प्रतिक्रिया: केबीसी में भी अपनी औकात दिखा गये आमिर

एक अभिनेता के तौर पर आमिर खान मुझे हमेशा अच्छे लगे हैं। उनकी अच्छी-बुरी, हिट-फ्लॉप शायद ही कोई ऐसी फिल्म होगी, जिसे मैंने देखा न हो, लेकिन पिछले रविवार को अमिताभ बच्चन के शो कौन बनेगा करोड़पति में आमिर खान की कुछ हरकतों से मैं अचंभित रह गया।
केबीसी के पहले शो में आमिर खान के अलावा कारगिल युद्ध के योद्धा मेजर डी.पी. सिंह और सेना पदक पाने वाली पहली महिला अफसर कर्नल मिताली मधुमिता भी आई थीं। हुआ यूं कि कर्नल मिताली मधुमिता के शौर्य पर वंदे मातरम् के नारे लगे और सभी लोगों ने हाथ उठाकर वंदे मातरम् कहा। खुद अमिताभ बच्चन ने वंदे मातरम् कहते हुए कई बार हाथ उठाया, लेकिन आमिर खान हाथ लटकाए रहे। वंदे मातरम् भी नहीं बोला। सिर्फ एक बार ‘मातरम्’ कहा और वो भी हंसते हुए।

वंदे मातरम पर सबके साथ सेल्यूट न करने के पत्रकारों के सवाल पर आमिर खान ने सफाई दी है कि वैसे उन्हे याद नहीं कि सेल्यूट किस बात पर रहा होगा। होगा तो मैंने भी दिया होगा लेकिन तब कैमरे इधर – उधर रहे होंगें

बात सिर्फ यही नहीं थी। सेना के सम्मान में सबने खड़े होकर सैल्यूट किया। अमिताभ बच्चन, मेजर डीपी सिंह समेत सभी लोग हाथ को माथे सटाकर सैल्यूट की मुद्रा में थे, लेकिन आमिर खान का हाथ ऊपर की तरफ उठा ही नहीं। यूं ही वो ये सब देखते रहे। तो इसे हम क्या मानें, आमिर के मन में देश की सेना के प्रति सम्मान नहीं है या फिर वो लापरवाह हैं या फिर वो कट्टर मुसलमान हैं, जो मानते हैं कि हाथ उठाकर वंदे मातरम् कहने और देश को सैल्यूट करने से उनका इस्लाम खतरे में पड़ जाएगा।
यहां मैं साफ कर दूं कि आमिर खान ने जो हरकत की, वो कानून के खिलाफ नहीं है। वंदे मातरम् आप किसी से जबरन नहीं कहलवा सकते और न ही सैल्यूट न करके उन्होंने कोई कानून तोड़ा है, लेकिन इमोशन भी तो कोई चीज होती है। खास तौर पर आमिर के लिए, क्योंकि आमिर अभिनेता हैं और फिल्मों में इमोशन ही सबसे ज्यादा बेचा जाता है। फिल्म पीके ने लाख विरोध के बावजूद अगर करोड़ों की कमाई की तो उसके पीछे वजह ये है कि कई बार फिल्म ने भावनाओं को छुआ। कभी भावनाओं को गुदगुदी हुई तो हंसी छूटी तो कभी फिल्म देखते हुए आंख भी नम हुई। आमिर तो वैसे भी भावनाओं के माहिर खिलाड़ी हैं, फिर उन्होंने देशवासियों की भावनाओं से खिलवाड़ क्यों किया..? उनसे ये चूक कैसे हुई..? ये उनकी चूक है या फिर लापरवाही या फिर जानबूझकर की गई हरकत.. फैसला आमिर को करना है।
इस सीन का वीडियो निकालकर मैंने अपने इंटरटेनमेंट रिपोर्टर सौरभ को भेजा था। दिल्ली में आमिर खान की प्रेस कॉन्फ्रेंस थी कल। हमारे रिपोर्टर ने आमिर से ये सवाल पूछा तो आमिर इधर-उधर झांकने लगे। पहले तो उन्होंने कहा कि वो सोशल मीडिया पर नहीं हैं, इस नाते उन्होंने वीडियो देखा नहीं।
हमारे रिपोर्टर ने कहा कि ये वीडियो वायरल नहीं है, मेरे पास है। आमिर ने कहा- ‘ओह अच्छा, मुझे याद नहीं है कि उस एपीसोड में सैल्यूट का कोई सीन था। मैंने भी किया होगा। मुझे याद नहीं है सॉरी। वंदे मातरम् पर मैंने भी सैल्यूट किया था। हो सकता है कि जब मैं सैल्यूट कर रहा था तो कैमरे का फोकस मेरी तरफ न रहा हो।’ मेरे रिपोर्टर ने कहा कि आप इजाजत दें तो मैं आपको वो वीडियो आपके पास लाकर दिखा सकता हूं। प्रेस कॉन्फ्रेंस खत्म हुई तो आमिर खान की टीम का एक सदस्य हमारे रिपोर्टर को ही धमकाने लगा कि ये सवाल हटा दीजिए। खैर उसे हमारे रिपोर्टर ने भी उसे खाने भर को दिया।
आमिर खान को मैं सजग इंसान मानता हूं। अच्छी फिल्में देने के अलावा उन्होंने ‘सत्यमेव जयते’ जैसा मेगा शो किया है, जिसने समाज पर असर डाला। जब वे भगवान शिव पर दूध चढ़ाने की जगह 20 रुपये का दूध गरीब बच्चे को देने की बात कहते हैं तो मैं उनसे सहमत होता हूं, लेकिन वंदे मातरम् पर उनकी चुप्पी और देश के नाम पर एक सैल्यूट करने के लिए उनका हाथ नहीं उठा, इसे मैं इत्तेफाक कैसे मान लूं। आमिर वैसे भी 2015 में ये बयान देकर हिंदुत्ववादियों के निशाने पर हैं कि उनकी पत्नी को इस देश में रहने में डर लगता है। अभी लाल सिंह चड्ढा में एक आतंकी को बचाकर उसका इलाज करवाने वाले सीन की खातिर एक बार फिर वो लोगों के निशाने पर आने वाले हैं।

