राममंदिर भूमि खरीद विवाद: 97 साल पुराना है इतिहास, मुकदमें भी, पारिवारिक विवाद भी

अयोध्याः मंदिर की जिस जमीन की खरीद पर है विवाद, ऐसा है 97 साल पुराना उसका इतिहास

करीब तीन-चार दिनों से इस जमीन को लेकर देशभर में सुर्खियां बन रही हैं, लेकिन क्या आप इसका इतिहास जानते हैं. जानकारों की मानें, तो इस जमीन का करीब 97 साल पुराना लंबा इतिहास है, ऐसे में क्या है इस जमीन से जुड़ा किस्सा, आप जानिए…

स्टोरी हाइलाइट्स
अयोध्या में जमीन खरीद को लेकर विवाद ,मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट ने खरीदी थी जमीन, करीब सौ साल पुराना है इसका इतिहास
उत्तर प्रदेश के अयोध्या में बन रहे राम मंदिर से जुड़ी एक जमीन को लेकर हंगामा बरपा है. विपक्ष द्वारा आरोप लगाया गया है कि ट्रस्ट द्वारा खरीदी गई जमीन में घोटाला हुआ है और दो करोड़ की कीमत वाली जमीन को साढ़े 18 करोड़ में खरीदा गया है. पिछले करीब तीन-चार दिनों से इस जमीन को लेकर देशभर में सुर्खियां बन रही हैं, लेकिन क्या आप इसका इतिहास जानते हैं.

जानकारों की मानें, तो इस जमीन का करीब 97 साल पुराना लंबा इतिहास है, ऐसे में क्या है इस जमीन से जुड़ा किस्सा, आप जानिए…

97 साल पुराना है इतिहास…

अयोध्या की इस चर्चित जमीन के इतिहास को जानने के लिए 97 साल पीछे जाना होगा. बात है 1924 की है, उस समय हाजी फकीर मोहम्मद जागीरदार की हैसियत रखते थे, लेकिन उनके कोई संतान नहीं थी. इसलिये उन्होंने अपनी तमाम संपत्ति और जमीनों को वक्फनामे के तहत रजिस्टर्ड करा दिया. उन्होंने उसका संचालन करने के लिए एक कमेटी बनाई और पहले मुतवल्ली खुद बन गए.

इस कमेटी में जो लोग रखे गए, उनके नाम सैय्यद अब्दुल, बाबू केशव प्रसाद और जगन्नाथ सिंह थे. नियमों में इस बात का खास तौर पर उल्लेख था कि उनके खानदान का ही कोई व्यक्ति उनके बाद मुतवल्ली बनता रहेगा और उनके खानदान के लोग ही उसका चुनाव करेंगे. अगर कोई मुतवल्ली गलत कार्य करता है तो कमेटी के लोगों को अधिकार होगा कि उसको हटाकर मुतवल्ली के लिए दूसरे व्यक्ति का चुनाव कर लें. इसी के साथ यह भी व्यवस्था थी कि उक्त प्रॉपर्टी से जो भी आमदनी होगी उसे गरीब बच्चों की पढ़ाई में खर्च किया जाएगा.

हाजी फकीर मोहम्मद की मृत्यु के बाद खानदान के लोगों ने चुनाव करके खानदान के ही हाजी मोहम्मद रमजान को अगला मुतवल्ली नियुक्त कर दिया. मुतवल्ली हाजी रमजान की मृत्यु के बाद परंपरा और नियम के अनुसार चुनाव कराकर हाजी फ़ायक को मुतवल्ली चुना गया. इसी तरह हाजी फ़ायक की मृत्य के बाद महमूद आलम को मुतवल्ली चुना गया, 1994 में महमूद आलम की मृत्यु के बाद खानदान के लोगों ने मोहम्मद असलम को अगला मुतवल्ली चुन लिया

जमीन के हक पर वंशवाद की मुहर…

इस जमीन के पहले मुतवल्ली हाजी फकीर मोहम्मद के बाद से ही यह व्यवस्था रही थी कि जो भी मुतवल्ली चुना जाता था, वह तहसील जाकर मुतवल्ली की हैसियत से पहले वाले मुतवल्ली के स्थान पर अपना नाम दर्ज करा लेता था. इसी तरह एक के बाद दूसरे मुतवल्ली का नाम जमीन की खतौनी में दर्ज होता रहा. लेकिन महमूद आलम की मृत्यु के बाद नए मुतवल्ली जब अपना नाम दर्ज कराने तहसीलदार के पास गए, तो उन्हें पता चला कि भूतपूर्व मुतवल्ली महमूद आलम के पुत्र महफूज आलम, जावेद आलम, नूर आलम और फिरोज आलम का नाम पहले ही दर्ज हो चुका है.

