चंद्रशेखर की याद क्यों दिलाती है राहुल की ‘ भारत जोडो यात्रा ‘?

तीन महासागरों का संगम, कन्याकुमारी का ‘गुड लक’…राहुल गांधी क्या चंद्रशेखर वाला करिश्मा दोहरा पाएंगे?

सुधाकर सिंह |

कन्याकुमारी से शुरू राहुल गांधी की भारत जोडो यात्रा श्रीनगर में खत्म होगी। इससे पहले 1983 में चंद्रशेखर ने भारत यात्रा निकाली थी।

Rahul Gandhi Bharat Jodo Yatra: राहुल गांधी ने शुरू की भारत जोड़ो यात्रा, जानिए क्या है इसका गोल?

हाइलाइट्स
1-चंद्रशेखर ने 6 जनवरी 1983 को कन्याकुमारी से शुरू की थी पदयात्रा
2-4200 किमी की यह पदयात्रा 25 जून 1983 को दिल्ली में पूरी हुई थी
3-राहुल गांधी 12 राज्यों में 3570 किमी की भारत जोड़ो यात्रा पर हैं
4-कन्याकुमारी से शुरू हुई यात्रा श्रीनगर में 150 दिन बाद खत्म होगी

कहते हैं कि दिल्ली का रास्ता लखनऊ से होकर जाता है। ये रास्ते कई बार पदयात्राओं के भी गवाह बनते रहे हैं। गुलाम भारत में ऐसी ही पदयात्रा ने आजादी की अलख जगाई तो आजाद भारत में इन यात्राओं ने सुस्त पड़ी पार्टियों में जान फूंक दी। नमक कानून तोड़ने को अहमदाबाद से दांडी तक 241 किमी की पदयात्रा महात्मा गांधी ने 25 दिन में पूरी की। आजाद भारत के इतिहास में राजनीतिक यात्राओं में चंद्रशेखर की भारत यात्रा को कौन भूल सकता है। कन्याकुमारी में तीन महासागरों का संगम है- हिंद महासागर, बंगाल की खाड़ी और अरब सागर। कन्याकुमारी जाने वाले लोगों के लिए उगते और डूबते सूरज को देखने के साथ ही यह भी बड़ा टूरिस्ट प्वाइंट है। इसी कन्याकुमारी से 6 जनवरी 1983 को बागी बलिया के दिग्गज नेता चंद्रशेखर ने यात्रा शुरू की। 25 जून 1983 को दिल्ली के राजघाट पर यह यात्रा खत्म हुई। तकरीबन 4200 किमी की इस यात्रा में चंद्रशेखर रोज 40 से 45 किमी पैदल चलते थे। इस यात्रा के सात साल बाद चंद्रशेखर दिल्ली का रास्ता पूरा करने में कामयाब रहे और पीएम की कुर्सी पर चंद महीनों के लिए बैठे। ऐसे में एक सवाल यह भी उठता है कि क्या राहुल गांधी चंद्रशेखर वाले करिश्मे को दोहरा पाएंगे?

‘पदयात्राएं फायदे का सौदा साबित हुई हैं’

राहुल गांधी की इस यात्रा के क्या मायने हैं? इस यात्रा को कन्याकुमारी से शुरू करने का क्या मकसद है? इन सवालों पर वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस ने एनबीटी ऑनलाइन को बताया, ‘भारत में जितनी भी यात्राएं निकाली गईं, चाहे वह राजनैतिक परिवर्तन यात्रा हो या सामाजिक, वे यात्राएं निकालने वाले व्यक्ति या संगठन के लिए लाभदायक ही साबित हुई हैं। अपने पिता वाईएस राजशेखर रेड्डी के निधन के बाद जगन मोहन रेड्डी ने आंध्र प्रदेश में ओदार्पु यात्रा (हिंदी में अर्थ सांत्वना) निकाली थी। उन्होंने कहा था कि घर नहीं लौटेंगे तो यात्राओं में रहते ही चुनाव जीत गए।

मुरली मनोहर जोशी की भी तिरंगा यात्रा निकली थी। उस यात्रा का चुनावी राजनीति से लेना-देना नहीं था लेकिन उसने भी भारतीय जनता पार्टी की जड़ों को मजबूत किया ही था। खास तौर से दक्षिण के उन राज्यों में जहां बीजेपी अछूत की दृष्टि से देखी जाती थी।’

