झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के 300 वर्ष पहले पुर्तगालियों से लोहा लेने वाली रानी अब्बक्का

 

हिंदु रानी > अब्बक्का रानी : एक वीरांगना जिन्होंने पोर्तुगीजों को पराभूत किया !

अब्बक्का रानी प्रतिमा

अब्बक्का रानी अथवा अब्बक्का महादेवी तुलुनाडू की रानी थीं जिन्होंने 16वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में पोर्तुगीजों के साथ युद्ध किया । वह चौटा राजवंश से थीं जो मंदिरों के शहर मूडबिद्री से शासन करते थे । बंदरगाह शहर उल्लाल उनकी सहायक राजधानी थी ।

चौटा राजवंश मातृसत्ता की पद्धति से चलने वाला था, अब्बक्का के मामा, तिरुमला राय ने उन्हें उल्लाल की रानी बनाया । उन्होंने मैंगलोर के निकट के प्रभावी राजा लक्ष्मप्पा अरसा के साथ अब्बक्का का विवाह पक्का किया । बाद में यह संबंध पोर्तुगीजों हेतु चिंता और अवसर का विषय बनने वाला था । तिरुमला राय ने अब्बक्का को युद्ध के दांवपेचों से अवगत करा रखा था । किंतु यह विवाह अधिक समय तक नहीं चला और अब्बक्का उल्लाल वापिस आ गई । उनके पति ने अब्बक्का से प्रतिशोध लेने की इच्छा से बाद में अब्बक्का के विरुद्ध पोर्तुगीजों के साथ हाथ मिलाया ।

पोर्तुगीजों ने उल्लाल जीतने के कई प्रयास किए, क्योंकि रणनीतिक दृष्टि से वह बहुत महत्वपूर्ण था किंतु लगभग चार दशकों तक अब्बक्का ने उन्हें हर समय खदेड भगाया  । अपनी बहादुरी के कारण वह ‘अभया रानी’ नाम से विख्यात थी । औपनिवेशक शक्तियों के विरुद्ध लडने वाले बहुत अल्प भारतीयों में से वह एक थीं तथा वह प्रथम भारतीय स्वतंत्रता सेनानी मानी जाती थीं ।

रानी अब्बक्का भले ही एक छोटे राज्य उल्ला की रानी थीं, लेकिन थी एक अदम्य साहस एवं देशभक्तिवाली महिला । झांसी की रानी साहस का प्रतीक बन गई हैं, उनके ३०० वर्ष पूर्व हुई अब्बक्का को इतिहास भूल गया है ।

पोर्तुगीजों के साथ उनकी साहसपूर्ण लडाईयों का ब्यौरा ठीक से संकलित नहीं है। किंतु जो भी उपलब्ध है, उससे इस उत्तुंग, साहसी एवं तेजस्वी व्यक्तित्व का पता चलता है ।

स्थानीय किंवदंतियों के अनुसार अब्बक्का एक बहुत ही होनहार बच्ची थीं, तथा जैस-जैसे वह बडी होती गई, एक द्रष्टा के सारे लक्षण उनमें दिखाई देने लगे; धनुर्विद्या तथा तलवारबाजी में उनका मुकाबला करने वाला कोई नहीं था । उनके पिता ने उन्हें प्रोत्साहित किया जिससे वह हर क्षेत्र में प्रवीण हो गई । उनका विवाह पडोस के बांघेर के राजा के साथ हुआ । किंतु यह विवाह अधिक चला नहीं, तथा अब्बक्का पति के दिए हीरे-जवाहरात लौटाकर घर आ गई । अब्बक्का के पति ने उनसे प्रतिशोध लेने  तथा उनसे युद्ध करने हेतु एक संधि में पोर्तुगीजों से हाथ मिलाया ।

