सुप्रीम कोर्ट ने जारी की लैंगिक रूढ़ीवादिता पर हैंडबुक

Supreme Court Releases Handbook Of Alternative Words For Stereotype Words Like Affair Housewife Concubine See Full List
‘अफेयर’, ‘हाउसवाइफ’, ‘रखैल’…अदालतों में ऐसे शब्दों का नहीं होगा इस्तेमाल, नए शब्द जारी, देखें पूरी लिस्ट

सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ ने अदालती कार्यवाही में महिलाओं के बारे में लैंगिक रूढ़िवादिता को पहचानने, समझने और उसका मुकाबला करने के लिए एक हैंडबुक जारी किया है। जजों और वकीलों दोनों के लिए उपलब्ध कराई गई हैंडबुक में लैंगिक तौर पर अनुचित शब्दों की एक शब्दावली है और वैकल्पिक शब्द या वाक्यांश सुझाए गए हैं ।

मुख्य बिंदु
सुप्रीम कोर्ट या अदालतों में अब जेंडर स्टीरियोटाइप शब्दों का नहीं होगा इस्तेमाल
सीजेआई चंद्रचूड़ ने जारी की ऐसे शब्दों और उनके वैकल्पिक शब्दों की हैंडबुक
अफेयर, हाउसवाइफ, रखैल, वेश्या जैसे शब्दों का अब अदालती कार्यवाही में नहीं होगा इस्तेमाल

नई दिल्ली 17 अगस्त: सुप्रीम कोर्ट ने अदालती फैसलों में जेंडर स्टीरियोटाइप शब्दों यानी ऐसे शब्द जो लैंगिक भेदभाव वाली रुढ़ियों पर आधारित हों या महिलाओं के लिहाज से अपमानजनक हों, उनकी जगह पर वैकल्पिक शब्दों की लिस्ट जारी की है। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने बुधवार को जेंडर स्टीरियोटाइप शब्दों के इस्तेमाल से निपटने के लिए हैंडबुक जारी किया। चीफ जस्टिस ने इसकी घोषणा करते हुए कहा है कि जेंडर स्टीरियोटाइप (लैंगिक घिसेपिटे यानी रूढ़िवादी) शब्दों का उपयोग अदालती कार्रवाई में होता रहा है जिसे पहचान कर उसे हटाने और उसके वैकल्पिक शब्दों के इस्तेमाल के लिए जागरुकता पैदा करने के लिए हैंडबुक जारी किया गया है।

/अदालत की भाषा में ‘गृहिणी’,… अदालत की भाषा में ‘गृहिणी’, ‘व्यभिचारिणी’, ‘छेड़छाड़’ जैसे कोई और शब्द नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने ‘लैंगिक रूप से अनुचित शब्दों के लिए विकल्प दिए
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में जारी ‘हैंडबुक ऑन कॉम्बैटिंग जेंडर स्टीरियोटाइप्स’ में पूर्वाग्रही शब्दों की एक सूची की पहचान की है जो विशेष रूप से महिलाओं के बारे में हानिकारक लैंगिक रूढ़िवादिता को बढ़ावा देते हैं। कुछ मामलों में अदालत ने उन पुरानी धारणाओं के कारण ऐसे शब्दों के इस्तेमाल के खिलाफ सलाह दी है जिनका वे प्रतिनिधित्व करते हैं और अन्य में वैकल्पिक शब्दों या वाक्यांशों का सुझाव दिया गया, जिनका उपयोग वकीलों द्वारा दलीलों का मसौदा तैयार करते समय और न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों द्वारा आदेश और निर्णय लिखते समय किया जा सकता है।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने इस परियोजना का नेतृत्व किया। उन्होंने प्रस्तावना में लिखा, “यहां तक ​​​​कि जब रूढ़िबद्ध भाषा का उपयोग किसी मामले के नतीजे में बदलाव नहीं करता है, तब भी रूढ़िबद्ध भाषा हमारे संवैधानिक लोकाचार के विपरीत विचारों को मजबूत कर सकती है। कानून के जीवन के लिए भाषा महत्वपूर्ण है। शब्द वह साधन हैं जिसके माध्यम से कानून के मूल्यों का संचार किया जाता है। शब्द कानून निर्माता या न्यायाधीश के अंतिम इरादे को राष्ट्र तक पहुंचाते हैं। हालांकि, एक न्यायाधीश जिस भाषा का उपयोग करता है वह न केवल कानून की उनकी व्याख्या को दर्शाता है, बल्कि समाज के बारे में उनकी धारणा को भी दर्शाता है। जहां न्यायिक प्रवचन की भाषा महिलाओं के बारे में पुरातनपंथी या गलत विचारों को दर्शाती है, यह कानून और भारत के संविधान की परिवर्तनकारी परियोजना को बाधित करती है, जो लिंग की परवाह किए बिना सभी व्यक्तियों के लिए समान अधिकार सुरक्षित करना चाहती है।
जिन शब्दों या वाक्यांशों पर अदालत ने नाराजगी व्यक्त की है वे आम तौर पर ऐसे होते हैं जो किसी व्यक्ति के चरित्र के एक या अधिक पहलुओं के बारे में आरोप लगाते हैं। इसी तरह कोर्ट ने सलाह दी है कि पत्नी को कर्तव्यपरायण, वफादार, अच्छी या आज्ञाकारी पत्नी कहने के बजाय सिर्फ पत्नी कहें। एक मां को उसकी वैवाहिक स्थिति का हवाला दिए बिना बस इतना ही कहा जाना चाहिए। ‘हार्मोनल’ (एक महिला की भावनात्मक स्थिति का उपयोग करने के लिए), ‘स्त्रीवत’ और ‘लेडीलाइक’ जैसे शब्दों से बचा जाना चाहिए और इसके बजाय, लिंग-तटस्थ शब्दों का उपयोग करके व्यवहार, विशेषताओं या भावनात्मक स्थिति का सटीक वर्णन करने का प्रयास किया जाना चाहिए। Also Read – सुप्रीम कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन में चुनाव सुधार पर सुझाव मांगे हैंडबुक में दी गई उदाहरणात्मक सूची से शब्दों की दूसरी श्रेणी निकाली जा सकती है। हालांकि ये शब्द आमतौर पर कानूनी भाषा में उपयोग किए जाते हैं, सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया है कि कानूनी लेखन में उनके अधिक राजनीतिक रूप से सही और वैज्ञानिक विकल्पों का उपयोग किया जाना चाहिए। कुछ उदाहरण हैं: ‘व्यभिचारिणी’ के बजाय ‘वह महिला जो विवाहेतर यौन संबंधों में संलग्न है’; ‘जैविक लिंग’ के बजाय ‘जन्म के समय निर्धारित लिंग’; ‘कार्नल इंटरकोर्स’ की जगह ‘सेक्सुअल इंटरकोर्स’; ‘छेड़खानी’ के बजाय ‘सड़क पर यौन उत्पीड़न’; ‘वेश्या’ की जगह ‘सेक्स वर्कर’ कहा जाए।

