राम जन्मभूमि मंदिर के लिए सभी वर्ग-समुदाय के पुजारियों की भी तैयारियां

अयोध्या के राम मंदिर के लिए तैयार हो रहे दलित पुजारी, मिल रही है ये खास ट्रेनिंग
जितेंद्र भारद्वाज,नई दिल्ली 19 जून।अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए कई तरह की प्रशासनिक गतिविधियां शुरू हो चुकी हैं। गृह मंत्रालय में इसके लिए विशेष डेस्क बनाया गया है। ले-आउट प्लान एवं दूसरी बातें तय हो रही हैं। इन सबके बीच राम मंदिर निर्माण को लेकर विश्व हिंदू परिषद (विहिप) भी सक्रिय है। विहिप की सोच है कि अयोध्या के राम मंदिर से सामाजिक समरसता का एक नया अध्याय शुरू हो। राम मंदिर में हिंदू समाज के वंचित लोगों, अर्थात दलितों को पुजारी बनने का हक मिले।

अर्यक पुरोहित विभाग दे रहा ट्रेनिंग

हालांकि यह सब मंदिर निर्माण ट्रस्ट के अधिकार क्षेत्र में आता है, लेकिन विहिप ने अपने स्तर पर दलित पुजारियों को ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया है। विहिप नेताओं का ऐसा विश्वास है कि मंदिर निर्माण होने के बाद वहां दलित पुजारियों को रखा जा सकता है। इसके लिए विहिप का ‘अर्यक पुरोहित विभाग’ दलित समुदाय के लोगों को खास तरह की ट्रेनिंग दे रहा है। विहिप के प्रवक्ता विनोद बंसल बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए केंद्र सरकार अभी ट्रस्ट गठित करने में जुटी है।

 

इसी ट्रस्ट के जरिए पुजारियों का भी चयन होना है। विश्व हिंदू परिषद का मानना है कि राम मंदिर में दलित पुजारी की नियुक्ति के जरिए सामाजिक समरसता का बड़ा संदेश दिया जा सकता है। विहिप कई दशकों से अपने स्तर पर सामाजिक भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए विशेष प्रयास करता रहा है। अर्यक पुरोहित विभाग, यह विहिप का एक ट्रेनिंग विंग है। इसमें खासतौर पर धार्मिक प्रयोजन से जुड़े लोगों को ट्रेनिंग दी जाती है। इन्हीं में पुजारी भी आते हैं।

विहिप ने अपनी इस विंग के जरिये अभी तक सैंकड़ों मंदिरों में दलित एवं वंचित समुदाय के लोगों को पुजारी नियुक्त कराया है। विहिप को उम्मीद है कि राम मंदिर के लिए जो भी ट्रस्ट बनेगा, वह सामाजिक समरसता के महत्व को ध्यान में रखेगा।

दो से तीन माह की ट्रेनिंग में शामिल होता है ये सब…

बंसल के अनुसार अर्यक पुरोहित विभाग के पास पुजारियों की सूची रहती है। कितने लोगों को पुजारी की ट्रेनिंग कब और कैसे देनी है, विभाग ही तय करता है। ट्रेनिंग के लिए कम से कम दो तीन माह का समय चाहिए। इस दौरान पुजारी की ट्रेनिंग ले रहे व्यक्ति को कई तरह के धार्मिक अनुष्ठानों से गुजरना पड़ता है। पूजा की विधि और मंदिर से जुड़े दूसरे कामकाज सिखाए जाते हैं। बारीकि से संस्कारों की विधि बताई जाती है। कई प्रतिष्ठित धार्मिक संस्थानों का दौरा कराया जाता है।

 

प्रमुख धार्मिक गुरुओं से मुलाकात कराते हैं। ये ट्रेनिंग शिविर जिला स्तर, प्रांत और राष्ट्रव्यापी स्तर पर चलते रहते हैं। पुजारी के लिए काबिल लोगों का चयन करना, यह खुद में ही एक चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया होती है। ऐसे लोगों को साक्षात्कार के विभिन्न स्तरों से गुजरना पड़ता है। ट्रेनिंग के दौरान भाषा सबसे ज्यादा अहम होती है। यदि कोई आवेदक उत्तर भारत का है, तो उसे कोई दिक्कत नहीं आती।

वहीं यदि वह दक्षिण भारत या पूर्वोत्तर के राज्यों से है, तो भाषाई बाधा सामने आती है। ऐसे में ट्रेनिंग की अवधि भी उसी हिसाब से बढ़ा दी जाती है।

दलित कार्यकर्ता ने रखी थी पहली ईंट

बता दें कि नवंबर 1989 को जब राम मंदिर का शिलान्यास हो रहा था, तब पहली ईंट बिहार के दलित कार्यकर्ता कामेश्वर चौपाल के हाथों रखवाई गई थी। हालांकि उस वक्त इसके जरिए यह संदेश देने का प्रयास किया गया कि राम मंदिर आंदोलन के पीछे संपूर्ण हिंदू समाज खड़ा है। राम मंदिर का निर्माण होने के बाद वहां पर यदि दलित पुजारी की नियुक्ति होती है, तो विहिप को सबसे ज्यादा खुशी होगी।

यही वजह है कि विहिप दलित पुजारियों को तैयार करने में लंबे समय से जुटा हुआ है। विहिप में इसके लिए धर्माचार्य संपर्क विभाग और अर्चक पुरोहित विभाग बनाया गया है। अनुसूचित वर्ग के लोगों को पूजा-पाठ के लिए प्रशिक्षित कर पुजारी बनाने का अभियान शुरू किया गया है।

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