शाहरुख खान हों आमिर खान हों या फिर सलमान खान। सही बात ये है कि इन तीनों में मैं आमिर को अच्छा इंसान समझता था, लेकिन सच ये है कि ये तीनों बदमाश हैं। बाहर से कितने भी ये जन-जन के हीरो बनें, लेकिन भीतर से ये कट्टर मुसलमान ही हैं। याद कीजिए शाहरुख खान और फरहा खान की फिल्म ‘ओम शांति ओम’ का वो सीन, जिसमें एक फिल्म का प्रीमियर होता है और उसमें देशभक्ति की फिल्में बनाने वाले मनोज कुमार जाते हैं। गार्ड उनसे आईकार्ड मांगता है तो आईकार्ड में जो तस्वीर होती है वो हाथों से छुपी होती है। गार्ड मनोज कुमार को डंडे मारकर भगाता है। मनोज कुमार की अदाकारी का एक रूप ये भी था कि अक्सर वो अपने चेहरे पर हाथ रख लेते थे, लेकिन शाहरुख-फरहा ने इसका बहुत ही बेहूदे तरीके से मजाक उड़ाया। अब इस सीन के माध्यम से शाहरुख-फरहा क्या साबित करना चाह रहे थे। मनोज कुमार, जिन्हें लोग भारत कुमार कहकर पुकारते रहे, उनके लिए इतना अपमानजनक सीन रखने के पीछे कौन सी मानसकिता थी..? क्या मनोज कुमार का देशभक्त होना और देशभक्तिपूर्ण फिल्में बनाना इन्हें रास नहीं आया था..?