 मुद्दा बनाने की कोशिश भी यात्रा का गोल

चंद्रशेखर की पदयात्रा में पांच बातों पर जोर दिया गया था- पीने का पानी, हर बच्चे की पढ़ाई, कुपोषण से लड़ाई, स्वास्थ्य का अधिकार और सामाजिक सद्भाव। ये मुद्दे आज भी प्रासंगिक हैं।

वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं, ‘इस यात्रा के जरिए कोशिश है कि डिस्कोर्स को बदला जाए। नरेंद्र मोदी की तरफ से राष्ट्रवाद और गवर्नेंस डिलिवरी का विमर्श बहुत मजबूत है। एक डिस्कोर्स केजरीवाल पैदा कर रहे हैं- साफ छवि और डिलिवरी का। ऐसे में सामाजिक सद्भाव को डिस्कोर्स में लाना और उसके साथ कुछ बुनियादी मुद्दों को जोड़ना यह एक नया विमर्श पैदा करने की कोशिश है। महंगाई, रोजगार, स्वास्थ्य और शिक्षा का अधिकार मूलभूत मुद्दे हैं। ये सारी कवायद 2024 की है। समता, समानता और सद्भाव ये जनता के बीच में मुद्दा बनें, ऐसी कोशिश है।’

चंद्रशेखर ने क्यों लिया था पदयात्रा का फैसला?

राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश और रविदत्त बाजपेयी ने चंद्रशेखर पर एक किताब लिखी है: चंद्रशेखर- द लास्ट आइकन ऑफ आइडियोलॉजिकलपॉलिटिक्स। हरिवंश कभी चंद्रशेखर के सूचना सलाहकार भी रहे थे। इस किताब के हवाले से हरिवंश ने एक इंटरव्यू में कहा, ‘जनता पार्टी में चल रहे राजनैतिक विवाद से चंद्रशेखर का मन खिन्न था। वो किसी तरह इससे निकलना चाह रहे थे। घुटन को खत्म करने के लिए उनके मन में यात्रा का विचार आया। पहले उन्होंने पार्टी के दो नेताओं को दक्षिण भारत भेजा। लेकिन नेताओं ने लौटकर कहा कि भारत यात्रा का विचार कष्टदायी और बेमतलब है। इसके बाद दो युवा आए जो समाज में परिवर्तन के लिए कुछ करना चाहते थे। फिर चंद्रशेखर ने यात्रा का फैसला लिया। हालांकि चंद्रशेखर ने यह भी साफ कहा था कि यह पार्टी का कार्यक्रम नहीं है।’

‘ये यात्रा सफल रही तो पूरब से पश्चिम की यात्रा का प्लान’

यात्रा में उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे बड़े राज्यों पर जोर नहीं है। उदाहरण को उत्तर प्रदेश में बुलंदशहर को छू भारत जोड़ो यात्रा दिल्ली पहुंच जाएगी। इस रणनीति को किस तरह से देखा जाए?

इस सवाल पर सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं, ‘यात्रा के रूट में ज्यादातर वे हिस्से हैं, जहां कांग्रेस सीधे मुकाबला करती है। चाहे वो केरल हो, कर्नाटक हो, महाराष्ट्र या मध्य प्रदेश। कांग्रेस को सांगठनिक दृष्टि से मजबूत करने और लगातार हार से हताश कार्यकर्ताओं में थोड़ा जोश भरेगी। यात्रा के स्वरूप में सिविल सोसायटी के लोगों को भी शामिल किया गया है, जिससे पब्लिक कनेक्ट अच्छा बने। यात्रा में पार्टी के झंडे नहीं रखे गए हैं।  संगठन रूप में कांग्रेस को और नेता के रूप में राहुल गांधी को ये यात्रा फायदा पहुंचा सकती है। सब कुछ यात्रा की सफलता पर निर्भर है। एक यात्रा पूरब से पश्चिम की ओर का प्लान है। ये पूर्वोत्तर के राज्यों से शुरू होकर गुजरात तक जाएगी। उस यात्रा में उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड के काफी हिस्से कवर करने की योजना है। उत्तर से दक्षिण के स्ट्रेच में कुछ हिस्से ज्यादा छू जाते हैं और कुछ कम। उत्तर प्रदेश बड़ा राज्य है, पर इस बार बुलंदशहर से होकर दिल्ली जाने का रूट है। लेकिन पूरब से पश्चिम की यात्रा में उत्तर प्रदेश के ज्यादा हिस्से कवर करने की योजना है। एक वजह और है कि यात्रा को दक्षिण में ज्यादा रोका जा रहा है और उत्तर के हिस्सों में उतना विस्तार नहीं दिया जा रहा है। संघीय ढांचे को खतरे की बात गैर उत्तर के राज्यों से होती रही है। राहुल गांधी और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने भारत जोड़ो यात्रा शुरू करते हुए इसका जिक्र किया। सद्भाव, एकता और भाईचारे के बहाने उस मुद्दे को छूना भी एक गोल है।’

