असली चमत्कार तो धीरेंद्र शास्त्री के गुरु जगद्गुरु रामभद्राचार्य हैं

न लिखाई, न पढ़ाई… गुरु ने बाबरी केस में दी थी गवाही, इनके चेले हैं बागेश्वर धाम वाले बाबा

Rambhadracharya Acharya Dharmendra Shashtri News

हाइलाइट्स
1-स्वामी रामदेव ने धर्मेंद्र कृष्ण शास्त्री को बताया है जगदगुरु रामभद्राचार्य का शिष्य
2-राम जन्मभूमि केस में अहम गवाही दे चुके हैं तुलसी पीठ के पीठाधीश्वर रामभद्राचार्य
3-रामभद्राचार्य को 1988 में मिली थी जगद्गुरु की पदवी, 22 भाषाओं के हैं जानकार

लखनऊ 24 जनवरी: बागेश्वर धाम सरकार पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री पर लग रहे आरोपों के बीच कई लोग उनके पक्ष में खड़े होने लगे हैं। कोई उन्हें चमत्कारी बाबा कह रहा है, तो कोई उन्हें अंधविश्वास फैलाने वाला करार दे रहा है। हालांकि, बागेश्वर धाम पीठाधीश्वर खुद को कभी भी चमत्कारिक बाबा नहीं कहते हैं। उनका कहना है कि हमारे खिलाफ प्रपंच हो रहा है। इससे हम नहीं डरते। हम न तो भविष्य बताने वाले हैं और न ही तांत्रिक। मिरेकल मैन तो बिल्कुल नहीं है। पंडित धीरेंद्र शास्त्री खुद को हनुमान जी का सेवक बताते हैं। हनुमान जी की शक्ति से लोगों की समस्याएं हल करने का प्रयास करते हैं। आरोप लगाने वालों पर हमलावर हैं। खुद को बब्बर शेर बताते हैं। अपनी शक्तियों का प्रमाण देने की बात करते हैं। अपने ऊपर लगने वाले सभी आरोपों का जवाब भी दे रहे हैं। इस बीच अब बागेश्वर धाम सरकार के पक्ष में संत समाज एकजुट होता दिख रहा है। बागेश्वर धाम सरकार खुद को जगद्गुरु रामभद्राचार्य का शिष्य बताते हैं। अब रामभद्राचार्य जी के दरबार में योगगुरु स्वामी रामदेव ने इस प्रकार का दावा करके चर्चा को और तेज कर दिया है। स्वामी रामदेव ने जगदगुरु को संबोधित करते हुए कहा कि आपके चेले धीरेंद्र शास्त्री पर इन दिनों सवाल किया जा रहा है। स्वामी रामदेव के बयान पर अब जगद्गुरु की चर्चा तेज हो गई है। आइए, हम आपको जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी के बारे में बताते हैं।

जौनपुर में हुआ था रामभद्राचार्य का जन्म

जगद्गुरु रामभद्राचार्य का जन्म 14 जनवरी 1950 को जौनपुर के उत्तर प्रदेश में हुआ था। सरयूपरीण ब्राह्मण कुल के वशिष्ठ गोत्र में जन्में रामभद्राचार्य की आंखें महज दो माह की उम्र में चली गई। दरअसल, उन्हें ट्रकोम नामक बीमारी हुई थी। गांव की महिला ने कोई दवा डाली तो आंखों से खून निकलने लगा। आयुर्वेदिक, होम्योपैठ, एलोपैथ सभी इलाज हुआ। उनका प्रारंभिक नाम गिरधर मिश्रा है। गिरधर को इलाज के लिए सीतापुर, लखनऊ और मुंबई में दिखाया गया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। बचपन में ही आंख जाने के बाद उनके सामने समस्याएं काफी अधिक थी। लेकिन, इसे उन्होंने अलग नजरिए से देखा। पिता के मुंबई में नौकरी करने के बाद दादा ने उन्हें प्रारंभिक शिक्षा दी। रामायण, महाभारत, विश्रामसागर, सुखसागर, प्रेमसागर, ब्रजविलास जैसे किताबों का पाठ कराया। विलक्षण प्रतिभा के धनी गिरधर ने महज तीन साल की उम्र में अपनी रचना अपने दादा को सुनाई तो सब दंग रह गए।

