठ आदि गाँवों 1600 बीघा ज़मीन भी खरीदी|उनके पंजाब के खन्ना में रुई तथा मुगफली के तेल निकलवाने के कारखाने भी थे| उस जमाने में रोल्स-रॉयस कार केवल कुछ राजाओं के पास होती थी, यह कार उनके बड़े बेटे सज्जन कुमार के पास भी थी|
नश्लवाद का कड़वा अनुभव:

जूट किंग बनने एक बाद तो चौधरी साहब की हर जगह धूम मची, वो जिस भी कारोबार में हाथ डालते, वही चल निकलता| लेकिन इस सफलता दरम्यान आपने जिंदगी का जातिपाती और नश्लभेद का भी दंश झेलना पड़ा| क्योंकि अनेक व्यापारी उनकी जाति के कारण उनसे दोयम दर्जे का व्यवहार करते थे| एक ब्राह्मण ने तो उन्हें अपने ढाबे पे खाना खिलाने से ही इंकार कर दिया| वे समझते थे कि व्यापार पर महाजनों का अधिकार है| एक जाट क्षत्री युवक व्यापार पर कब्ज़ा करे, यह उनसे सहन नहीं होता था| उन्होंने चौधरी छाजूराम को असफल करने के अनेक कुचक्र रचे, लेकिन असफल रहे|

उदारता और मृदुलता की मूर्त:

इतना बड़ा कारोबार और धन-धान्य का साम्राज्य खड़ा होने पर भी, क्या मजाल जो चौधरी साहब को घमंड छू के भी निकल सका हो| उन्होंने इस धन से जनकल्याण के काम करवाने शुरू कर दिए| उन्होंने जगह-जगह शिक्षण संस्थाएं खुलवाई, पानी के लिए कुँए और बावड़ियां खुलवाई, पथिकों और यात्रियों के लिए धर्मशालाओं आदि का निर्माण करवाया| उनका कहना था: मैं जितना दान देता हूँ, ईश्वर मुझे ब्याज सहित लौटा देता है| उनके दान की राशि और लिस्ट बहुत लम्बी है| देश की अधिकांश शिक्षण संस्थाओं को उन्होंने जहाँ जी खोलकर दान दिया, वहीं उन द्वारा बनाई गई अनेक इमारतें और भवन आज भी उनकी दानवीरता के स्तंभ बने खड़े हैं|

दानवीरता व् परोपकारिता:

रहबरे-आज़म चौधरी छोटूराम के वो धर्म-पिता थे|उन्होंने रोहतक में चौधरी छोटूराम के लिए नीली कोठी का निर्माण भी करवाया (याद रहे चौधरी छोटूराम को उच्च शिक्षा का खर्च वहन करने वाले चौधरी छाज्जूराम ही थे)| कहा जाता है कि अगर चौधरी छाज्जूराम नहीं होते तो चौधरी छोटूराम भी नहीं होते और अगर चौधरी छोटूराम नहीं होते तो किसानो के पास आज भूमि नहीं होती|

सेठ छाज्जूराम की दानदक्षता उस समय भारत में अग्रणीय थी| कलकत्ता में रविंद्रनाथ टैगोर के शांति निकेतन से लेकर लाहौर के डी. ए. वी. कॉलेज तक कोई ऐसी संस्था नहीं थी, जहाँ पर उन्होंने दान न दिया हो| सेठ साहब ने शिक्षा के लिए लाखों रूपये के दान दिए, फिर वह चाहे हिन्दू विश्वविधालय बनारस हो, गुरुकुल कांगड़ी हो, हिसार-रोहतक (हरियाणा) व् संगरिया (राजस्थान) की जाट संस्थाए हों, हिसार और कलकत्ता की आर्य कन्या पाठशालाएं हों, हिसार का डीएवी स्कूल हो अथवा अलखपुरा और खांडा खेड़ी के ग्रामीण स्कूल, हर जगह अपार दान दिया| इसके अलावा इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय दिल्ली, डीएवी कॉलेज लाहौर, शांति निकेतन, विश्व भारती में भी बार-बार दान दिए| उन्होंने गरीब,असमर्थ व् होनहार बच्चों के लिए स्कालरशिप प्लान निकाले, जिसमें वो सैंकड़ों बच्चों की शिक्षा स्पांसर करते थे|