सब कुछ इस यात्रा की सफलता पर निर्भर है। एक यात्रा पूरब से पश्चिम की ओर करने का प्लान है। ये पूर्वोत्तर के राज्यों से शुरू होकर गुजरात तक जाएगी। उस यात्रा में उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड के काफी हिस्से कवर करने की योजना है। उत्तर से दक्षिण के स्ट्रेच में कुछ हिस्से ज्यादा छू जाते हैं और कुछ कम। उत्तर प्रदेश बड़ा राज्य है, पर इस बार बुलंदशहर से होकर दिल्ली जाने का रूट है। लेकिन पूरब से पश्चिम की यात्रा में यूपी के ज्यादा हिस्सों को कवर करने की योजना है।
सिद्धार्थ कलहंस, वरिष्ठ पत्रकार

 

नीतीश या राहुल कौन होगा 2024 का विपक्षी चेहरा?

बिहार में लालू यादव की आरजेडी से फिर दोस्ती और सरकार बनाने के बाद हाल के दिनों में नीतीश कुमार दिल्ली में काफी सक्रिय हैं। ऐसे में 2024 के चुनाव में विपक्षी चेहरे पर क्या कोई एक राय बन पाएगी? इस सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं, ‘वीपी सिंह ने कभी नहीं कहा, चंद्रशेखर ने कभी नहीं कहा कि हमको प्रधानमंत्री बनना है। जब भी इस तरह का कोई राजनैतिक अभियान छेड़ता है तो कहने से बचते हैं। निसंदेह नीतीश कुमार की ऐसी इच्छा जरूर होगी। लेकिन दिल्ली आकर सबसे पहले उन्होंने राहुल गांधी से मुलाकात की। विपक्षी एकता और गठबंधन के लिए वह कांग्रेस पार्टी को सबसे बड़ा घटक मानते हैं। यह भी निर्भर करता है कि राहुल गांधी कितना तैयार हो पाते हैं लेकिन ये बात जरूर है कि नीतीश कुमार विपक्ष के एक मजबूत दावेदार हैं। उन्होंने एनडीए के साथ या एनडीए से अलग होकर राजनीति की है तो उनके धर्मनिरपेक्ष रुख, सामाजिक न्याय और शासन पर उंगली नहीं उठ पाई है। उनकी दावेदारी बड़ी है। उनके मुकाबले अरविंद केजरीवाल की दावेदारी कमजोर दिखती है। अभी पैन इंडिया मौजूदगी नहीं बन पाई है। अंत में राहुल गांधी और नीतीश कुमार में ये तय हो सकता है कि कौन चेहरा बने। इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि राहुल गांधी विपक्ष के सबसे बड़े दल के नेता हैं। कश्मीर से कन्याकुमारी और पूरब से पश्चिम तक उनकी पैन इंडिया इमेज है।’

जब बागी बलिया के ‘युवा तुर्क’ ने निकाली थी भारत यात्रा, आज से राहुल गांधी 150 दिन के मिशन पर

चंद्रशेखर- द लास्ट आइकन ऑफ आइडियोलॉजिकल पॉलिटिक्स का हवाला देते हुए हरिवंश ने इंटरव्यू में बताया था, ‘महज 3500 रुपये के साथ चंद्रशेखर ने इस यात्रा को शुरू किया था। पदयात्रा के दौरान ठहरने और भोजन का खर्च यात्रा में शामिल लोग उठाते थे। कई बार गांव के लोग खर्च करते थे। दिल्ली में जब यात्रा संपन्न हुई तो चंद्रशेखर के पास साढ़े सात लाख रुपये बच गए। इस पैसे से उन्होंने पूरे देश में भारत यात्रा केंद्र बनाए। राजनैतिक चेतना के लिहाज से तो चंद्रशेखर की यात्रा सफल रही थी। देश के तमाम इलाकों में यात्रा को समर्थन भी मिला लेकिन दिल्ली में अपेक्षा के मुताबिक जनप्रतिक्रिया नहीं मिली। पदयात्रा समाप्त होने के अगले दिन चंद्रशेखर रामलीला मैदान पहुंचे।’