पहली रचना में वे बालक गिरधर ने एक गोपी के जरिए मैया यसोदा को उलाहना देती दिखी। रचना थी- मेरे गिरिधारी जी से काहे लरी। तुम तरुणी मेरो गिरिधर बालक काहे भुजा पकरी। सुसुकि सुसुकि मेरो गिरिधर रोवत तू मुसुकात खरी। तू अहिरिन अतिसय झगराऊ बरबस आय खरी। गिरिधर कर गहि कहत जसोदा आंचर ओट करी। इसका अर्थ यह है कि हे यशोदा, तुम मेरे गिरधारी से क्यों लड़ी। मेरे गिरधर की कोमल बाहों को क्यों पकड़ा। मेरा गिरधर सिसक-सिसक कर रो रहा है और तुम मुस्कुराती खड़ी हो। तुम यादव कुल की झगड़ालू महिला हो।

22 भाषाओं के जानकार, 80 से अधिक रचनाओं के लेखक

जगद्गुरु रामभद्राचार्य को बहुभाषाविद कहा जाता है। वे 22 भाषाओं में पारंगत हैं। संस्कृत और हिंदी के अलावा अवधि, मैथिली सहित अन्य भाषाओं में कविता कहते हैं। अपनी रचनाएं रची हैं। अब तक उन्होंने 80 से अधिक पुस्तकों की रचना की है। इसमें दो संस्कृत और दो हिंदी के महाकाव्य भी शामिल हैं। तुलसीदास पर देश के सर्वश्रेष्ठ विशेषज्ञों में से उन्हें एक माना जाता है। जगद्गुरु रामभद्राचार्य न लिख सकते हैं। न पढ़ सकते हैं। न ही उन्होंने ब्रेल लिपि का प्रयोग किया है। वे केवल सुनकर शिक्षा हासिल की। बोलकर अपनी रचनाएं लिखवाते हैं। उनकी इस अप्रतिम ज्ञान के कारण भारत सरकार ने उन्हें वर्ष 2015 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया था।

तुलसीपीठ के संस्थापक, रामानंद संप्रदाय के जगद्गुरु

रामभद्राचार्य एक भारतीय हिंदू आध्यात्मिक नेता के तौर पर माने जाते हैं। वे शिक्षक, संस्कृत विद्वान, बहुभाषाविद, कवि, लेखक, पाठ्य टीकाकार , दार्शनिक, संगीतकार, गायक, नाटककार के में भी जाने जाते हैं। संत तुलसीदास के नाम पर चित्रकूट में एक धार्मिक और सामाजिक सेवा संस्थान तुलसी पीठ की स्थापना उन्होंने की। इसके वे प्रमुख हैं। चित्रकूट के जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय के संस्थापक और आजीवन चांसलर हैं। यह विशेष रूप से चार प्रकार के विकलांग छात्रों को स्नातक और पीजी पाठ्यक्रम करता है। रामानंद संप्रदाय के चार जगद्गुरु में से वे एक हैं। वर्ष 1988 में उन्होंने यह पद धारक हैं। उनके प्रवचन और दर्शन के लाखों-करोड़ों फॉलोअर्स देश में मौजूद हैं। उनकी विलक्षण प्रतिभा का हर कोई कायल है।

बाबरी केस में गवाही रही थी महत्वपूर्ण

रामभद्राचार्य का नाम हिंदू संत समाज में काफी आदर के साथ लिया जाता है। यह सम्मान उन्होंने अपनी विशेष काबिलियत से हासिल किया है। सुप्रीम कोर्ट में राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद में उनकी गवाही सुर्खियां बनी थीं। वेद-पुराणों के उद्धहरणों के साथ उनकी गवाही का कोर्ट भी कायल हो गया था। श्रीराम जन्मभूमि के पक्ष में वे वादी के तौर पर उपस्थित हुए थे ऋग्वेद की जैमिनीय संहिता से उन्होंने उद्धरण दिया था। इसमें सरयू नदी के स्थान विशेष से दिशा और दूरी का बिल्कुल सटीक ब्योरा देते हुए रामभद्राचार्य ने श्रीराम जन्मभूमि की स्थिति बताई थी। कार्ट में इसके बाद जैमिनीय संहिता मंगाई गई। उसमें जगद्गुरु ने जिन उद्धरणों का जिक्र किया था, उसे खोलकर देखा गया। सभी विवरण सही पाए गए। पाया गया कि जिस स्थान पर श्रीराम जन्मभूमि की स्थिति बताई गई, विवादित स्थल ठीक उसी स्थान पर पाया गया। जगद्गुरु के बयान ने फैसले का रुख मोड़ दिया। सुनवाई करने वाले जस्टिस ने भी इसे भारतीय प्रज्ञा का चमत्कार माना। एक व्यक्ति जो देख नहीं सकते, कैसे वेदों और शास्त्रों के विशाल संसार से उद्धरण दे सकते हैं, इसे ईश्वरीय शक्ति ही मानी जाती है।