इसके बाद तत्कालीन मुतवल्ली मोहम्मद आलम ने तहसीलदार के यहां एक प्रार्थना पत्र दिया, जिसमें उन्होंने प्रॉपर्टी को वक्फ का बताते हुए विरासत के आधार पर उक्त लोगों के खतौनी के दावे को गलत बताया और उनके नाम खतौनी से निरस्त करने की मांग की.

तत्कालीन तहसीलदार ने खानदान के लोगों की वंशावली बनवाई, लेखपाल और कानूनगो के साथ मौके का निरीक्षण किया. कानूनगो ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि अगर इस संपत्ति पर भूतपूर्व मुतवल्ली के परिवारवालों का नाम दर्ज होता है, तो उस खानदान में और लोग भी हैं जिनका नाम भी दर्ज होना चाहिए था. इस रिपोर्ट के बाद तत्कालीन तहसीलदार ने 29 जून 2009 को विरासत के आधार पर भूतपूर्व मुतवल्ली महमूद आलम के पुत्रों के खतौनी में दर्ज होने वाले आदेश को स्थगित कर दिया.

जब हुई पाठक दंपत्ति की एंट्री…

इसके बाद भूतपूर्व मुतवल्ली महमूद आलम के पुत्र महफूज आलम, जावेद आलम, नूर आलम और फिरोज आलम ने 2011 में हरिदास (हरीश पाठक का ही नाम) और उनकी पत्नी कुसुम के साथ मोहम्मद इरफान (सुल्तान अंसारी का पिता) के नाम 1 करोड़ रुपये में कुल जमीन 2.3340 हेक्टेयर, जिसमें गाटा संख्या 242/1, 242/2, 243,244,246 थे को 3 साल के लिए एग्रीमेंट कर दिया.

इसके बाद भूतपूर्व मुतवल्ली महमूद आलम के पुत्र महफूज आलम, जावेद आलम, नूर आलम और फिरोज आलम के पक्ष वाले 29 जून 2009 के ऑर्डर को बहाल कर दिया गया. यानी ये लोग एक बार फिर उक्त भूमि के मालिक बन गए थे.

लेकिन 2015 में तत्कालीन मुतवल्ली मोहम्मद असलम की मृत्यु हो गई. इसके बाद भूतपूर्व मुतवल्ली महमूद आलम के पुत्र महफूज आलम, जावेद आलम, नूर आलम और फिरोज आलम के पक्ष में हुए ऑर्डर को मोहम्मद असलम के भाई मोहम्मद नईम ने चैलेंज करते हुए अपर आयुक्त की कोर्ट में निगरानी दाखिल की. इसपर तत्कालीन अपर आयुक्त ने निगरानी स्वीकार करते हुए 1 सितंबर 2017 को मालिक बनाने वाले आदेश को स्टे कर दिया.

इसके बाद भी भूतपूर्व मुतवल्ली महमूद आलम के पुत्र महफूज आलम, जावेद आलम, नूर आलम और फिरोज आलम ने उक्त भूमि को 15 नवम्बर 2017 को 2 करोड़ रुपये में हरिदास जिसका नाम यहां हरीश कुमार पाठक हो जाता है और उसकी पत्नी कुसुम को बेच दिया. लेकिन इस बार 2011 के एग्रीमेन्ट में इनके साथ रहे इरफान अंसारी (सुल्तान अंसारी का पिता) का नाम जमीन की रजिस्ट्री में शामिल नहीं था.