ऐसा नहीं है कि मनोज कुमार पर उमर का असर हो गया और उन्हें हंसी-मजाक पसंद नहीं। उसी पोज में रणवीर सिंह ने फोटोशूट करवाया तो उन्होंने यह मजाक पसंद भी किया और दोनों का फर्क भी समझाया।
सलमान खान को ही लीजिए, हर साल उनकी गणपति पूजा वाली तस्वीरें आती हैं, लेकिन जब काले हिरण शिकार मामले में फंसे तो पुलिस की हिरासत में गोल टोपी पहनकर गए, संदेश दिया कि मुसलमान हूं इस नाते कानून सता रहा है। इनसे दो हाथ आगे तो संजय दत्त थे, जिन्होंने समाजवादी पार्टी के लिए चुनाव प्रचार करते हुए विलक्षण बात कही थी- मैं जेल में बंद था, वहां पर मुझे लोग पीटते थे, क्योंकि मेरी मां एक मुसलमान थी।’ अब ऐसी बेतुकी बात पर कोई भी माथा पीट लेगा।
इन फिल्मी कलाकारों का कितना सम्मान है हिंदुस्तान में, लेकिन ये इसका ये बार-बार फायदा उठाते हैं। मेरी पत्नी सलमान खान की फैन हैं। देश की जानी मानी एंकर श्वेता सिंह भी सलमान खान की फैन हैं और अंजना ओम कश्यप शाहरुख खान की फैन हैं। मैं खुद इन तीनों की तमाम फिल्मों का प्रशंसक हूं। ये हिंदुस्तानी फिल्म प्रेमी ही हैं जो आमिर खान की फिल्म ‘फना’ देखकर एक आतंकी की प्रेम कहानी को कबूल कर लेते हैं और ‘चक दे इंडिया’ में हॉकी कोच कबीर खान (शाहरुख खान) के साथ पूरा देश एक हो जाता है।
आज मैं ये पोस्ट भारी मन से लिख रहा हूं, क्योंकि मैं राजनीतिक पोस्ट और हिंदू-मुस्लिम पर पोस्ट लिखने से बचता हूं। मेरे दोस्त हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई भी हैं। मेरे गांव में मुस्लिमों की अच्छी खासी संख्या है और मेरा गांव बहुत मेलजोल से रहता है, गांव पर तो मैं कभी मजहबी आंच आने भी नहीं दूंगा। मैं उस सिद्धार्थनगर जिले का रहने वाला हूं, जहां आमने-सामने दो गांव हैं। एक अल्लापुर तो दूसरा भगवानपुर। भगवानपुर में कोई हिंदू नहीं है और अल्लापुर में कोई मुसलमान नहीं है।
आमिर खान, सलमान खान, शाहरुख खान की समय समय पर बेहूदा हरकतें देखता हूं तो महसूस होता है कि ये अपने मुस्लिम समाज के भी दुश्मन हैं। अपने समाज को कोई सीख नहीं देते, कोई उदाहरण प्रस्तुत नहीं करते, कट्टरता का विरोध नहीं करते। शादियां हिंदू लड़कियों से करते हैं, लेकिन सम्मान ये किसी भी धर्म का नहीं करते।
(केबीसी के जिस एपीसोड का जिक्र मैंने किया है, उसके स्टिल और वीडियो भी अटैच कर रहा हूं। आमिर खान के हाव भाव पर फैसला आप खुद कीजिए।)

*प्रताप लूथरा की फेसबुक पोस्ट

 

केबीसी में आमिर खान- भाग 2
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वंदे मातरम पर सांप सूंघ गया आमिर खान को