अब्बक्का के राज्य की राजधानी उल्लाल किला अरब सागर के किनारे मंगलोर शहर से कुछ ही मीलों की दूरी पर था । वह एक ऐतिहासिक स्थान तथा एक तीर्थस्थल भी था, क्योंकि रानी ने वहां सुंदर शिव मंदिर निर्माण किया था। वहां एक नैसर्गिक अद्वितीय शिला भी थी, जो ‘रुद्र शिला’ के नाम से जानी जाती थी । पानी की बौछार होते ही हर पल उस शिला का रंग बदलता रहता था ।

गोवा को कुचलकर उसे नियंत्रण में लेने के पश्चात पोर्तुगीजों की आंख दक्षिण की ओर सागर के किनारे पर पडी । उन्होंने सबसे पहले १५२५ में दक्षिण कनारा के किनारे पर आक्रमण किया तथा मंगलोर बंदरगाह नष्ट किया । उल्लाल एक समृद्ध बंदरगाह तथा अरब एवं पश्चिम देशों के लिए मसाले के व्यापार का केंद्र था । लाभप्रद व्यापार केंद्र होनेक्षके कारण पोर्तुगीज, डच तथा ब्रिटिश उस क्षेत्र एवं व्यापारी मार्गों पर नियंत्रण पाने हेतु एक दूसरे से टकराते रहते थे । किंतु वे उस क्षेत्र में अधिक अंदर तक घुस नहीं पाए, क्योंकि स्थानीय सरदारों का प्रतिरोध बडा दृढ  था । स्थानीय शासकों ने जाति एवं धर्म से ऊपर उठकर कई गठबंधन बनाए ।

अब्बक्का भले ही जैनी थीं, उनके शासन में हिंदू एवं मुसलमानोंज्ञका अच्छा प्रतिनिधित्व था । उनकी सेना में सभी जाति एवं संप्रदाय के लोग, यहां तक कि मूगावीरा मच्छीमार भी सम्मिलित थे । उन्होंने कालिकत के जामोरीन तथा दक्षिण तुलूनाडू के मुसलमान शासनकर्ताओं के साथ गठबंधन बनाए । पडोस के बंगा राजवंश से विवाहबंधन से स्थानीय शासनकर्ताओं के गठबंधन और दृढ हो गए ।

पोर्तुगीजों ने १५२५ में दक्षिण कनारा तट पर पहला आक्रमण कर मंगलोर बंदरगाह नष्ट किया । इससे रानी सतर्क हो अपने राज्य की सुरक्षाज्ञकी तैयारी में जुट गई ।

अब्बक्का की रणनीति से पोर्तुगीज परेशान हो गए  तथा चाहते थे कि वह उनके सामने झुक जाएं किंतु अब्बक्का ने झुकना अस्वीकार किया । १५५५ में पोर्तुगीजों ने एडमिरल डॉम अलवरो दा सिलवेरिया को रानी से युद्ध करने भेजा । युद्ध में रानी ने एक बार पुन:  आक्रमणकारियों को खदेड़ दिया ।

१५५७-५८ में पोर्तुगीजों ने मंगलोर लूट कर उसे बर्बाद कर  युवा एवं बूढे स्त्री-पुरुषों की हत्या की,  मंदिर लूटा, जहाज जलाए तथा अंत में पूरे शहरमें आग लगा दी ।

१५६७ में पोर्तुगीजों ने पुन: उल्लाल पर आक्रमण किया,  महान अब्बक्का ने इसका भी प्रतिकार किया

१५६८ में पोर्तुगीज वाईसराय एंटोनियो नोरान्हा ने जनरल जोआओ पिक्सोटो के साथ सैनिकों का एक बेडा देकर उसे उल्लाल भेजा । उन्होंने उल्लाल पर नियंत्रण किया तथा राजदरबार में घुस गए किंतु अब्बक्का रानी भाग गई तथा एक मस्जिद में आश्रय लिया । उसी रात उसने २०० सैनिकों को इकट्ठा कर पोर्तुगीजों पर आक्रमण किया । लडाई में जनरल पिक्सोटो मारा गया तथा ७० पोर्तुगीज सैनिकों को बंदी बनाया गया । बाद में हुए आक्रमणों में रानी तथा उसके समर्थकों ने एडमिरल मस्कारेन्हस की हत्या  कर पोर्तुगीजों को मंगलोर किला खाली करने पर बाध्य किया ।