सन 1928-29 के अकालों में, 1908/09 में प्लेग और 1918 के इन्फ्लुएन्जा की महामारियों में, 1914 की दामोदर घाटी की भयंकर बाढ़ में दोनों हाथों से धन लुटाकर मानवता को महाविनाश बचाया| उन्होंने भिवानी में अनेक परोपकारी कार्य किये उन्होंने “लेडी-हेली” नामक हस्पताल का निर्माण पांच लाख रूपये से अपनी बेटी कमला की याद में (1928) करवाया (आज उसी जगह पर चौ. बंसीलाल हस्पताल है)| भिवानी में उन्होंने एक अनाथालय बनवाया, यहीं पर उन्होंने एक गौशाला का निर्माण भी करवाया| अलखपुरा में उन्होंने कुए एवं धर्मशाला भी बनवाई| वे विशुद्ध आर्य समाजी थे इसलिए उन्होंने आर्य समाज मंदिर कलकत्ता के बनवाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया|

चौधरी छाजूराम ने जाट इतिहास के विख्यात लेखक कलिका रंजन कानूनगो के 1925 में जाट इतिहास की खोज व् लेखन का खर्च भी खुद वहन किया जिससे उनका अपनी कौम के प्रति फर्ज, जागरूकता और दूरदर्शी प्रेम भी जाहिर होता है|

देशप्रेम व् सरदार भगत सिंह को पनाह:

सेठ छाज्जूराम उच्चकोटि के देशभक्त भी थे| उनकी आँखों में भी भारत की आज़ादी का सपना था| वो भी भारत को आजाद देखना चाहते थे| 17 दिसम्बर, 1928 को सरदार भगतसिंह ने अंग्रेज अधिकारी सांडर्स की गोली मारकर हत्या कर दी तो वो भाभी दुर्गा व उनके पुत्र को साथ लेकर पुलिस की आँखों में धूल झोंकते हुए रेलगाड़ी से लाहौर से कलकत्ता पहुंचे, और कलकत्ता में वे सेठ छाज्जूराम की कोठी पर पहुंचे। सेठ साहिब की धर्मपत्नी वीरांगना लक्ष्मी देवी ने उनका स्वागत किया| यहाँ भगत सिंह लगभग ढ़ाई महीने तक रहे, जिसकी उस समय कल्पना करना भी संभव नहीं था, लेकिन सेठ जी के देशप्रेम के कारण यह सम्भव हो पाया| उन्होंने देश की आज़ादी में सबसे भरी आर्थिक सहयोग दिया| वे कहा करते थे कि देश को आज़ाद करवाने में चाहे उनकी पूरी सम्पति लग जाए, लेकिन देश आज़ाद होना चाहिए|

और अपने हाथों से भोजन बनाकर खिलाया|

पंडित मोतीलाल नेहरू, नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, लाला लाजपत राय, महात्मा गांधी के मनोनीत कांग्रेस अध्यक्ष सीताभिपट्टाभिमैया सहित न जाने कितने ही नेताओं और क्रांतिकारियों को देश की आज़ादी के लिए भारी चंदा दिया| नेता जी सुभाष चन्द्र बोस जर्मनी जा रहे थे तो उन्होंने भी चौधरी छाजूराम जी से आर्थिक सहायता ली थी| सामाजिक बुराइयों के खिलाफ भी चौधरी छाजूराम जी ने एक लम्बी लड़ाई लड़ी| बाल-विवाह व् अशिक्षा के वो घोर विरोधी थे|

उनका मन कभी भी राजनीति में नहीं लगा, लेकिन फिर भी चौधरी छोटूराम के कहने पर संयुक्त पंजाब में सं 1927 में एम. अल. सी. भी रहे|
चौधरी छाजूराम का २७ सितंबर १९३७ को अकस्मात देहावसान हो गया।

चौधरी छोटूराम की सेठ जी को श्रद्धांजलि:

ऎसे महान पुरुष, सेठो के सेठ, सर्वश्रेष्ठ दानवीर, गरीबनवाज और पतितो-उद्दारक सेठ छाज्जूराम जी के महाप्रयाण (1943) के अवसर पर दीनबंधु चौधरी छोटूराम ने कहा था ” महान दानवीर, गरीबों व् अनाथों का धनवान पिता, तथा मेरे धर्म पिता सेठ छाज्जूराम अमर होकर हम सबके लिए प्रेरणा का स्रोत बन गए| उनके लिए सच्ची श्रृद्धांजलि यही होगी कि हम सभी उनकी इच्छाओं, आकांक्षाओ के अनुसार दिखाए गए मार्ग पर चलते रहें| इस महान विभूति को हम सदैव याद रखेंगे।
बताया जाता है कि 1900 के बाद गुलामी के समय सेठ छाजूराम ने अपनी पूरे जीवन की अधिकतर कमाई यानि 88 लाख रूपये दान देकर मानवता भलाई के काम करवाए थे।

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