कौन बनेगा करोड़पति कार्यक्रम में, स्पष्ट रूप से अपनी आने वाली फिल्म लाल सिंह चड्ढा का प्रमोशन करने आए आमिर खान, बहुत तनाव में दिख रहे थे। उनके चेहरे पर वह उल्लास नहीं था जो कि होना चाहिए था। उनको पहली नजर देख कर ही लगा कि वह फिल्म की सफलता से आशंकित हैं और इस आशंका की वजह से तनाव में है। आमिर खान को देखते ही यह प्रतीत हो गया की इस प्रोग्राम के लिए उन्होंने काफी प्री प्लानिंग की है। उनकी पोशाक ने सबसे पहले मुझे चौकाया। आमतौर पर आमिर खान ऐसी पोशाकों में नहीं दिखते। यह पोशाक हर एक दृष्टि से पाकिस्तान की राष्ट्रीय पोशाक की तरह लग रही थी। गलाबंद अचकन, नीचे कुर्ता फिर चूड़ीदार और पैरों में काले जूते! भारत में मुस्लिम भी आमतौर पर ऐसे तैयार नहीं होते। शायद पाकिस्तान को आमिर कोई मैसेज देना चाह रहे थे। लेकिन हो सकता है कि यह मेरी कल्पना की उड़ान हो और आमिर खान को यह ड्रेस पसंद हो, हालांकि मैंने उनको ऐसी पोशाक में बहुत कम या शायद कभी नहीं देखा है।
उसके अब बारी आई वंदे मातरम के जयघोष की! अमिताभ बच्चन के साथ भारतीय सेना के दो अन्य मुख्य अतिथियों ने तो मुट्ठी बांधकर और लहरा कर जोश से नारा लगाया। लेकिन आमिर खान साहब मुट्ठी नहीं लहरा पाए और सिर्फ एक बार होठों-होठों में वंदे मातरम बुदबुदा कर रह गए। शायद वे संदेश देना चाहते थे कि उनको वंदे मातरम बोलने से गुरेज है भी और नहीं भी है।
फिर आमिर, सेना की एक कार्यरत महिला अधिकारी के साथ बैठे और सवालों का सिलसिला चला। आमिर खान ने मात्र उन्हीं चंद सवालों के उत्तर दिए जो उनकी आने वाली फिल्म के प्रचार से संबंधित थे अन्यथा अधिकतर उत्तर, महिला सेना अधिकारी ने ही दिए।
इसके बाद बारी आई उस महिला अधिकारी के शौर्य को प्रदर्शित करती एक घटना को सुनाने की। उन्होंने काबुल में ऐसी घटना बताई जिसमें उन्होंने जान पर खेलकर 16 लोगों की क्रॉस फायर में जान बचाई थी। अमिताभ बच्चन की आह्वान पर पूरे स्टूडियो ने खड़े होकर उस महिला अधिकारी को सेल्यूट किया।
पूरे स्टूडियो का मतलब पूरे स्टूडियो ने!
सिर्फ एक प्राणी को छोड़कर!
और वह थे आमिर खान।
आमिर खान ने अपनी ही साथ ही महिला अधिकारी को सेल्यूट नहीं किया और सिर्फ ताली बजाते रह गए। वे कहीं ना कहीं भूतपूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी जी की याद दिला गए।
फिर भारतीय सेना की इस कार्यरत महिला अधिकारी की जगह भारतीय सेना के एक सेवानिवृत्त मेजर ने ले ली, जो करगिल युद्ध में अपना शौर्य प्रदर्शित कर चुके हैं।
अब जरा केबीसी की एक प्रोग्राम के तौर पर बात कर लेते हैं। यह तो स्पष्ट था कि स्वतंत्रता के अमृत वर्ष की आड़ में यह एक प्रायोजित प्रोग्राम बनाया गया था और इसमें जो सबसे आपत्तिजनक बात मुझे लगी वह था भारतीय सेना का इस्तेमाल। भारतीय सेना की एक वर्तमान कार्यरत अधिकारी और भारतीय सेना के अवकाश प्राप्त मेजर, दोनों ही इस प्रोग्राम में आमिर खान के साथ आए थे। प्रयास यह दिखाने का था कि आमिर खान कितने राष्ट्रभक्त हैं। बीच में ऐसे तथ्य भी दिए गए कि आमिर खान ने सेना के लिए एक एनजीओ का गठन भी किया है जो घायल और मृत सैनिकों को सहायता देती है और यह केबीसी उसी के लिए खेला जा रहा है। हालांकि एनजीओ कब बना इसकी जानकारी नहीं दी गई। मुझे ऐतराज है ऐसे शैडो एडवरटाइजिंग यानी छद्म प्रचार के लिए भारतीय सेना के ऐसे इस्तेमाल पर! यह प्रोग्राम विशुद्ध रूप से व्यवसायिक था। एक फिल्म लाल सिंह चड्ढा को सफल बनाने के लिए और आमिर खान द्वारा पैसे कमाने के लिए किया गया था। और इसके लिए सेना का प्रयोग करना निंदनीय है। चाहे वह कार्यरत अधिकारी हो या सेवानिवृत्त!
दूसरी आपत्तिजनक बात थी हमारे बहादुर मेजर द्वारा यह कहलवाना कि युद्ध से मसले हल नहीं होते। युद्ध में कई जाने जाती हैं। मां के बेटे जाते हैं। औरतें विधवा होती हैं। क्योंकि यही बात फिल्म में आमिर खान का पात्र बोलता है कि क्योंकि सेना में दूसरों को मारना पड़ता है इसलिए उसका सेना में दिल नहीं लगता। अगर यह बात भारतीय सेना का मेजर बोलता है तो यह भारतीय सेना को हिंसक दिखाने की और मानसिक रूप से कमजोर करने की चेष्टा लगती है। इसकी जितनी भर्त्सना की जाए कम है। जिसने भी हमारे बहादुर मेजर के मुंह से यह बात कहलाई, उनको यह डायलॉग बोलने को दिए, उस पर केस चलाना चाहिए। वैसे यह प्रोग्राम देख कर लग गया की आमिर खान के दिल में कोई तो गांठ है कि उनको राष्ट्रभक्ति साबित करनी पड़ रही है। लेकिन जनता के दिल का भ्रम वह अभी भी हटा नहीं पा रहे हैं।
तो आमिर खान साहब को हमारी शुभकामनाएं क्योंकि मुझे लगता है कि उनको उसकी आवश्यकता पड़ेगी।
साभार…….

 

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