इसके बाद कुसुम पाठक और हरीश पाठक के बैनामे को चैलेंज करते हुए मोहम्मद नईम और वहीद अहमद की तरफ से खारिज दाखिल के समय 2 आपत्तियां दायर की गईं. जिसमें कहा गया कि यह वक्फ की प्रॉपर्टी है और यह खानदानी वक्फ है, लिहाजा जमीन की रजिस्ट्री शून्य है

बसपा के विधायक का भी जुड़ा था नाम…

इस सबके बीच यहां पर एंट्री फैज़ाबाद जनपद के बीकापुर क्षेत्र से बसपा विधायक रहे जितेंद्र सिंह बबलू की होती है. दरअसल जमीन खरीदने के बाद ही हरीश पाठक और उनकी पत्नी कुसुम पाठक ने उक्त जमीन को 20 नवम्बर 2017 को 2 करोड़ 16 लाख में जितेंद्र सिंह बबलू को रजिस्टर्ड एग्रीमेन्ट दिया. लेकिन दो साल के लंबे इंतजार के बाद भी जब जमीन का खारिज दाखिल हरीश पाठक और कुसुम पाठक के पक्ष में नहीं हो पाया तो जितेंद्र सिंह बबलू ने उनसे एग्रीमेन्ट में दिया पैसा वापस ले लिया और एग्रीमेन्ट कैंसिल करा दिया.

यह वह समय था जब हरीश पाठक के ऊपर धोखाधड़ी के मामले में मुकदमे दर्ज हो रहे थे इसलिए वह आर्थिक रुप से भी मुश्किल में थे. इसीलिए उन्होंने 17 सितंबर 2019 को 9 लोगों से इस बार इसी जमीन का एग्रीमेन्ट 2 करोड़ रुपये में कर लिया.

2011 में हुए इसी जमीन के एग्रीमेन्ट में जहां अयोध्या के प्रॉपर्टी डीलर इरफान अंसारी शामिल थे, वहीं 8 साल बाद इसी जमीन के एग्रीमेन्ट में उनका बेटा सुल्तान अंसारी, उनकी जगह उन 9 लोगों में शामिल था जिन्होंने इस जमीन का एग्रीमेन्ट हरीश पाठक और कुसुम पाठक से कराया.

इसी साल मार्च में हुई राम मंदिर ट्रस्ट की एंट्री…

18 मार्च 2021 को इस जमीन पर विधिक रूप से श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र की एंट्री होती है. सबसे पहले सुल्तान समेत 9 लोगों के एग्रीमेंट समाप्त कराए जाते हैं. उसी के बाद हरीश पाठक और कुसुम पाठक, सुल्तान अंसारी और एक नए व्यक्ति रवि तिवारी को दो करोड़ रुपए में उक्त भूमि का बैनामा कर देते हैं. जिसके 5 मिनट बाद ट्रस्ट इसी भूमि को सुल्तान अंसारी और रवि तिवारी से साढ़े 18 करोड़ में बैनामा ले लेता है. इसी के साथ यह जमीन और इसका विवाद सुर्खियों में आ जाता है.

यहां पर यह जानना भी जरूरी है कि यह जमीन हरीश पाठक और कुसुम पाठक के नाम रजिस्टर तो थी, लेकिन ख़रीज दाख़िल (मालिकाना हक नामांतरण) उनके नाम नहीं हुआ था. जमीन खरीदने के बाद से ही इसको लेकर विवाद बरकरार था. पाठक दंपति 2017 से नामांतरण नहीं करा पाए थे, लेकिन 19 अप्रैल 2021 को फैज़ाबाद तहसील के मौजूदा नायब तहसीलदार हृदय राम तिवारी की अगुवाई में करवा लिया गया.

यानी 18 मार्च 2021 को जमीन बेचने के बाद पाठक दम्पत्ति के नाम पहली बार वास्तविक रूप से मालिक के रूप में जमीन की खतौनी में दर्ज हुआ. अब जाहिर है कि एग्रीमेन्ट के बाद जमीन का बैनामा जब श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के पक्ष में होगा, तब इसके 35 दिन बाद पाठक दम्पत्ति का नाम खारिज कर पहले सुल्तान अंसारी और रवि तिवारी का नाम खतौनी में दर्ज होगा, उसके बाद ट्रस्ट का नाम मालिक के तौर पर खतौनी में दर्ज होगा.

इसी सबको लेकर मंदिर की जमीन पर विवाद हुआ और आरोप लगाया गया कि जमीन की खरीद में गड़बड़ी हुई है, जिसके बाद ट्रस्ट की ओर से सफाई दी गई है और हर आरोप को नकारा गया है.

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