१५६९ मे पोर्तुगीजों ने केवल मंगलोर वापिस लिया । इतना ही नहीं अपितु कुंडपुर (बसरुर) पर विजय प्राप्त की । इस सब पाने के बाद भी अब्बक्का रानी खतरे का स्रोत बनी हुई थीं । रानी के परित्यक्त पति की मदद से वे उल्लाल पर आक्रमण करते रहे । घमासान युद्ध के पश्चात अब्बक्का रानी अपने निर्णय पर अटल थीं । १५७० में उन्होेंने अहमदनगर के बीजापुर सुलतान तथा कालिकत के झामोरीन से गठबंधन किया, जो पोर्तुगीजोंके विरुद्ध थे । झामोरीन का सरदार कुट्टी पोकर मार्कर अब्बक्का की ओरज्ञसे लडा तथा पोर्तुगीजों का मंगलोर का किला ध्वस्त किया किंतु वापिस आते समय पोर्तुगीजों ने उसे मार दिया । निरंतर हानि तथा पति के विश्वासघात से अब्बक्का हार गई और पकडी गई तथा उन्हें कारागृह में रखा गया । किंतु कारागृह में भी उन्होेंने विद्रोह किया तथा लडते-लडते ही अपने प्राण त्याग दिए ।

पारंपरिक कथनानुसार वह बहुत ही लोकप्रिय रानी थीं, जिसका पता इस बात से चलता है कि वह आज भी लोकसाहित्य का एक हिस्सा हैं । रानी की कहानी पीढी-दर-पीढी लोकसंगीत तथा यक्षगान (जो तुलुनाडू का लोकप्रिय थिएटर है)द्वारा पुन:पुन: दोहराई जाती है । भूटा कोला एक स्थानीय नृत्य प्रकार है, जिसमें अब्बक्का महादेवी के महान कारनामे दिखाए जाते थे । अब्बक्का सांवले रंग की, दिखने में बडी सुंदर थीं; सदैव सामान्य  वस्त्र पहनती थीं । उन्हें अपनी प्रजा की बडी चिंता थी तथा न्याय करने हेतु देर रात तक व्यस्त रहती थीं । किंवदंतियोंज्ञके अनुसार ‘अग्निबाण’ का उपयोग करने वाली वह अंतिम थीं । जानकारी के अनुसार रानी की दो बहादुर बेटियां थीं, जो पोर्तुगीजों के विरुद्ध उनके साथ-साथ लडी थीं । परंपराओंके अनुसार तीनों-मां तथा दोनों बेटियां एक ही मानी जाती हैं ।

अब्बक्का को उनके अपने नगर उल्लाल में बहुुत याद किया जाता है । हर वर्ष उनकी स्मृति में ‘वीर रानी अब्बक्का उत्सव’ मनाया जाता है । ‘वीर रानी अब्बक्का प्रशस्ति’ पुरस्कार किसी अद्वितीय महिला को दिया जाता है । १५ जनवरी २००३ को डाक विभाग ने एक विशेष कवर जारी किया । बाजपे हवाई अड्डे को तथा एक नौसैनिक पोत को रानी का नाम देने हेतु कई लोगों की मांग है । उल्लाल तथा बंगलुरूमें रानीज्ञकी कांस्य प्रतिमा स्थापित की गई है । ‘कर्नाटक इतिहास अकादमी’ ने राज्य की राजधानी के ‘क्वीन्स रोड’ को ‘रानी अब्बक्का देवी रोड’ नाम देने की मांग की है

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