विशेष रूप से यह हैंडबुक यौन उत्पीड़न का सामना करने वाले किसी व्यक्ति के संदर्भ में ‘पीड़ित’ के विपरीत ‘सर्वाइवर’ शब्द के उपयोग को लेकर एक आम दुविधा को छूती है। ‘सर्वाइवर’ या पीड़ित? यौन हिंसा से प्रभावित व्यक्ति स्वयं को ‘सर्वाइवर’ या “पीड़ित” के रूप में पहचाना जा सकता है। दोनों शर्तें तब तक लागू होती हैं जब तक कि व्यक्ति ने कोई प्राथमिकता व्यक्त न की हो, ऐसी स्थिति में व्यक्ति की प्राथमिकता का सम्मान किया जाना चाहिए।” मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने इस साल की शुरुआत में महिला दिवस समारोह में खुलासा किया कि कानूनी प्रवचन में इस्तेमाल होने वाले अनुचित लिंग संबंधी शब्दों की इस कानूनी शब्दावली को जारी करने की योजना पर कई वर्षों से काम चल रहा है – जिसकी संकल्पना कोविड काल के दौरान की गई थी। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश ने कहा, यह एक मिशन था जिसे उन्होंने व्यक्तिगत रूप से चलाया था। अपने भाषण के दौरान उन्होंने यह भी घोषणा की थी कि जल्द ही ऐसी एक हैंडबुक जारी की जाएगी। यह हैंडबुक उस भाषा की पहचान करती है जो लैंगिक रूढ़िवादिता को बढ़ावा देती है और उपयुक्त विकल्प पेश करती है, लैंगिक रूढ़िवादिता, विशेष रूप से महिलाओं के बारे में, पर आधारित सामान्य लेकिन गलत तर्क पैटर्न को चिह्नित करती है और सुप्रीम कोर्ट के बाध्यकारी निर्णयों पर प्रकाश डालती है जिसने इन रूढ़ियों को खारिज कर दिया है। यह मसौदा ई-कमेटी की सामाजिक न्याय उप-समिति द्वारा तैयार किया गया है, जिसकी अध्यक्षता कलकत्ता हाईकोर्ट की न्यायाधीश जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य कर रही हैं। इस प्रक्रिया में शामिल अन्य लोगों में दिल्ली हाईकोर्ट की न्यायाधीश जस्टिस प्रतिभा एम सिंह, पूर्व न्यायाधीश जस्टिस प्रभा श्रीदेवन और गीता मित्तल और वकील और एनयूजेएस की सहायक संकाय सदस्य झूमा सेन शामिल थीं।