पदयात्रा के 7 साल बाद प्रधानमंत्री बने थे चंद्रशेखर

वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय ने बीबीसी को दिए इंटरव्यू में कहा था, ‘उस दिन रामलीला मैदान में भारत यात्रा के यात्रियों और सहयात्रियों के अलावा महज 100 से 200 अन्य लोग ही थे। मुझे यह देख काफी निराशा हुई। इसके बाद मैं उनका भाषण सुनने रामलीला मैदान में नहीं रुका। एक गांधीवादी विचारक से मैंने पूछा कि दिल्ली के लोगों ने चंद्रशेखर की इतनी निर्मम उपेक्षा क्यों की तो उन्होंने कहा- भारत में पदयात्रा चाहे पांच हजार किलोमीटर की हो या 100 किलोमीटर की, ये वीरता नहीं माना जाता। इससे किसी तरह का वीरभाव समाज में पैदा नहीं होता लिहाजा ऐसे लोगों का स्वागत नहीं किया जाता है।’ हालांकि यात्रा के साढ़े सात साल बाद बदले राजनैतिक समीकरणों के बीच चंद्रशेखर कांग्रेस के समर्थन से देश के प्रधानमंत्री बन गए। 10 नवंबर 1990 से 21 जून 1991 तक वह देश के आठवें प्रधानमंत्री रहे। एक बार फिर कन्याकुमारी से राहुल गांधी को किसी चमत्कार का इंतजार है।

6 जनवरी  25 जून 1983 तक कन्याकुमारी से राजघाट (महात्मा गांधी की समाधि) तक भारत यात्रा न‍िकाली थी। यह मैराथन पदयात्रा 4260 किलोमीटर की थी। चंद्रशेखर की इस पदयात्रा का मकसद लोगों से मिलना और उनकी समस्याओं को समझना था। उन्होंने केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश और हरियाणा सहित देश के अलग-अलग ह‍िस्‍सों में 15 भारत यात्रा केंद्रों की स्थापना की थी ताकि वे देश के पिछड़े इलाकों में लोगों को शिक्षित करने और जमीनी स्तर पर कार्य कर सकें।

चंद्रशेखर की भारत यात्रा के दौरान लोगों की बुनियादी चीजों की समस्‍या उभरकर सामने आई। द‍िल्‍ली की मीट‍िंग में उन्‍होंने बताया क‍ि रोटी, कपड़ा, मकान, पढ़ाई और दवाई समेत सात चीजों का इंतजाम किए बिना व‍िकास संभव नहीं है।

यात्रा के  सात साल बाद प्रधानमंत्री बने चंद्रशेखर

चंद्रशेखर की यात्रा के बाद जनता दल को लेकर लोगों में भरोसा द‍िखा था। हालांक‍ि इंद‍ि‍रा गांधी की हत्‍या के बाद बाजी पलट गई। इसके बाद 1989 में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा और जनता दल की सरकार बनी। इस दौरान वीपी सिंह का नाम संसदीय दल के नेता के रूप में चुना गया। हालांक‍ि बाद में वीपी सरकार ग‍िर गई। इस पर कांग्रेस ने जनता दल को समर्थन द‍िया और चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने। चंद्रशेखर 10 नवंबर 1990 को देश के 8वें प्रधानमंत्री बने। इसके बाद उन्‍होंने 21 जून 1991 तक प्रधान मंत्री के रूप में कार्य किया। उन्होंने जनता दल के एक अलग गुट की अल्पमत सरकार का नेतृत्व किया।

चंद्रशेखर के नक्‍शेकदम पर राहुल गांधी

राजनीत‍िक जानकारों की माने तो चंद्रशेखर की भारत यात्रा से प्रेर‍ित  कांग्रेस नेता राहुल गांधी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ निकाल रहे हैं। यात्रा 12 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों से गुजरेगी और लगभग 150 दिनों की इस पदयात्रा में 3,570 किलोमीटर की दूरी तय होगी। यात्रा का मकसद यह संदेश देना भी है कि कांग्रेस ही वह पार्टी है जो भारत को जोड़कर रख सकती है। जनता तक यह संदेश भली भांति पहुंच गया तो इससे पार्टी में भी फिर से जान आएगी।

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