क्या कहा स्वामी रामदेव ने?

स्वामी रामदेव जगद्गुरु रामभद्राचार्य के मंच पर पहुंचे थे। इस दौरान उन्होंने जगद्गुरु रामभद्राचार्य को संबोधित करते हुए कहा कि आजकल आपके एक चेले पर कुछ पाखंडी लोग टूटकर पड़े हुए हैं। इस पर जगतगुरु मुस्कुराते हुए दिखते हैं। आगे स्वामी रामदेव कहते हैं कि यह भगवान की कृपा क्या है, यह बालाजी की कृपा क्या है, कहने वाले लोग सनातन को नहीं समझते हैं। स्वामी रामदेव ने कहा कि यह बालाजी की कृपा क्या है, भगवद कृपा क्या है, यह देखना हो तो बिना आंखों के चराचर ब्रह्म को साधने वाले पूज्य रामभद्राचार्य में देख लो। राम जी की कृपा, हनुमान जी की कृपा, सनातन संस्कृति का चमत्कार क्या है, यह इनमें दिख जाएगा। एक व्यक्ति जिसने अंतर मन की आंखों से देखकर भगवान को साध लिया। जिनकी मेधा के आगे बड़े-बड़े नतमस्तक हैं।

स्वामी रामदेव आगे कहते हैं, इश्वरीय कृपा पर लोगों का सवाल आता है। मैं उन्हें रामभद्राचार्य जी से मिलने को कहता हूं। जहां तक हमारे धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की बात है, वह महाराज जी के शिष्य हैं। महाराज जी के कृपा पात्र हैं। भगवान और गुरु की कृपा और शक्ति से व्यक्ति को सूक्ष्म दृष्टि प्राप्त होती है। अदृश्य शक्तियों को व्यक्ति साध लेता है। एक दिव्य ज्ञान प्राप्त होता है। यह विशुद्ध रूप से गुरु कृपा और भगवत कृपा से हासिल होती है। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को गुरु कृपा, भगवत कृपा प्राप्त हुई है। बालाजी महाराज की कृपा उसे मिली है। कहते हैं कि वह भूत- प्रेत भाग जाने की बात क्यों करता है।

स्वामी रामदेव ने कहा कि मैं कहता हूं भूत- पिशाच निकट नहीं आवे। इस प्रकृति कुछ प्राण- प्रदूषण हैं। कुछ आसुरी शक्तियां हैं। जो गुरु और भगवान की शरण में रहता है, जो भगवत कृपा संपन्न व्यक्ति का आशीर्वाद पा लेता है। वह आसुरी शक्तियों के प्रभाव से बाहर निकल जाता है। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री महाराज जी के शिष्य कर रहे हैं। योग गुरु ने कहा कि जहां तक प्रश्न तर्- वितर्क का है, जिनको तर्क-वितर्क करना हो, वह महाराज रामभद्राचार्य जी के पास आ जाएं। जिनको चमत्कार देखना हो, वह महाराज जी के चेले के पास चले जाएं। स्वामी रामदेव ने कहा कि मैं मीडिया के लोगों को ज्यादा फोन नहीं करता। कुछ लोगों को कहा कि हर जगह पाखंड मत देखो। कुछ यह भी देख लो कि एक अदृश्य लोक भी है। यह जो आंखों से देख रहे हैं, यह तो महज 1 फीसदी है। अदृश्य लोक तो 99 फीसदी है।

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