केंद्र सरकार ने खुद से जुड़े मुकदमे में अदालतों के समक्ष सरकारी अधिकारियों की उपस्थिति के संबंध में एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) का मसौदा पेश किया है। एसओपी में सुझाव दिया गया है कि अदालतों में सरकारी अधिकारियों की उपस्थिति केवल ‘असाधारण मामलों’ में ही आवश्यक होनी चाहिए, न कि नियमित अभ्यास के रूप में। केंद्र ने अपने एसओपी में कहा है कि अगर… ‘नहीं मतलब नहीं; महिलाओं के कपड़े निमंत्रण का संकेत नहीं देते’: सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार की रूढ़ियों को दूर करने के लिए हैंडबुक जारी किया सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को ‘हैंडबुक ऑन कॉम्बैटिंग जेंडर स्टीरियोटाइप्स’ जारी किया है। कानूनी चर्चा में प्रयुक्त लिंग संबंधी अनु‌चित शब्दों की इस कानूनी शब्दावली की योजना पर कई वर्षों से काम हो रहा है, हालांकि इस साल की शुरुआत में महिला दिवस समारोह में पहली बार इसकी घोषणा की गई। कलकत्ता हाईकोर्ट की जज मौसमी भट्टाचार्य की अध्यक्षता वाली एक समिति… सुप्रीम कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन में चुनाव सुधार पर सुझाव मांगे सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (14 अगस्त) को सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के अध्यक्ष और सीनियर एडवोकेट आदीश सी अग्रवाल सहित सदस्यों को एससीबीए की चुनाव प्रक्रिया में और सुधारों के संबंध में सुझाव प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड प्रवीर चौधरी के माध्यम से बार एसोसिएशन के एक सदस्य की… ‘

सुप्रीम कोर्ट के सीनियर ऐडवोकेट एमएल लाहौटी बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने इस ओर जो कदम उठाया है यह बेहद प्रगतिशील कदम है। क्योंकि महिलाओं के प्रति एक आदर का भाव आना अच्छी बात है। कई बार जजमेंट में इस तरह से शब्द जैसे वेश्या या रखैल शब्द का इस्तेमाल होने से असहजता महसूस होती रही है लेकिन अब जो हैंडबुक जारी कर इन शब्दों के बदले जिन शब्दों का इस्तेमाल किया गया है उससे बेहतरी का भाव दिखता है। समाज तेजी से बदल रहा है और ऐसे में इस तरह के रूढ़ीवादी शब्दों पर लगाम लगाना जरूरी भी था और सुप्रीम कोर्ट की पहल बेहद प्रगतिशील है।
इस हैंडबुक के बारे में बताया गया है कि इसमें महिलाओं के प्रति स्टीरियोटाइप शब्दों और वाक्यों के इस्तेमाल वाले शब्दों की पहचान कर उसके बदले वैकल्पिक शब्दों के इस्तेमाल के लिए सुझाव दिए गए हैं। इसका मकसद पहले के जजमेंट की आलोचना या संदेह करना नहीं है बल्कि लैंगिग रूढ़िवादिता वाले शब्दों के इस्तेमाल को न कर उसके विकल्प को इस्तेमाल करने के बारे में जागरुकता पैदा करना है। यह हैंडबुक वेबसाइट पर उपलब्ध होगा। हैंडबुक जेंडर संवेदनशीलता को बताते हुए महिलाओं के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले स्टीरियोटाइप शब्दों के प्रति आगाह किया गया है। ऐसे स्टीरियोटाइप शब्दों से बचते हुए उसके विकल्प वाले शब्दों के इस्तेमाल पर जोर दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने हैंडबुक जारी कर कहा है कि एक स्टीरियोटाइप सोच है कि महिला अगर गैर परंपरागत कपड़े पहनती है या फिर वह अल्कोहल का सेवन या फिर सिगरेट का सेवन करती है तो पुरुष अपने डिफेंस में कहता है कि महिला चूंकि ऐसा कर रही हैं, ऐसे में वह उन्हें छूने आदि के लिए इनवाइट कर रही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस रूढ़ीवादी अवधारणा को गलत बताते हुए कहा है कि अगर महिला अन्य लोगों की तरह सिगरेट या अल्कोहल का सेवन करती है तो उसके कई कारण हो सकते हैं इसका मतलब यह नहीं है कि उनकी मर्जी के बिना कोई उन्हें टच करे।

स्टिरियोटाइप शब्द और उसके बदले नए शब्द
रखैल- शादी के बाहर महिला का किसी और पुरुष के साथ रोमांटिक रिलेशन
वेश्या- सेक्स वर्कर
उत्तेजक कपड़े- ड्रेस
बहकाने वाली- महिला
व्यभिचारिणी- महिला
अविवाहित मां- मां
अनैतिक व्यवहार की महिला-महिला
परपुरुष गामिनी, एडल्टेरेस- शादी से बाहर महिला के किसी अन्य पुरुष से शारीरिक संबंध
अफेयर- शादी से बाहर के संबंध
बास्टर्ड (नाजायज औलाद)- ऐसा बच्चा जिसके पैरेंट्स ने शादी न की हो
अप्राकृतिक संबंध- सेक्सुअल संबंध
बाल वेश्या- बच्चे जिनका ट्रैफिकिंग कराया जा रहा हो
रखैल (कीप)- शादी से बाहर महिला के किसी और पुरुष से रोमांटिक संबंध
छेड़छाड़ (ईव टीजिंग)- गलियों में सेक्सुअल हरासमेंट
हूकर- सेक्स वर्कर
हाउस वाइफ- होम मेकर
इंडियन अथवा वेस्टर्न वूमेन- महिला

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